16.03.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 16.03.2017
Updated: 17.03.2017

Update

♻❇♻❇♻❇♻❇♻❇♻

*श्रावक सन्देशिका*

👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 30 - *पत्र पत्रिका*

*साहित्य लेखन* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

♻❇♻❇♻❇♻❇♻❇♻

*श्रावक सन्देशिका*

👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 29 - *संघीय साहित्य सृजन–प्रकाशन*

*पत्र प्रत्रिका* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

♻❇♻❇♻❇♻❇♻❇♻

*श्रावक सन्देशिका*

👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 28 - *विज्ञापन*

*संघीय साहित्य सृजन–प्रकाशन* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

💠🅿💠🅿💠🅿💠🅿💠🅿💠

*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*

अनुक्रम - *भीतर की ओर*

*दीर्घश्वास*

श्वास ऐच्छिक (voluntaury) और अनैच्छिक (involuntary) दोनों प्रकार का होता है। छोटा बच्चा अनैच्छिक श्वास लेता है फिर भी उसका श्वास लम्बा होता है। जैसे-जैसे वह बडा होता है वैसे-वैसे उसमें आवेश और उतेजनात्मक भाव बढते है। उसका श्वास छोटा हो जाता है।
छोटा श्वास शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए बाधक बनता है। इसलिए जरुरी है दीर्घश्वास का अभ्यास।

16 मार्च 2000

प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

💠🅿💠🅿💠🅿💠🅿💠🅿💠

🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 5* 📝

*आचार्यों के काल का संक्षिप्त सिंहावलोकन*

*तीर्थंकर ऋषभ*

भारत भूमि पर वर्तमान अवसर्पिणी काल में प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ थे। तीर्थंकर ऋषभ अंतिम कुलकर नाभि के पुत्र थे। मानवीय संस्कृति के आद्य सुत्रधार, प्रथम समाज व्यवस्थापक, प्रथम राजा, प्रथम मुनि, प्रथम भिक्षाचर, प्रथम जिन, प्रथम केवली, प्रथम धर्म प्रवर्तक एवं प्रथम धर्म चक्रवर्ती थे।

समाज व्यवस्था के रुप में ऋषभ ने असि, मसि कृषि, का विधान दिया। ब्राह्मी और सुंदरी अपनी इन दोनों पुत्रियों को लिपि विद्या और अंक विद्या में कुशल बनाया। जैन मान्यता के अनुसार आज की सुप्रसिद्ध ब्राह्मी लिपि का नामकरण ऋषभ-पुत्री ब्राह्मी के नाम पर हुआ है। प्रागैतिहासिक काल से अब तक अनेक भाषाएं ब्राहमी लिपि में लिखी गई हैं।

ऋषभ ने अपने पुत्र भरत को राजनीति का प्रशिक्षण देकर राज्य संचालन के योग्य बनाया। भरत प्रथम चक्रवर्ती बने। जैन मान्यतानुसार ऋषभ-पुत्र भरत के नाम पर ही इस देश का नाम भारतवर्ष हुआ। कई आधुनिक विद्वानों का भी इसमें समर्थन है।

ऋषभ-पुत्र भरत से दुष्यंत-पुत्र भरत बाद में हुए हैं। अति प्राचीन काल में यहां भारत जाति निवास करती थी। इससे स्पष्ट है इस भूमि का नाम भारत दुष्यंत पुत्र भरत से पहले ही हो गया था।

समाज और राज्य की समुचित व्यवस्था करने के पश्चात ऋषभ मुनि बने। साधना में प्रवृत्त हुए। सर्वज्ञ बने। उन्होंने धर्म-तीर्थ का प्रवर्तन किया। उत्तराध्ययन सूत्र में उल्लेख है *"धम्माणं कासवो मुंह"* काश्यप (ऋषभ) धर्म के मुख थे अर्थात् ऋषभ धर्म के आद्य प्रवर्तक थे।

तीर्थंकर ऋषभ का तेजोमय व्यक्तित्व त्याग और तप का पुंजीभूत रूप था। वे प्रभावशाली अध्यात्म पुरुष थे। वेदों और पुराणों में कई स्थलों पर ऋषभ का श्लाघ्य पुरुष के रूप में उल्लेख है। भागवत पुराण के अनुसार ब्रम्हा ने ऋषभदेव के रूप में आठवां अवतार धारण किया। उनके पिता का नाम नाभि और माता का नाम मरुदेवा था। भागवत पुराण का यह उल्लेख जैन मान्यता के कुछ अंशो में साम्य रखता है। अग्नि पुराण, वायु पुराण, स्कंद पुराण आदि कई पुराणों में ऋषभ प्रभु के उल्लेख के साथ पिता नाभि, माता मरुदेवा एवं उनके ज्येष्ठ पुत्र भरत का उल्लेख है। ऋग्वेद और अथर्ववेद के मंत्रों में भी ऋषभदेव की स्तुति की गई है। वेदों में कई स्थानों पर केशी शब्द का प्रयोग हुआ है। केशी को वातरसना मुनियों में श्रेष्ठ माना है। जैन ग्रंथ *'त्रिषष्टिशलाका-पुरुष चरित'* में भी ऋषभ को केशी कहा गया है। वैदिक परंपरा और जैन परंपरा दोनों में ऋषभ को उत्तम पुरुष माना है। बौद्ध साहित्य में भी ऋषभ का उल्लेख है।

प्रथम तीर्थंकर ऋषभ के पश्चात द्वितीय तीर्थंकर अजितनाथ, तृतीय तीर्थंकर संभव... आदि हुए। रामायणकाल में बीसवें तीर्थंकर मुनि सुव्रत एवं इक्कीसवें तीर्थंकर नमिनाथ हुए। अनंत काल को इतिहास एवं बुद्धि की परिधि में नहीं बांधा जा सकता इसलिए ऋषभदेव के अनंतर बीस तीर्थंकरों का काल इतिहास के शोध विद्वानों द्वारा प्रागैतिहासिक युग मान लिया गया है। जैन ग्रंथों में प्रत्येक तीर्थंकर का इतिहास विस्तार से उपलब्ध है।

*तीर्थंकर अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ और महावीर की परंपरा* के बारे में संक्षिप्त रूप में जानेंगे... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

Video

Source: © Facebook

आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा प्रदत प्रवचन का वीडियो:

👉 विषय -भावक्रिया धयान का प्रथम सोपान

👉 खुद सुने व अन्यों को सुनायें

- Preksha Foundation
Helpline No. 8233344482

प्रसारक: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

👉 सूरत - दीक्षार्थी मंगल भावना समारोह
👉 राजसमन्द - आध्यात्मिक मिलन
👉 राजसमन्द - जिला अधीक्षक मुनि श्री के दर्शनार्थ
👉 बारडोली - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 उदयपुर - आध्यात्मिक रंगों की होली कार्यक्रम
👉 आसीन्द - अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कार्यक्रम
👉 खमारमुड़ा (बलांगीर) - अणुव्रत व जीवन विज्ञान पर आधारित कार्यक्रम
👉 भुवनेश्वर - जैन धर्म कि दो धाराओं का आध्यात्मिक मिलन

प्रस्तुति -🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Source: © Facebook

💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢
आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 5📝

*आचार-बोध*

*चारित्राचार*

(दोहा)

*17.*
समिति पांच गुप्तित्रयी, पांच महाव्रत धार।
तेरह तेरापंथ में, ये चारित्राधार।।

*समिति*

(नवीन छन्द)

*18.*
ईर्या-देखो युग-प्रमित भूमि,
भाषा-विचार पूर्वक बोलो।
एषणा-वस्तु की ग्रहण विधा,
पग-पग पर अपने को तोलो।।

*19.*
उपकरणों का आदान और,
निक्षेप सहज हो सविधि सदा।
उत्सर्ग सावधानी से हो,
ये पांच समितियां हैं सुखदा।।

*गुप्ति*

(दोहा)

*20.*
गुप्ति मनो वाक् काय का,
वर्जित हो विक्षेप।
महाव्रतों का अब करें,
नामांकन संक्षेप।।

*महाव्रत*

लय - देव तुम्हारे...

*21.*
पांच महाव्रत प्रथम अहिंसा
प्राणवियोजन-वर्जन हो।
सत्य दूसरा मृषा-विवर्जन
आत्मशक्ति का अर्जन हो।।

*22.*
वर अस्तेय अचौर्य
अदत्ताऽदानविरतिमय जीवन हो।
मैथुनविरमण और
परिग्रह-परित्याग आजीवन हो।।(युग्मम्)

*चारित्राचार के आठ प्रकार का व्याख्यायित रूप* जानेंगे-समझेंगे हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢

Update

👉 कोलकत्ता: श्रीमती मोहिनी देवी गिडिया द्वारा "तिविहार संथारे" का प्रत्याख्यान
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

Video

Source: © Facebook

दिनांक 16 - 03- 2017 के विहार और पूज्य प्रवर के प्रवचन का विडियो
प्रस्तुति - अमृतवाणी
सम्प्रेषण -👇

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

👉 आज के मुख्य प्रवचन के कुछ विशेष दृश्य..
👉 गुरुदेव मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए..
👉 प्रवचन स्थल: C.M COLLEGE, "दरभंगा" में...

दिनांक - 16/03/2017

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद 🌻

Source: © Facebook

News in Hindi

👉 बोरीवली, मुम्बई: 'संथारा साधिका' श्रीमती किरण देवी फुलफगर के 25 दिन का "तिविहार संथारा" परिसम्पन्न
_/_दिवंगत आत्मा के चिर लक्ष्य प्राप्ति की मंगलकामना_/_
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

👉 पूज्य प्रवर का आज का लगभग 10 किमी का विहार..
👉 आज का प्रवास - C.M COLLEGE, " दरभंगा "
👉 आज के विहार के दृश्य..

दिनांक - 16/03/2017

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद 🌻

Source: © Facebook

💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢
आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 4📝

*आचार-बोध*

*दर्शनाचार*

*12.*
निस्संकिय निक्कंखिय निव्वितिगिच्छा
अमूढ़दिट्ठी य।
उववूह थिरीकरणे बच्छल्ल
पभावणे अट्ठ।।

(नवीन छन्द)

*13.*
निस्संकिय रखना दृढ़ निष्ठा,
श्री वीतराग गुरूवचनों पर।
निक्कंखिय पर-मत-वांछा क्यों,
अतिरेक देख बाह्याडम्बर।।

*14.*
निव्वितिगिच्छा संदेह-त्याग,
निज साध्य-साधना के फल में।
जिसकी हो गूढ़ अमूढ़ दृष्टि,
क्यों उलझे मिथ्या हलचल में।।

*15.*
उपबृंह बढ़ावा सद्गुण का,
सम्यक्दर्शन का संपोषण।
चंचल साधक को संयम में,
स्थिर रखना सच्चा थिरीकरण।।

*16.*
वत्सलता ग्लानादिक सेवा,
उन्नति शासन की प्रभावना।
दर्शन के ये आचार आठ,
आराधो साधो एकमना।।

*दर्शनाचार के आठ प्रकार--*

*1. निःशंकित--* तीर्थंकर और गुरु के वचनों में शंका नहीं करना।
*दो. निःकांक्षित--* अन्यतीर्थिकों के मत की आकांक्षा नहीं करना।
*3.* निर्विचिकित्सित--* साध्य और साधना के फल में संदेह नहीं करना।
*4. अमूढ़दृष्टि--* अन्यतीर्थिकों के तपस्या या विद्याजनित अतिशय अथवा पूजा देखकर दृष्टि को मूढ़ नहीं करना।
*5. उपबृंहण--* सम्यक्त्व को पोषण देना, सद्गुणों को बढ़ावा देना।
*6. स्थिरीकरण--* संयम की साधना में अवसाद दिया अस्थिरता प्राप्त व्यक्ति को स्थिर करने का प्रयास करना।
*7. वात्सल्य--* रुग्ण, बाल और वृद्ध की सेवा करना, साधर्मिक के प्रति वत्सल भाव रखना।
*8. प्रभावना--* जिनशासन की उन्नति और प्रभावना के लिए प्रयत्न करना।

(संपादित दशवै. निर्युक्ति 157)

*चारित्राचार के आठ प्रकार* के बारे में जानेंगे-समझेंगे हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢

🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 4* 📝

*आचार्यों के काल का संक्षिप्त सिंहावलोकन*

*अध्यात्म-प्रधान भारत*

भारत अध्यात्म की उर्वर भूमि है। यहां के कण-कण में आत्म-निर्झर का मधुर संगीत है, तत्त्वदर्शन का रस है और धर्म का अंकुरण है। यहां की मिट्टी ने ऐसे नर रत्नों को जन्म दिया है जो अध्यात्म के मू्र्त्त रूप थे। उनके हृदय की हर धड़कन अध्यात्म की धड़कन थी। उनके उर्ध्वमुखी चिंतन में जीवन को समझने का विशद दृष्टिकोण दिया। भोग में त्याग की बात कही और कमल की भांति निर्लेप जीवन जीने की कला सिखाई।

वैदिक परंपरा के अनुसार चौबीस अवतारों ने इस अध्यात्म-प्रधान धरा पर जन्म लिया। बौद्ध परंपरा के अनुसार गौतम बुद्ध तथा बोधिसत्त्वों के रूप में पुनः-पुनः यहीं आगमन हुआ तथा जैन तीर्थंकरों का सुविस्तृत इतिहास भी इसी आर्यावर्त के साथ जुड़ा है।

*जैन परंपरा और तीर्थंकर*

जैन परंपरा में तीर्थंकर का स्थान सर्वोपरि होता है। नमस्कार महामंत्र में सिद्धों से पहले तीर्थंकर को नमस्कार किया जाता है। तीर्थंकर सूर्य की भांति ज्ञान-रश्मियों से प्रकाशमान और अध्यात्म-युग के अनन्य प्रतिनिधि होते हैं। चौबीस तीर्थंकरों की क्रम-व्यवस्था से अनुस्यूत होते हुए भी उनका विराट् व्यक्तित्व किसी तीर्थंकर विशेष की परंपरा के साथ आबद्ध नहीं होता। मानवता के सद्यःउपकारी तीर्थंकर होते हैं।

आचार्य अर्हत-परंपरा के वाहक होते हैं। उनके उत्तरवर्ती क्रम में शिष्यसंपदा अदि का पारस्परिक अनुदान होता है पर तीर्थंकरों के क्रम में ऐसा नहीं होता। तीर्थंकर स्वयं संबुद्ध, साक्षात् दृष्टा, ज्ञाता एवं स्वनिर्भर होते हैं। अतः वे उपदेश-विधि और व्यवस्था-क्रम में किसी परंपरा के वाहक नहीं, अनुभूत सत्य के उद्घाटक होते हैं एवं धर्म-तीर्थ के प्रवर्तक होते हैं।

धर्म-तीर्थ के आद्य प्रवर्तक तीर्थंकर ऋषभ से अंतिम तीर्थंकर महावीर तक इन चौबीस तीर्थंकरों में से किसी भी तीर्थंकर ने अपने पूर्ववर्ती तीर्थंकरों की ज्ञान-निधि एवं संघ-व्यवस्था से न कुछ पाया और न कुछ उत्तरवर्ती तीर्थंकरों को दिया। सबकी अपनी स्वतंत्र परंपरा और स्वतंत्र शासन था। महावीर के समय में पार्श्वनाथ की परंपरा अविच्छिन्न थी पर तीर्थंकर महावीर के शासन में उस परंपरा का अनुदान नहीं था। पार्श्वनाथ की परंपरा के मुनियों ने महावीर के संघ में प्रवेश करते समय चतुर्याम साधना-पद्धति का परित्याग कर पंचमहाव्रत-साधना पद्धति को स्वीकार किया। यह प्रसंग तीर्थंकरों की स्वतंत्र व्यवस्था का द्योतक है।

*तीर्थंकर ऋषभ अरिष्टनेमि पार्श्वनाथ और महावीर की परंपरा* के बारे में संक्षिप्त रूप में जानेंगे... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢
आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 3📝

*आचार-बोध*

*ज्ञानाचार*

*8.*
काले विणए बहुमाणे
उवहाणे तहा अणिण्हवणे।
वंजण अत्थ तदुभए
अट्ठविहो णाणमायारो।।

(नवीन छन्द)

*9.*
स्वाध्याय काल का हो विवेक,
उच्चारण का समुचित विधान।
बहुमान भक्ति का विशद रूप,
उपधान तपोमय अनुष्ठान।।

*10.*
गुरु का या ज्ञानप्रदाता का,
अपलाप न करना अनिह्रवन।
अथवा रखना है अविच्छिन्न,
श्रुत की परंपरा को पावन।।

*11.*
शब्दत्मक सूत्र पठन-पाठन,
अर्थात्मक उसका अनुचिंतन।
उभयात्मक दोनों सहगामी,
श्रुत से सम्बद्ध निदिध्यासन।।

*अर्थ*

*ज्ञानाचार के आठ प्रकार--*

*1. काल--* कालिक और उत्कालिक आगमों के स्वाध्याय काल का ध्यान रखकर स्वाध्याय करना।

*2. विनय--* आगमों के उच्चारण में शुद्धि का ध्यान रखना।

*3. बहुमान--* ज्ञानी व्यक्ति के प्रति भावनात्मक श्रद्धा, विनीत व्यवहार और आदर के भाव रखना।

*4. उपदान--* ज्ञान प्राप्ति के लिए तपस्या विशेष का अनुष्ठान करना।

*5. अनिह्रवन--* ज्ञानदाता का नाम नहीं छिपाना, श्रुत की परंपरा को अविच्छिन्न रखना।

*6. व्यंजन--* शाब्दिक दृष्टि से आगमों के पठन-पाठन में जागरूकता रखना।

*7. अर्थ--* अर्थ के अनुचिंतन में जागरुक रहना।

*8. तदुभय--* आगमों के अध्ययन में सूत्र और अर्थ-दोनों के प्रति जागरुक रहना।

(संपादित दशवै. निर्युक्ति 158)

*दर्शनाचार के आठ प्रकार* के बारे में जानेंगे-समझेंगे हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢

🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 3* 📝

*प्रस्तुति*

*दायित्व का निर्वाह*

श्रमण परंपरा के अनेक जैनाचार्य लघुवय में दीक्षित होकर संघ के शास्ता बने। उन्होंने आचार्य पद से अलंकृत हो जाने में ही जीवन और कर्त्तव्य की इतिश्री नहीं मान ली थी। अपने दायित्व का वहन उन्होंने प्रतिक्षण जागरूक रहकर किया। *"सुत्ता अमुणिणो मुणिणो सया जागरंति"* भगवान् महावीर का यह आगम वाक्य उनका अभिन्न सहचर था।

*जैनाचार्यों की ज्ञानाराधना*

सद्धर्म धुरीण जैनाचार्यों के ज्ञानाराधना विलक्षण थी। मंदिर और उपाश्रय ही उनके केंद्ररूप (ज्ञानकेंद्र) विद्यापीठ थे। श्रुतदेवी के वे कर्मनिष्ठ उपासक बने। *'सज्झाय-सज्झाणरयस्स तायिणो'--* इस आगम वाणी को उन्होंने जीवन-सूत्र बनाकर ज्ञान-विज्ञान शास्त्र का गंभीर अध्ययन किया। दर्शन शास्त्र के महासागर में उन्होंने गहरी डुबकियां लगाईं। फलतः जैनाचार्य दिग्गज विद्वान बने। संसार का विरण विषय ही होगा जो उनकी प्रतिभा से अछूता रहा हो। ज्ञान, विज्ञान, धर्म, दर्शन, साहित्य, संगीत, इतिहास, गणित, रसायनशास्त्र, आयुर्वेदशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र आदि विभिन्न विषयों के ज्ञाता, अन्वेष्टा एवं अनुसंधाता जैनाचार्य थे।

जैनाचार्य भारतीय ग्रंथों के पाठक ही नहीं अपितु वे स्वयं रचनाकार भी थे। उनकी लेखनी अविरल गति से चली। विशाल साहित्य का निर्माण कर उन्होंने सरस्वती के भंडार को भरा। उनका साहित्य स्तवना प्रधान एवं गीत प्रधान ही नहीं था। उन्होंने काव्यों और महाकाव्यों का सृजन, विशालकाय पुराणों की संरचना, व्याकरण एवं कोश की सृष्टि भी की।

दर्शनशास्त्र के क्षेत्र में जैनाचार्यों ने गंभीर दार्शनिक दृष्टियां प्रदान की एवं योग के संबंध में नवीन व्याख्याएं भी प्रस्तुत कीं। न्यायशास्त्र के वे स्वयं संस्थापक बने। जैन शासन का महान् साहित्य जैनाचार्यों की मौलिक सूझबूझ एवं उनके अनवरत परिश्रम का परिणाम है।

*विवेक दीप*

परमागमप्रवीण, ज्ञान के हिमालय, बुद्धि के भंडार, भावाब्धि पतवार, कर्मनिष्ठ, करुणा कुबेर एवं जन-जन हितेषी जैनाचार्यों की असाधारण योग्यता से एवं उनकी दूरगामी पद-यात्राओं से उत्तर तथा दक्षिण के अनेक राजवंश प्रभावित हुए। राज्याध्यक्षों ने भी उनका भारी सम्मान किया। विविध मानद उपाधियों से जैनाचार्य विभूषित किए गए पर किसी प्रकार के पद-प्रतिष्ठा उन्हें दिग्भ्रांत न कर सकी। उन्होंने पूर्ण विवेक के साथ महावीर संघ को संरक्षण एवं विस्तार दिया। आज भी जैनाचार्यों के समुज्ज्वल एवं समुन्नत इतिहास के सामने प्रबुद्धचेता व्यक्ति नतमस्तक हो जाते हैं।

*'तुङ्गत्वमितरा नाद्रौ नेदं, सिन्धावगाहिता।*
*अलङ्घनीयताहेतुरूभयं तन्मनस्विनि।।'*

सागर गहरा होता है ऊंचा नहीं, शैल उन्नत होता है गहरा नहीं, अतः इन्हें मापा जा सकता है पर उभय विशेषताओं से समन्वित होने के कारण महापुरुषों का जीवन अमाप्य होता है।

*आचार्यों के काल का संक्षिप्त सिंहावलोकन* हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢
आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 2📝

*गुरु-महिमा*

*(लावणी)*

*3.*
गुरु की करुणा से मिलता संयम सुखमय,
गुरु के चरणों में रहता साधक निर्भय।
गुरु की सन्निधि में दुविधा मिटती सारी,
गुरु का पथदर्शन पग-पग मंगलकारी।।

*4.*
गुरु के अनमोल बोल संजीवन देते,
तूफानों में भी जीवन-नौका खेते।
गुरु अत्राणों का त्राण विश्व-वत्सल है,
मिलता जिससे पल-पल नूतन संबल है।।

*5*
हर कठिन समस्या का हल गुरु की आस्था,
दिग्भ्रान्त मनुज को मिल जाता है रास्ता।
गुरुदेव द्वीप है शरण प्रतिष्ठा गति है,
गुरुदृष्टि जगत में सबसे बड़ी प्रगति है।।

लय-वन्दना आनन्द...

*6.*
आचरण के क्षेत्र में पुरुषार्थ की अभिसेचना,
इसलिए अचार की संस्कार की सुविवेचना।
सीख शुभ नवदीक्षितों को निरंतर मिलती रहे,
यह उपक्रम भावना-वनिका सदा फलती रहे।।

*7. अनुष्टुप्*
ज्ञानदर्शनचारित्र - तपोवीर्य - प्रकारतः।
आचारः पञ्चधा प्रोक्तः श्रीवीरजिनशासने।।

*ज्ञानाचार के आठ प्रकार* के बारे में जानेंगे-समझेंगे हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢

🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन-धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 2* 📝

*प्रस्तुति*

*निर्ग्रन्थ शासन*

निर्ग्रंथ संघ संयम, त्याग और अहिंसा की भूमिका पर अधिष्ठित है। अनंत आलोकपुञ्ज महाबली तीर्थंकर उसके संस्थापक और गणधर संचालक होते हैं। तीर्थंकर की अनुपस्थिति में इस महत्वपूर्ण दायित्व का निर्वहन आचार्य करते हैं।

आचार्य विशुद्ध आचार-संपदा के स्वामी होते हैं वह छत्तीस गुणों से अलंकृत होते हैं। दीपक की तरह स्वयं प्रकाशमान बनकर जन-जन के पथ को आलोकित करते हैं और तीर्थंकरों की गिरारूपी पतवार को लेकर सहस्रों-सहस्रों जीवन-नौकाओं को भवाब्धि के पार पहुंचाते हैं।

*जैन शासन और भगवान् महावीर*

वर्तमान जैन शासन भगवान् महावीर की अनुपम देन है। सर्वज्ञत्वोपलब्धि के बाद अध्यात्म प्रहरी, मुक्ति दूत, तपःपूत तीर्थंकर महावीर ने साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका के रूप में चतुर्विध धर्मतीर्थ की स्थापना की। अहिंसा, अभय, मैत्री का स्नेह प्रदान कर समिता का दीप जलाया। अध्यात्म के अनेक आयाम उदघाटित किए। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, पुरुष और नारी आदि सभी जातियों और वर्गों के लिए धर्म की समान भूमिका प्रस्तुत की। अपनी ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तप की अनंत संपदा से जन-जन को लाभान्वित कर एवं समस्त मानव जाति का मार्ग-दर्शन कर भगवान् महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए।

*आचार्यों की गौरवमयी परंपरा का प्रारंभ*

भगवान् महावीर के पश्चात् उनके विशाल संघ को जैनाचार्यों ने संभाला। जैनाचार्य विराट व्यक्तित्व एवं उदात्त कर्तृत्व के धनी थे। वे सूक्ष्म चिंतक एवं सत्यदृष्टा थे। धैर्य, औदार्य और गांभीर्य उनके जीवन के विशेष गुण थे। सहस्रों श्रुत-संपन्न मुनियों को अपने क्रोड में समाहित कर लेने वाला विकराल काल का कोई भी क्रूर आधार एवं किसी भी वात्याचक्र का प्रहार उनके मनोबल के जलती मशाल ज्योति को मंद नहीं कर सका। प्रसन्नचेता जैनाचार्यों की धृति मंदराचल की तरह अचल थी।

*उदारचेता*

जैनाचार्य उदात्त विचारों के धनी थे। उन्होंने सदैव संघातीीत व्यापक दृष्टिकोण से चिंतन किया। जन-जन के हित की बात कही। उन्होंने शास्त्रार्थ प्रधान युग में भी समन्वयात्मक भाव-भूमि को परिपुष्ट किया। समग्र धर्मों के प्रति सद्भाव, स्यादवाद से अनुस्यूत माध्यस्थ दृष्टिकोण एवं अनाग्रहपूर्ण प्रतिपादन जैनाचार्यों की सफलता के मूल मंत्र थे।

जैनाचार्यों की विशेषताओं से और परिचित होंगे और जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

*संबोध*
*श्रृंखला *1*

जैन शासन तेजस्वी शासन है। उसकी तेजस्विता का मूल आधार आचार है। वह आचारप्रधान, संस्कारप्रधान और व्यवहारप्रधान होकर अपनी तेजस्विता को सुरक्षित एवं संवर्धित कर सकता है। अनुशासन के एक सूत्र में आबद्ध होने से तेरापंथ धर्मसंघ में विकासमूलक कार्यक्रम चलते रहते हैं। यहां एक कार्यक्रम को नेटवर्क के रूप में पूरे देश में चलाया जा सकता है। सम्बोध पुस्तक भी हमारे प्रशिक्षणमूलक विशेष कार्यक्रम का आधार बने और आबालवृद्ध साधकों के धरातल को ठोस बनाने में सहयोगी बने, यही इसके सृजन की सार्थकता है।
--आचार्य तुलसी

*आचार बोध*

*समर्पण*

लय- वन्दना आनन्द...

*1.*
साधना साकार होती है
मुमुक्षा भाव से,
मुमुक्षा फलती सदा
आसक्ति के अलगाव से।
संग मूर्छा और ममता,
बस यही आसक्ति है,
साम्य समता सहजता
वैराग्य की अभिव्यक्ति है।।

*2.*
हो मुमुक्षा तीव्र जिसमें
संयमी बनता वही,
*'संयमः खलु जीवनम्'*
आदर्श है उसका सही।
अटल आस्था अतुल बल
संकल्प के स्वीकरण में,
प्राणपण से हो समर्पण
सुगुरु के श्रीचरण में।।

*गुरु-महिमा* क्रमशः...

प्रस्तुति -🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

*जैन-धर्म के प्रभावक आचार्य'*
*श्रृंखला *1*

*वन्दना*

वंदामि महाभागं
महामुणिं महायसं महावीरं।
अमर-णर-रायमहियं,
तित्थयरमिमस्स तित्थस्स।।
एक्कारस वि गणहरे,
पवायए पवयणस्स वंदामि।
सव्वं गणहरवंसं,
वायगवंसं पवयणं च।।

*समर्पण*

पूज्य गुरुवरों के प्रति

*1.*
प्रशस्याः पुण्यार्हाः परहितरताः प्राप्तयशसः,
प्रवीणाः प्राचार्याः प्रतिनिधिपदे ये भगवताम्।
प्रणम्याः प्रत्यर्हं प्रणिहितधियः प्रज्ञापुरुषाः,
प्रसीदेयुः पूज्याः प्रशमरसपीनाः प्रमुदिताः।।

*2.*
महाभागा मान्या मथितमदना मानरहिता,
विवेकता विज्ञा विशदमतयो वाचकवराः।
समोदं स्वल्पार्ध्यं लघुकृतिमयं संघतिलका,
महान्तः स्वीकुर्युर्गुणगणयुता विश्वमहिताः।।
*--साध्वी संघमित्रा*

*आशिर्वचन*

मैं बहुत बार सोचता था कि जैन धर्म के प्रभावक आचार्यों का सिलसिलेवार अध्ययन प्रस्तुत किया जाए तो इतिहास पाठकों को अच्छी सामग्री उपलब्ध हो सकती है। भगवान् महावीर की 25वीं निर्वाण शताब्दी के प्रसंग पर मैंने अपने धर्म संघ को साहित्य सृजन की विशेष प्रेरणा दी। उसी क्रम में साध्वी संघमित्रा ने यह काम अपने हाथ में लिया। साध्वी संघमित्रा द्वारा लिखित प्रस्तुत ग्रंथ *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* इतिहास के जिज्ञासुओं की जानकारी के धरातल को ठोस बनाए तथा सुधी पाठकों की आलोचनात्मक समीक्षा-काषोपल पर चढ़कर पूर्णता की दिशा में अग्रसर बने, यह अपेक्षा है।
*--आचार्य तुलसी*

पच्चीस सौ वर्षों की लंबी अवधि में अनेक प्रभावक आचार्य हुए हैं। उन्होंने अपनी श्रुत-शक्ति, चारित्र-शक्ति तथा मंत्र-शक्ति के द्वारा अपने प्रभाव की प्रतिष्ठा की और जैन शासन की प्रभावना बढ़ाई। हजारों वर्षों की लंबी अवधि में अनेक गणों के अनेक प्रभावी आचार्य हुए। उन सबका आकलन करना एक दुर्गम कार्य है। साध्वी संघमित्रा ने उस दुर्गम कार्य को सुगम करने का प्रयत्न किया है।
*--आचार्य महाप्रज्ञ*

साध्वी संघमित्रा जी की कृति *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* समग्र जैन धर्म का एक बहुत उपयोगी ग्रंथ है।
*--आचार्य महाश्रमण*

प्रस्तुति -🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

तेरापंथ संघ संवाद का उद्देश्य सिर्फ समाचार प्रसारित करना ही नही अपितु जैन धर्म व धर्म संघ की जानकारी को भी पाठकों तक पहुचाने का कार्य करना है। पूर्व में *श्रावक संबोध* को प्रसारित किया गया । उसकी समाप्ति के पश्चात अब *तेरापंथ संघ संवाद* परिवार *देव-गुरु-धर्म* की शरण ले दो महत्त्वपूर्ण कृतियों के सिलसिलेवार पोस्ट का शुभारंभ करने जा रहा है--

जिसकी प्रथम श्रृंखला आज से प्रारम्भ की जा रही है।

*1. 'संबोध'--* आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी।

*2. 'जैन-धर्म के प्रभावक आचार्य'* जैन धर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

प्रस्तुति -🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

16 मार्च का संकल्प

तिथि:- चैत्र कृष्णा चतुर्थी

अरहंत-सिद्ध-आचार्य-उपाध्याय-साधु को नित ध्याएं।
द्रव्य नहीं भाव पूजा कर गुण सुमिरन से उन्नति पाएं।।

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

Share this page on:
Page glossary
Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
  1. Preksha
  2. Preksha Foundation
  3. अमृतवाणी
  4. आचार्य
  5. उत्तराध्ययन सूत्र
  6. ज्ञान
  7. तीर्थंकर
  8. दर्शन
  9. पूजा
  10. भाव
  11. महावीर
  12. मुक्ति
  13. श्रमण
  14. सम्यक्त्व
  15. सागर
Page statistics
This page has been viewed 1117 times.
© 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
Home
About
Contact us
Disclaimer
Social Networking

HN4U Deutsche Version
Today's Counter: