22.05.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 22.05.2017
Updated: 23.05.2017

Update

विशुद्धि जब बढ़ती है तब आनंद प्रकट हुए बिना रह नहीं सकता। -क्षुल्लक श्री ध्यानसागर जी महाराज / आचार्य श्री विद्यासागर जी

साधुओं के जीवन में जो आनंद है वो विशुद्धि की वृद्धि से आता है और ये आगमोक्त सिद्धांत सापेक्ष कथन है। "विशुद्धि बढ़ने से आनंद आता है।"

🔹उस आनंद को जिस साधक/ साधु ने प्राप्त कर लिया उनके जीवन में एक अलग मस्ती होती है। उनकी साधना में एक अलग मज़ा होता है

इसीलिए उनको कोई आकर्षण लुभा नहीं सकता, नाम बड़ाई क्या वस्तु है!
प्रशंसा निंदा क्या चीज़ है!

यह सिर्फ उनकी धारणा है।

💠 मेरी छबि के प्रति किसी एक की धारणा को प्रशंसा कहते हैं किसी दूसरे की धारणा को निंदा कहते हैं।

यह चीज़े कोई गिनती में नहीं आती

🔹जो ख़ुद को नहीं जानता वो मुझे कैसे जानेगा?!!

🔘 साधु की साधना की इस धारा में उन्हें योगी या तो शुद्धोपयोगी कहते हैं और उस दशा में रहनेवाले साधुओं का जीवन इतना आनंद संपन्न हो जाता है कि उनके पास बैठने वाले लोगो को शांति मिलने लगती है

उनकी चरण रज लेने वालों को अप्रत्याशित लाभ होने लग जाते हैं।

और सच्चा लोभी तो वो है जो उनसे उनका ख़ज़ाना प्राप्त करने की भावना करें ।🙏

वो खज़ाना तो ऐसा है जो देने पर घटता नहीं है बढ़ जाता है ।

जैनं जयतु शासनम्।

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🔥🌞🔥🌞🔥🌞🔥🌞 महातपस्वी की तपस्या का बढ़ता तापमान -यूं तो छतीसगढ़ में इन दिनों 45 से 46 डिग्री तापमान होना सामान्य सी बात है वैसे भी यहाँ की गर्मी दूर दूर तक कुख्यात है

इन दिनों *सूरजदादा की दादागिरी* अपने पूरे उफान पर है सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक झुलसा देने वाली गर्म आग उगलती लपटें, लिपट लिपट कर लोटपोट कर देती है इस नश्वर कहे जाने वाले शरीर को। इन्ही बैरन लपलपाती लपटों से डोंगरी यानि छोटी छोटी पहाडियो से घिरा डोंगरगढ़ भी अछूता नही है*।

लेकिन चन्द्रगिरि के सन्त निवास में पूर्व दिशा के कक्ष में कुछ अद्भुत सा नज़ारा दिख रहा है मूलाचार की जीवंत अनुकृति, निर्दोष चर्या पालक, निर्मोही, निस्पृही, महासन्त, आचार्यश्री ने आज प्रातः ही अपने मस्तक के केशो को ऐसे उखाड़ फेंका मानो कोई कुशल माली अपने बगीचे के खरपतवार उखाड़ उखाड़ फेक रहा हो।*_ मुखमण्डल पर वैसी ही सरल,निश्छल,शुभ्र,स्मित, मोहक मुस्कान और जाहिर है जब आज केशलोंच हुआ तो आचार्यश्री का उपवास भी है।*_
_*दोपहर के सामायिक काल में जब गुरुदेव ध्यानस्त थे तब लगता था कि चौथे काल में तीर्थंकर भगवान भी ऐसे ही ग्रीष्मकाल में ध्यान लगाते होगे, दोपहर भी बीतने को है गुरुदेव के मुखमण्डल में वही तेज़ जो आम दिनों में होता है
_*उनके मुखमण्डल से लगता है कि इन भीषण अग्निवर्षा में भी आचार्यश्री शीतलता का अहसास कर रहे हो*_
_*सामायिक काल के बाद क्रोधित बदलियों की टोली टूट पड़ी आज सूरजदादा पर उसके इस दुःसाहस पर न जाने प्रातः से ही आग उगलने वाला सूरज दादा दोपहर बाद रुआंसा सा हो गया।*_

उसे अहसास होने लगा साथ ही पश्चाताप भी कि मुझे कम से कम आज तो इतना नही तपना था सूरज दादा का गला और आँखे भर आई है जब उसने खिड़कियों सेझांक कर दर्शन किये महावीर के लघुनन्दन के।*_
_*कहने वाले कहने लगे है कि अग्नि बरसाने वाले सूरज दादा की आँखों से यदि कुछ आंसू की बूंदे गुरुचरणों का स्पर्श करें तो कोई अचरज नही होगा।*_

_आचार्यश्री के आज भीषण गर्मी में भी केशलोंच करने पर एक शब्दचित्र प्रस्तुति् एवमभावांकन_

राजेश जैन
संयोजक
श्री दि. जैनाचार्य विद्यासागर
पाठशाला भिलाई

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