02.06.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 02.06.2017
Updated: 03.06.2017

Update

जो अकेले चल कर मंजिल तक पहुचने का हौसला रखते है गैर भी उनके रास्ते मे हमसफ़र बन ही जाते है ऐसा इसलिये कहा गया है कि यदि आप किसी कार्य को करने का फेसला कर ले और संकल्प के साथ उस कार्य को करने के लिये दृढ़ता से आगे बढे तो आप को देखते हुये भीड़ भी आपके साथ साथ चल पड़ेगी

आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महाराज के मन मे भारत देश को समृद्ध शाली देश बनाने का जो सपना था उसे साकार करने के लिये उन्होंने मनुष्य को स्वावलंबी बनाने के लिये हथकरगा उद्योग को माध्यम बनाया और उनके इस मन्तव्य को जान कर कुछ उच्च शिक्षा प्राप्त नव युवकों ने अपनी नोकरी को छोड़ कर आचार्य भगवन के सपनो को साकार करने में अपनी पूरी ताकत लगा दी परिणाम यह हुआ कि आचार्य भगवन के आशीर्वाद से आज वर्तमान में लग्वःग 400 हथकरगा यंत्र जिन पर वस्त्रों का निर्माण हो रहा है सभी जगहों पर चालू हो चुके हैं जिन में प्रति व्यक्ति को अपनी मेहनत के हिसाब से अधिक धन का उपार्जन हो रहा है

*वर्तमान में कई सारे केंद्र जो हथकरगा को चलाने का प्रशिक्षण तथा यंत्र को लगाने की विधि को विधिवत बताते है और उन उपकरणों से बने हुए उत्पादों को हम सभी तक पहुचाने का सुलभ माध्यम उतपन्न कराते है* इसी क्रम में *4 जून को श्री क्षेत्रपाल जी मंदिर ललितपुर* में *हथकरगा केंद्र मुंगावली* में बने कुछ उत्पाद बिक्री हेतु उपलब्ध रहेंगे जो आपको आसानी से पूरे दिन प्राप्त होंगे अतः आप सभी से निवेदन है कि आप *4जून की प्रातः से लेकर शाम* तक अपने अपने जरूरत की वस्तुओं को खरीद स्वावलंबन के इस आंदोलन को ओर भी गति प्रदान करे_
*आचार्य भगवन हिंदी भाषा, हथकरगा से स्वाबलंबी बनना, गौ पालन, उन्नत खेती जैसी योजनाओं से भारत को विकासशील देशों में अग्रणी देखना चाहते है ऐसे संत जिनकी विशाल सोच देश हित मे सर्वोपरि है आचार्य भगवंत के चरणों मे सादर नमन*

*श्रीश ललितपुर*

🔔🚩 *पुण्योदय विद्यासंघ*🚩🔔

Source: © Facebook

News in Hindi

समझदार, मझधार में नही होता -आचार्य श्री विद्यासागर जी #AcharyaVidyasagar 😊😊

चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ मे विराजित आचार्यश्री ने रविवारीय प्रवचन श्रंखला में अपने मांगलिक उद्बोधन कहा एक 'व्यक्ति ' बैठा है, इधर उधर देख रहा है,वह खुद बैठा है,उसे किसी ने नही बिठाया, उसने देखा.. 'दूसरा व्यक्ति ' उधर से इधर आ रहा है तो उसने उसे रोका ऐ! रुको तुम!.. उधर नही जा सकते, मैं यही बैठा हूँ..तुम भी बैठो।

दूसरे पर इसका प्रभाव न देख कहा पुनः कहा जब तक मैं यहां बैठा हूं तब तक आगे न बढ़ना! विश्वास रखो आगे बढे तो तुम्हारी 'अंतिम स्वांस 'होगी।
दोनों की एक दुसरे की भाषा के बजाय भावों से वार्ता चल रही थी, गर्मागर्मी के साथ साथ बात होने पर, दूसरा विचार करता है "देखता हूं इसने क्यों रोका। "
समीप की प्राकृतिक गुफा में विराजित मुनिराज सामायिक काल में सामायिक कर रहे थे।सुअर के रास्ता रोके जाने पर सिंह क्रुद्ध हुआ उसने कहा "मैं छोडूंगा नही।"
सूअर ने कहा "मैंने आपको कुछ नही कहा, आप मेरे रास्ते में आ गए, मैं अपना कर्तव्य करूँगा।

सिंह का परिणाम मुनिराज को मारने का था, लेकिन सूअर का, सिंह से लड़ने का नही था सूअर का आभिप्राय,मुनिराज की सुरक्षा करना था, "उनकी सामायिक निर्विघ्न सानन्द संम्पन हो यह सूअर का आशय था। "
सिंह का भी सूअर से लड़ने का इरादा नही था, सिंह जंगल का राजा था, वह मृगेंद्र था सूअर के ललकारे जाने पर उसे लड़ना पड़ा। दोंनो अपने अपने आभिप्राय को समझने वाले थे,"सूअर ने सिंह के आभिप्राय को समझने के लिए कोई प्रशिक्षण या विश्वविद्यालय में प्रवेश नही लेना पड़ा था। " दूसरों के आभिप्राय को समझने के लिए बहुत कसरत की आवश्यकता होती है
सामने वाला सिंह है,वह शक्तिशाली होने के साथ साथ चंचल भी है, लेकिन सूअर चंचल नही है,लेकिन उसकी शक्ति भी कम नही है।सिंह ने पंजे के नाखून और दांतो से सूअर को घायल कर दिया,सूअर ने भी सिंह पर आक्रमण कर अपने दांतो से सिंह को करारा जवाब दिया। दोनों आर्तध्यान से लड़ते लड़ते दोनों धराशाई हो गए।सूअर मरकर स्वर्ग में गया, जबकि सिंह मर कर नरक में गया, सम्भव है सुअर स्वर्ग से यहाँ आकर मोक्ष भी चला गया हो,लेकिन शेर नरक में जाने के बाद अभी कहा है यह सिर्फ केवली भगवान बता सकते है।*

_*इस घटना का उल्लेख करते हुए परमपूज्य स्वामी समन्तभद्र ने रत्नकरण्डक श्रावकाचार में सूअर के इस कार्य को "चारों दान में श्रेष्ठ दान आश्रयदान "में सूअर के इस योगदान को सबसे ऊपर रखा।*_

_*समझदार कभी मझधार में नही रहता इसी का नाम समझदार है।

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