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प्रेरक प्रसंग
" अटूट श्रद्धा "
एक ग्वाला था । उसकी पुत्री का नाम श्यामा था। वह प्रतिदिन नाव से नदी पार कर पण्डित जी के घर दूध देने जाती थी। यह उसका प्रतिदिन का कार्य था।
एक दिन वह दूध दे कर लौट रही थी कि वर्षा अधिक होने से नदी में बाढ़ आ गयी । इस कारण वह घर नही जा सकी और वही मन्दिर में पण्डितजी के प्रवचन सुनने बैठ गयी ।.
पण्डितजी प्रवचन में णमोकार मन्त्र की महत्ता बता रहे थे। "यह णमोकार मन्त्र सब पापों का नाश करने वाला है, इस मन्त्र का जाप करने वाले बड़े बड़े समुद्र, तालाब नदी आदि को सरलता से पार हो जाते है। श्रीपाल ने इसी मन्त्र का जाप करके विशाल समुद्र को पार किया था। "
यह सुनकर उस कन्या को भी णमोकार मन्त्र के प्रति अचल श्रद्धा हुई। वह मन्दिर से नदी पर आई और तुरन्त ही णमोकार मन्त्र को याद कर नदी में कूद पड़ी । मन्त्र जपते - जपते नदी पार हो गयी। अब उसकी श्रद्धा और भी बढ़ गयी । वह प्रतिदिन नाव से आती थी, पर अब वह मन्त्र के द्वारा नदी पार आने - जाने लगी । नाव के पैसे भी बचने लगे। प्रतिदिन णमोकार मन्त्र के प्रभाव से नदी पार कर आना - जाना बढ़ने लगा। उसकी पण्डितजी के प्रति श्रद्धा भी बढ़ने लगी।
एक दिन उसने पण्डितजी से कहा _ आपने मुझ पर बड़ा उपकार किया है, मुझे अचूक मन्त्र दिया है । आप कल मेरे घर भोजन को पधारे। पण्डितजी ने स्वीकृती दे दी।
कन्या प्रातः काल आई और पण्डितजी को कहा चलिए। पण्डित जी बालिका के साथ चल दिए। सामने गहरी नदी देख पण्डितजी बोले, बेटी! नदी पार कैसे करेंगे? नाव नही है । कन्या ने णमोकार मन्त्र जपा और नदी में कूद गयी, और किनारे लग गयी ।
कन्या पुकारने लगी -- 'पण्डितजी आइये।' पर पण्डितजी का साहस नही हुआ। वे सोचने लगे -' कही डूब गया तो परिवार का क्या होगा। '
पण्डितजी को कन्या बुला रही है _ पण्डितजी! आपने तो उपदेश दिया था कि णमोकार मंत्र के स्मरण से बड़े - बड़े नदी, तालाब क्षण मात्र में पार किये जा सकते है । अब क्या हो गया आपको?
पर पण्डितजी का साहस नही हुआ, वह कन्या श्रद्धा के बल नदी पार कर गयी । पण्डितजी किनारे पर ही खड़े रहे।।
* ये उस पण्डितजी की कहानी नही, बल्कि हम सबकी कहानी है। हमें भी हमारे देव शास्त्र गुरु पर सच्चा श्रद्धान नही है इसलिए हम कुदेव कगुरु, कुशास्त्र को भजते है उनका प्रचार प्रसार करते है । और अपने धर्म के प्रचार प्रसार में उदासीन रहते है।
अगर हम सभी को भी णमोकार मन्त्र, वीतरागी देव-शास्त्र- गुरु पर अटूट श्रद्धान हो तो नदी समुद्र ही क्या संसार का बेड़ा भी पार हो जायेगा।
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कल आचार्य विद्यासागर जी से चर्चा के लिए आये वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार, वेद प्रताप वैदिक जी:)
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*शंका समाधान - 22 Oct.' 2016*
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1. जीवन का उद्देश्य है स्वयं को पहचानना ।
2. संयुक्त परिवार में या सामान्य परिवार में भी, सहिष्णुता यानि की सहनशीलता रखनी चाहिए । एक दूसरे का ख्याल रखना चाहिए और प्रसंशा करनी चाहिए।
3. श्रद्धा और बुद्धि अलग अलग direction में चलती हैं । *ज्ञान को भावनाओं (श्रद्धा) की सीमा में ही होना चाहिए, नहीं तो शुष्क ज्ञान से पैदा हुए तर्क से जीवन नर्क के समान हो जाता है ।*
4. समालोचकों के अनुसार जैनो / श्रमणों के प्रभाव से प्रभावित होकर, वैदिक ऋषियों ने उपनिषदों की रचना की जिसमे कर्म कांड से हटकर, आध्यात्म को प्रमुखता दी जाने लगी ।
5. माँ बाप को चाहिए की बच्चों को धन के पीछे भागने की शिक्षा ना दें । *धन कमाना बुरा नहीं है; जैन दर्शन में संग्रह का निषेध नहीं है, परिग्रह (attachment) का निषेध है ।*
बच्चों को पहले एक नेक इंसान बनने की शिक्षा देनी चाहिए ।
6. जितना बच्चों का स्कूल जाना जरूरी है उतना मंदिर जाना भी । *स्कूल नहीं जाओगे तो जीवन में पिछड़ जाओगे और मंदिर नहीं जाओगे तो जीवन ही बिखर जायेगा ।*
7. श्री भक्तामर जी का पाठ किसी भी तिथि में कभी भी किया जा सकता है ।
8. अज्ञान से कर्म बंधता है और ज्ञान से कर्म कटता है । स्वर्ग और नरक के चक्कर में मत उलझिए, जीवन को ही ज्ञान से स्वर्ग बनाने का प्रयास करिये ।
9. *आचार्य श्री अंग्रेजी का निषेध नहीं करते, अंग्रेजियत का विरोध करते है ।* माध्यम regional या हिंदी language होना चाहिए तभी देश और संस्कृति की रक्षा हो सकती है ।
10. पहले घरों में गाय पला करती थीं जो वात्सल्य का प्रतीक थी । अब घरों में कुत्ते पला करते हैं जो क्रूरता का प्रतीक है । इस पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण करने के कारण आज के इंसान में इसका प्रभाव (क्रूरता) देखने को मिल ही रहा है ।
11. एलोपैथी का विरोध नहीं है, उसके भी बहुत फायदे हैं जैसे की सर्जीकल cases में । लेकिन जहाँ आयुर्वेद के अच्छे इलाज उपलब्ध हैं, उनको अपनाना चाहिए ।
*मेरे संपर्क में कई ऐसे doctors है जो MD हैं लेकिन ऐलोपैथी को हाथ भी नहीं लगाते ।*
*- प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज*
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*भारतीय त्यौहार, भारतीयों के साथ* इस दीपावली सिर्फ भारत में बनी वस्तुओं से अपना घर सजाय ताकि हर देशवासी के घर खुशियों का दीप जगमगाये
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आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महामुनिराज का भव्य पिच्छीका परिवर्तन समारोह दिनांक 06 नवम्बर 2016 दिन रविवार को दोपहर 1:00 बजे सुभाष स्कूल ग्राउंड हबीबगंज में!!
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मैं संसार सुखों की बजाय आत्म सुखों में लीन रहूँ... यही भावना हैं:)
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We don't have any information on where this image is from but one doesn't need much information to see that nonhumans feel pain, flee from harm and want to live. #AnimalLove #Ahinsa #Nonviolence
If this rat was a cow, a pig or a chicken, would you care the same?
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*शंका समाधान - 21 Oct.' 2016*
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1. *भारतीय संस्कृति में लाभ को शुभ नहीं बल्कि शुभ पूर्वक लाभ माना गया है यानि की लाभ शुभ कार्यों पूर्वक हो* । अशुभ कार्यों से लाभ की आकांछा नहीं रखनी चाहिए।
2. समाज सेवियों को बहुत ही धैर्यवान होना चाहिए । अपनी आलोचनाओं को स्वीकार करके आगे बढ़ते रहना चाहिए।
3. भिगोया हुआ फुला हुआ अनाज लिया जा सकता है लेकिन अंकुरित अनाज नहीं लेना चाहिए वो सचित्त हो जाता है, कम से कम व्रतियों को तो नहीं लेना चाहिए ।
4. *सोच अच्छी होगी तो व्यवहार में निश्चित दिखेगी ही ।* अगर व्यव्हार ठीक नहीं है तो सोच को और अच्छा करने की जरुरत है।
6. *वैयावृत्ति महातप है, 12 तपों में वैयावृत्ति को अलग से तीर्थंकर प्रकृति का बंध होता है ।* शारारिक तप तो फिर भी आसान है लेकिन किसी की सेवा करना बहुत महान कार्य है ।
7. धन की सार्थकता तभी है जब वो गरीब के या अच्छे कार्य में काम आये। नहीं तो एक दिन धन तो नष्ट हो ही जाना है ।
8. *प्रभु की सच्छी उपासना तभी है जब मन की वासना शांत हो ।*
9. दूसरों पर स्वयं के द्वारा किये हुए उपकार को पानी पर खींची लकीर की तरह भूल जाओ और दूसरों द्वारा अपने ऊपर किये उपकारों को पत्थर पर खींची लकीर की तरह याद रखिए ।
*- प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज*
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हमारी संस्कृति दिन की शुरूवात आराध्य स्मरण के साथ करने की है। अगर आप भी प्रतिदिन पूज्य मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज की वात्सल्य से भरी वाणी को सुनकर धर्मलाभ लेना चाहते है तो आप भी मैत्री समूह के ब्रॉडकास्ट ग्रुप से जुड़ सकते हैं।
मुनिश्री के प्रवचनो कि क्लिपिंग वाट्सअप के माध्यम से सुनने के किए 9407420880 नम्बर अपने मोबाइल में सेव करें और हमें जुड़ने का संदेश इसी नम्बर पर दें।
अपने सुझाव देने के लिए हमें 9827440301पर कॉल भी कर सकते है।
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आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने आज कहा कि अभिनय करने बाला ऐंसा अभिनय करता है की वास्तविक लगता है परंतु बो वास्तविक नहीं होता बनाबटी होता है। पूर्व के जो कर्म उदय में आते हैं उनसे बचने के लिए बनाबटी बातें नहीं चलेंगी बल्कि वास्तविकता को जानकार उन कर्मों का सामना किया जा सकता है।
प्रत्येक सांस में आपके अतीत का फल बर्तमान में परिणाम के रूप में सामने आता है। साक्षी भाव होकर भी एकाक्षी बनकर जो रहते हैं बो कर्मों के यथार्थ को जान नहीं पाते। रुद्राक्ष में एक आँख को लौकिक पद्धति में दुर्लभ माना जाता है । श्रीफल में भी तीन आँखें होती है एक आँख बाला दुर्लभ होता है। अतीत के अनुभव का पुट होना चाहिए तभी दोनों आँखों से काम सही लिया जा सकता है। जो पदार्थ का वर्तमान में ज्ञान हो रहा है बो अतीत के अनुभव से ही द्रव्य क्षेत्र काल का निमित्त कराता है। आज जो ज्योतिष से जाना जाता है ये निमित्त ज्ञान तो हो सकता है नैमित्तिक ज्ञान नहीं हो सकता है। आप भौतिक पदार्थों से चिपके हुए हो तब तक आगे बढ़ नहीं सकते जब तक पर से पराया पन नहीं आएगा तब तक आप मोक्ष मार्ग पर नहीं बढ़ सकते। बर्तमान के बशीभूत न होकर अपने सूत्रधार की तरफ देखोगे तभी आपके अभिनय से दर्शक प्रभावित होंगे। आपका सूत्रधार आपका अतीत है उस अतीत को जानने के लिए आपको वर्तमान में ज्ञान की धारा के साथ विश्वास पूर्वक बहना होगा। संतोष को छोड़कर बाकी सभी गुणों को धारण करते जा रहे हैं, जब संतोष को धारण कर लेंगे तभी अतीत के गुण आत्मा में प्रकट हो सकेंगे। संतोष से ही पुण्य का कोष बढ़ता है
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News in Hindi
अध्यात्म सरोवर के राजहंस आचार्य श्री के चरण lATEST PICTURE:) आचार्य विद्यासागर जी तथा जैन धर्मं को समर्पित ये पेज 55,000 मेम्बर cross कर रहा हैं!!
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