12.05.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 12.05.2017
Updated: 13.05.2017

Update

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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 53📝

*संस्कार-बोध*

*प्रेरक व्यक्तित्व*

(दोहा)

*48.*
उपालम्भ गुरुदेव का, आन्तर रोग इलाज।
सहें सदा समभाव से, जयों मुनि पृथ्वीराज।।

*अर्थ*

*20. उपालम्भ गुरुदेव का...*

मुनि पृथ्वीराजजी (खाखरमाला) संघनिष्ठ और पूज्य कालूगणी के प्रति विशेष श्रद्धा रखने वाले मुनि थे। पूज्य डालगणी का स्वर्गवास हुआ, उस वर्ष उनका चातुर्मास्य देवगढ़ था। डालगणी के बाद कालूगणी ने शासन का भार संभाला। उधर देवगढ़ के कस्तूरजी आछा वैरागी बने। चातुर्मास्य के बाद उनकी शिक्षा होनी थी। तेरापंथ की मर्यादा के अनुसार चातुर्मास्य संपन्न होने के बाद विशेष आदेश के अतिरिक्त साधु-साध्वियों के सभी सिंघाड़े आचार्य-दर्शन के लिए प्रस्थान कर देते हैं। मेवाड़ के विशिष्ट श्रावक जवाहरमलजी बोरदिया (देवरिया) चातुर्मास्य के आखिरी दिनों में कालूगणी के दर्शन करने आए। उन्होंने दीक्षा की दृष्टि से मुनि पृथ्वीराजजी को देवगढ़ रखाने की प्रार्थना की। कालूगणी ने आदेश दिया-- 'कुछ दिन आसपास के गांवों का स्पर्श कर पुनः देवगढ़ आकर दीक्षा दे देंगे।' बोरदियाजी ने दीक्षा के आदेश की बात मुनिश्री को बता दी, पर गांवों के स्पर्श की बात कहना भूल गए। दीक्षा के कल्प में चातुर्मास्य के बाद भी कुछ दिन रहा जा सकता है। इस आधार पर मुनि श्री देवगढ़ रह गए। यह बात कालूगणी को अखरी।

पन्द्रह दिन बाद कस्तूरजी को दीक्षा देकर मुनिश्री ने कालूगणी के दर्शन किए। कालूगणी की दृष्टि का अंतर उन से छिपा नहीं रहा। उन्होंने अनुनय-विनय किया। कालूगणी बोले-- 'आपने निर्देश का पालन कैसे नहीं किया?' मुनिश्री यह बात सुन सहम गए। कालूगणी ने पूछा-- 'आप इतने दिन देवगढ़ कैसे रहे?' मुनिश्री ने निवेदन किया-- 'वहां रहने का आदेश था। यदि मुझे ज्ञात होता कि वहां रहने का आदेश नहीं है तो मैं एक दिन भी रहता।' उस समय संचार साधनों की इतनी सुविधा नहीं थी। इसलिए मुनिश्री के कथन की पुष्टि नहीं हो पाई और कालूगणी की दृष्टि में आया अंतर बना रहा। उस स्थिति में मुनिश्री की नींद हराम हो गई। फिर भी उन्होंने कालूगणी की सेवा-भक्ति में कोई अंतर नहीं आने दिया।

कुछ समय बाद बोरदियाजी ने दर्शन किए। उनसे पूछताछ की गई। उन्होंने स्पष्ट कहा-- 'मुनिश्री की कोई गलती नहीं है। यह भूल मेरी है। कालूगणी का आदेश वही था, निवेदन करते समय गांवों में रहने की बात मैं भूल गया।'

सारी स्थिति स्पष्ट होने पर कालूगणी के मन में इस बात का विचार हुआ कि बिना गलती ही मुनि पृथ्वीराजजी के प्रति कठोर रुख अपनाया गया। मूलतः पूज्य कालूगणी का चिंतन यह था-- 'डालगणी का स्वर्गवास हो गया। मैं नया हूं, यह सोचकर मेरे आदेश की उपेक्षा की गई है।' इस गलतफहमी के कारण ही उन्होंने मुनिश्री को उपालम्भ दिया। जब गलतफहमी दूर हो गई तो मुनिश्री पर कृपाभाव और अधिक बढ़ गया।

बिना गलती उपालम्भ मिलने पर भी उसका प्रतिवाद नहीं करना, उसे मौन रहकर सहना संघ के साधु-साध्वियों को मुनिश्री की जीवंत सीख है। ऐसे उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ में ही मिल सकते हैं।

*मुनि जीतमलजी की एकाग्रता* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 53* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*भवाब्धिपोत आचार्य भद्रबाहु*

*जीवन-वृत्त*

गतांक से आगे...

आचार्य भद्रबाहु का व्यक्तित्व विराट् एवं प्रभावी था। यही कारण है आचार्य जम्बू के बाद दो भिन्न दिशाओं में बढ़ती हुई श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों की श्रृंखला एक बिंदु पर आ गई। दोनों ही परंपराओं ने आचार्य भद्रबाहु को समान महत्त्व प्रदान किया।

कल्पसूत्र स्थविरावली में भद्रबाहु के चार शिष्यों का उल्लेख है
*(1)* गोदास *(2)* अग्नि दत्त
*(3)* यज्ञ दत्त *(4)* सोमदत्त।
परिशिष्ट पर्व के अनुसार दृढ़ आचार का सबल उदाहरण प्रस्तुत करने वाले उनके चार शिष्य और भी थे। वे गृहस्थ जीवन में राजगृह निवासी संपन्न श्रेष्ठी थे। बचपन के साथी थे। चारों ने आचार्य भद्रबाहु के पास राजगृह में दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा स्वीकृति के बाद चारों मुनियों ने श्रुत की आराधना की एवं विशेष साधना में अपना जीवन लगाया। निरहंकारी, प्रियभाषी, मितभाषी, धर्मप्रवचन प्रवण, करुणा के सागर इन मुनियों ने आचार्य भद्रबाहु से आज्ञा प्राप्त कर एकल विहारी की कठिनचर्या अभिग्रहपूर्वक स्वीकार की। प्रतिमा तप की साधना में लगे। ग्रामनुग्राम विहरण करते हुए एक बार चारों मुनि राजगृह के वैभारगिरी पर आए। वे गोचरी करने नगर में गए। लौटते समय दिन का तृतीय प्रहर संपन्न हो चुका था। दिन के तृतीय प्रहर के बाद भिक्षाटन एवं गमनागमन न करने की प्रतिज्ञा के अनुसार एक मुनि गिरी गुफा के द्वार पर, दूसरा उद्यान के बहिर्भूभाग में, तीसरा उद्यान में एवं चौथा मुनि नगर के बहिर्भूभाग में रुक गया। हिम ऋतु का समय था। रात गहरी होती गई। जानलेवा शीतलहर चारों मुनियों की सुकोमल देह को कंपकंपा रही थी। कष्टसहिष्णु चारों मुनि शांत खड़े थे। अत्यधिक शीत के कारण गुफा द्वार स्थित मुनि का प्रथम प्रहर में, उद्यान के बहिर्भूभाग में स्थित मुनि का द्वितीय प्रहर में, उद्यान में स्थित मुनि का तृतीय प्रहर में एवं नगर के बहीर्भूभाग में खड़े मुनि का रात्रि के चतुर्थ प्रहर में देहांत हो गया। चार प्रहर में चारों मुनियों के क्रमशः स्वर्गवास होने का कारण एक स्थान से दूसरे स्थान पर शीत का प्राबल्य था। गिरी गुफा का स्थान सबसे अधिक शीतल था और सबसे कम शीतल स्थान नगर का बहिर्भूभाग था।

अपनी प्रतिज्ञा में दृढ़ रहकर चारों मुनियों ने (शीत) कष्ट-सहिष्णुता का अनन्य आदर्श उपस्थित किया।

जैन शासन को वीर निर्वाण की द्वितीय शताब्दी के मध्य काल में दुष्काल के भयंकर वात्याचक्र से जूझना पड़ा। उचित भिक्षा के अभाव में अनेक श्रुतसंपन्न मुनि काल-कलवित हो गए। भद्रबाहु के अतिरिक्त कोई भी मुनि चौदह पूर्व का ज्ञाता नहीं बचा। वे उस समय नेपाल की पहाड़ियों में महाप्राणध्यान की साधना कर रहे थे। महाप्राणध्यान विशिष्ट साधना पद्धति है। उसका साधना काल 12 वर्ष बताया गया है। धर्म संघ को इससे गंभीर चिंता हुई। आगम निधि की सुरक्षा के लिए श्रमण संघाटक नेपाल पहुंचा। करबद्ध होकर श्रमणों में भद्रबाहु से प्रार्थना की। "संघ का निवेदन है कि आप वहां पधारकर मुनियों को दृष्टिवात की ज्ञान राशि से लाभान्वित करें।

*क्या भद्रबाहु ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*

अनुक्रम - *भीतर की ओर*

*वृत्ति परिवर्तन*

वृत्ति को बदलने के लिए सबसे पहले जरुरी है उसके उद्गम- स्थल की खोज ।
1) वृत्ति के उभार को जागरूकता से देखे ।
2) वृत्ति के उद्गम स्थल पर ध्यान केन्द्रित करे ।
3) वृत्ति का संबंध केवल मस्तिष्क से नहीं, ग्रन्थितंत्र, चैतन्य केन्द्रों से भी है ।
वृत्ति परिवर्तन के लिए विशुद्धि केन्द्र और आनन्द केन्द्र पर ध्यान करना आवश्यक है ।
सम्मोहन - वृत्ति परिवर्तन के लिए सुझाव दो । सुझाव देते - देते सम्मोहन की अवस्था में चले जाओ । धीरे - धीरे वृत्ति में परिवर्तन हो जाएगा ।


12 मई 2000

प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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News in Hindi

👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 14.5 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - सरसदंगल*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*

दिनांक - 12/05/2017

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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  1. आचार्य
  2. ज्ञान
  3. दर्शन
  4. श्रमण
  5. सागर
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