03.05.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 03.05.2017
Updated: 04.05.2017

Update

👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 16 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - गुरुधाम*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*

दिनांक - 03/05/2017

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

आज की ebook है

*आचार्य श्री महाप्रज्ञजी की कृति -*
*विचार को बदलना सीखें*

इसमे है:
🔸विचार - भाव व मन की साँझा सरकार है । नकारात्मक विचारों को बदलने के लिए मन के परे जा कर उसके मूल स्रोत नकारात्मक भाव को बदलना होगा ।
🔸जिससे ख़तरा होता है मनुष्य उससे निवृत्त होना चाहता है । जिससे लाभ है वो प्रवृति करना चाहता है । जिसमें ख़तरा व लाभ दोनो ही ना हो उसने प्रवृत्ति न निवृत्ति, उसकी उपेक्षा की जाती है ।
🔸यहाँ प्रेक्षा ध्यान हमें पहुँचता है मूल स्रोत के पास यानी चेतना के पास । चेतना के विकास से इस समस्या का निवारण कैसे सम्भव है ।
🔸ध्यान द्वारा कैसे अतिंद्रिय चेतना को जगाए ।
🔸ध्यान द्वारा कैसे स्मृति, चिंतन और कल्पना द्वारा उत्पन नकारात्मक भावो से बचे ।
🔸ध्यान है एक अंत:प्रेक्षण। भीतर देखने से पाएँगे आत्मपेक्ष जीवनशेली।
🔸सभी समस्याओं का समाधान है त्रिवेणी - अणुव्रत, प्रेक्षा ध्यान व जीवन विज्ञान ।
🔸ऊर्जा संवर्धन के प्रयोग क्या क्या है ।
🔸प्रेक्षा ध्यान का अर्थ है विधायक भावो का विकास करना । निषेधात्मक भावो को क्षीण करना।
🔸प्रेक्षा ध्यान द्वारा कैसे होगा संवेग का संतुलन ।
🔸क्या ज़रूरी दूरदर्शन या आत्मदर्शन ।
🔸ह्रदय रोग कारण व निवारण ।
🔸जीवन की शैली कैसी हो ।
🔸जीवन के नौ सूत्र । जीवन की कला जानने के लिए ज़रूरी है जानना जीवन का लक्ष्य।
🔸क्या है जीवन के घटक तत्व ।
🔸प्रेक्षा ध्यान व वेज्ञानिक दृष्टिकोण।
🔸प्रकृति के साथ कैसे जीए ।
🔸अपराध निरोध का मंत्र - चेतना का परिष्कार।
🔸पारिवारिक जीवन में कैसे करे शांतिपूर्ण सहवास।
🔸प्रेक्षा ध्यान कैसे देता है अपने अंदर ही शांतिपूर्ण समाधान ।

👉 *ओर भी है इसमें.......पढ़ेंगे तो ही जान पाएँगे*

आप भी लाभान्वीत होईये अन्यो को भी लाभान्वीत करे ।

*प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*

Helpline no. 08233344482

Books available at
http://books.jvbharati.org

*वर्ष में एक बार प्रेक्षा ध्यान शिविर में ज़रूर भाग लेकर देखे - जीवन बदल जाएगा । जीने का दृष्टिकोण बदल जाएगा ।*

प्रसारक - *तेरापंथ संघ संवाद*

Jain Vishva Bharati Online Book Store

👉 बारडोली - अनाथाश्रम में सेवा कार्य
👉 दिल्ली - अणुव्रत चित्रकला प्रतियोगिता
👉 भारत सरकार द्वारा स्वेच्छिक रक्तदान लक्ष्य प्राप्ति हेतु गठित कमेटी की चिंतन गोष्ठी में अभातेयुप आमंत्रित

प्रस्तुति - *तेरापंथ संघ संवाद*

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Update

👉 उदयपुर - वाद विवाद प्रतियोगिता
👉 सिलीगुड़ी - त्रिदिवसीय प्रशिक्षिका प्रशिक्षण शिविर
👉 कांदिवली (मुम्बई) - मंगल भावना समारोह
👉 सरदारशहर - चातुर्मास प्रवेश एवं आध्यात्मिक मिलन
👉 सेवली (जालना) - अक्षय तृतीया महोत्सव
👉 बिराटनगर - महासभा अध्यक्ष की संगठन यात्रा

प्रस्तुति -🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*

अनुक्रम - *भीतर की ओर*

*लेश्या ध्यान ---[ 4 ]*

4) हरा रंग ह्रदय और रक्त संचार तंत्र को प्राणवान बनाता है । मानसिक तनाव को कम करता है । इससे अधिक प्रयोग से पिट्युइटरी और मांसपेशीयों के ऊतकों पर बुरा प्रभाव पडता है ।
5) नील रंग चयापचय की वृद्धि करता है । रक्तकणों का परिशोधन करता है ।
6) बैगनी रंग शरीर मे पोटेशियम का संतुलन करता है । यह ट्यूमर के विकास को अवरुद्ध करता है ।
7) गुलाबी रंग भावात्मक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।
8) सफेद रंग सभी बीमारियों कोदूर करने में निमित्त बनता है । यह आसीम
शक्तिदायक है । जब रोग का सही निदान न हो तब सफेद रंग का ध्यान विषेशतः लाभप्रद होता है ।

03 मई 2000

प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 45📝

*संस्कार-बोध*

*प्रेरक व्यक्तित्व*

*दोहों में प्रयुक्त तेरापंथ धर्मसंघ के प्रेरक व्यक्तित्व*

*12. संघ विमुख अविनीत से...*

मुनि छोगजी (बड़े) धर्म संघ से अलग हुए। उनकी कल्पना थी कि अनेक साधु-साध्वियां उनका साथ देंगे। किंतु उनकी कल्पना सही नहीं थी। मुनि भोपजी के उनके साथ अच्छे संबंध थे। वे उनके पास बैठते थे। उनसे आगमों का अध्ययन भी किया करते थे। वे संघ से अलग हुए, इस बात का मुनि भोपजी को पता नहीं था। उस समय छोगजी के साथी साधु हंसराजजी उनके पास आकर बोले-- 'भोपजी! उठाओ झोलका और चलो।' मुनि भोपजी ने पूछा-- 'कहां चलें?' हंसराज जी बोले-- 'छोगजी स्वामी संघ छोड़ कर चले गए।' इस पर वे बोले-- 'भाग फूटे छोगजी के।' हंसराज जी ने यह सुनकर कहा-- 'तुम तो उनके साथ थे। उनके साथ तुम्हारी बहुत निकटता थी। अब ऐसा क्यों कहते हो?' मुनि भोपजी ने उनको दो टूक उत्तर देते हुए कहा-- 'मैं उनके साथ था चर्चा-वार्ता में, चिंतन-मंथन में। संघ को छोड़कर बाहर जाने में कभी साथ नहीं था। इस काम में तो कोई भाग्यहीन ही उनका साथ देगा।'

मुनि भोपजी का यह उत्तर उनकी अटूट संघनिष्ठा का सूचक है। कोई व्यक्ति कितना ही निकट क्यों न हो, संघविमुख होने के बाद उसके साथ किसी संघनिष्ठ साधु का संबंध नहीं रह सकता। मुनि भोपजी इस कसौटी पर खरे उतरे। यह बात जयाचार्य के पास पहुंची। मुनि भोपजी की संघनिष्ठा और दृढ़ता से उन्हें प्रसन्नता हुई। जयाचार्य ने तत्काल उनको अग्रगण्य बना दिया।

*13. सह्य नहीं होता कभी...*

मुनि स्वरूपचंदजी गांवों में विहार कर रहे थे। उनके साथ कई साधु थे। एक गांव में पानी कम आया। मुनि श्री ने साधुओं से कहा-- 'आज पानी कम है। इसलिए पानी टोपसी से माप-माप कर पीना।' प्रायः सभी साधुओं ने इस निर्देश का जागरूकता से पालन किया। ओटोजी नाम के साधु ने पानी का पात्र उठाकर पानी पी लिया। मुनिश्री बोले-- 'तुमने व्यवस्था का भंग क्यों किया? टोपसी से मापे बिना पानी कैसे पीया?' ओटोजी ने लापरवाही से उत्तर दिया-- 'पानी भी कोई मापकर पीया जाता है? मुझे प्यास लगी थी अतः अधिक पानी पी लिया।' मुनिश्री ने उन्हें समझाते हुए कहा-- 'सामान्य स्थिति में पानी मापने की जरूरत नहीं होती। आज पानी कम है। संविभाग की हमारी व्यवस्था है। तुमने व्यवस्था का भंग किया है।' इतना कहने पर भी ओटोजी ने न अपनी भूल स्वीकार की और न उस व्यवस्था को मान्य किया। अनुशासन और व्यवस्था का अतिक्रमण करने के कारण मुनि श्री ने उनका संघ से संबंध-विच्छेद कर दिया।

कुछ समय बाद मुनि स्वरूपचंदजी ने आचार्य भारिमालजी के दर्शन किए। उस समय युवाचार्य ऋषिराय ने कहा-- 'सरूप! तुमने छोटी-सी बात के लिए एक साधु को संघ से अलग कर दिया, अच्छा नहीं किया।' मुनि स्वरूपचंदजी कुछ कहें, उससे पहले ही आचार्य भारिमालजी बोले-- 'सरुप ने जो कुछ किया, ठीक ही किया। बात छोटी ही क्यों न हो, अनुशासन का भंग कभी क्षम्य नहीं हो सकता।'

*प्रेरक व्यक्तित्वों के बारे में लावणी और दोहों के रूप में* समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 45* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*संयमसूर्य आचार्य सम्भूतविजय*

गतांक से आगे...

सिंह-गुफावासी मुनि स्वयं को जितेंद्रियता के जिस उच्चतम बिंदु पर मान रहे थे, उससे यथार्थ में वे बहुत दूर थे। मुनि स्थूलभद्र जैसा दृढ़ मनोबल उनके पास नहीं था। षट्रसपूर्ण भोजन की परिणति वासना का ज्वार लेकर उभरी। कमलनयनी गणिका कोशा के अनुपम रूप पर मुनि का मन विक्षिप्त हो गया। धर्मोपदेश के स्थान पर मुनि ने कोशा के समक्ष काम-प्रार्थना की। कवि ने ठीक कहा है--
*"अर्थातुराणां न गुरुर्नबंधुः,*
*कामातुराणां न भयं न लज्जा।"*

अर्थातुर व्यक्ति के लिए न कोई गुरु है, और न कोई बंधु, कामार्त्त व्यक्ति के लिए न भय है, न लज्जा।

सिंह-गुफावासी मुनि को काम प्रार्थना करते समय न लज्जा की अनुभूति हुई, न अपयश का भय लगा।

मुनि स्थूलभद्र से संबोध प्राप्त कर गणिका कोशा पूर्ण सजग एवं सावधान थी। वह राजा के आदेश के अतिरिक्त किसी भी पुरुष से काम संबंध जोड़े रखने का त्याग कर चुकी थी। मुनि को प्रशिक्षण देते हुए उसने गंभीर रूप से कहा "मुने! मैं गणिका हूं। गणिका उसी की होती है जो प्रचुर मात्रा में द्रव्य दे सकता है। आपके पास मुझे देने के लिए क्या है?"

सिंह-गुफावासी मुनि कातर नयनों से गणिका की ओर झांकते हुए बोले "मृगलोचने! बालुकणों से कभी तेल नहीं निकलता। हमारे जैसे अकिंचन व्यक्तियों से धन की आशा करना व्यर्थ है। तुम प्रसन्न होकर मेरी कामना पूर्ण करो।" मुनि की बात सुनकर कोशा अधिक गंभीर हो गई। चिंता नहीं, चिंतन में लगी। कोशा सामान्य नारी नहीं थी। वह कुशल एवं चतुर महिला थी। वह व्यक्ति के दुर्बल मन को सबल बनाना जानती थी, गिरते को उठाना जानती थी और गुमराही को सही राह पर लाना जानती थी। पथभ्रांत सिंह-गुफावासी मुनि की ओर रोषारुण नयनों से दृष्टिक्षेप करती हुई कोशा बोली "आप अपनी मर्यादा को भंग कर सकते हैं पर मैं अपनी मर्यादा को भंग नहीं करती। यहां सबसे पहले लक्ष्मी की आरती होती है। अकिंचन का इस द्वार पर प्रवेश सर्वथा असंभव है।"

कामासक्त मुनि गिड़गिड़ाया और कोशा के चरणों में गिरने लगा। कोशा दो-चार पैर पीछे खिसकी और बोली "यहां गिड़गिड़ाने से काम बनने वाला नहीं है। तुम्हें एक उपाय बताती हूं। नेपाल देश का राजा प्रथम समागत भिक्षुओं को लक्षमुद्रा मूल्य की रत्न कंबल दान करता है। वह कंबल मेरे सामने प्रस्तुत कर सको तो इस विषय में कुछ सोच सकती हूं।"

*सिंह-गुफावासी मुनि संभल कर अपनी मर्यादा में लौटा या रत्न कंबल लाने के प्रयास में जुट गया...* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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  4. जालना
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  6. भाव
  7. लक्ष्मी
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