19.10.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 19.10.2016
Updated: 05.01.2017

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आज के प्रवचन -सड़क को उपयोग करो उसे अपना मत बनाओ ऐंसे ही मोह को छोड़कर मोक्ष की यात्रा प्रारम्भ करें और सदगुरु को पकड़ कर चलो |

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आचार्य श्री विद्यासागर जी ने अपने आशीष वचनों में कहा कि आप नीचे रहकर भी पर्वत के मंदिर और शिखर को देख सकते हैं। एक बार दृष्टी से दिखाई दे जाते हैं। जहां से रास्ता होता है वही से मंदिर की तरफ जाया जाता है। जब पहाड़ चढ़ते हैं तो झुकना पड़ता है,साबधानी रखनी पड़ती है। व्यबधान का समाधान एकाग्रता,संकल्पशक्ति में होता है। रास्ते को सुव्यवस्थित करने से आगे बढ़ा जा सकता है। रास्ते में नदी आती है तो नाव के सहारे नाविक आपको पतवार चलाकर पार लगाता है। जब उस पार पहुँच जाते हैं तो स्वयं चलकर फिर लक्ष्य की और बढ़ना पड़ता है। कोई आपके साथ नहीं जाता है। स्वयं का सम्यक दर्शन, ज्ञान और चारित्र जागृत करने पर ही मोक्ष मार्ग पर बढ़ा जा सकता है। यदि इस मार्ग का अनुशरण करना है तो उस पथ पर आरूढ़ पथगामी का अनुशरण करते जाओ।

उन्होंने कहा कि व्यवधान आते हैं परंतु यदि साधन को साधन मानकर उसे पीछे छोड़ कर आगे बढ़ेंगे तो बढ़ते चले जाएंगे। जो संसारी भ्रमजाल में फंसे हैं बे बिकलांग के सामान हैं पहले मानसिक विकलांगता को छोड़ना पडेगा अपने भीतर की ऊर्जा को संचारित करना पडेगा। अपने पैरों को पहले मजवूत बना लो उसके बाद इस कठिन मार्ग की यात्रा का शुभारम्भ करो। सड़क को उपयोग करो उसे अपना मत बनाओ ऐंसे ही मोह को छोड़कर मोक्ष की यात्रा प्रारम्भ करें और सदगुरु को पकड़ कर चलो। सारे व्यवधान को दूर करते हुए आगे बढ़ो। व्यवधान का समाधान अवधान से ही हो सकता है।

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News in Hindi

णमोकार मंत्र की ऐसी व्याख्या तथा ऐसी गलितय जो हम हमेशा करते हैं आप भी जानेंगे तो हैरान रह जायेंगे.. और इस ARTICLE में ये भी बताया हैं की आचार्य विद्यासागर जी, सुधासागर जी कैसे इस मंत्र का उच्चारण करते हैं!! #NamokarMantra #Namokara -MUST READ AND SHARE!

अरहंत तथा सिद्ध आराध्य है! आचार्य, उपाध्याय तथा साधु आराधक है! दर्शन, ज्ञान, चारित्र आराधनाये होती है! णमोकार मंत्र में 35 अक्षर, 58 मात्राए, 5 पद होते है, यह मूलमंत्र "प्राकृत" भाषा में है, ये मंत्र अनादी निधन है इस युग की अपेक्षा से सर्वप्रथम "षटखंडागम" ग्रन्थ में लिखा हुआ मिलता है इस ग्रन्थ की रचना आचार्य भुतबलि तथा आचार्य पुष्पदंत ने लगभग 2,000 वर्ष पूर्व की थी!

णमो अरिहंताणं
णमो सिद्धाणं
णमो आइरियाणं
णमो उवज्झायाणं
णमो लोए सव्वसाहूणं
एसो पञ्च णमोयारो, सव्वपावप्पणासणो! मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलम!!

उच्चारण: णमोकार मंत्र के उच्चारण में दिगम्बर तथा श्वेतांबर बंधुओ में कुछ पाठ भेद है, इस मंत्र के उच्चारण में "णमो" में "ण" का उच्चारण "ण" करे "णमो" बोलना है!, नमो पाठ श्वेतांबर मूर्ति पूजक और मंदिरमार्गीयो बंधुओ में विशेष रूप से प्रचलन में है, "न" बोलना व्याकरण से अशुद्ध नहीं है, दिगम्बर में "णमो" पाठ चलता है!

णमो अरिहंताणं: "णमो अरिहंताणं" में 3 पाठ पाए जाते है, (अ) "षटखंडागम" ग्रन्थ में "अरिहंताणं" पाठ मंगलाचरण में आया है, "अरहंताणं" पाठ क्रिया कलाप ग्रन्थ में (रचयेता - आचार्य प्रभाचन्द्र स्वामी जी) मिलता है ये ग्रन्थ "षटखंडागम" से भी पुराना है! ये पाठ गौतम स्वामी जी शिष्य की परंपरा के तहत चला आया है, "षटखंडागम" तथा "क्रिया कलाप" ग्रन्थ में यह कह पाना संभव नहीं है की कौन सा पुराना पाठ है, लेकिन दोनों पाठ शुद्ध पाठ है, "अरुहंताणं" पाठ भगवती सूत्र ग्रन्थ में मिलता है, आचार्य श्री ज्ञान सागर जी महाराज (आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के गुरुवर) मंगलाचरण में तीनो उच्चारण करते थे, आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज "णमो अरहंताणं" पाठ करते है, मुनि श्री सुधा सागर जी "णमो अरिहंताणं" का पाठ करते है, मुनि श्री चिन्मयसागर जी "णमो अरहंताणं" का पाठ करते है!

णमो अरिहंताणं तथा णमो अरहंताणं के मंत्र शक्ति के बारे में मुनि श्री सुधा सागर जी का कहना है........

णमो अरिहंताणं का पाठ: अगर कोई बड़ा कार्य करना हो, पुरुषार्थ जाग्रत करना हो, तेज प्रकट करना हो, सक्रिय होना, ओजस्विता प्रकट करना हो!

णमो अरहंताणं का पाठ: अगर शांत रस (मुद्रा) में जाना हो, निवृत्ति रूप होना हो, अंतरमुख प्रवर्ति होते है!.....यह बात उन्होंने अपने अनुभव से जानी है!

णमो सिद्धाणं: इस पद का उच्चारण हम लोग सही करते है!

णमो आइरियाणं: इस पद में 2 पाठ भेद मिलते है, (1) णमो आइरियाणं (2) णमो आयरियाणं, णमो आयरियाणं पाठ श्वेतांबर बंधुओ में विशेष रूप से चलन में है! हमें "णमो आइरियाणं" का उच्चारण करना चाहिये, कारण:"णमो आइरियाणं" "षटखंडागम" ग्रन्थ का पाठ है! "इ" में मंत्र शक्ति अधिक होती है, "य" की अपेक्षा, कारण "इ" शुद्ध स्वर है, जबकि "य" में व्यंजन के साथ स्वर मिला हुआ है! "आइरियाणं" में "रि" में मात्रा छोटी है तो उच्चारण कम समय में करना है, "रि" को लम्बा नहीं खीचना है!

णमो उवज्झायाणं: इस पद का उच्चारण हम लोग सही करते है!

णमो लोए सव्वसाहूणं: इस पद के उच्चारण करने में हम लोग 2 गलतिया करते है, "लोए" में जो "ए" ये "एडी" & "एक" वाला "ए" है इनको एक मात्रा में बोलना है, "लोए" में "ए" को लम्बा नहीं बोलना, इसको कम समय में बोलना है! अब बात करते है "साहूणं" की, "साहूणं" में "हू" में बड़ी मात्रा है न के छोटी, "साहूणं" में "हू" का उच्चारण दीर्घ करना है!

णमोकार मंत्र की महिमा दर्शाने वाली चुलीका (काव्य).......................
एसो पञ्च णमोयारो, सव्वपावप्पणासणो! मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलम!!
(1) "एसो" में "ए" "एडी" तथा "एक" वाला है ना कि "ऐनक" वाला, जबकि जब हम उच्चारण करते है तो - "ऐसो" करते है, जबकि यह "एसो" है "एक" वाला, "एक" से "ए" का उच्चारण लो तथा "एसो" से "सो" का उच्चारण लो और देखो क्या अंतर है! "एसो" का अर्थ "ऐसा" नहीं होता है! "एसो" का अर्थ "यह" होता है!

(2) "णमोयारो" इसके पाठ भेद है "णमोयारो" "णमोक्कारो" तथा "णमुक्कारो", दिगम्बर में "णमोयारो" तथा, श्वेतांबर बंधुओ में "णमुक्कारो",व्याकरण से दोनों शुद्ध है, इसमें विवाद वाली कोई बात नहीं है, दोनों का अर्थ एक ही है!

(3) सव्वपावप्पणासणो: इस को हम लोग जब जल्दी में बोलते है तो कुछ उच्चारण के गलतिया करते है! वैसे अगर आपको व्याकरण के जानकारी है तो बताना सही होगा सव्वपावप्पणासणो में "सव्व" यहाँ पर स्वराघात नहीं करना है "पावप्प" यहाँ स्वराघात करना है!

(4) "पढमं" इसके उच्चारण पर विशेष ध्यान देने वाली बात है, क्योंकि "पढमं" में "ढ़" है न की "ड" ये "डमरू" वाला "ड" नहीं है, "ढोलक" "ढक्कन" वाला "ढ" है तो उच्चारण "पढमं" करे न की "पडमं", "पडमं" में "ड" का उच्चारण थोडा सोफ्ट है जबकि "पढमं" में "ढ़" का उच्चारण हार्ड है, "ढोलक" बोलो तथा "पढमं" बोलो क्या "पढमं" में "ढ़" का उच्चारण "ढोलक" वाला आ रहा है!

(5) "हवइ" के भी 2 उच्चारण होते है "होई" तथा "हवइ", "हवइ" उच्चारण ठीक है!

हम लोगो को उच्चारण करते समय ध्यान रखना होगा, इस के लिए सिर्फ 21 दिन हम कोशिश करे सही उच्चारण करने की फिर अपने आपही सही उच्चारण आएगा, उच्चारण में गलतिया करने से मात्राये कम या ज्यादा हो जाती है, हमें उच्चारण 58 मात्राओ में ही करना चाहिये, जैसे आइरियाणं का "रि" को लम्बा उच्चारण करदो, या लोए का "ए" का उच्चारण लम्बा करदो तो मात्राए 58 या 60 हो जायेंगी! क्योंकि हमारे को आदत पडी हुए है! तो शुरुवात में सावधान रहने की जरुरत होगी उच्चारण तो ठीक करने के लिए!

ये लेख क्षुल्लक ध्यानसागर जी महाराज (आचार्य विद्यासागर जी महाराज से दीक्षित शिष्य) के प्रवचनों के आधार पर लिखा गया है! टाइप करने में मुझसे कही कोई गलती हो गई हो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ! –Nipun Jain

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आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के 71वें जन्मदिवस पर रवीन्द्र भवन में हुए "आत्मन्वेषी' नाटक के मंचन की झलकियाँ

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