Update
👉 मोमासर: 'शासन श्री' मुनि श्री वत्सराज जी स्वामी का देवलोक गमन
प्रेषक: 🙏 *तेरापंथ संघ संवाद* 🙏
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*श्रावक सन्देशिका*
👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 7 - संस्थाओं की सदस्यता
*अन्य सभाएं* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....।
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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Video
13 February 2017 Pravachan
https://youtu.be/jGZgVnIJL14
👉 पूज्यप्रवर के आज के "मुख्य प्रवचन" का वीडियो लिंक
👉 दिनांक 13 - 02- 2017
प्रस्तुति - अमृतवाणी
सम्प्रेषण -👇
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👉 नागपुर - ज्ञानशाला वार्षिकोत्सव का आयोजन
👉 नागपुर - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वार्षिकोत्सव में मुनि श्री का उद्बोधन
👉 नोगांव (असम) - नेत्र परीक्षण शिविर
👉 कटक - नेत्र परीक्षण शिविर
👉 मुम्बई - जवालीया (राज.) महिला मंडल की नई टीम घोषित
👉 वापी - मंगलभावना व टूटते रिश्ते बिखरते परिवार कार्यशाला आयोजित
प्रस्तुति -🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
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आचार्य तुलसी की कृति...'श्रावक संबोध'
📕अपर भाग📕
📝श्रृंखला -- 215📝
*तेरापंथी श्रावक*
*64.*
*'गुमानजी-लुणावत'* ने,
स्वामीजी का साहित्य लिखा।
है क्षायिक सम्यक्त्व बानगी,
*'पटवाजी'* की स्वस्थ शिखा।।
*अर्थ--* गुमान जी लुणावत ने आचार्य भिक्षु का समग्र साहित्य लिपिबद्ध किया। विजयचंदजी पटवा की अविचल आस्था देखकर आचार्य भिक्षु ने कहा-- *'पटवाजी में क्षायिक सम्यक्त्व का नमूना देखा जा सकता है।'* स्वामी जी के ये शब्द शिरोभूषण की तरह पटवा जी की शोभा बढ़ाने वाले हैं।
*भाष्य*
*श्रावक गुमानजी लुणावत*
गुमानजी लुणावत पीपाड़ के रहने वाले थे। वे धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। श्रद्धालु होने के साथ वे तत्त्वजिज्ञासु भी थे। आचार्य भिक्षु के प्रति उनकी अटूट श्रद्धा थी। वे उनके ग्रंथों का परायण करते रहते थे। इससे उनका तात्त्विक ज्ञान और अधिक गंभीर हो गया। एक बार उनके मन में विचार आया कि स्वामीजी के सब ग्रंथों का संग्रह कर लिया जाए तो उनके पास स्वाध्याय की पर्याप्त सामग्री हो जाएगी। यह काम साधारण होने पर भी कठिन था। क्योंकि आचार्य भिक्षु प्रतिलिपि करने के लिए अपनी कोई भी कृति देते नहीं थे। गुमानजी के सामने एक ही मार्ग था-- सब रचनाओं को कंठस्थ करके लिपिबद्ध करना। उन्होंने अपना काम शुरु किया। वे थोड़ा-थोड़ा कंठस्थ करते और बाहर जाकर तत्काल उसे लिख लेते। इस क्रम से उन्होंने आचार्य भिक्षु द्वारा लिखे गए सब ग्रंथों की प्रतिलिपि कर एक महाग्रंथ तैयार कर लिया। *'गुमान जी का पोथा'* नाम से प्रसिद्ध वह हस्तलिखित महाग्रंथ संघीय ग्रंथागार में आज भी सुरक्षित है।
गुमान जी आचार्य भिक्षु के विश्वस्त श्रावकों में से एक थे। वे गुरु-दृष्टि के आराधक और संघ- हितैषी श्रावक थे। एक बार आचार्य भिक्षु ने मुनि वेणीरामजी को तीन बार पुकारा। वे सामने ही दुकान में बैठे थे, पर उन्हें सुनाई नहीं दिया। आचार्य भिक्षु ने सोचा वह सुना-अनसुना कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने निकट बैठे श्रावक गुमानजी से कहा-- *'क्या बात है, वेणा संघ में रहना नहीं चाहता है क्या?'* गुमानजी मुनि वणीरामजी के पास गए और उन्हें सजग किया। वे तत्काल आचार्य भिक्षु के पास आए। उनकी आवाज नहीं सुनने से हुए अविनय के लिए क्षमा मांगी और भविष्य में सावधानी रखने का विश्वास दिलाया। आचार्य भिक्षु जानते थे कि गुमान जी के सामने कही गई बात से संघ का हित ही सधेगा, यही सोचकर उन्होंने उनके समक्ष उक्त चर्चा की।
*तत्त्वजिज्ञासु श्रावक विजयचंदजी पटवा की समर्पित श्रद्धा* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः।
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 पूज्य प्रवर का आज का लगभग 11.7 किमी का विहार
👉 आज का प्रवास - नक्सलबाड़ी
👉 आज के विहार के दृश्य..
दिनांक - 13/02/2017
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प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद 🌻
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13 फरवरी का संकल्प
तिथि:- फाल्गुन कृष्णा तृतीया
जिस तरह एक बाल भी खिंच जाने से होता हमें दर्द ।
चेतनता है पौधों में भी होता उन्हें भी महसूस वही दर्द ।।
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