14.02.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 14.02.2017
Updated: 15.02.2017

Update

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*श्रावक सन्देशिका*

👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 8 - सभाएं

*चुनाव, चातुर्मास इत्यादि* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....।

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🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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👉 बैंगलोर - स्वास्थ्य जांच शिविर का आयोजन
👉 जयपुर - अणुव्रत समिति द्वारा विद्यार्थियों को नशा मुक्त रहने का संकल्प
👉 बालोतरा - स्वच्छता अभियान के अंतर्गत रैली का आयोजन
👉 चेन्नई - आंचलिक सशक्तिकरण कार्यशाला का आयोजन
👉 कोलकाता - ज्योत्सना स्वच्छता प्रशिक्षण सेमिनार का आयोजन
👉 लाडनूं: ज्ञानशाला वार्षिक उत्सव का आयोजन
👉 बैंगलोर - कृत्रिम पांव प्रत्यारोपण हेतु अनुदान राशि भेंट
👉 श्री डूंगरगढ़ - मंगल भावना समारोह आयोजित
👉 उधना (सूरत) - स्वच्छता अभियान के अंतर्गत रैली का आयोजन

प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻

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आचार्य तुलसी की कृति...'श्रावक संबोध'

📕अपर भाग📕
📝श्रृंखला -- 216📝

*तेरापंथी श्रावक*

*श्रावक विजयचंदजी पटवा*

विजयचंदजी पटवा पाली (मारवाड़) के रहने वाले थे। भी प्रारंभ से ही धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। वे स्थानकवासी संप्रदाय के अग्रणी श्रावक थे। एक बार पाली में आचार्य भिक्षु प्रवास कर रहे थे। उनकी प्रवचन-शैली और विद्वता की शहर में चर्चा थी, पर पटवाजी समाज के भय से दिन में उनके पास जाने का साहस नहीं कर पाए। एक रात को वे व्याख्यान संपन्न होने के बाद अपने मित्र वर्धमानजी श्रीश्रीमाल (मंदिरमार्गी) के साथ वहां गए। उस समय आचार्य भिक्षु सोने की तैयारी कर रहे थे। दो नवागंतुक व्यक्तियों को देख वह साधुओं से बोले-- 'तुम लोग सो जाओ मैं अभी इनके साथ बात करूंगा।' कुछ साधु सो गए। कुछ धर्म चर्चा सुनने के लिए वहीं बैठ गए। आचार्य भिक्षु अपने आसन पर बैठ गए। दोनों आगंतुक चबूतरे के नीचे खड़े हो गए। वे प्रश्न करते रहे और आचार्य भिक्षु उत्तर देते रहे। लगभग पूरी रात तत्त्वचर्चा चली। दोनों व्यक्ति समझ गए। उन्होंने *'सम्यक्त्व दीक्षा'* ग्रहण की। रात्रि-जागरण का श्रम सफल हो गया।

विजयचंदजी तत्त्व को समझकर श्रावक बने थे। तेरापंथ या आचार्य भिक्षु के प्रति उनकी आस्था इतनी गहरी थी कि किसी भी प्रसंग में वह कमजोर नहीं हुई। एक बार मुनि चंद्रभाणजी (संघ से बहिर्भूत साधु) पाली आए। वह पटवा जी से मिले। उन्होंने अनेक प्रकार की निंदात्मक बातें की। पटवाजी मौन रहे। उनके निकट खड़े व्यक्तियों ने मौन का गलत अर्थ लगाया। उन्होंने सोच लिया कि पटवाजी मुनि चंद्रभाणजी के विचारों से सहमत है। कालांतर में आचार्य भिक्षु वहां आए। उन लोगों ने पटवाजी की शिकायत की। आचार्य भिक्षु ने सोचा पटवा जी के मन में शंका होगी तो वे स्वयं पूछ लेंगे। पर पटवाजी ने कभी कुछ नहीं पूछा विहार के एक दिन पूर्व आचार्य भिक्षु बोले-- 'पटवाजी मैंने सुना है कि चंद्रभाणजी ने तुम्हारे सामने बहुत सी निंदात्मक बातें कही थीं। क्या तुम्हें कुछ पूछना है?'
पटवाजी बोले-- 'स्वामीजी मेरे मन में कोई शंका नहीं है। मैं जानता हूं कि जो व्यक्ति अनंत सिद्धों की साक्षी से किए अपने त्याग तोड़ कर आया है, वह झूठ बोलने में संकोच क्यों करेगा? मैं उनकी बातों का प्रतिवाद करता तो मेरा समय नष्ट होता।'

एक बार आसकरणजी दांती ने पटवाजी से कहा-- 'स्वामीजी औरों को तो किंवाड़ खोलने में दोष बताते हैं, किंतु स्वयं अमुक गांव में किंवाड़ खोल कर ठहरे थे।'
पटवाजी बोले-- 'वह ऐसा नहीं कर सकते।'
दांतीजी ने कहा-- 'तुम मेरा विश्वास करो उन्होंने ऐसा किया है।'
पटवाजी बोले-- 'मुझे तुम पर विश्वास है कि तुम इस विषय में कभी सत्य नहीं बोल सकते।'
आचार्य भिक्षु ने यह घटना सुनी उन्होंने पटवाजी की अप्रतिम निष्ठा की प्रशंसा करते हुए कहा-- *'कुछ लोग विजयचंदजी पटवा को विमुख करने के लिए साधुओं में अनेक दोष बतलाते हैं, पर वे उन दोषों के बारे में साधुओं से पूछते तक नहीं। ऐसा लगता है मानो वे क्षायिक स्वामित्व के धनी हैं।'* किसी भी श्रावक के बारे में आचार्य भिक्षु के मुंह से ऐसे शब्दों का प्रयोग उसकी दृढ़धर्मिता को सिद्ध करता है।

*अपने प्राणों की कीमत पर संघसेवा की सरिता में बहने वाले वीर श्रावक केसरजी भंडारी की समर्पित श्रद्धा* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः।

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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News in Hindi

👉 पूज्य प्रवर का आज का लगभग 12.6 किमी का विहार.
👉 आज का प्रवास - धुलाबाड़ी (नेपाल)
👉 आज के विहार के दृश्..

दिनांक - 14/02/2017

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14 फरवरी का संकल्प

तिथि:- फाल्गुन कृष्णा चतुर्थी

जीवन में आती रहती परिस्थितियां अनुकूल कभी प्रतिकूल।
सम भावों की धारा बहा ले जाती समस्याएं सभी समूल।।

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  1. आचार्य
  2. आचार्य तुलसी
  3. आचार्य भिक्षु
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