13.01.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 13.01.2017
Updated: 14.01.2017

Update

14 जनवरी का संकल्प

तिथि:- माघ कृष्णा द्वितीया

गुरु इंगित की आराधना।
श्रावक की सच्ची साधना।।

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आचार्य तुलसी की कृति...'श्रावक संबोध'

📕अपर भाग📕
📝श्रृंखला -- 191📝

*38.*
जैनी संस्कृति-संरक्षण
पर जो बल है,
निशिभोजन-विरमण क्यों
स्मृति से ओझल है?
अति मुखर घोष यह
*'संयम ही जीवन है'*,
संयम श्रमणोपासक का
जीवन-धन है।।

*अर्थ-* जैन संस्कृति का एक अनुष्ठान है रात्रिभोजन-विरमण। इस संस्कृति की सुरक्षा पर बल देना हो तो रात्रिभोजन-विरमण की बात स्मृति से ओझल नहीं होनी चाहिए। श्रमणोपासक के लिए संयम ही जीवन का धन है। इसलिए *'संयम ही जीवन है'--* यह घोष जन-जन की जुबान पर रहना चाहिए।

*भाष्य-* जैन आगमों में साधुओं की तरह श्रावकों की भी कई भूमिकाओं का वर्णन है। श्रावकधर्म का निरूपण करते हुए बारह व्रतों की चर्चा की गई है। उनमें स्वतंत्र रूप से रात्रिभोजन-विरमण जैसा कोई व्रत नहीं है। दशाश्रुतस्कंध सूत्र में श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का विवेचन है। वहां पांचवीं प्रतिमा में अन्य नियमों के साथ रात्रिभोजन का परित्याग भी विहित है। इसके आधार पर यह प्रतीत होता है कि आगमयुग में प्रतिमाधारी श्रावकों के लिए निर्धारित रात्रिभोजन-विरमण व्रत मध्य युग में प्रत्येक जैन के लिए मान्य हो गया। इस सदी की बदलती हुई परिस्थितियों में यह धारणा बदलती जा रही है। शहरों की दौड़धूप और अव्यवस्थित जीवनशैली के कारण रात्रिभोजन का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। जैन संस्कृति की सुरक्षा का लक्ष्य सामने रहे तो सहज ही रात्रिभोजन का संयम किया जा सकता है।

धार्मिक या सांस्कृतिक दृष्टिकोण को सामने रखने वाले संयम या संस्कृति की अवधारणा के आधार पर रात्रिभोजन के त्याग की बात करते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चिंतन करने वाले स्वास्थ्य की दृष्टि से रात्रिभोजन को अच्छा नहीं मानते। दिन में सूर्य की किरणों के प्रभाव से पाचनतंत्र सक्रिय रहता है। रात्रि में वह निष्क्रिय हो जाता है। पाचनतंत्र की निष्क्रियता के कारण भोजन ठीक तरह से नहीं पचता। रात्रि में बहुत देर से खाने वाले न तो पूरा पानी पी सकते हैं और न किसी अन्य कार्य में संलग्न रह पाते हैं। इन सब तथ्यों को ध्यान में रखकर श्रावक रात्रिभोजन का परिहार करें, यह उनके लिए श्रेयस्कर है।

*प्रत्येक श्रावक की जीवन-चर्या में उपासना, उपसंपदा, योगासन, ध्रुवयोग और प्रेक्षाध्यान साधना-क्रम का अभ्यास होना चाहिए।* इनके बारे में विस्तार से जानने-समझने के लिए पढ़ें... हमारी अगली पोस्ट... क्रमशः कल।

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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Update

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दिनांक: 13/01/2017

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