05.05.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 05.05.2017
Updated: 07.05.2017

Update

*पूज्य प्रवर द्वारा आज 2 विशेष घोषणा*

🔷 *आचार्य प्रवर ने सौंपे नए दायित्व*

दिनांक 05-05-2017

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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*पूज्य प्रवर द्वारा आज 2 विशेष घोषणा*

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News in Hindi

05 मई का संकल्प

*तिथि:- वैशाख शुक्ला दशमी*

संजोग मिला भाग्योदय का मिली हमें गुरु महाश्रमण की छत्रछाया ।
जनम-जनम धन्य हुए उसके, जो भी गुरु चरणों की शरण में आया ।।

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👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 13 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - बनियारा (झारखंड)*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*

दिनांक - 05/05/2017

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*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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*श्रावक सन्देशिका*

👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 72 - *तपस्या*

*तपस्या* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....

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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 47📝

*संस्कार-बोध*

*प्रेरक व्यक्तित्व*

*लावणी के पद्यों में प्रयुक्त तेरापंथ धर्मसंघ के प्रेरक व्यक्तित्व*

*14. थे कृपापात्र मुनि हेम...*

मुनि हेमराजजी (सिरियारी) आचार्य भिक्षु के कृपापात्र साधु थे। वे आचार्य भिक्षु की दूसरी भुजा कहलाते थे। गृहस्थ अवस्था में वे अच्छे तत्त्वज्ञ थे। अन्य लोगों को तेरापंथ का तत्त्वदर्शन समझाने में बहुत दक्ष थे। उनकी दीक्षा के लिए आचार्य भिक्षु ने बहुत प्रयत्न किया। एक बार तो वृक्ष के नीचे खड़े होकर घंटो तक प्रतिबोध दिया और दीक्षित होने के लिए संकल्पबद्ध किया।

इतिहास की सुरक्षा कैसे करनी चाहिए, यह कला मुनि हेमराजजी के जीवन से सीखी जा सकती है। उन्होंने आचार्य भिक्षु के युग की सैंकड़ों घटनाओं को याद रखा और जयाचार्य को लिपिबद्ध कराया। *'भिक्खु दृष्टांत'* संघ को मुनि हेमराजजी का अवदान है।

मुनि हेमराजजी को जयाचार्य ने अपना विद्यागुरु माना। उनके प्रति जयाचार्य के मन में श्रद्धा-भक्ति की प्रगाढ़ भावना थी। अपनी श्रद्धा की अभिव्यक्ति के स्वरूप उन्होंने ऋषिराय की प्रेरणा से *'हेमनवरसो'* लिखा।

मुनि हेमराजजी की दीक्षा तेरापंथ धर्मसंघ के विकास का आधार मानी जाती है। उनका पगफेरा होने के बाद ही संघ में साधुओं की संख्या में वृद्धि हुई।

आचार्य भिक्षु स्थानकवासी संप्रदाय से अलग हुए, उस समय उनकी संख्या तेरह थी। केलवा में नई दीक्षा स्वीकार करते समय तक यह संख्या बराबर रही। उसके बाद कुछ साधु उनके साथ नहीं रह सके। संख्या कम हुई तो ऐसी की विक्रम संवत 1853 तक फिर कभी तेरह साधु नहीं हो पाए। मुनि हेमराजजी की दीक्षा से दो बातें घटित हुईं--

*1.* साधुओं की तेरह संख्या की पूर्ति। उसके बाद यह संख्या निरंतर वर्द्धमान रही।
*2.* आचार्य भिक्षु का बोझ-भार उतर गया। उससे पहले वे स्वयं बोझ उठाते थे।

मुनि हेमराजजी की दीक्षा के लिए आचार्य भिक्षु ने बहुत प्रयत्न किया। उनकी दीक्षा विलंब से हुई, पर वे गृहस्थ जीवन में भी एक साधु जितना काम कर देते थे। उनका तात्त्विक ज्ञान गहरा था। तेरापंथ की सैद्धांतिक विचारधारा समझाने की उनकी शैली बहुत विलक्षण थी। इसी कारण आचार्य भिक्षु ने अपने युवाचार्य को निश्चिंत बना दिया।

*नोट:- मुनि हेमराजजी के प्रेरक व्यक्तित्व के बारे में जयाचार्य रचित 'हेमनवरसो' में विस्तार से जानकारी दी गई है।*

*श्रीमज्जयाचार्य के अग्रज भ्राता मुनि स्वरूपचंदजी के संघ प्रहरी स्वरूप आस्थावान प्रेरक व्यक्तित्व* के बारे में पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 47* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*संयमसूर्य आचार्य सम्भूतविजय*

गतांक से आगे...

गणिका कोशा के चरणों में रत्न कंबल का उपहार प्रदान पर वे (सिंह-गुफावासी मुनि) उसकी कृपा दृष्टि पाने के लिए आतुर हो गए। रत्न कंबल को देखकर गणिका कोशा गंभीर हो गई। अस्थियों से चिपकी चर्म एवं फटे-पुराने चिथड़ों में लिपटा मुनि का शरीर हड्डियों का ढांचा था। विवेक-संपन्ना गणिका कोशा ने रत्न कंबल से अपने पैरों को पौंछा और उसे गंदी नाली में फेंक दिया। मुनि चौंके और बोले "कंबुकंठे! अति कठिन श्रम से प्राप्त इस बहुमूल्य रत्न कंबल का आप जैसी समझदार महिला के द्वारा यह उपयोग किया जा रहा है?"

मुनि को आश्चर्यचकित देखकर संयम जीवन की महत्ता उन्हें समझाती हुई गुणवती कोशा ने कहा "मुने! इस साधारण सी कंबल के लिए इतनी चिंता? क्या आप संयम रत्न रूपी कंबल को खोकर इससे बड़ी भूल नहीं कर रहे हैं?"

गणिका कोशा की प्रेरक वाणी के ज्ञानमय स्नेहदान से सिंह-गुफावासी मुनि के मानस में विवेक का दीप जल उठा। संयम जीवन की पुनः स्मृति हो गई। हृदय अनुताप के अनल में जलने लगा। वे कृतज्ञ स्वरों में गणिका से बोले
*"बोधितोऽस्मि त्वया साधु संसारात् साधु रक्षितः"*

"सुव्रते! तुमने मुझे बोध दिया है। वासना चक्र की उत्ताल वीचि-समूह में ऊब-डूबती हुई मेरी इस जीवन नौका की तुमने रक्षा की है। मैं आर्य संभूतविजय के पास जाकर आत्मालोचन कर शुद्ध बनूंगा।"

गणिका कोशा बोली "ब्रह्मचर्य व्रत में स्थिर करने के लिए मैंने आपको यह कष्ट दिया है। मेरे इस व्यवहार के लिए आप मुझे क्षमा करें और श्रेय मार्ग का अनुसरण करें।"

सिंह-गुफावासी मुनि गणिका-गृह से विदा होकर आचार्य संभूतविजय के पास पहुंचे। वे कृतदोष की आलोचना कर संयम में पुनः स्थिर हुए एवं कठोर तपःसाधना का आचरण करने लगे।

उत्तम-पुरुषों के साथ सत्त्वहीन मनुष्यों का स्पर्धा-भाव उनके लिए ही हानिकारक होता है।

*अहो! का काकानामहमहमिक हंसविहगैः,*
*सहामर्षः सिहैरिह हि कतमो जंबुकतुकाम्।*
*यतः स्पर्द्धा कीदृक् कथय कमलैः शैवलततेः,*
*सहासूया सद्भिः खलु खलजनस्यादि कतमा।।*
*।।84।। (उपदेशमाला, विशेष वृत्ति, पृष्ठ 239)*

हंसों के साथ काकों की अहमहमिका, सिंह के साथ श्रृगाल की ईर्ष्या, कमल के साथ शैवाल की स्पर्धा एवं सज्जन मनुष्य के साथ खल मनुष्यों की असूया नहीं निभ पाती।

यह बात सिंह-गुफावासी मुनि के समझ में आ गई। उनका मानस श्रमण स्थूलभद्र के दृढ़ मनोबल को सहस्र साधुवाद दे रहा था।

*मज्झवि संसग्गीए, अग्गीए जो तथा सुवन्नं व।* *उच्छलिए बहुल तेओ,*
*स्थूलभद्दो स्थूलभद्दो मुणी जयउ (इ) ।।16।।*
*(उपदेशमाला, विशेष वृत्ति, पृष्ठ 241)*

स्त्री के संसर्ग में रहकर भी जिनकी साधना का तेज अग्नि स्नान स्वर्ण की भांति अधिक प्रदीप्त हुआ, उन स्थूलभद्र की जय हो।

चारों ओर स्थूलभद्र की जय-जयकार हो रही थी। आचार्य संभूतविजय के आचार्यकाल से संबंधित इतिहास की यह घटना अनेक दुर्बल आत्माओं के मार्ग में प्रकाशदीपिका बनी रहेगी।

*आचार्य स्थूलभद्र के शिष्य परिवार* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*

अनुक्रम - *भीतर की ओर*

*लेश्या ध्यान ---[ 6 ]*

लेश्या ध्यान के द्वारा शरीर में रंगों का संतुलन किया जा सकता है । रंग की कमी - पूर्ति के लिए लेश्या ध्यान और उसी रंग के श्वास का प्रयोग महत्वपूर्ण है ।
श्वेत रंग की कमी: पवित्रता का अभाव
लाल रंग की कमी: उत्साह, स्फूर्ति, सक्रियता का अभाव
पीला रंग की कमी: बौद्धिक विकास का अभाव
नीला रंग की कमी: चंचलता, क्रोध की अधिकता
कृष्ण रंग की कमी: नींद और आलस्य

05 मई 2000

प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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*आचार्य श्री महाश्रमण 56 वां जन्मदिवस समारोह*
👉 किशनगढ़
👉 जोरहाट
👉 चेन्नई
👉 बैंगलोर

👉 विशाखापट्टनम - स्वच्छता अभियान
👉 गुलाबबाग - महिला मंडल द्वारा विभिन्न कार्यक्रम

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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*पूज्यवर का प्रेरणा पाथेय*

👉 जुटा चतुर्विध धर्मसंघ, देश-विदेश से पहुंचे सैंकड़ों श्रद्धालु
👉 *सुबह तीन बजे बजाई गई थाल, उपस्थित श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य को दी बधाई, की शतायु की कामना*
👉 गुरुधाम से विहार कर आचार्यश्री अपनी श्वेत सेना के साथ पहुंचे श्याम बाजार
👉 *दिव्या पब्लिक स्कूल प्रांगण में जन्मोत्सव का हुआ भव्य आयोजन*
👉 साधु-साध्वियों, समणियों और श्रावक-श्राविकाओं ने दी भावनाओं को अभिव्यक्ति
👉 सांसरपक्षीय परिजनों ने भी दी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति
👉 *आचार्यश्री ने जन्मोत्सव पर जीवन को अच्छा बनाने की दी प्रेरणा*

दिनांक 04-05-2017

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