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*घटती जैन जनसंख्या:*
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*........तो 180 वर्ष बाद*
*जैन समाज समाप्ति के*
*कगार पर होगा!*
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◆ पूज्यवर गुरुजी, क्रांतिकारी विचारक, *आचार्य श्री विमलसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब* पिछले करीब 21 वर्षों से अपने प्रवचनों में जैन जनसंख्या का मुद्दा उठाकर समाज को सावधान करते आ रहे हैं.
◆ आज से 2200 वर्ष पहले *जैनों की जनसंख्या 20 करोड़ से अधिक थी. करीब 80 वर्ष पूर्व जैन 1 करोड़ 25 लाख रह गये. उसके 40 वर्ष बाद समाज की संख्या 1 करोड़ पर आ गई. आज जैन मात्र 45-50 लाख पर आकर सिमट गये हैं.* यह संख्या भी धीरे-धीरे काम हो रही है.
◆ *यह आने वाले बहुत बड़े संकटकाल का संकेत है.*
◆ पारसी भारत में 69,000 और पूरे विश्व में सिर्फ 149,000 बचे हैं. आगामी 30-40 वर्षो में वे नामशेष हो जायेंगे. पारसियों की तरह बहुत देरी से जगने का जैन समाज के लिये कोई अर्थ नहीं बचेगा.
◆ *मान कर चलिये कि जैन समाज की पर्याप्त संख्या के आभाव में सामाजिक समीकरण इस कदर बिगड़ जायेंगे कि अपने मंदिर, उपाश्रय, स्थानक, तेरापंथ भवन, तीर्थस्थान, धर्मशास्त्र और घर, परिवार, कारोबार, धन-वैभव आदि सारी संपदा दांव पर लग जाएगी.*
◆ अभी अपने *सुरत प्रवास* के दौरान् पूज्य आचार्य प्रवर ने 12 मार्च 2017 को इस विषय पर एक *प्रेसवार्ता* को संबोधित किया.
◆ गुजरात समाचार, दिव्य भास्कर, सन्देश, राजस्थान पत्रिका, गुजरात मित्र, गुजरात गार्डियन, लोकतेज, धबकार, टाइम्स ऑफ़ इंडिया, इंडियन एक्सप्रेस आदि अनेक दैनिक पत्रों और रीज़नल चैनलों ने गुरुजी के इन विचारों को प्रमुखता से प्रकाशित किया है.
◆ गुजरात समाचार के अहमदाबाद और मुम्बई संस्करण ने भी इन विचारों को महत्वपूर्ण स्थान दिया है.
◆ भगवान महावीरस्वामी के उपदेशों के आधार पर पूज्य गुरुजी का कहना है कि ब्रह्मचर्य सर्वश्रेष्ठ साधना है. ब्रह्मचारी के लिए भोग का विचार भी अपराध है. लेकिन *जो गृहस्थ शादीशुदा हैं और भोग के मार्ग पर हैं, उनके द्वारा संतान उत्पत्ति की संभावनाओं को रोका जाना तो निपट अपराध है.* क्योंकि संतान उत्पन्न करें या ना करें, भोग और सहवास में हिंसा है ही. *भोग के मार्ग पर रहकर संतान उत्पन्न न करने का विचार अहिंसा और समाज....दोनों ही दृष्टिकोणों से बेकार है.*
◆ अब इस विषय में चतुर्विध श्रीसंघ को जागृत बनने और युवावर्ग को अपनी विचारधारा बदलने की अत्यंत आवश्यक है.
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