04.11.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 04.11.2016
Updated: 05.01.2017

Update

कैसे होते हैं दिगम्बर साधु... क्या होती हैं उनकी चर्या ।।। एक बार सब सज्जन जरूर पढ़े -दिगम्बर साधु की आदर्श जीवन चर्या (lifestyle):) #AcharyaSanmatisagar #AcharyaSunilsagar #AcharyaMahavirKirti

इस काल के सब के महान तपस्वी आचार्य श्री सन्मति सागरजी महाराज के त्याग की कथा, गुरुदेव श्री आचार्य सन्मतिसागर महारा भोजन नहीं करते थे. वे ४८ घंटो में एक बार मट्ठाऔर पानी लेते थे. आपने आचार्य महावीर कीर्ति जी महाराज से 18 साल की आयु में ब्रहमचर्य व्रत लेते ही नमक का त्याग कर दिया

सन 1961 में (मेंरठ) में आचार्य विमलसागर महाराज से छुलक दीक्षा लेते ही दही,तेल व घी का त्याग कर दिया था. सन 1962 में मुनि दीक्षा लेते ही आपने शकर का भी त्याग कर दिय सन 1963 में आप ने चटाई का भी त्याग कर दिया और 1975 में आपने अन्न का भी त्याग कर दिया. सन 1998 में उन्होंने दूध का भी त्याग कर दिया. सन 2003 में उदयपुर में मट्ठा और पानी का अलावा सबका त्याग कर दिया.

उन्होंने रांची में 6 माह तक और इटावा में 2 माह तक पानी का भी त्याग किया. उन्होंने अपने एक चातुर्मास में 120 दिनों में केवल 17 दिन आहार लिया.दमोह चातुर्मास में उन्होंने एक आहार एक उपवास फिर दो उपवास
एक आहार तीन उपवास एक आहार.... इस तरह बढते हुए, 15 उपवास एक आहार, 14 उपवास एक आहार, 13 उपवास एक आहार..... से करते करते एक उपवास एक आहार, तक पहुच कर सिंहनिष्क्रिदित महा कठिन व्रत किया. उन्होंने अपने 49 साल के तपस्वी जीवन में लगभग 9986 उपवास किये. लगभग 27.5 सालो से भी अधिक उपवास किये.

आपके बारे में आचार्य 108 पुष्पदंत सागर महाराज ने यहाँ तक कहा है की महावीर भागवान के बाद आपने ने इतनी तपस्या की है. सन1973 में उन्होंने शिखरजी की निरंतर 108 वंदना की थी वे भरी सर्दियों मेंभी चटाई नहीं लेते थे. गुरुदेव 24 घंटो में केवल 3 चार घंटे ही विश्राम करते थे. वे पूरी रात तपस्या में लगे रहते थे. उन्होंने समाधी से 3 दिन पहले उपवास साधते हुए लोगो का कहने का बावजूद आपना आहार नहीं लिया. अपनी समाधी से पहले दिन यानि 23-12-10 को आपने अपने शिष्यों को पढ़ाया और शाम को

*अपना आखरी प्रवचन भी समाधी पर ही दिया. और सुबह 5.50 बजे आपने अपने आप पद्मासन लगाया भगवन का मुख अपनी तरफ करवाया और अपने प्राण 73 वर्ष की आयु में 24-12-10 को आँखों से छोड़ दिए!!

--- www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---

#Jainism #Jain #Digambara #Nirgranth #Tirthankara #Adinatha #LordMahavira #MahavirBhagwan #Rishabhdev #AcharyaVidyasagar #Ahinsa #Nonviolence #AcharyaShri

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Update

today picture & pravachan:) शिक्षा और भारत -4 नवंबर -पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि बूँद बूँद के मिलन से जल में घट आ जाय बूँद मिले सागर से सागर बूँद समाय।

बिहार के राज्यपाल श्री रामनाथ कोविन्द ने कहा कि मैं यहाँ आचार्य श्री की अमृतमयि वाणी सुनने आया हूँ।आज नालंदा,विक्रमशिला और तक्षशिला हमारी प्राचीन शिक्षा के केंद्र रहे हैं जिसमें दुनिया के लोग आते थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति को जाना और दुनिया में बिस्तारित किया। तीर्थ परंपरा को आचार्य श्री आगे बढ़ा रहे हैं। मैं भी शिक्षा न्यास से जुड़ा रहा हूं ये अच्छा काम कर रहा है। जिनका बजूद नहीं है बे देश को अपना अधिकार समझते हैं। सही मायने में भारतीय परंपरा में पढ़ने और गढ़ने की परंपरा रही है। जो हुनर सीखने मिल रहा है उसे आचरण में लाने की परंपरा रही है। आज शिक्षा के सुधारों में समाधान की जरूरत है और आचार्य श्री ने कहा है कि जो भारत का अतीत रहा है उसे छोड़ना नहीं है तभी शिक्षा को मजबूत बनाया जा सकता है । समाधान अतीत में ही छिपा है बस उसे उजागर करने की जरूरत है। भारतीय जब गांब से शहर की और जाता है तो अपनी सजगता को, संस्कृति को लेकर चलता है।

एक बूँद दूसरी बूँद से मिल जाती है तो प्यास बुझाती है। सागर का अस्तित्व क्या है,उत्पत्ति कैंसे है ये जानना जरूरी है। लोग कहते है सरकार सुनती नहीं है, आपकी आवाज में दम होगी तो बेहरी सरकार भी सुन लेती है। स्वर के मिलते ही व्यंजन में गति आ जाती है, आप स्वर बन जाएँ तो सरकार व्यंजन बन जायेगी। कर्ता यदि सरकार है तो कार्य की अनुमोदना आपको करना है। 70 बर्षों में सरकार ने यदि शिक्षा की दिशा में नहीं सोचा तो आप ही सरकार को बनाने बाले हैं। विद्यालय का अर्थ नहीं जान पाये तो ये चल क्या रहा है क्यों स्कूल चलाए जा रहे हैं। आज बाबू बनने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसका अभिप्राय मानसिक रूप से गुलामी करना है, सुभास चंद्र बोस ने अपनी माँ को पत्र लिख कर कहा था कि बाबू बनने से अच्छा है मैं राष्ट्र सेवा करूँ। आज नोकरी में पैकेज दहेज़ की तरह बन गया है जिसे पाने के लिए युवा लालायित हो रहे हैं। जिस वाक्य में कर्ता स्वतंत्र न हो उस वाक्य का कोई अर्थ नहीं है। बुद्धि यदि खराव हो जाय तो फिर ठीक नहीं हो सकती। ज्ञान को सही बिषय मिल जाय तो ज्ञान को सही दिशा मिल जाती है नहीं तो विकृति आने से ऊपर बाला भी नहीं रोक सकता है। हमारे यहां अंक से नहीं चलता अनुभव से चलता है इसलिए अनुभव जरूरी है। सरकार सिंधु है जनता बिंदु है। बैठने का नाम सरकार नहीं होता है उसे तो जनता के हित में चलते रहना चाहिए। अपने अतीत को पुनः जाग्रत करने की जरूरत है। केवल बाणी का मंथन करने से नवनीत नहीं मिल सकता। विदेशी शिक्षा नीति ने भारत के इतिहास को पीछे धकेल दिया है 70 बर्षों में भी मंथन से यदि कुछ नहीं निकला तो चिंता का बिषय है। कर्ता का काम करने का है जो अनुभवी लोग हैं उन्हें आगे आकर इस कार्य को आगे बढ़ाना चाहिए। अनुभवी शिक्षाविद् इस दिशा में कार्य करें परंतु इतिहास को सामने रखकर करें,अपने इतिहास की अच्छाईओ को उजागर करें तो स्वतंत्रता के साथ न्याय हो सकेगा। संस्कृति को संरक्षित करने पर ही सुख शान्ति का अनुभब कर सकते हैं। आज श्रमिक बनकर ही हम राष्ट्र कल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। भारत की युवा शक्ति विराट है उसे केंद्रित करने की जरूरत है, उसे मूल तत्व से जोड़ने की जरूरत है। हम समय को भी बाँध सकते हैं यदि प्रतिभा का सही उपयोग करें।

--- www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---

#Jainism #Jain #Digambara #Nirgranth #Tirthankara #Adinatha #LordMahavira #MahavirBhagwan #Rishabhdev #AcharyaVidyasagar #Ahinsa #Nonviolence #AcharyaShri

Source: © Facebook

News in Hindi

108 वाहनों से अशोकनगर से भोपाल पहुंचे करीबन 3000 लोग, हर घर से एक सदस्य हुआ शामिल... आचार्यश्री बोले- मेरे पीछे आ जाओ मैं तुम्हें अशोकनगर (शोक रहित स्थान) ले चलता हूं:)

आचार्यश्री को आमंत्रित करने भोपाल पहुंचे हजारों भक्तों से आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा कि तुम सब मेरे पीछे आ जाओ मैं तुम्हें अशोकनगर (शोक रहित स्थान) ले चलता हूं। वहां आनंद ही आनंद होगा। उन्होंने कहा कि ऐसा लग रहा है कि अशोकनगर वाले भक्ति में मग्न होकर सबकुछ भूल गए हैं। यह क्षण बहुत दुर्लभ होता है। इस तरह का आनंद सौधर्म इंद्र को भी नहीं मिल पाता है। ज्ञात हो कि आचार्यश्री को आमंत्रित करने के लिए मंगलवार रात को 51 बस और 57 कारों से करीबन 3 हजार भक्त भोपाल गए थे।

इतनी अधिक संख्या होने के बावजूद सभी लोग अनुशासित थे। किसी भी भक्त ने चलते समय पैर छूने की कोशिश नहीं की। सुबह 9 बजे आचार्यश्री जैसे ही पाण्डाल में विराजमान हुए। सभी भक्तों ने एक साथ जोरदार जयकारा लगाया। इस मौके पर अधिक से अधिक भक्तों ने आचार्यश्री को शास्त्र भेंट किए। इस मौके पर आचार्यश्री की महापूजन की गई। ।

समाज की ओर से अध्यक्ष रमेश चौधरी, युवाजन की ओर से विजय धुर्रा ने आचार्यश्री से अशोकनगर में शीतकालीन वाचना करने का आग्रह किया। शैलेंद्र श्रंगार ने अपनी मधुर आवाज में महापूजन गायी। प्रतिष्ठाचार्य प्रदीप भैया, मुकेश भैया ने अर्घ चढ़वाए।

धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि व्यक्ति जब आनंद की गहराई में उतरकर सोचता है कि हम कहां भटक कर आ गए हैं। तब उसका चिंतन इस तरफ बढ़ता है। वह अविनश्वरता की ओर आगे बढ़ता है। आप लोग ऐसी भक्ति में रम गए कि तांडव नृत्य करने वाला इंद्र भी इतने आनंद का अनुभव नहीं कर सकता है। सौधर्म इंद्र भी इनकी भक्ति में पीछे रह गया। लेकिन यह तो बहुत थोड़े अंश में है। पूरा आनंद तो डूबने पर आएगा। अभी तो तुमने पानी में पैर रखा है डुबकी भी लगाओ। तभी तुम अशाेकनगर का अनुभव कर पाओगे। उस अविनश्वर अशोकनगर का।

35 साल पहले आए थे अशोकनगर में आचार्यश्री 35 साल पहले आए थे। तभी से भक्त उनकी राह देख रहे हैं। अब तक कई बार समाजजन, पदाधिकारी और भक्त आमंत्रण के लिए आ चुके हैं। हथकरघा की बात आई तो दान के लिए खुल गए हाथ घर-घर हथकरघा लगाने की आचार्यश्री की राष्ट्रवादी सोच को मजबूत करते हुए अशोकनगर से भोपाल पहुंचे भक्तों ने मुक्त हस्त से दान दिया। पांच मिनट का समय और दान राशि करोड़ों में पहुंच गई। लिखने वाले लिखने में ही पिछड़ गए लेकिन दान देने वालों का क्रम नहीं टूट रहा था।

--- www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---

#Jainism #Jain #Digambara #Nirgranth #Tirthankara #Adinatha #LordMahavira #MahavirBhagwan #Rishabhdev #AcharyaVidyasagar #Ahinsa #Nonviolence #AcharyaShri

Source: © Facebook

Video

Source: © Facebook

आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के 71वें जन्मदिवस पर मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज की पुस्तक आत्मान्वेषी पर आधारित आत्मान्वेषी नाटक के भोपाल में सफलतम मंचन के पश्चात,
विवेचना रंगमंडल जबलपुर और मैत्री समूह के साथ अर्चना मलैया जी द्वारा किये गए नाट्य रूपांतरण का पुनः मंचन,

स्थान: आचार्य विद्यासागर तपोवन, छतरी योजना, अजमेर

समय: सायं 7:30

दिनांक: 06 नवंबर 2016

अजमेर: 9828105222, 9413309933
(निवेदन:
कृपया अधिक से अधिक संख्या में पहुँच कर धर्मलाभ लेवें।)

मैत्रीसमूह:
9827440301, 9425424984

Sources
Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Digambar
      • Acharya Vidya Sagar
        • Share this page on:
          Page glossary
          Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
          1. Ahinsa
          2. Digambara
          3. Jainism
          4. JinVaani
          5. Nonviolence
          6. Pravachan
          7. Rishabhdev
          8. Tirthankara
          9. आचार्य
          10. ज्ञान
          11. बिहार
          12. महावीर
          13. सागर
          Page statistics
          This page has been viewed 643 times.
          © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
          Home
          About
          Contact us
          Disclaimer
          Social Networking

          HN4U Deutsche Version
          Today's Counter: