Update
22 अप्रैल का संकल्प
*तिथि:- वैशाख कृष्णा एकादशी*
सामायिक में समता भाव व जप-स्वाध्याय का क्रम । ज्ञानोपार्जन व कर्म निर्जरण का है ये अच्छा उपक्रम ।।
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 दिल्ली - अणुव्रत शैक्षणिक कार्यशाला का आयोजन
👉 बारडोली - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 हैदराबाद - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 उतर हावड़ा - महिला मंडल द्वारा संगोष्ठी का आयोजन
👉 कांदिवली (मुंबई) - पच्चीस बोल कार्यशाला का आयोजन
प्रस्तुति - *तेरापंथ संघ संवाद*
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👉 *तेरापंथ के दशम अनुशास्ता आचार्य श्री महाप्रज्ञ के अष्ठम महाप्रयाण दिवस पर आचार्य महाप्रज्ञ स्मारक स्थल, सरदारशहर में आयोजित होगा भव्य कार्यक्रम*
👉 *कार्यक्रम में उपस्थिति हेतु महासभा द्वारा सादर आमंत्रण*
👉 *विशाल धम्म जागरण का लाइव प्रसारण दिनांक 22 अप्रैल को पारस चैनल पर सांय 8 बजे से होगा।*
👉 22 अप्रैल को आयोजित होंगे कार्यक्रम -
🔹 सामायिक एवं जप - प्रातः 8:30 से 9:30 तक
🔹श्रद्धार्पण समारोह - प्रातः 9:30 से 11:00 तक
🔹सामूहिक सामायिक - सांय 7 से 8 तक
🔹 धम्म जागरण - सांय 8:00 से
प्रसारक - *तेरापंथ संघ संवाद*
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 35📝
*संस्कार-बोध*
*शिष्य-सम्बोध*
गतांक से आगे...
*20.*
वार्तालाप प्रसंग हो, जब भी सद्गुरु साथ।
नम्र नयन नतशीष वर, जुड़े रहें युग-हाथ।।
*21.*
रत्नाधिक गुरु कथन पर, 'तहत' कहें तत्काल।
है यह स्वस्थ परंपरा, रखें सदा संभाल।।
*22.*
आग नहीं सहते कभी, मोम लाख या काठ।
मिट्टी पकती आंच में, त्यों मुनि सहते डांट।।
*23.*
सुगुरु किसी के साथ में, करें बात एकान्त।
सुनने का आयास क्यों? हों निरपेक्ष नितान्त।।
*24.*
आकस्मिक जो कान में, आए नूतन बात।
करें नहीं चर्चा कहीं, परखें निज औकात।।
*25.*
अर्थहीन आलोचना, विकथा निन्दा हास।
अति उत्सुकता आदि से, बचने का अभ्यास।।
*26.*
व्यर्थ बात में क्यों कभी, करें समय बरबाद।
'बातेरी की बिगड़ती' रखें सूत्र यह याद।।
*27.*
भूल किसी की देखकर, कहें उसे एकान्त।
भाषा मधुर सुझाव की, बोलें होकर शान्त।।
*शिष्य-सम्बोध...* हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 35* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*परिव्राट्-पुंगव आचार्य प्रभव*
*समकालीन राजवंश*
प्रभव के आचार्यकाल में नंदों का शासनकाल प्रारंभ हो गया। मगध में नरेश उदायी के राज्य का अंत वी. नि. 60 (वि. पू. 410, ई. पू. 467) में हुआ है। इसी वर्ष नंदवंश के राज्य का अभ्युदय हुआ। नंदवंश के अभ्युदय के समय आचार्य जम्बू का आचार्यकाल था। चार वर्ष के बाद आचार्य प्रभव का आचार्य-काल प्रारंभ हुआ था, अतः नंदवंश का राज्य आचार्य प्रभव के समय अपने शैशवकाल में था।
विद्वानों ने नंद शासकों को जैन माना है। राजवंश जैन होने के कारण श्रुतधर प्रभव को धर्म प्रचार के लिए राजकीय दृष्टि से अनुकूल वातावरण मिला।
*प्रथम श्रुतकेवली*
श्रुतकेवली की परंपरा में आचार्य प्रभव प्रथम थे। आचार्य प्रभु को द्वादशांगी की उपलब्धि आचार्य सुधर्मा से प्राप्त हुई या जम्मू से.... इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख प्राप्त नहीं है।
महान् जैनाचार्यों में परिव्राट्पुगव आचार्य प्रभव का गौरवमय स्थान है। शय्यंभव जैसे अहंकारी, निर्गन्थ प्रवचन के घोर प्रतिद्वंदी विद्वान् को भगवान् महावीर के संघ में दीक्षित करना उनकी क्षमता का सबल उदाहरण है।
दिगंबर परंपरा में जम्बू के साथ दिक्षित होने वाले 'विद्युच्चर' को श्रुतकेवली नहीं माना है। उनका गुरु पट्टावली में कहीं उल्लेख नहीं है। श्वेतांबर परंपरा के अनुसार स्तेन सम्राट् प्रभव परिव्राट् अग्रणी बने एवं श्रुतकेवली परंपरा में वे प्रथम थे। अपने स्थान पर उन्होंने श्रुतज्ञानादि गुणों से मंडित शय्यंभव की नियुक्ति की एवं संघ के ऋण से मुक्त हुए।
*समय-संकेत*
आचार्य प्रभव 30 वर्ष तक गृहस्थ में रहे। संयमी जीवन के 75 वर्ष के काल में वे 11 वर्ष तक आचार्य पद पर रहे। चारित्र धर्म की सम्यक् आराधना करते हुए 105 वर्ष का आयुष्य पूर्ण कर वी. नि. 75 (वि. पू. 395) में वे अनशनपूर्वक स्वर्गगामी हुए।
परिव्राट् पुङ्गव प्रभव विविध योग्यताओं की प्रभुता से संपन्न, सक्षम, विशिष्ट प्रभावशाली आचार्य थे।
*आचार्य काल*
(वी. नि. 64-75)
(वि. पू. 406-395)
(ई. पू. 463-452)
*महावीर परम्परा के चतुर्थ पट्टधर श्रुत-शार्दुल आचार्य शय्यंभव* के बारे में जानेंगे-समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*चैतन्य केन्द्र और ग्रन्थितन्त्र ---[ 1 ]*
आगम साहित्य और आयुर्वेद में मर्म का विशद विवेचन हुआ है । हठयोग मे उसका वर्णन चक्र सिद्धांत के आधार पर किया गया है । आयुर्विज्ञान (Medical science) में अन्तः स्रावों और उनके प्रभावों का अध्ययन किए बिना चक्र सिद्धांत की पूरी अवधारणा स्पष्ट नही होती । अतः ध्यान करने वाले व्यक्ति को ग्रन्थितन्त्र के बारे में जानना बहुत आवश्यक है ।
21 अप्रैल 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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*श्रावक सन्देशिका*
👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 60 - *पुरस्कार, अलंकरण*
*अनशन* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....
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