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ब्रह्मचर्य का प्रभाव:
“विजय सेठ और विजया सेठानी” का “चरित्र”
जिनदास सेठ विमल केवली भगवंत से विनती करता है कि - अहो, आज मेरे भाग्य खुल गए. आप और आपके साथ रहने वाले 84,000 साधुओं के दर्शन हुवे. मुझे आप सभी की भक्ति करनी है. मुझे आज्ञा दीजिये.
केवली भगवंत कहते हैं: क्या “साधुओं” के लिए रसोई बनाओगे? ये गोचरी तो दूषित होती है जो “साधू” के लिए बनायी गयी हो.
सेठ कहता है: तो क्या मैंने मन मेँ भक्ति की भावना की और भक्ति किये बिना ही मुझे मरना है? क्या मैं इतना अभागा हूँ? दया करो, कुछ उपाय ही बताओ.
उच्च भावना देखकर “विमल केवली” फरमाते हैं: कच्छ देश मेँ विजय सेठ-विजय सेठानी महान ब्रह्मचारी हैं. तू उनकी भक्ति कर. इससे तुम्हें 84,000 मुनियों की भक्ति करने का फल मिलेगा.
ऐसा क्या था उनके ब्रह्मचर्य मेँ?
शादी से पहले विजय सेठ ने जीवन भर शुक्ल पक्ष का ब्रह्मचर्य पालन की प्रतिज्ञा ली थी.
और
योगानुयोग शादी से पहले विजया सेठानी ने जीवन भर कृष्ण पक्ष का ब्रह्मचर्य पालन की प्रतिज्ञा ली थी.
शादी के बाद जब दोनों को पता पड़ा कि उनकी प्रतिज्ञा ऐसी है कि जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन करना होगा.
दोनों ने तुरंत निर्णय लिया कि जीवन भर तब तक ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे जब तक किसी को हमारे ब्रह्मचर्य पालन की खबर ना हो. जिस दिन किसी को भी इस बात की खबर पड़े, उसी समय दोनों दीक्षा ले लेंगे.
चूँकि जिनदास सेठ ने उनकी भक्ति की और रहस्य प्रकट हुआ, इसलिए दोनों ने दीक्षा ले ली.
आज शत्रुंजय तीर्थ के प्रांगण में उनकी मूर्तियां स्थापित हैं.
श्रावकों के लिए ब्रह्मचर्य “दुष्कर” नहीं है. सामायिक, उपवास, पच्चखाण, पौषध, तप, स्वाध्याय इत्यादि उनकी दिनचर्या के अंग हैं. जैन धर्म पर जो पूर्ण श्रद्धा रखे पर दीक्षा ना ले सके, वो ही वास्तव में “श्रावक” हैं.
मात्र जैन कुल में जन्म लेने वाले “श्रावक” नहीं है, जैन हो सकते हैं, अब तो सरकार भी जैन होने का “प्रमाण-पत्र ” देती है. पर आपके असली जैन होने का प्रमाणपत्र तो आपकी “अंतरात्मा “ही देगी.
ऐसे भव्यात्माओ से जिनशासन का इतिहास रचा गया हे - अनेको उदाहरण हे ऐसे जिन्हे सुनने मात्र से हमें ख़ुशी के आंसू आ जाए।
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