20.05.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 20.05.2017
Updated: 21.05.2017

Update

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दिनांक 20 - 05- 2017 के विहार और पूज्य प्रवर के प्रवचन का विडियो
प्रस्तुति - अमृतवाणी
सम्प्रेषण -👇
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

Update

👉 मंड्या - महासभा अध्यक्ष श्री डागलिया की संगठन यात्रा
👉 भुसावल -तेरापंथ भवन के प्रथम स्लेब का कार्य नवकार मंत्र के जाप और ज्ञानशाला बच्चो के प्रवित्र और कोमल हाथो से शुरू हुआ
👉 दक्षिण हावड़ा - स्वच्छता अभियान
👉 जयपुर - महिला मंडल (शहर) का स्वच्छ्ता अभियान
👉 नोखा -संस्कार निर्माण शिविर तृतीय दिवस
👉 दुर्ग-भिलाई - मंगल भावना समारोह

प्रस्तुति -🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻

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News in Hindi

*पूज्यवर का प्रेरणा पाथेय*

👉 लगभग पन्द्रह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे अहमदपुर
👉 आदर्श विद्यालय में हुआ प्रवास, विद्यालय के प्रबन्धक व अन्य लोगों ने आचार्यश्री का किया अभिनंदन
👉 ज्ञान के साथ आचार का विकास करने की आचार्यश्री दी प्रेरणा
👉 उपस्थित लोगों ने स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के संकल्प, प्रबन्धक दी भावाभिव्यक्ति

दिनांक - 19-05-2017

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 60📝

*संस्कार-बोध*

*प्रेरक व्यक्तित्व*

(दोहा)

*53.*
वय बय्यासी वर्ष की, सुनते चित्रित लोक।
फिर तो सब स्वीकारते, मगन-पदाम्बुज धोक।।

*26. वय बय्यासी...*

पूज्य कालूगणी का स्वर्गवास हुआ। उस समय मेरी (ग्रंथकार आचार्यश्री तुलसी) अवस्था 22 वर्ष की थी। 22 वर्ष की अवस्था में एक धर्मसंघ का संपूर्ण दायित्व संभालना सरल काम नहीं है। लोगों ने इस घटना को आश्चर्य के रूप में देखा। आचार्य काल के प्रारंभिक वर्षों में नए-नए लोग दर्शन करने आते। वे मंत्री मुनि से पूछते-- 'आचार्य महाराज की उम्र कितनी है?' मंत्री मुनि उन्हें उत्तर देते-- 'आचार्यश्री की उम्र 82 वर्ष की है।' यह बात सुन लोग चौकन्ने हो जाते। वे कहते-- 'हमने तो उम्र कम सुनी है। बहुत लोगों में चर्चा है कि आचार्यजी 22 वर्ष के हैं।' मंत्री मुनि उनको समझाते-- 'अब इसमें सुधार कर लो। आचार्यश्री 82 वर्ष के हैं।' लोग पूछते-- 'इतनी उम्र कैसे हो सकती है?' इस पर मंत्री मुनि का उत्तर होता-- 'तुम इतना भी नहीं जानते? तेरापंथ के आचार्य जाते हैं तो अपनी गति, मति, स्थिति सब कुछ भावी आचार्य को सौंपकर जाते हैं। वे अपना अधिकार देते हैं तो साथ में अनुभव भी देते हैं। कालूगणी 60 वर्ष के थे। वे अपने वर्ष वर्तमान आचार्य को देकर गए हैं। 60 वर्ष उनके और 22 वर्ष आचार्यश्री के। 60+22 का योग 82 होता है या नहीं? अब बताओ आचार्य महाराज की अवस्था कितनी है?' मंत्री मुनि के इस यौक्तिक और विनोद भरे उत्तर से आगंतुक संतुष्ट हो जाते।

*54.*
अंश-मात्र गुरु-दृष्टि में, देखें जो बदलाव।
कुंदन मुनि ज्यों कर विनय, पाएं फिर सद्भाव।।

*27. अंशमात्र गुरु-दृष्टि में...*

तेरापंथ धर्मसंघ आचार्य-केंद्रित संघ है। संघ के सब साधु-साध्वियों को जन्मघुट्टी के साथ गुरु-दृष्टि की आराधना करने के संस्कार मिलते हैं। कभी किसी कारणवश गुरु की दृष्टि में अंतर परिलक्षित हो तो वह असह्य हो जाता है। यह बात सामान्यतः सब पर लागू हो सकती है। पर मुनि कुंदनमलजी (जावद) के लिए तो वह जीने-मरने का प्रश्न बन जाता।

मुनिश्री कुंदनमलजी संघ और संघपति के प्रति समर्पित, कलाकार, लिपिकार और कर्मठ मुनि थे। उन्हें कभी यह आभास हो जाता कि आचार्यप्रवर की दृष्टि में कुछ अंतर है तो वे खाना-पीना सब कुछ भूल जाते। वे आचार्यों के निकट जाते, विनय करते और पुनः सामान्य स्थिति नहीं हो जाती तब तक बार-बार विनय करते।

कभी-कभी वे संदेह के कारण भी अव्यवस्थित हो जाते। आचार्यों द्वारा आश्वस्त करने पर भी उन्हें विश्वास नहीं होता कि उनकी कोई गलती नहीं हुई है। उन्हें जब बार-बार कहा जाता कि उनकी गलती ध्यान में आने पर हम स्वयं सूचित कर देंगे। तब उन्हें संतोष होता। ऐसे विनीत थे मुनि कुंदनमलजी।

*तेरापंथ के प्रेरक व्यक्तित्वों* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 60* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*भवाब्धिपोत आचार्य भद्रबाहु*

*जीवन-वृत्त*

गतांक से आगे...

रत्ननंदी कृत 'भद्रबाहु चरित्र' (रचना 15वीं शती) में प्राप्त उल्लेखानुसार श्रुतकेवली भद्रबाहु जब अवंती में पधारे उस समय चंद्रगुप्त का राज्य था। चंद्रगुप्त ने 16 स्वप्न देखे। भद्रबाहु ने उनका फलादेश अनिष्ट सूचक बताया। चंद्रगुप्त को संसार से विरक्ति हुई। अपने पुत्र को राज्य सौंपकर भद्रबाहु से श्रमण दीक्षा ग्रहण की। इस घटना के बाद एक दिन भद्रबाहु जिनदास श्रेष्ठी के घर गोचरी गए। पालने में झूलते हुए नन्हे शिशु ने चिल्ला कर कहा "चले जाओ।" भद्रबाहु ने पूछा "कितने समय के लिए जाएं?" शिशु ने 12 वर्ष के लिए जाने को कहा। निमित्त ज्ञान से भद्रबाहु ने समझ लिया 12 वर्ष का दुष्काल होगा।

भद्रबाहु ने इस संकटकाल की सूचना श्रमण-संघ को दी और सुदूर दक्षिण में जाने की तैयारी करने लगे। श्रावकों के द्वारा प्रार्थना करने पर भी वे नहीं रुके। उन्होंने 12,000 साधुओं के साथ दक्षिण की ओर विहार किया। स्थूलभद्र आदि श्रमण अवंति में रहे। कुछ मार्ग पार करने के बाद प्राकृतिक संकेतों के आधार पर भद्रबाहु को अपना अंतिम समय सन्निकट प्रतीत हुआ। उन्होंने अपने रहने की व्यवस्था वहीं की। मुनि चंद्रगुप्त भद्रबाहु के पास रहे। पूर्वधर विशाखाचार्य की अध्यक्षता में श्रमण संघ को सुदूर दक्षिण में भेजा गया। जीवन के अंतिम समय में भद्रबाहु के पास मुनि चंद्रगुप्त थे।

कई विद्वानों का यह भी अभिमत है दुष्काल के समय आचार्य भद्रबाहु स्वयं ससंघ दक्षिण में गए थे। उनका समाधिमरण श्रवणबेलगोला के चंद्रगिरी पर्वत पर हुआ था। सम्राट चंद्रगुप्त उनके साथ थे।

हरिषेण का वृहतकथाकोष और रत्ननंदी कृत 'भद्रबाहु चरित्र' इन दोनों ग्रंथों के उल्लेखानुसार दुष्काल की समाप्ति के बाद श्रमण-संघ मिला। आचार संहिता समान न रहने के कारण श्वेतांबर और दिगंबर संप्रदाय का उद्भव हुआ।

इन दोनों ग्रंथों में प्राप्त घटनाचक्र चर्चनीय हैं। श्रुतकेवली भद्रबाहु का स्वर्गवास श्वेतांबर मान्यतानुसार वी. नि. 170 (वि. पू. 300) तथा दिगंबर मान्यतानुसार वी. नि. 162 (वि. पू. 308) में हुआ। दिगंबर और श्वेतांबर संप्रदायों की भेदरेखा का जन्म-काल दोनों की मान्यतानुसार भिन्न है। श्वेतांबर मान्यतानुसार वी. नि. 609 में दिगंबर मत की स्थापना हुई। दिगंबर मान्यतानुसार वी. नि. 606 में श्वेतांबर मत का उद्भव हुआ। इतिहास सम्मत कालचक्र के अनुसार भद्रबाहु का स्वर्गवास एवं दिगंबर तथा श्वेतांबर मत की स्थापना इन दोनों घटनाओं के बीच कई शताब्दियों का अंतराल है। दिगंबर मान्यतानुसार वी. नि. 162 (वि. पू. 308) में तथा श्वेतांबर मान्यतानुसार वी. नि. 170 (वि. पू. 300) में स्वर्गवासी श्रुतधर आचार्य भद्रबाहु की विद्यमानता वी. नि. की छठी शताब्दी में कैसे संगत हो सकती है।

श्रुतकेवली भद्रबाहु द्वारा चंद्रगुप्त को दीक्षा देने का प्रसंग निर्विवाद नहीं है। श्रुतकेवली भद्रबाहु के निकटवर्ती नरेश चंद्रगुप्त मौर्य थे। उन्हें पाटलिपुत्र का शासक बताया गया है। भद्रबाहु द्वारा दीक्षित चंद्रगुप्त को अवंति का नरेश माना है। अतः दो चंद्रगुप्त सिद्ध होते हैं।

*ऐतिहासिक संदर्भ में, श्रवणबेलगोला व पार्श्वनाथ वस्ति के एक प्राचीन शिलालेख से क्या जानकारी मिलती है...?* पढेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*

अनुक्रम - *भीतर की ओर*

*कृष्णवर्ण प्रधान आभामण्डल*

जो व्यक्ति कृष्णलेश्या प्रधान होता है उसके आभामंडल में कृष्ण वर्ण की प्रधानता होती है ।
कृष्णलेश्या वाले व्यक्ति की भावधारा को समझने के लिए कुछ भागों का उल्लेख आवश्यक है -----
1) मन, वाणी और शरीर पर नियंत्रण नहीं होना
2) इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं होना
3) क्रूरता
4) हिंसा
5) क्षुद्रता
6) इच्छा पर नियंत्रण की शक्ति का अभाव
इन भावों के आधार पर निर्णय किया जा सकता है कि इस व्यक्ति के आभामंडल में काले रंग की प्रधानता है ।


20 मई 2000

प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 14.5 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - प्रांतिक (पश्चिम बंगाल)*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*

दिनांक - 20/05/2017

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