25.04.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 25.04.2017
Updated: 26.04.2017

Update

👉 कानपुर - रक्तदान शिविर का आयोजन
👉 जालना - आचार्य श्री महाप्रज्ञ अष्टम महाप्रयाण दिवस
👉 भीलवाड़ा - आचार्य श्री महाप्रज्ञ अष्टम महाप्रयाण दिवस
👉 सिलवासा (गुजरात) - मंगल भावना व सभा शपथ ग्रहण समारोह

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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Update

👉 विश्क़खापट्टनम - रक्तदान शिविर का आयोजन
👉 सिलीगुड़ी - आधार कार्ड कैम्प का आयोजन
👉 गुजरात - दाहोद की धरती पर प्रथम बार दम्पति-कार्यशाला
👉 शाहीबाग,अहमदाबाद - आचार्य श्री महाप्रज्ञ अष्टम महाप्रयाण दिवस
👉 सरदारशहर - आचार्य श्री महाप्रज्ञ अष्टम पुण्यतिथि पर सामूहिक सामायिक का आयोजन
👉 रायपुर - वर्षीतप अभिनन्दन
👉 कोटा - श्री उत्सव का आयोजन
👉 लाडनू - सम्मान समारोह का आयोजन
👉 दुर्ग-भिलाई - आचार्य श्री महाप्रज्ञ अष्टम महाप्रयाण दिवस

दिनांक - 25/04/2017

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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News in Hindi

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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 38📝

*संस्कार-बोध*

*शिष्य-सम्बोध*

*शिष्य के संस्कारों का महत्त्व बतलाते दोहों में प्रयुक्त कुछ उदाहरणों का विस्तृत विवेचन*

*5. लेखपत्र*

तेरापंथ धर्मसंघ का वह लेखपत्र जिसका साधु-साध्वियां प्रतिदिन प्रातःकाल उच्चारण करते हैं--

मैं सविनय बंद्धाजली प्रार्थना करता हूं/करती हूं कि श्री भिक्षु, भारीमाल आदि पूर्वज आचार्य, शासन-नियंता गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी तथा वर्तमान आचार्यश्री महाप्रज्ञ (जिस समय पुस्तक की रचना हुई) वर्तमान में आचार्यश्री महाश्रमण द्वारा रचित एवं सर्व मर्यादाएं मुझे मान्य हैं। आजीवन उन्हें लोपने का त्याग है। गुरुदेव! आप संघ के प्राण हैं, श्रमण परंपरा के अधिनेता हैं। आप पर मुझे पूर्ण श्रद्धा है। आपकी आज्ञा में चलने वाले साधु-साध्वियों को भगवान् महावीर के साधु-साध्वियों के समान शुद्ध साधु मानता हूं/मानती हूं। अपने आपको भी शुद्ध साधु मानता हूं/मानती हूं। आपकी आज्ञा लोपने वालों को संयम-मार्ग से प्रतिकूल मानता हूं/मानती हूं।

🔹मैं आपकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करूंगा/करूंगी।
🔹प्रत्येक कार्य आपके आदेशपूर्वक करूंगा/करूंगी।
🔹विहार, चातुर्मास आपके आदेशानुसार करूंगा/करूंगी।
🔹शिष्य नहीं करूंगा/करूंगी।
🔹दलबंदी नहीं करूंगा/करूंगी।
🔹आपके कार्य में हस्तक्षेप नहीं करूंगा/करूंगी।
🔹आपके तथा साधु-साध्वियों के अंशमात्र भी अवर्णवाद नहीं बोलूंगा/बोलूंगी।
🔹किसी भी साधु-साध्वी में दोष जान पड़े तो उसका अन्यत्र प्रचार किए बिना स्वयं उसे या आचार्य को जताऊंगा/जताऊंगी।
🔹सिद्धांत, मर्यादा व परंपरा के किसी भी विवादास्पद विषय में आप द्वारा किए गए निर्णय को श्रद्धापूर्वक स्वीकार करुंगा/करूंगी।
🔹गण से बहिष्कृत या बहिर्भूत व्यक्ति से संस्तव में ही रखूंगा/रखूंगी।
🔹गण के पुस्तक, पन्नों आदि पर अपना अधिकार नहीं करूंगा/करूंगी।
🔹पद के लिए उम्मीदवार नहीं बनूंगा/बनूंगी। 🔹आपके उत्तराधिकारी की आज्ञा सहर्ष शिरोधार्य करूंगा/करूंगी।

पंच पदों की साक्षी से मैं इन सबके उल्लंघन का प्रत्याख्यान करता हूं/करती हूं। मैंने यह लेखपत्र आत्मश्रद्धा व विवेकपूर्वक स्वीकार किया है, संकोच, आवेश या प्रभाववश नहीं।

*आत्मिक बल के आधार पर पुरुष के चार प्रकार बताए गए हैं। जिन्हें आचार्य भिक्षु ने एक रोचक उदाहरण के माध्यम से समझाया है।* वह रोचक उदाहरण हम पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 38* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*श्रुत-शार्दुल आचार्य शय्यंभव*

गतांक से आगे...

*अहो शय्यंभवो भट्टो,*
*निष्ठुरेभ्योऽपि निष्ठुरः।*
*स्वां प्रियां यौवनवतीं*
*सुशीलामपि योऽत्यजत्।।*
*(परिशिष्ट पर्व, सर्ग 5)*

विद्वान् शय्यंभव भट्ट निष्ठुरातिनिष्ठुर हैं, जिसने अपनी युवती पत्नी का परित्याग कर दिया है। वह साधु बन गया है। नारी के लिए पति के अभाव में पुत्र ही आलंबन होता है। वह भी उसके पास नहीं है। अबला भट्ट-पत्नी कैसे अपने जीवन का निर्वाह करेगी? स्त्रियाँ उससे पूछतीं "बहिन, क्या गर्भ की संभावना है?" वह संकोच करती हुई कहती *'मणियं'* यह मणियं शब्द संस्कृत के मानक् शब्द का परिवर्तित रूप है, जो सत्त्व का बोध करा रहा था तथा कुछ होने का संकेत कर रहा था। भट्ट-पत्नी ने पुत्र को जन्म दिया। पुत्र का नाम माता द्वारा उच्चरित मणियं की ध्वनि के आधार पर मनक रखा गया। भट्ट-पत्नी ने मनक का स्नेह से पालन किया। बालक आठ वर्ष का हुआ। उसने अपनी मां से पूछा "जननी! मेरे पिता का नाम क्या है?" भट्ट-पत्नी ने पुत्र के प्रश्न पर समग्र पूर्व वृत्तांत सुनाया और उसे बताया "तुम्हारे पिता जैन मुनि बन गए हैं।" पितृ-दर्शन की भावना बालक में जगी। माता का आदेश ले वह स्वयं पिता शय्यंभव भट्ट की खोज में निकला। पिता-पुत्र का चंपा में अचानक मिलन हुआ। अपनी मुखाकृति से मिलती हुई मनक की मुखमुद्रा पर श्रुतधर शय्यंभव की दृष्टि केंद्रित हो गई। हृदय में अज्ञात स्नेह उमड़ पड़ा। उन्होंने बालक से नाम-गांव आदि के विषय में पूछा। अपना परिचय देता हुआ मनक बोला "मेरे पिता शय्यंभव मुनि कहां हैं? आप उन्हें जानते हैं?" बालक के मुंह से अपना नाम सुनकर शय्यंभव ने पुत्र को पहचान लिया और अपने को श्रुतधर शय्यंभव का अभिन्न मित्र बताते हुए उसे अध्यात्म बोध दिया। बाल्यकाल के सरल मानस में संस्कारों का ग्रहण शीघ्र होता है। शय्यंभव का प्रेरणाप्रद उपदेश सुनकर मनक प्रभावित हुआ और आठ वर्ष की अवस्था में उनके पास मुनि बन गया।

श्रुतधर शय्यंभव हस्तरेखा के जानकार थे। मनक का हाथ देखने से उन्हें लगा, बालक का आयुष्य बहुत कम है। समग्र शास्त्रों का अध्ययन करना इसके लिए संभव नहीं है।

*अपश्चिमो दशपूर्वी श्रुतसारं समुद्धरेत्।*
*चतुर्दशपूर्वधरः पुनः केनापि हेतुना।।*
*(परिशिष्ट पर्व वर्ग 5)*

अपश्चिम दशपूर्वी एवं चतुर्दश पूर्वधर विशेष परिस्थिति में ही पूर्वों से आगम-निर्यूहण का कार्य करते हैं।

*शय्यंभव चतुर्दश पूर्वधर आचार्य थे। उन्होंने अल्पायुष्क मुनि मनक के लिए किन सूत्रों का निर्यूहण किया...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*

अनुक्रम - *भीतर की ओर*

*हार्मोंन्स का संतुलन*

एड्रीनलाइन के स्राव से मन व शरीर को हठात् अधिक शक्ति प्राप्त होती है । इसके अधिक स्राव से तनाव व निराशा उत्पन्न होती है । थाइराइड ग्रन्थि से स्न्नवित होने वाला थायराॅक्सिन चयापचय की दर को नियन्त्रण करता है । इसका अतिस्राव शरीर एवं मन में तनाव व उत्तेजना पैदा करता है । इसका कम स्राव शरीर में थकान एवं मन में आलस्य पैदा करता है । अन्य हाॅर्मोन्स हमारे प्रजनन संबंधी अंगों को नियंत्रित करते हैं तथा मेल एवं फीमेल सम्बन्धी हाॅर्मोन्स पुरुषत्व एवं स्त्रीत्व प्रदान करते हैं । इनकी कमी - बेशी मनुष्य को नपुंसक या कामुक बना देती है ।
वात, पित्त और कफ का वैषम्य रोग और उनका साम्य आरोग्य है । इस आयुर्वेदीय सिद्धांत के आधार पर आयुर्विज्ञान का यह सिद्धांत स्थापित किया जा सकता है कि हाॅर्मोन्स के स्राव का असंतुलन रोग और उनका संतुलन आरोग्य है ।

25 अप्रैल 2000

प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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*श्रावक सन्देशिका*

👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 63 - *समाधिस्थल व स्मारक*

*कासीद व्यवस्था* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....

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  1. आचार्य
  2. आचार्य भिक्षु
  3. आचार्य श्री महाप्रज्ञ
  4. आचार्यश्री महाप्रज्ञ
  5. कोटा
  6. गुजरात
  7. जालना
  8. महावीर
  9. श्रमण
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