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#जैन_धर्म की #अहिंसा का अर्थ कायरता नहीं: मुनिश्री सुधासागरजी महाराज
जैन धर्म की अभहसा अर्थ कायरता नहीं है, लेकिन अहिंसा का अर्थ जीवों को बचाना और हिंसा का अर्थ जीवों को मरना भी नहीं है। यह उद्गार संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज के परम शिष्य मुनि पुंगव सुधासागरजी ने रविवार को सुबह टोंक में आयोजित धर्म को सभा को संबोधित करते हुए कहा
उन्होंने कहा कि लोग हिंसा-अहिंसा के अर्थ को गलत ले जाते हैं। यदि व्यक्ति अधर्म, अन्याय और पापियों का नाश करने के लिए शस्त्र उठाता है तो वह हिंसा नहीं, वह अहिंसा है। क्योंकि उन अधर्मियों का नाश करने से ही धर्म और धर्मात्मा की रक्षा की जा सकती है।
ऋषभदेव ने कहा है कि तलवार हाथ में लो, पापियों और अधर्मियों के संहार के लिए हिंसा के रूप में नहीं। जैन धर्म में एक चिंटी को मारना भी पाप माना जाता है इसलिए पानी भी छान कर पीते हैं। लेकिन अन्याय के विरूद्ध आवाज उठाना अन्यायियों को मारना हिंसा नहीं है।
क्रोध से पूर्व भविष्य के बारे में सोचें
धर्म सभा को संबोधित करते मुनिश्री ने कहा कि जैन धर्म उपदेश देता है कि क्रोध को मारो, क्रोध मत करो। क्रोध करने से पहले अपने घर-परिवार और आने वाले कल की चिंता करो। मैं कहता हूं कि क्रोध अपने आप शांत हो जाएगा। क्रोध में किया गया कार्य आपके भविष्य को संकट में डाल सकता है। क्रोध के कारण अपराध करने वाले व्यक्ति जेल में पड़ा हुआ अपने परिवार, बच्चों और मां-बाप की चिंता करता है उसे याद आती हैं उनसे मिलने की, लेकिन यदि वह इन सब बातों को अपराध करते समय ध्यान में रखता तो आज वह अपने खुशहाल परिवार के बीच होता।
उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति पाप करने में असमर्थ नहीं है, लेकिन लोग पाप करने से पूर्व उसके परिणामों के बारे में जान लेते हैं और वे पाप के रास्ते को नहीं अपनाते हैं। मुनिश्री ने भगवान श्रीराम का उदहारण देते हुए बताया कि जब भगवान राम को वनवास भेजा गया था तो उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार किया।
उनको पता था कि उनके हाथ से राजगद्दी छीनी जा रही है। वे चाहते तो युद्ध करके, माता कैकेई का अपमान करके राजगद्दी को प्राप्त कर सकते थे। लेकिन उन्होंने खुशी-खुशी पिता के वचनों के लिए 14 वर्ष के वनवास को राजगद्दी छोडक़र स्वीकारा। इस माजरे को देखकर लक्ष्मण को बहुत क्रोध आया। लेकिन भगवान राम ने भविष्य को देखते हुए तुरंत क्रोध पर काबू पाकर निर्णय लिया कि उन्हें राजगद्दी को छोडक़र वनवास का मार्ग चुनने पर ज्यादा यश मिलेगा। मुनिश्री ने कहा कि ज्ञानी को कभी असमर्थ मत समझो, वह पाप भी कर सकता है, लेकिन वह यह करने से पूर्व हानि-लाभ के बारे में सोचकर ही अपना निर्णय लेता है।
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