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Exclusive Photograph @ Dongargadh:) एक बार आचार्य महाराज जी ने बताया कि पाठ करते समय मात्र पाठ(शब्दो) की ओर दृष्टि जाने पर लीनता नहीं आती है...
बल्कि लीनता तो अर्थ की ओर जाने पर आती है।शिष्य ने कहा-लेकिन आचार्य श्री जी अर्थ की ओर चले जाते हैं तो पाठ भूल जाते हैं।आचार्य श्री जी ने कहा-भूलना तो स्वभाव है। *"जैसे ज्ञान आत्मा का स्वभाव है वैसे ही भूलना मनुष्य का स्वभाव है।"* दूसरे शिष्य ने कहा- भूलता तो पागल है,आचार्य श्री जी बोले- यह भी एक भूल है,दूसरे को पागल कहना।भूल तो मात्र भगवान् से नहीं होती बांकी सभी से होती है।अंत में उन्होंने कहा- *अनावश्यक को भूलना सीखो तो आवश्यक स्मरण में रहेगा।* मनोरंजन में नहीं आत्मरंजन में रहना सीखो।
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ईन्द्रावती नारंगी और काकङी घाट के संगम पर बसे ग्राम बोदरा मे पार्श्वनाथ जी की हजारों साल पुरानी प्रतिमा से जाहीर है कि बस्तर मे प्राचीन काल से जैन धर्म के अनुयायी रहते थे.... जो देख रेख के अभाव मे जीर्ण अवश्था मे है, पुरातत्व विभाग ध्यान नही दे रहा...
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अष्टापद बद्रीनाथ जैन मन्दिर के पट 6-5-2017 को खोले गये, सर्वप्रथम झंडारोहन कर शुभारम्भ किया गया, झंडारोहन करते हुए हसमुख-उर्मिला गांधी,श्री योगेन्द्र सेठी,पारस-आशा जैन,दिलिप-संगीता मेहता,राजेन्द्र जैन टीआय. अष्टापद सम्बन्धि जानकारी श्री प्रदीप कुमार सिंह कासलीवाल अध्यक्ष अष्टापद तीर्थ द्वारा दि गई. अष्टापद में प्रथम तीर्थंकर भ. आदिनाथ के सबसे प्राचीन चरण आ. विध्यानन्दजी महाराज द्वारा स्थापित किये गये थे। उत्तराखंड के बद्रीनाथ क्षेत्र में स्थित है जिसे कैलाश का द्वार भी कहा जाता है। शायद इसीलिए इस तीर्थतीर्थ को अष्टापद भी कहा गया है।
अष्टापद में सर्व सुविधा युक्त अतिथि निवास, भोजनशाला है। मो. 075991 73864/ 07895522761 -हसमुख जैन गांधी इन्दौर
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