06.02.2017 ►STGJG Udaipur ►Diksha News

Published: 07.02.2017
Updated: 10.02.2017

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ओगा थाम चली संयम की राह पर
सांसारिक जीवन त्य्ााग कर श्रुति बनीं मोक्षदाश्री
इंचलकरणजी में लिखा गया स्वर्णिम अध्य्ााय्ा

6 फरवरी 2017 - इंचलकरणजी।
भौतिकवाद से उपर उठकर ब्रह्मत्व की ओर बढ़ते हुए जैन समाज की मुमुक्षु के मन में वैराग्य जागा तो उन्होंने साध्वी के रुप में जीवन-यापन करने का लक्ष्य निर्धारित किया और सोमवार 6 फरवरी 2017 को श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, इंचलकरणजी के तत्वावधान में अभूतपूर्व जनमैदिनी की साक्षी में श्रमण संघीय्ा सलाहकार दिनेष मुनि ने मूलतः गदग (कर्नाटक) निवासी 19 वर्षीय्ा बाल ब्रहृमचारी श्रुति लंुकड़ को दीक्षा मंत्र प्रदान करते हुए ओगा प्रदान कर संय्ाम पथ अंगीकार करवाया। इस तरह सांसारिक जीवन का परित्य्ााग कर अध्य्ाात्म के मार्ग पर अग्रसर मुमुक्षु श्रुति का नय्ाा नाम साध्वी मोक्षदाश्री दिय्ाा गय्ाा। साथ ही नवदीक्षित साध्वी मोक्षदाश्री को महाश्रमणी साध्वी पुष्पवती की सुशिष्य्ाा साध्वी प्रियदर्षना की लघुगुरुबहन साध्वी डाॅ. अर्पिताश्री की शिष्य्ाा घोषित किय्ाा गय्ाा। विदाई के दौरान मुमुक्षु के परिजनों की आंखें छलक उठी और वातावरण ममतामय्ाी हो गय्ाा।
पुष्करवाणी गु्रप ने जानकारी देते हुए बताया कि इंचलकरणजी सकल जैन समाज का प्रथम मौका है जब शहर में जैन दीक्षा संपन्न हुई और पांच दिवसीय महोत्सव के दौरान इंचलकरणजी का माहौल धर्ममय हो गया। इससे पूर्व सबह साढे सात बजे वीरथल का कायर््ाक्रम आय्ाोजित हुआ। इसमें वैराग्यवती श्रुति ने उपस्थित साधु साध्विय्ाों को अपने हाथों से अंतिम बार गोचरी बहराई। इसके पश्चात मुमुक्षु श्रुति की शोभाय्ाात्र्ाा निकाली गई। इस दौरान मुमुक्षु रथ में सवार थी। बैंडबाजों की धुन पर निकाली गई इस शोभाय्ाात्र्ाा में सुमधुर स्वर लहरिय्ाों पर श्रावक श्राविकाएं झ्ाूमते हुए चल रहे थे। वहीं य्ाुवा वर्ग वंदे वीरम के जय्ाघोष के साथ वातावरण में भक्ति रस का संचार कर रहे थे। शहर के विभिन्न मार्गों से होते हुए शोभाय्ाात्र्ाा गुरू आनंद पुष्कर देवेन्द्र दरबार पहुंची। य्ाहां मुमुक्ष श्रुति ने सांसारिक जीवन के अपने अंतिम विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि आज का दिन हजारों खुषियां लेकर आया है। मैं संयम पथ स्वीकार कर मोक्ष मार्ग पर बढ़ रही हूं। संयम कायरों का नहीं वीरों का भूषण हैं। चार वर्ष पूर्व देखा गय्ाा सपना आज मूर्त रूप लेने जा रहा है। अपने 19 वर्षों के जीवन के दौरान माता पिता, भाई बहनों और अन्य्ा सगे संबंधिय्ाों की ओर से मिले स्नेह का स्मरण करते हुए मुमुक्षु ने कहा कि आज व्य्ाक्ति सौ सुखों की कामन करते हुए एक दुख जीवन में आने पर परेशान हो जाता है। वह य्ाह नहीं सोचता कि उसके पास 99 सुख तो है, फिर भी वह दुखी रहता है। बस य्ाहीं प्रेरणा उसे सांसारिक जीवन को छोडने की प्रेरणा बनी और शाश्वत सुख के राज को समझ्ाकर वह संय्ाम की दिशा में चल पडी। मुमुक्षु ने संसारिक जीवन में हुई भूलों के लिए अपने माता पिता और श्रावक - श्राविका समाज से क्षमा य्ााचना की और दीक्षा विधि के लिए प्रस्थान किया।
सलाहकार दिनेष मुनि द्वारा मंगलपाठ सुनने के बाद मुमुक्षु जैसे ही वेष परिवर्तन एवं केषलोचन कर पांडाल में प्रवेष किया तो माहौल में श्रद्धाभर आई। सांसारिक परिधानों को त्य्ाागकर केसर य्ाुक्त श्वेत वस्त्र्ाों से सज्जित मुमुक्षु ने सभी संतवृन्दों व साध्वीवृन्दों को तीन बार वंदन करने के पश्चात् आर्षीवाद लिया ओर पुनः सभी से क्षमायाचना करते हुए माता - पिता - श्रीसंघ से अनुमति लेकर दीक्षा प्रदाता दिनेष मुनि से दीक्षा प्रदन करने की विनंति की।
इसके पश्चात् दीक्षा की विधि प्रारंभ हुई। जिसमें 27 बार नवकार मंत्र्ा, तसउत्तरी लोगस, नमोत्थुणं, 3 बार करेमी भत्ते का पाठ दीक्षाप्रदाता सलाहकार दिनेष मुनि ने दीक्षार्थी को पढाय्ाा, तत्पश्चात अहिंसा ध्वज और ओगा प्रदान किया, साथ ही पात्र्ा, ग्रंथ इत्य्ाादि भी प्रदान किए गए। दीक्षाविधि पश्चात् नवदीक्षिता के षिखा का लोच महासाध्वी प्रियदर्षना व साध्वी रत्नज्योति द्वारा किया गया। जब दीक्षार्थी को संय्ाम प्रदान किय्ाा जा रहा था तब पांडाल में उपस्थित प्रत्य्ोक श्रावक की आंखें नम थी वहीं परिवारजनों के चक्षुओं से हर्ष के आंसू प्रवाहित हो रहे थे। इससे पूर्व समारोह का शुभारंभ नवकार मंत्र्ा महास्तुति से हुआ।

समारोह में वीरपिता प्रवीण लंुकड़, वीरमातेष्वरी मोनादेवी लुकंड़, भाई प्रतीक व बहिन रक्षा लंुकड़ का श्री संघ के पदाधिकारी अध्यक्ष पद्म खाबिया, मंत्री महावीर बोर्दिया, उपाध्यक्ष मीठालाल लंकड़, सदस्य गौतमचंद मुथा, अषोक सालेचा व जीवनसिंह पुनमिया सहित इत्यादि सदस्योें ने अभिनंदन पत्र्ा, शाॅल और माला प्रदान कर बहुमान किया। देश प्रदेश के दूर सुदूर प्रांतों से समागत अतिथिय्ाों का भी श्री संघ इंचलकरणजी की तरफ से ‘षाब्दिक स्वागत’ किय्ाा गय्ाा। संभवतया जैन समाज की प्रथम दीक्षा महोत्सव था जिसमें कोई भी अतिथि दीर्घा नहीं थी और न ही किसी महानुभाव का स्वागत शाल - माला से किया गया।
सलाहकार दिनेष मुनि ने मोक्षदाश्री को संबोधित करते हुए कहा कि संय्ाम के प्रति जागरूकता और निर्देश संय्ाम से प्रत्य्ोक क्रिय्ाा तुम्हें करनी है। जागरूकता रखनी है। आतमशोधन की प्रक्रिय्ाा ही दीक्षा है। जैन शासन की दीक्षा के बारे उन्होंने कहा कि दीक्षा तो व्रतों का संग्रहण है। दीक्षार्थियों के भाग्य की सराहना करते हुए कहा कि उन्हें संयम के पथ पर अग्रसर होने का तथा एक गुरु के अनुशासन में रहने का अवसर मिला है। स्थानकवासी श्रमणसंघ के पुष्कर संप्रदाय में दीक्षित होने वालों के मन में यह संकल्प रहे कि गुरु आज्ञा लक्ष्मण रेखा है, स्वप्न में भी इस रेखा को पार नहीं करना है। मृत्यु को कोई भी रोक नहीं सकता। उन्होंने कहा कि दीक्षा लेने वाला ही त्रिलोकीनाथ कहलाता है, क्योंकि इन्होंने त्याग और संयम का रास्ता अपनाया है। आगे कहा कि ये दीक्षार्थी अपने नाथ बनने जा रहे हैं। माता-पिता के साये को छोड़कर गुरुणी के पास आए हैं, सब मोह-लोभ त्याग दिया है। आप अकूत धन कमा सकते हैं लेकिन जो साधु प्राप्त करता है वह आपके पास नहीं हो सकता। आगे कहा कि इंचलकाणजी श्रीसंघ व सकल जैन समाज ने जो यह दीक्षा महोत्सव संपन्न करवाया बहुत प्रषंसनीय है।
डाॅ पुष्पेन्द्र मुनि ने कहा कि दीक्षा एक बदलाव है। बिना बदले दीक्षा तक नहीं पहुंचा जा सकता। अनादि से भक्ति के मार्ग पर चलना दीक्षा है। डाॅ. द्वीपेन्द्र मुनि ने कहा कि दीक्षा लेना सरल बात नहीं है, जो भाग्य्ाशाली होता है वही संघ में दीक्षा ले सकता है।
युवामनिषि गौरव मुनि ने कहा कि दीक्षार्थी ने अपने वर्तमान को पहचान कर वर्धमान बनने के मार्ग पर कदम बढा दिया है। इस संसार में संयम के बिना मुक्ति संभव नहीं है।
समारोह को संबोधित करते हुई ओजस्वी वक्ता महासाध्वी श्री रत्नज्योति जी म. ने कहा कि दीक्षा लेना रण क्षेत्र में लडने के समान है। जिस प्रकार हम युद्ध लडने जाने से पहले पूरे अस्त्र शस्त्रों से लैस होते हैं उसी प्रकार आज का भी दिन दीक्षार्थी को संयम के पथ पर आगे बढने के लिए सभी उपकरण दिए गये ताकि पथ पर आने वाले कषाय रुपी दुश्मनों से वह डटकर मुकाबला कर सके।
उपप्रवर्तिनी महासाध्वी श्री प्रतिभाकुंवर ने कहा कि संयम के मार्ग पर चलना बहुत कठिन है, लेकिन एक बार चल पड़े तो पथिक का सांसारिक मोह-माया से त्याग हो जाता है। मोह के बंधनों को जिसने समझ लिया, वही संयम के मार्ग पर चल सकता है।
महासाध्वी श्री वीरकान्ता ने कहा कि अपने आप पर नियंत्रण करना ही संयम है। इससे बड़ी साधना और कुछ नहीं होती। यही विवेक का मार्ग भी है। महासाध्वी मणिप्रभा ने संयम के उपकरण का महत्व बताया और साध्वी श्री पीयूषदर्षना ने पांच समिति का महत्व बताते हुए शुभकामनाऐं दी।
समारोह में तेलातप आराधक विवेक मुनि, संभव मुनि, महासाध्वी श्री प्रियदर्षना, साध्वी रत्नज्योति, किरणप्रभा, डाॅ. विचक्षणश्री, डाॅ. अर्पिताश्री, वंदिताश्री, महासाध्वी वीरकांता, वीणाजी, अर्पिता व हितिकाश्री, उपप्रवर्तिनी प्रतिभाकंवर, साध्वी प्रफुल्ला, पुनीता, हंसाजी, डाॅ. उदीताश्री, दक्षिताश्री, विषुद्धिश्री, उपप्रविर्तनी साध्वी मणिप्रभा, ऋतुजाजी, आस्थाजी, पीयुषदर्षना व साध्वी रुचकदर्षना ने भी विचार व्य्ाक्त करते हुए संयम नवदीक्षिता को शुभकामनाऐं प्रेषित की।
स्मारोह में राज्यसभा सांसद सुरेषराव हालवणकर, पूर्व विधानसभा सदस्य कल्लप्पाणा आबाड़े व नगर सभापति श्रीमती अलका स्वामी ने नवदीक्षिता मोक्षदाश्री से आर्षीवाद प्राप्त किया।
समारोह का सफल संचालन कवि ओम आचार्य द्वारा किया गया वहीं स्वागत भाषण की रस्म अध्यक्ष पद्म खाब्यिा व धन्यवाद मंत्री महावीर बोर्दिया ने दिया।
पुष्कर संप्रदाय्ा में 65 वीं दीक्षा
 विश्व संत उपाध्य्ााय्ा पुष्कर मुनि के वर्तमान संप्रदाय्ा की शिष्य्ाा परिवार में सोमवार को दी गई दीक्षा के बाद साध्वीक्रम में साध्वी श्री का 65 क्रम बन गय्ाा। इसकी जानकारी पांडाल में मिलते ही समूचा श्रावक समाज खुशी से झ्ाूम उठा।
फोटो कैप्शन।
आय्ाोजित दीक्षा समारोह में नवदीक्षित साध्वी मोक्षदाश्री को ओगा प्रदान करते सलाहकार दिनेश मुनि।

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