13.04.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 13.04.2017
Updated: 14.04.2017

Update

14 अप्रैल का संकल्प

*तिथि:- वैशाख कृष्णा तृतीया*

प्रतिदिन हो सुबह की शुभ शुरुआत सभक्ति गुरु वन्दना से ।
ना हो प्राप्त सान्निध्य तो श्रद्धार्पण करें भाव वन्दना से ।।


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🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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👉 रायपुर - "गूंज महावीर की" कार्यक्रम का सफल मंचन
👉 तिरुपुर - पाक कला प्रशिक्षण क्लास आयोजित
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Video

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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का वीडियो:

👉 *विषय - स्वभाव परिवर्तन भाग 1*

👉 *खुद सुने व अन्यों को सुनायें*

*- Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

प्रसारक: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

Update

👉 *तेरापंथ के दशम अनुशास्ता आचार्य श्री महाप्रज्ञ के अष्ठम महाप्रयाण दिवस पर आचार्य महाप्रज्ञ स्मारक स्थल, सरदारशहर में आयोजित होगा भव्य कार्यक्रम*

👉 *कार्यक्रम में उपस्थिति हेतु सादर आमंत्रण*

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👉 बारडोली - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 काठमाण्डू (नेपाल) - श्री गोलछा नेपाल के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मानित
👉 राजनांदगांव - मंगल भावना समारोह
👉 वापी - रिश्तों को महकाये-जीवन बगिया सरसाये विषयोक्त कार्यशाला का आयोजन

प्रस्तुति - *तेरापंथ संघ संवाद*

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News in Hindi

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*श्रावक सन्देशिका*

👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 54 - *समायोजन*

*समायोजन* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....

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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*

अनुक्रम - *भीतर की ओर*

*चाक्षुष केन्द्र*

बाह्य जगत से सम्पर्क स्थापित करने का एक प्रमुख साधन है चक्षु । तार्किक विद्वानों ने चक्षु के विज्ञान को प्रत्यक्ष विज्ञान माना है । मनुष्य विश्वास के साथ कहता है यह मेरे आखो देखी बात है । ध्यान की मुद्रा में चक्षु की मुद्रा का महत्वपूर्ण स्थान है । सामान्यतया ध्यान की स्थिति में आंख मूंद ली जाती है ।
ध्यान के समय इस पर भी विचार करना आवश्यक है कि चक्षु पर भी ध्यान किया जा सकता है । एकाग्रता और अन्तश्चक्षु के उद्धधाटन के लिए वह बहुत उपयोगी है ।

13 अप्रैल 2000

प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 29📝

*आचार-बोध*

*वीर्याचार*

लय- वन्दना आनन्द...

*81.*
ज्ञान दर्शन चरण तप
आराधना आयोग में,
वीर्य का गोपन न हो
पुरुषार्थ परम प्रयोग में।
शक्ति का सम्यक् नियोजन
हो उसी में सर्वदा,
वीर्य का आचार यह
हरता रहे हर आपदा।।

*उपसंहार*

(लावणी)

*82.*

आचार-बोध मुनि चर्या का संवादी
जीवन शुचिता का उपाय है अविवादी
'तुलसी' संयम यात्रा में पोषक संबल,
संबोधित रूप खिला 'दिल्ली' में अविकल।।

*83.*
सन उन्नीसे सित्यासी विक्रम संवत,
युग सहस्र चार चालिस सर्वथा संगत।
'पावस' 'माघोत्सव' का शुभ योग मिला है, 'अणुव्रत विहार' का अभिनव रूप खिला है।।

*संस्कार-बोध* के बारे में जानेंगे-समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 29* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*परिव्राट्-पुंगव आचार्य प्रभव*

स्तेन सम्राट प्रभव उच्चकोटि का परिव्राट बना, श्रमण सम्राट बना, यह जैन इतिहास का अनुपम पृष्ठ है। श्रुतधर आचार्यों की परंपरा में आचार्य प्रभव प्रथम हैं।

दिगंबर परंपरा के अनुसार केवली जम्बू के बाद श्रुतकेवली की परंपरा में सर्वप्रथम स्थान द्वादशांग के अध्येता एवं संपूर्ण श्रुत के ज्ञाता विष्णु मुनि को प्राप्त है।

*गुरु-परंपरा*

आचार्य सुधर्मा प्रभव के दीक्षा गुरु थे। आचार्य जम्बू और आचार्य प्रभव एक ही गुरु से दिक्षित गुरुबंधु थे। आचार्यों की परंपरा में तीर्थंकर महावीर के शासन का उत्तराधिकार श्रुतधर प्रभव को आचार्य जम्बू से प्राप्त हुआ। सुधर्मा की गुरु-परंपरा महावीर से संबंधित थी

*जन्म एवं परिवार*

प्रभव क्षत्रिय राजकुमार था। विंध्य प्रदेश के समीपवर्ती जयपुर नगर में वी. नि. पू. तीस (वि. पू. 500, ई. पू. 557) में प्रभव का जन्म हुआ। वह विंध्य नरेश का पुत्र था। विंध्य प्रदेश विंध्य पर्वत की तलहटी में बसा हुआ था। प्रभव का गोत्र कात्यायन था। कात्यायन गुरुगोत्र माना गया है। ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों में यह गोत्र प्रचलित रहा है, ऐसा इस प्रसंग से स्पष्ट होता है।

*जीवन-वृत्त*

विंध्य नरेश के दो पुत्र थे। उनमें प्रभव ज्येष्ठ था। उसने क्षत्रियोचित नाना प्रकार की शिक्षाएं पाईं। युवा हुआ। ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण वह राज्य का अधिकारी था। कारणवश विंध्य नरेश ने राज्य का उत्तराधिकारी कनिष्ठ पुत्र को बनाया। इससे प्रभव कुपित हुआ। राजमहलों में पला हुआ युवा पितृ स्नेह से रिक्त होकर चारों की पल्ली में पहुंच गया। वह बुद्धि का स्वामी और शारीरिक सामर्थ्य से संपन्न था। जन समूह को लूटता, कूदता-फांदता विंध्याचल की घाटियों में शेर की तरह निर्भीक दहाड़ता प्रभव एक दिन 500 चोरों का नेता बन गया। अवस्वापिनी और तालोद्घाटिनी नाम की दो विद्याए प्रभव के पास थीं। अवस्वापिनी विद्या के द्वारा वह सबको निंद्राधीन कर सकता था और तालोद्घाटिनी विद्या के द्वारा मजबूत तालों को भी खोल सकता था। अपनी इन दोनों विद्याओं से स्तेनाधिपति का बल अत्यधिक बढ़ गया। शस्त्र-सुसज्जित सैन्यदल भी प्रभव के नाम से कांपता था।

एक बार प्रभव का दल मगध की सीमा में पहुंच गया। इस दल ने राजगृही के इभ्य श्रेष्ठी ऋषभदत्त के पुत्र जम्बू के विवाह की चर्चा सुनी। विवाह में प्राप्त 99 करोड़ के दहेज की जानकारी प्राप्त कर प्रभव ने सोचा एक ही दिन में धनवान बनने का यह एक अच्छा अवसर है। भाग्य को चमकने वाला यह सुनहरा मौका है, ऐसे सुनहरे अवसर को खोने वाला मूर्ख होता है। हमें बुद्धिमानी से काम करना है और अपने भाग्य को परखना है।

*क्या प्रभाव अपने भाग्य को प्रभाव पर पाया और अगर पर रख पाया तो किस रूप में...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 14 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - पार्वती*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*

दिनांक - 13/04/2017

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*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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