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*🙏संथारा व्रत की पूर्णाहुति🙏वडगाव शेरी निवासी*
*श्री शांतिलालजी एवं* *मदनलालजी बोरा इनकी*
*माताजी का आज #संथारा व्रत का #63वा दिन पूर्णाहुति हुई है।शोभा यात्रा उनके निवासस्थान सोमनाथ नगर, इनॉर्बिट मॉल वडगांव शेरी से वडगांव शेरी वैकुंठभूमि की और कल मंगलवार 23.05.2017 सुबह 9.30 बजे लिजाई जाएगी।
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जन्म दिवस आज
श्रमण संघीय सलाहकार श्री दिनेष मुनि जी म. का 57 वां जन्म दिवस
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*ऐसे श्रावक, ऐसे संत फिर नही हुअे ।*
-शास्रोध्दारक पू.श्री अमलोक ऋषीजी म.सा.के पदार्पण से, दक्षिण भारत तथा सकल जैन समाज का सौभाग्य उदय हुआ । *जो अतीत में हुआ नही वो अपुर्व काम करनेवाले ही युगपुरूष कहलाते है* एक ऐसा नाम उसे यदि स्थानकवासी समाज के इतीहास से अलग करो तो ना इतीहास बचेगा, ना वर्तमान बचेगा ।
उस महापुरूष को दक्षिण भारत की धरती पर लाने वाला किमती परिवार । मुम्बई चातुर्मास में किमती परिवार ने विनंती रखी । इसके पुर्व धर्मगुरू कभी दक्षिण भरत पधारे नही थे । नमन,वंदन उस महापुरूष को जिसने अपने जिंदगी में साहस भरा कदम उठाया । *मै उस परंपरा से हु, जिनके पुर्वजों ने इतीहास पढने का नही इतीहास लिखने का काम किया ।*
कवी कुलभुशण पुज्यपाद श्री तिलोकऋषीजी म.सा. की सवैया हम प्रतीक्रमण में पढते है । इन्हों ने सर्व प्रथम महाराष्ट्र में कदम रखा । उनके पहले महाराष्ट्र में कोई संत नही था । दोनों हाथों से,दोनों पावों से वो लिखते थे । उत्तराध्ययन की 36 अध्याय का पाठ प्रतीदिन खडे होेकर करते थे । 10 साल की उमर में दिक्षा तथा 36 साल की उम्र में देवलोक हआ । *26 साल के साधु जीवन में 70,000 काव्य रचना की । उस समय कविता, भजन लिखना हमारी परंपरा में बंद था ।* मना था ।
शास्रोध्दारक पू.श्री अमलोक ऋशिजी म.सा. ने *32 आगम का हिंदी अनुवाद 16 महिनों मे किया ।* अनुवाद करते समय निरंतर एकासन करते थे । आपके पास इतीहास की जानकारी रही तो छोटी2 मिथ्या बातों से बच पाओगे । इस धरती ने जैन समाज को नये शास्त्र उस समय दिये जब शास्त्र का अनुवाद करना महापाप समझा जाता था । ये इतीहास इस धरती पर लिखा गया आप इस परंपरा के वंशज हो । *सारे संकिर्ण सांप्रदायिक विचारधारा ओंने विरोध उनका किया था ।* उस महापुरुषों की दिल में एक ही बात थी, जिनेश्वर की वाणी लोकभाषा में नही पहुची तो लोग जिनेश्वर की वाणी से वंचीत रह जायेंगे ।
महेंद्रगड, हरियाणा के अग्रवाल परिवार के श्रावक श्रेश्ठी, सेठ, *लाला ज्वाला प्रसाद सहाय का अभिनंदन है । जिनशासन का उनके जीवन में ऐसा प्रभाव हुआ की 32 आगम छपाकर अपने खर्चे से पेटी बंद कर 1000 संघों को भेट किये थे ।* ये इतीहास हैद्रबाद की धरती पर लिखा गया । उपकारीयों के उपकार कभी भुलना नही ।
शास्रोध्दारक पू.श्री अमलोक ऋषीजी म.सा. के लिखीत *जैन तत्व प्रकाश को पढकर कई अजैन जैन बन गये ।* इस किताब की हिंदी, गुजराथी, मराठी में लाखों प्रतीयाॅं छप चुकी है । इन शास्त्रों का अनुवाद अमलोक ऋषीजी म.सा. ने केवल दिमाग व श्रध्दा से ही नही तो तप और संयम के साथ किया है । 1933 के अखिल भारतीय संम्मेलन में हर प्रांत के संत शामिल हुअे थे । इस सम्मेलन के अध्यक्ष गुजराथ के मौरबी राजा थे ।
शास्रोध्दारक पू.श्री अमलोक ऋषीजी म.सा. ने इस धरती पर इतीहास निर्माण किया । 9 साल इस हैदाराबाद की धरती पर रहे । उस समय स्थानक नही होते थे ।
अमलोक ऋषीजी म.सा. यहाॅं से रायचुर, यादगिरी होते हुअे बेंगलोर पधारे । *चिकपेठ स्थानक पू.श्री अमलोक ऋषीजी म.सा. की स्मृतीमें शीलालेख लिखा हुआ है,* आप पधारे, तब चिकपेठ में बेंगलोर का पहला स्थानक बना । *ऐसे श्रावक फिर नही हुअे, ऐसे संत भी फिर नही हुअे ।*
*उपाध्याय प्रवीण ऋषी*
21 मई 2017 - बंजारा हिल्स हैदराबाद