30.05.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 30.05.2017
Updated: 01.06.2017

Update

👉 शाहीबाग (अहमदाबाद) - मुनिश्री को वार्षिक प्रतिवेदन "बढते कदम" भेंट
👉 जयपुर - सिग्नेचर प्रोजेक्ट "फ़ूड फॉर हंगर" का आयोजन
👉 गगांनगर - मुमुक्षु दीक्षार्थी जयंत का मंगल भावना समारोह आयोजित

प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻

Source: © Facebook

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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*

अनुक्रम - *भीतर की ओर*

*अभेद परिधान*

ध्येय के साथ अभेद स्थापित कर जप अथवा ध्यान करना अभेद प्रणिधान का प्रयोग है ।ध्यान करने वाला ध्येय के वाचक पद का ज्ञानकेन्द्र पर ध्यान करे । फिर वाचक के अर्थ के साथ एकात्मकता स्थापित करे । वह मैं ही हूं ऐसा अनुभव करे । इस अभ्यास से अभेद प्रणिधान सिद्ध हो जाता है ।
अभेद प्रणिधान की सिद्धि के लिए निरंतर और दीर्धकाल तक अभ्यास करना जरूरी है ।

30 मई 2000

प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 68* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*भवाब्धिपोत आचार्य भद्रबाहु*

*वैशिष्ट्य*

आचार्य भद्रबाहु संयम-सूर्य आचार्य संभूतविजय के सतीर्थ्य के श्रमण थे। सकलागम पारगामी विद्वान् थे। दशाश्रुतस्कंध आदि छेदसूत्रों के रचयिता एवं महाप्राण ध्यान साधना के विशिष्ट साधक थे। वे अध्यात्म के सबल प्रतिनिधि थे। श्रुतधारा को अविरल और अखंडित रूप में श्रुतधर आचार्य संभूतविजय से ग्रहण कर उसे सुरक्षित रखने वाले अंतिम श्रुतधर थे। उनका जीवन श्रुतसाधना, योगसाधना, और साहित्य साधना का त्रिवेणी संगम था। उनसे जैन-दर्शन की महती प्रभावना हुई।

*समय-संकेत*

आचार्य भद्रबाहु 45 वर्ष तक गृहस्थ जीवन में रहे। उनका 17 वर्ष का सामान्य अवस्था में साधु पर्याय पालन एवं 14 वर्ष तक युगप्रधान पद वहन का काल विविध घटनाओं को अपने आप में समेटे हुए था। उनकी सर्वायु 76 वर्ष की थी। 12 वर्ष तक उन्होंने महाप्राण ध्यान की साधना की। उम्र के 62 वें वर्ष में वे आचार्य बने थे।

जिन शासन को सफल नेतृत्व एवं श्रुतसंपदा का अमूल्य अनुदान देकर श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु वीर निर्वाण 170 (वि. पू. 300) में स्वर्ग को प्राप्त हुए। उन्हीं के साथ अर्थ वाचना की दृष्टि से श्रुतकेवली का विच्छेद हो गया।

*आचार्य-काल*

दिगंबर परंपरा के अनुसार भद्रबाहु का आचार्य-काल 29 वर्ष का था।

(वी. नि. 156-170)
(वि. पू. 314-300)
(ई. पू. 371-357)

*श्रुतधर परंपरा के शब्दतः अंतिम श्रुत केवली कामविजेता आचार्य स्थूलभद्र का प्रभावक जीवन परिचय* प्राप्त करेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 68📝

*संस्कार-बोध*

*प्रेरक व्यक्तित्व*

*33. वह सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति...*

तेरापंथ की साध्वीप्रमुखाओं में सातवां स्थान साध्वीप्रमुखा लाडांजी (लाडनूं) का है। तेरापंथ के नौवें आचार्यश्री तुलसीगणी की संसारपक्षीया बहन होने और भाई के साथ दीक्षित होने का सौभाग्य उन्हें प्राप्त हुआ। साध्वीप्रमुखा कानकुमारीजी का वरदहस्त मिला। विक्रम संवत 1993 में आचार्य पद पर आसीन होने के बाद मैंने (ग्रंथकार आचार्यश्री तुलसी) साध्वी झमकूजी को साध्वीप्रमुखा के रूप में नियुक्त किया। विक्रम संवत 2003 में साध्वीप्रमुखा झमकूजी के दिवंगत होने पर साध्वी लाडांजी को उस पद पर नियुक्त किया। मेरे निर्देशानुसार उन्होंने साध्वी संघ का व्यवस्था-सूत्र संभाल लिया। तेरापंथ धर्मसंघ में साध्वियों के शैक्षणिक विकास और महिलाओं को रूढ़िमुक्त बनाने में साध्वीप्रमुखा लाडांजी का योगदान सदा अविस्मरणीय रहेगा।

साध्वीप्रमुखा लाडांजी के युग में व्यवस्था की दृष्टि से साध्वी संघ में कुछ नए प्रयोग किए गए। उन प्रयोगों में लाडांजी का समभाव खंडित नहीं हुआ। जो भी परिस्थिति सामने आई, उनकी मनःस्थिति में कोई अंतर नहीं आया।

मेरी (ग्रंथकार आचार्यश्री तुलसी) दक्षिणयात्रा के समय साध्वीप्रमुखा लाडांजी को अस्वस्थता के कारण बीदासर रहना पड़ा। वहां उन्हें जलोदर की असाध्य बीमारी हो गई। उपचार किए गए। लाभ नहीं हुआ। पेट से पानी निकाला गया, फिर पानी भर गया। कष्ट बढ़ता गया। उस समय उन्होंने विशिष्ट सहिष्णुता से वेदना को सहन किया। सहिष्णुता के संवाद मेरे पास पहुंचे तो मैंने साध्वीप्रमुखा को *'सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति'* इस संबोधन से संबोधित किया। उस समय कुछ लोगों ने इसकी आलोचना की।

आखिरी समय में बीमारी ने विकराल रुप धारण कर लिया। डॉक्टरों ने शल्यचिकित्सा का परामर्श दिया। वैसी व्यवस्था भी हो गई। किंतु लाडांजी ने पूरी दृढ़ता के साथ उसे अस्वीकार कर दिया। विशेष परिस्थिति में भी उन्होंने अपवाद सेवन का मार्ग नहीं अपनाया। उन्होंने मेरे द्वारा प्रदत्त संबोधन को सार्थक कर दिया। उनकी अंतर्मुखता का सब पर गहरा प्रभाव हुआ। साध्वीप्रमुखा लाडांजी के बारे में विशेष जानकारी के लिए पढ़ें उनका जीवनचरित्र— *'सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति'*।

*तेरापंथ धर्मसंघ में तपस्या और सेवा के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करने वाली साध्वी अणचांजी के जीवन के प्रेरक प्रसंग* से प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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News in Hindi

👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 14.7 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - दसघड़ा (पश्चिम बंगाल)*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*

दिनांक - 30/05/2017

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*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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