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सागर में ऐसे मना V-Day / वैरागी का डे ⚠️ today exclusive photograph @ #Sagar आज जहाँ दुनिया प्रेम के प्रतीक संत वैलेंटायन के रंग में रंगी ओर जश्न मना रही थी वही दूसरी ओर.. वीतरागता के उपासक संत आचार्य श्री विद्यासागर जी के स्वागत में डूब गया था सागर.. लगता था मानो सागर में सागर उमड़ पड़ा हो भक्ति का!:)) कुछ फ़ोटग्रैफ़्स #AcharyaVidyaSagar
Photos Clicked by MR. Akshay Singhai, Rajesh Jain road lines Sagar
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❗️❗️कर्मों की होली❗️❗️ #Kundalpur #BadeBaba
1 मुनिराज पेड के नीचे बेठे थे! ध्यानमग्न! कर्मो की होली जला रहे थे! दो श्रावक वहाँ से निकले! तीर्थंकर प्रभु के समवशरण मे जा रहे थे! वो समवशरण मे जाते ही भगवान से पूछते हैं! भगवन! हमारे नगर के राजा ने मुनि दीक्षा ग्रहण की है और वे पेड के नीचे बेठे ध्यान कर रहे है! उनके संसार मे कितने भव शेष हैं?
तीर्थंकर प्रभु की वाणी मे आया - उनके संसार मे इतने भव शेष हैं जितने उस पेड मे पत्ते!
श्रावक -प्रभु! वो तो इमली के पेड के नीचे बैठे हैं! इमली के पेड के पत्ते गिने जा सकते हैं क्या?
भगवन ने कहा -हाँ उतने ही भव शेष हैं
श्रावको ने पूछा -और भगवन हमारे?
भगवन -तुम्हारे केवल सात व आठ भव शेष हैं!
वे श्रावक क्या थे कि बस अहंकार मे फूल गए कि मुनि के इतने भव शेष हैं जितने इमली के पेड मे पत्ते व हमारे केवल सात व आठ!
सम्यक्दर्शन का अभाव था! मुनि के पास आये और आते ही कहा! अरे पाखंडी घर बार छोड़ कर किसलिए तपस्या मे लगे हो,तुम्हे अभी संसार मे इतना भटकना है,इतने भव धारण करने हैं जितने इस इमली के पेड मे पत्ते!
मुनिराज मुस्कुराए -सोचते हैं तीर्थंकर प्रभु की वाणी मिथ्या तो हो नही सकती! कम से कम इतना प्रमाण तो मिल ही गया कि मुझे केवलज्ञान होगा! मोक्ष सुख की प्राप्ति होगी! मुनिराज ने समाधिमरण किया व पहले का निगोद आयु का बंध किया हुआ था सो निगोद मे चले गए! और निगोद मे एक भव कितने समय का? एक श्वांस मे अठरह भव होते हैं,निगोद मे इमली के पत्तों के बराबर भव काटने हैं! एक सप्ताह के अंदर निगोद मे गए भी और वापस भी आ गए! निगोद से निकलकर उसी नगर मे मनुष्य भव धारण किया अर्थात आठ वर्ष अंतरमुहूर्त के बाद फिर मुनि गए और बैठ गए ध्यान मग्न उसी इमली के पेड के नीचे! एक अंतर मुहूर्त अगले मनुष्य भव का,आठ दिन निगोद आयु के व आठ वर्ष बालक अवस्था के! वही श्रावक फिर उसी रास्ते से तीर्थंकर प्रभु के दर्शन को गुजरे! समवशरण मे पहुँच कर प्रभु से वही सवाल!
भगवन कहते हैं -आठ वर्ष पहले जो मुनिराज वहाँ तप कर रहे थे,ये मुनिराज उसी मुनि का जीव है जो निगोद मे अपनी बंध की हुई आयु पूरी करके फिर से मनुष्य भव मे आकर तप कर रहे हैं और जब तक तुम वहाँ वापस पहुंचोगे उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी होगी!
ओह धिक्कार है हमारे इस जीवन को अभी हमें सात आठ भव मे न जाने कितना काल इस पृथ्वी पर बिताना है और धन्य है उन मुनिराज का जीवन जो हमारे जीते जी ही केवल ज्ञान को प्राप्त हो गए!
हम अहंकार मे रहते हैं कि मै मनुष्य हूँ और चींटी को रोंद देते हो पैरों से! ध्यान रखना चींटी हमसे व तुमसे पहले मोक्ष जा सकती है अगर मरकर विदेह क्षेत्र का मनुष्य योनि का पहले बंध किया हुआ होगा
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#Jainism #Jain #Digambara #Nirgrantha #Tirthankara #Adinatha #LordMahavira #MahavirBhagwan #Rishabhdev #AcharyaVidyasagar #Ahinsa #Nonviolence #AcharyaShri
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Sometimes the situation works out favourably and sometimes it does not. So instead of getting disappointed, angry, or more involved, we should contemplate on Madhyastha Bhavana which leads to the feeling that "I did my best to resolve the situation." This leads our mind to decide that if someone does not want to understand, then leave that person alone without getting further involved. We should simply hope that one of these days, that person may understand things and change. By observing Madhyastha Bhavana, we remain in equanimity, instead of provoking turmoil in our minds. When our mind stays neutral and uninvolved, then the karma stays away.
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#TirthankaraNeminatha #Girnar गिरनार से केवलज्ञान तथा मोक्ष प्राप्त करने वाले भगवान नेमिनाथ जी 1200 वर्ष प्राचीन @ Varanga, Karkala taluk, Udupi District, Karnataka State, South India.
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सिद्ध क्षेत्र द्रोणगिरी के भगवान । आज पद्मप्रभु भगवान का मोक्ष हुआ था सम्मेद शिखर जी से:) #PadamPrabhuBhagwan #DronGiri
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News in Hindi
अपनों कोऊ नईयाँ - आचार्य श्री विशुद्धसागर जी #AcharyaVisdhudhaSagar Golden words.. नंगे को देखकर लोग सिर मोड़ लेते है लेकिन दिगम्बर को देखकर लोग सिर टेक लेते है।
" जिनदीक्षा नंगी दीक्षा नही है,
जिन दीक्षा दिगम्बर दीक्षा है "।।
1-हे जीव!! कई वार हम नाली के कीड़े बन चुके है उन पर्यायों से निकल कर हम आये है ज्ञानी!! नाली का कीड़ा तो पानी में मग्न है लेकिन तू तो विषयों की नाली में मग्न है जिन स्थानो में तू मग्न है उसका नाम लेने में शर्म आती है।।
2-हे मित्र!! विद्या का साधन ब्रह्म है और ब्रह्य का साधन विद्या है ज्ञान ब्रह्म के लिए होता है और ज्ञान ब्रह्य से होता है।। ज्ञानी!! जिससे तत्व का बोध होता है उसे ज्ञान कहते है।।
3-हे जीव!! भवतीत होना चाहते हो निज को भावो को परभावों से अतीत कर लीजिए। जो निज के भावो को परभावों से अतीत कर लेता है वो ही परम ज्ञानी होता है।।
हे जीव!! श्लोकों के ज्ञाता को ज्ञानी नही कहते है। जो निज लोक का ज्ञाता होता है वह संपूर्ण लोक का ज्ञाता होता है।। हे जीव!! जो जो याद करके रखा है उसे भूल जाओ उसी दिन से तुम ज्ञानी बन जाओगे।
4-हे मित्र!! तेरे शरीर का परिणमन तेरे परिणामों का सहकारी नही होता है तो मित्र!!! तेरे पडोसी के परिणाम तेरे मोक्षमार्ग में सहकारी कैसे होंगे।।
5-हे मित्र!! एक वह जीव है जो खीर से भरी हंडी में से खीर को नही खाता है जब खीर में उबाल आ जाता है तो वह जो जल चूका है उसे चाटता है ऐसे ही हे जीव!! तू विषयभोग के उबाल को चाट रहा है लेकिन तू अपने ज्ञायक स्वभाव को नहीं देख रहा है।।
6-हे जीव!! अपनी आँखों को पर की आँखों में मत ले जाना। जो अपनी आँखों को पर की आँखों मे ले जाता है उसकी ज्ञान की आँखे फूट जाती है।।
7-हे जीव!! प्रभु ने वस्त्र नही उतारे पहले पहले विकार को उतारा। जो वस्त्र को उतारे और वासनाओं को नही उतारता है वह तिर्यंच होता है नंगा। हे जीव!! वस्त्र उतर जाए लेकिन वासनाये न उतरे तो वह नंगा होता है और वस्त्र उतर जाए लेकिन वासनाये भी उतर जाए तो वह नग्न होता है दिगम्बर होता है, ज्ञानी!! मोक्षमार्गी नंगा नही होता है वह तो दिगम्बर होता है।।
8-हे जीव!! नंगे को देखकर लोग सिर मोड़ लेते है लेकिन दिगम्बर को देखकर लोग सिर टेक लेते है।
" जिनदीक्षा नंगी दीक्षा नही है,
जिन दीक्षा दिगम्बर दीक्षा है "।।
9-हे जीव!! जो भीतर से हल्का होता जाता है वह बाहर से भी हल्का होता जाता है।।
10-हे जीव!! व्रती होने की स्पर्धा मत करो विरक्ति लाने की स्पर्धा करो ।
हे मित्र!! विरक्ति न हो तो व्रतियों की संख्या मत बढ़ाना और यदि विरक्ति हो जाये तो व्रतियों की संख्या बढ़ाने में पीछे मत हटना।।
11-ज्ञानियों!! मोक्ष मार्ग स्वतंत्रता का मार्ग है स्वछंदता का मार्ग नहीं है।।
12-हे जीव!! सारे भेष मिट जाते है जिनभेष ही अमिट होता है। हे जीव!! संलेखना कर लेना लेकिन जिन भेष को कलंक मत लगाना।।
13-हे जीव!! एक अक्षर भी ज्ञान हो जाये तब भी चारित्र ही पूज्य है। हे जीव!! ज्ञान नहीं चारित्र ही सिद्ध बनायेगा।। बुद्धि के ज्ञान का पता नही कब ब्रेनहेमरेज हो जाये।।
14-हे जीव!! रुतवा दिखाना आचार्यत्व नहीं है, साधुपना नही है, मुनिपना नहीं है।
ज्ञानी!! जिनके चरणों में शेर भी सिर झुकाता है, चूहा भी शरीर पर घूम कर निकल जाता है नेवला भी आके चला जाता है लेकिन तब भी कुछ न कहे उसी का नाम मुनि है।।
15-हे जीव!! जो वीतराग मुनियों की स्तुति करेगा वो नियम से भगवान बन जायेगा।।
16-हे मित्र!! मोक्ष मार्ग में मुझे जानते हो नही चलता है निज को जानते हो चलता है।।
17-हे जीव!! मुनिमन से ही भगवान बनोगे।
रोज पढते हो " मुनि मन सम उज्जवल नीर प्रासुक गंध भरा "
और मुनि मन कही भी किसी के पास जाके या फिर किसी बाजार में नहीं मिलता है मुनिमन तो मुनि के अंदर होता है।। ज्ञानी!! राग हट जाए तो वासनाये हट जाये।।
18-हे जीव!! जिससे चित्त का निरोध होता है जिससे आत्मा विशूद्ध होती है उसका नाम जिनशासन में ज्ञान होता है।।
19-हे जीव!! जब तक शरीर में श्वास चल रही है तब तक जिनदेव को मत भूल जाना इनके पादमूल में बैठे रहोगे तो निजनाथ का बोध होता रहेगा।।
20-ज्ञानियो!! " अपनों कोउ नईयां "
" निज ज्ञायक स्वाभाव ही अपना है "।।
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