31.03.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 31.03.2017
Updated: 01.04.2017

Update

जैसे की आप हमारे अपने आचार्य श्री #विद्यासागर जी महामुनिराज की चतुर्थ कालीन चर्या से सभी परिचित हैं आचार्य श्री के साथ-साथ उनके द्वारा दीक्षित शिष्य भी चर्या में एक से बढ़कर एक है, उन्हीं शिष्यों में से एक हैं मुनि श्री #शाश्वतसागर जी मुनिराज -जिनका दीक्षा के बाद से एक आहार व एक उपवास चल रहा हैं:))

ऐसे मुनिराज जो आचार्य श्री के सबसे छोटे शिष्यों में से एक है,पर तप,चर्या में सुमेरु के समान उच्च है, मुनि श्री के तप की जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है,या यों कहे कि सूरज को दीपक दिखाने जैसी है, मुनि श्री शाश्वतसागर जी ने आचार्य श्री से 1993 में ब्रह्मचर्य व्रत लिया था व लगभग 2004 में ही आजीवन वाहन का त्याग कर दिया, दस साल तक आपने ब्रह्मचारी अवस्था में पदविहार ही किया,व ब्रह्मचारी रहकर भी एक मुनि के समान आचरण को धारण किया,व जन-जन तक धर्म की प्रभावना की। 16 अक्टूबर 2014 को शीतलधाम विदिशा में आपको आचार्य श्री ने मुनि दीक्षा प्रदान की।

उसी दिन से आजतक आपके एक उपवास एक आहार चल रहा है,भयंकर गर्मी हो या लम्बा विहार आप एक आहार एक उपवास की साधना अनवरत ढ़ाई साल से करते आ रहे हैं, वर्तमान में आचार्यश्री बीना बारहा से डोंगरगढ़ तक बिना विश्राम किए अनवरत विहार कर रहे है,ऊपर से डोंगरगढ़ का पूरा मार्ग कंकरीला व जंगलों का है,जहाँ पर कुछ दूरी चलने पर ही व्यक्ति हाँफने लग जाता है,ऊपर से तेज धूप!! परन्तु मुनि श्री इस समय भी एक उपवास एक आहार की साधना कर रहे है,

48 घण्टे में एक बार विधिपूर्वक आहार ग्रहण करने की साधना करने वाले योगियों के दर्शन पंचमयुग में दुर्लभता से प्राप्त होते है। वीरप्रभु से यही कामना कि मुनि श्री शाश्वतसागर जी मुनिराज अपने रत्नत्रय की पूर्णता को प्राप्त करे,व शाश्वत सिद्ध पद के धारी बने।

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Update

गुरूवर तेरे गुणों को हमसे गाया नही जाता।
तेरी साधना का अंदाजा कभी लगाया नही जाता।।
तेरे गुणों का गुणगान करे तो कैसे करे।
की दुनिया में ऐसा पैमाना कहीँ पाया नही जाता ।।

कितना आश्चर्य होता है यह जानकर कि रात को जंगल में रुकना है जंगल भी ऐसा हो जो #अनजाना हो और रुकने के कोई साधन भी नही हो, साथ ही प्रकृति का प्रकोप हो भीषण #गर्मी से जहा #वातावरण में #तापमान 42 #डिग्री की लू भरी आंधियो के साथ भ्रमण कर रहा हो और नीचे से पठार भी ऐसे जिसके नीचे तांबे का भण्डार भरा हो उसकी गर्मी अथार्थ ऊपर और नीचे सिर्फ गर्मी ही गर्मी ह!!

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News in Hindi

आत्मनिवासी गुरुदेव के पावनचरणों के निकट गुजरी समयसार जैसी पावन निजानुभूत आत्मघड़िया... #आचार्य_विद्यासागर_ जी

मेरा जन्म जन्मान्तर का सौभाग्य जागा और कि मुझे जैसे ही पता चला कि मुझे पुनः अपने ह्र्दयनिवासी गुरुदेव का सामीप्य मिलने वाला है मैं लघुबालक की तरह झट-पट गुरुचरणों की ओर दौड़ा चला!! इस तरह कल हमारे नगर की संस्थाओं के संग मुझे दुर्लभ गुरुदर्शन का महापुण्य का समागम मिला।कल प्रातः दर्शन कर गुरुदेव को काफी देर तक निहारता रहा।मेरी सोई हुई चेतना उन्हें देखते ही अंतरतम से परिष्कृत होने लगी *मन बार बार गुरूजी के चिन्तन से झकझोर हो उठा कि इतनी भीषण गर्मी में विहार के पश्चात आहार, चौकों में और बाहर कर्कश कोलाहल, अति अल्प आहार और दिन भर तेज़ तापमान और श्रावको का हुजूम।*गुरुदर्शन की घड़ियां पुनः चैतन्य हो उठी कि मध्यबेला में हमारे नगर के जिनालय के पंचकल्याणक हेतु नगर की सभी संस्थाओं के प्रतिनिधियों संग गुरुचरणों में गुरुदेव के कक्ष में पंहुचा। विराजित गुरुचरणों को स्पर्श करने मैंने ज्योहि हाथ बढ़ाया मेरे हाथ थमें थमे रह गये चरण पगतल सूजे हुए, बड़े बड़े छाले, और उन छालों से छलकता रक्त, मैंने नज़रे मुखमण्डल में समर्पित की गुरुदेव ने स्मित मुस्कान से आशीष दिया लगा आज आशीष पिछली बार से बहुत अधिक ज्यादा था।गुरुमुख पर वैसी मंद मधुर मुस्कान सभी प्रतिनिधि असीमित हर्षित थे सबने यही कहा इतना आशीष तो हमें गुरुदेव ने कभी नही दिया।मन मानों ये प्रतीति दे रहा हो कि आज तो इस तुच्छ बालक को महज यूँ ही कुवेर का आत्मखजाना मिल गया हो

लेकिन न जाने आज मन में एक कसक,पीड़ा है,मन बार बार कचोट रहा है कि कल दोपहर पश्चात पुनः विहार हुआ 40 डिग्री तापमान, नीचे सड़क से पिघलता डामर, और कुछ दूर मुरम के बड़े कंकडों से इन्ही गुरुचरणों का विहार, आज के विहार में मुझे ध्वज लेकर आगे चलने का अवसर मिला मुझे डामर की तपन या एकाध छोटे से कंकर चुभन तिलमिला देती थी।_ बार बार मन जाता था उन्ही गुरुचरणों के पगतल की ओर जिन्हें स्पर्श करने में मेरे हाथ और मन कांप गये थे।_ निजकर्म क्षेत्र की व्यस्तता के कारण आज आना पड़ा वापस लेकिन न जाने आँखों, हृदय, मन में वे चरणकमल विस्मृत होने का नाम नही ले रहे है। *मन कह रहा है कि गुरुदेव कब वह दि आएगा कि जब एक दिन सबकुछ छोड़कर सिर्फ आप तक आपके चरण में आपकी चरणरज बन स्वयं को भेंट कर सकूँ!!

🎊🎈🎊🎈🎊 भावाभिव्यक्ति एवम शब्दाकन -राजेश जैन श्री दि• जैनाचार्य विद्यासागर पाठशाला भिलाई

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