19.11.2016 ►Jahaj Mandir ►Achary Jinkantisagarsuri

Published: 20.11.2016
Updated: 08.01.2018

News in Hindi:

यशस्वी पाट परम्परा पर सुशोभित जन-जन की श्रद्धा के केन्द्र, शासन प्रभावक, संयम शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनकान्तिसागरसूरिजी महाराज


Achary Jinkantisagarsuri

यशस्वी पाट परम्परा पर सुशोभित जन-जन की श्रद्धा के केन्द्र, शासन प्रभावक, संयम शिरोमणि गच्छाधिपति  आचार्य श्री जिनकान्तिसागरसूरिजी महाराज

आपका जन्म रतनगढ़ निवासी श्री मुक्तिमलजी सिंघी की धर्मपत्नी श्रीमती सोहनदेवी की कोख से वि.सं. 1968 माघ वदी एकादशी को हुआ था। जन्म का नाम तेजकरण था। माता-पिता तेरापंथी संप्रदाय के होने से तत्कालीन तेरापंथी समुदाय के अष्टम आचार्य श्री कालुगणि के पास 9 वर्ष की बाल्यावस्था में पिता के साथ वि.सं. 1978 में तेजकरण ने दीक्षा ग्रहण की। दीक्षित होने के बाद तेरापंथी शास्त्रों का गहनतापूर्वक अध्ययन किया। जिससे मूर्तिपूजा, मुखविस्त्रका, दया, दान आदि के सम्बन्ध में तेरापंथ सम्प्रदाय की मान्यताएं अशास्त्रीय लगी। फलत: तेरापंथ संप्रदाय का त्याग कर वि.सं. 1989 ज्येष्ठ शुक्ला त्रयोदशी को अनूपशहर में गणाधीश्वर श्री हरिसागरजी महाराज के कर कमलों से भगवती दीक्षा अंगीकार करने पर मुनि श्री कांतिसागरजी नाम पाया। 

आप प्रखर वक्ता थे। आपकी वाणी में मिठास होने के साथ ही आपका कण्ठ सुरीला एवं ओजस्वी था। आपको आगम ज्ञान के अलावा संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती, अंग्रेजी, मारवाड़ी भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। आप एक अच्छे कवि थे। आप प्रवचन के समय अपने मधुर कण्ठ से व्याख्यान को कविता का रूप देने में समर्थ थे। राजस्थानी भाषा में अंजना रास, मयणरेहा रास, पैंतीस बोल विवरण आदि रचनाएं लिखी। 

आपने राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्, उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, हरियाणा, जम्मु कश्मीर, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु आदि क्षेत्रों में विचरण किया। 

आपको वि.सं. 2038 आषाढ़ सुदी षष्ठी, 13 जून 1982 को जयपुर खरतरगच्छ श्रीसंघ ने आचार्य पद से विभुषित किया। 

आपने अपने दीक्षा काल में अनेक स्थानों पर जैसे- जलगांव, कुलपाक, आहोर, सम्मेतशिखर, पावापुरी, उदयपुर, जोधपुर, बाड़मेर, कल्याणपुर आदि तीर्थ स्थलों पर प्रतिष्ठाएं व अंजनशलाका करवायी। अनेक उपधान तप कराये। खरतरगच्छ की मजबूती एवं वृद्धि के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे। 

आपकी निश्रा में बाड़मेर से शत्रुंजय तीर्थ तक 1000 यात्रियों का एक विशाल ऐतिहासिक पैदल यात्रा संघ निकला। आप परम यशस्वी, महान शासक प्रभावक, संयम शिरोमणि एवं आध्यात्मिक प्रज्ञा पुरुष थे। आपके 11 शिष्य है जिनमें प्रथम एवं प्रमुख शिष्य प.पू. आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरिजी म.सा. है जो वर्तमान में खरतरगच्छ के गच्छाधिपति के रूप में विराजमान है। शेष 10 शिष्यों में प.पू. उपाध्याय श्री मनोज्ञसागरजी म., मुनि मुक्तिप्रभसागरजी म., महोपाध्याय ललितप्रभसागरजी म., मुनि श्री चन्द्रप्रभसागरजी म. आदि जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में संलग्न है। 

आपका अंतिम प्रभावक चातुर्मास राजस्थान के सिवाणा नगर हुआ। विहार के दौरान वि.सं.2042 मिगसर वदि सप्तमी को मांडवला गांव में हृदय गति रुक जाने से स्वर्गवास हो गया। मांडवला में आपकी स्मृति स्वरूप आपके प्रिय व प्रथम शिष्य आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरिजी म.सा. के अथक प्रयासों एवं उनकी प्रेरणा से विश्व प्रसिद्ध स्थापत्य ‘जहाज मंदिर’ का निर्माण कराया गया है, जो वर्तमान में विश्व विख्यात एक भव्य तीर्थ के रूप में सौभाग्यवान हो रहा है। 

31  वीं पुण्यतिथि पर सादर आदरांजलि

Sources

Jahaj Mandir.com
Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Shvetambar
      • Murtipujaka
        • Jahaj Mandir [Khartar Gaccha]
          • Share this page on:
            Page glossary
            Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
            1. Jahaj Mandir
            2. Jahaj Mandir.com
            3. Mandir
            4. आचार्य
            5. गुजरात
            6. ज्ञान
            7. बिहार
            8. राजस्थान
            9. स्मृति
            10. हरियाणा
            Page statistics
            This page has been viewed 468 times.
            © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
            Home
            About
            Contact us
            Disclaimer
            Social Networking

            HN4U Deutsche Version
            Today's Counter: