09.05.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 09.05.2017
Updated: 10.05.2017

Update

*आचार्य श्री महाश्रमण दीक्षा दिवस*

🔷 बैंगलोर
🔷 हिसार
🔷 जयपुर
🔷 चेन्नई

👉 न्यूजर्सी (अमेरिका) - पाथ ऑफ अहिंसा कार्यक्रम
👉 नोगांव - अणुव्रत सद्भाव सम्मेलन
👉 सादुलपुर - अणुव्रत आचार संहिता पट्ट भेंट
👉 नोखा - आध्यात्मिक मिलन व युवा दिवस का आयोजन
👉 दुर्ग-भिलाई - आचार्य श्री महाश्रमण जन्मदिवस, पदाभिषेक, दीक्षा दिवस व दीक्षार्थी मंगल भावना समारोह
👉 सूरत - युवा दिवस के उपलक्ष में रिक्शा चालकों को मुफ्त दुर्घटना बीमा व निःशुल्क स्वास्थ्य जांच शिविर का आयोजन
👉 विजयनगर (बैंगलोर) - जीवन रक्षा संघ सुरक्षा कार्यक्रम का आयोजन

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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दिनांक 09- 05- 2017 के विहार और पूज्य प्रवर के प्रवचन का विडियो
प्रस्तुति - अमृतवाणी
सम्प्रेषण -👇

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

10 मई का संकल्प

*तिथि:- वैशाख शुक्ला पूर्णिमा*

करना है एक विशेष स्नान क्योंकि आज है पक्खी ।
साबुन-पानी बिन, लगानी प्रायश्चित-गंगा में डुबकी ।।

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Update

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*श्रावक सन्देशिका*

👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 75 - *सामायिक व पौषध*

श्रावक-संदेशिका की पोस्ट आज परिसम्पन्न

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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 50📝

*संस्कार-बोध*

*प्रेरक व्यक्तित्व*

*लावणी के पद्यों में प्रयुक्त तेरापंथ धर्मसंघ के प्रेरक व्यक्तित्व*

*17. रिछेड़ी नथ मुनि...*

मेवाड़ में रिछेड़ (बोराट) निवासी मुनि नथमलजी आचारनिष्ठ और मर्यादाओं के प्रति अत्यंत जागरूक साधु थे। प्रतिलेखन करते समय मौन रखते थे। ईर्यासमिति में विशेष रुप से सजग थे। वे कालूगणी के विशेष विश्वासपात्र और कृपापात्र थे। शीतकाल में विहार के समय दो दिन के लिए भी साधुओं को अलग रखने का प्रसंग आता तो अग्रगण्य का दायित्व इन्हीं को सौंपा जाता था। कहा जाता है कि फकीर फक्कड़ होते हैं। यह बात मुनि नथमलजी पर लागू होती थी। वे किसी को भी कड़ी-से-कड़ी बात कह देते। विशेषता यह थी कि उनका कथन किसी को अप्रिय नहीं लगता था।

ज्योतिष में मुनि नथमलजी की सहज रुचि थी। पक्खी, चौमासी पक्खी, संवत्सरी, तिथियों की घटबढ़ आदि का लेखा उनके हाथ में था। वे पूरा विवरण लिखकर कालूगणी के पास ले जाते। उनका स्वर्गवास होने के बाद मेरे (ग्रंथकार आचार्यश्री तुलसी) पास लाते। हमारा काम उस पर छाप लगाना मात्र था।

विक्रम संवत 1972, 73 में कालूगणी मेवाड़ पधारे। उस समय स्थानकवासी आचार्य श्रीलालजी ने एक मौका देखा और थली में विहरण किया। क्षेत्रीय दृष्टि से आचार्यों की दूरी होने पर ऐसे समय में श्रावकों में शिथिलता आ जाती है। उस समय भी ऐसा ही हुआ। उन वर्षों में मुनि नथमलजी ने थली में बहुत अच्छा काम किया। वे एक समर्पित साधु थे। संघ, संघपति और संघीय दृष्टि से प्रतिकूल कोई बात वे सोच ही नहीं सकते थे। उनका समर्पण और पुरुषार्थ साधु-साध्वियों के लिए सदा प्रेरक और अनुकरणीय रहेगा।

विक्रम संवत 1993 में कालूगणी का स्वर्गवास होने के बाद चातुर्मास्य संपन्न होने पर बहीर्विहारी साधु-साध्वियों के सिंघाड़े आए। दीक्षापर्याय में बड़े साधुओं को मैंने (आचार्यश्री तुलसी) वंदना की। मुनि नथमलजी बड़े थे। उन्हें भी वंदना की। उनके मन में इतना उत्साह और भक्ति थी कि उन्होंने मुझे हाथों में उठा लिया।

विक्रम संवत 1995 में उनकी शारीरिक शक्ति कम हो गई। वे मेवाड़ जा सकें, ऐसी स्थिति नहीं थी। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कुछ कहा नहीं और मैंने (आचार्यश्री तुलसी) स्थिति का सम्यक् आकलन किए बिना ही विक्रम संवत 1996 में उनका चातुर्मास्य राजनगर कह दिया। वे मेवाड़ चले गए। मेरे मन में उनके प्रति गहरी सद्भावना थी। फिर भी उनको संदेह हो गया कि उन पर गुरु की दृष्टि कम है। वे गुरु-दृष्टि की आराधना बड़ी सूक्ष्मता से करते थे। दृष्टि की आराधना में जागरूक मुनि को अनुभव हो जाए कि उस पर गुरु-दृष्टि कम है तो वह बेचैन हो जाता है। यही बात मुनि नथमलजी के साथ हुई। उनके मन में विकल्प उठा-- गुरु-दृष्टि के बिना जीने में क्या सार है? उन्होंने शांति और धृति के साथ संलेखना शुरू कर दी। शरीर की शक्ति क्षीण होने पर अनशन कर दिया। अनशन के छठे दिन 61 दिनों की तपस्या में उन्होंने परिषद में हाजरी का वाचन किया। तपस्या के 66वें दिन चौविहार अनशन स्वीकार किया। विक्रम संवत 1997 वैशाख कृष्णा सप्तमी को तपस्या के 68वें दिन उनका अनशन संपन्न हुआ। अनशन के समय मेवाड़ में विहार करने वाले सैंकड़ों साधु-साध्वियां एकत्रित हो गए। धर्मशासन की अच्छी प्रभावना हुई।

मुनि नथमलजी साधुओं को तैयार करने में निष्णात थे। उनके सहयोगी रहे साधुओं में से मुनि हुलासमलजी, मुनि घासीरामजी, मुनि आसकरणजी, मुनि रावतमलजी, मुनि जयचंदलालजी आदि अनेक साधुओं को अग्रगण्य बनाया गया। संघनिष्ठ और सेवाभावी मुनि नथमलजी को मैंने (आचार्यश्री तुलसी) 'जय निर्वाण-शताब्दी' के बाद गंगाशहर मर्यादा महोत्सव के अवसर पर मरणोपरांत 'शासन-स्तंभ' संबोधन से अलंकृत किया।

*आगमिक ज्ञान में प्रणत मुनि हेमराजजी* के बारे में पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 50* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*संयमसूर्य आचार्य सम्भूतविजय*

*समकालीन राजवंश*

संभूतविजय के आचार्यकाल में नंद राज्य उत्कर्ष पर था। नंदों के 155 वर्ष के शासनकाल में 9 नंद हुए हैं। शकडाल नौवें नंद के समय महामात्य के पद पर नियुक्त था। शकडाल के पुत्र स्थूलभद्र ने श्रुतधर संभूतविजय के पास दीक्षा ग्रहण की। इस दृष्टि से संभूतविजय के समय में नौवें नंद का सत्ताकाल सिद्ध होता है पर ऐतिहासिक कालक्रम की दृष्टि से नौवे नंद के शासनकाल में वी. नि. 215 (वि. पू. 255, ई. पू. 312) में नंद साम्राज्य का पतन होता है। संभूतविजय का स्वर्गवास वी. नि. 156 (वि. पू. 314) में ही हो जाता है। इस आधार पर आचार्य संभूतविजय के शासनकाल में नौवें नंद का और शकडाल अमात्य का सत्ता समय अनुसंधान का विषय है।

नंद राजवंश में अध्यात्म-संस्कारों को प्रसारित करने का कार्य आचार्य संभूतविजय ने किया था।

*संयम साधना के प्रेरणास्रोत*

आचार्य संभूतविजय धर्म जागरण के मूर्त्त रूप थे। उनके मंगलकारी उपदेश से जन-जन को जीवन का अनुपम पाथेय मिला, सहस्रों व्यक्तियों के चरण संयम की ओर बढ़े। शकडाल के परिवार की 9 श्रमण दीक्षाएं आचार्य संभूतविजय द्वारा हुई। महामात्य के पूरे परिवार का संयम साधना हेतु समर्पित होना आश्चर्यजनक घटना है जिसके प्रेरणास्रोत संयम साधना के सूर्य अतिशय प्रभावशाली आचार्य संभूतविजय थे।

*समय-संकेत*

आचार्य संभूतविजय चतुर्थ श्रुतकेवली थे। वे 42 वर्ष तक गृहस्थ जीवन में रहे। सामान्य स्थिति में 40 वर्ष तक उन्होंने साधु-चर्या का पालन किया। उनका आचार्यकाल 8 वर्ष का था। ज्ञान रश्मियों से भव्यजनों का पथ आलोकित करते हुए संयम-सूर्य आचार्य संभूतविजय वी. नि. 156 (वि. पू. 314, ई. पू. 371) में स्वर्गवास हुआ।

*आचार्य-काल*

(वी. नि. 148-156)
(वि. पू. 322-314)
(ई. पू. 379-371)

*अर्थ की दृष्टि से अंतिम श्रुतधर भवाब्धिपोत आचार्य भद्रबाहु* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*

अनुक्रम - *भीतर की ओर*

*आभामण्डल -- [ 2 ]*

भावधारा और आभामण्डल में बहुत गहरा संबंध है । आभामण्डल को देखकर भावधारा को जाना जा सकता है ।
आभामण्डल सूक्ष्म परमाणुओं की संरचना है । वह दो प्रकार का होता है -------
1) मन से निर्मित
2) भावधारा से निर्मित
स्थूल शरीर के भीतर एक सूक्ष्म शरीर है, उसका नाम है तैजस शरीर । इस तैजस शरीर के परमाणु आभामण्डल का निर्माण करते हैं ।


09 मई 2000

प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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News in Hindi

👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 14 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - "कुरवा" (झारखंड)*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*

दिनांक - 09/05/2017

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  1. अनशन
  2. अमृतवाणी
  3. आचार्य
  4. ज्ञान
  5. श्रमण
  6. सत्ता
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