18.10.2016 ►TMC ►Terapanth Center News

Published: 18.10.2016
Updated: 18.10.2016

Update

🔘 हैदराबाद
★ जैन विद्या परीक्षा।
🔘 विजयनगर
★ "चौबीसी" पर कार्यशाला आयोजित।
🔘 दिल्ली
★ अणुव्रत नैतिक गीत गायन प्रतियोगिता।

17.10.2016
प्रस्तुति > #तेरापंथ मीडिया सेंटर
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News in Hindi

🌎 आज की प्रेरणा 🌎
प्रवचनकार - *आचार्य श्री महाश्रमण*
प्रस्तुति - अमृतवाणी 📺
संप्रसारण - संस्कार चैनल के माध्यम से:-
आर्हत वाड्मय में कहा गया है - धीर पुरुष अग्र और मूल का विवेचन करें, विवेक करें | ऊपरी भाग के साथ साथ भीतर की ओर भी हमारा ध्यान जाना चाहिए | कार्य और कारण की खोज होनी चाहिए | इसके लिए कार्य-कारणवाद को समझना जरूरी है | आयारो में मनुष्य और वनस्पति की तुलना की गई है | हमें जड़ तक जाना होगा, कारण तक जाना होगा | कारण का निवारण हो जाना ही स्थाई हल है| कुत्ते की वृति और शेर की वृति | कुत्ता कार्य तक ही सीमित रहता है जबकि शेर कारण तक पहुँच जाता है | हम हिंसा करते है पर उसका कारण क्या है हम तीन चीजों पर ध्यान दें - पाप स्थान, पाप की प्रवृति और तीसरा पाप कर्म का बंध | इन तीनों को कार्य कारण से जोड़ें | पाप कर्म के बंध का कारण पाप की प्रवृति और उससे भी आगे जाएँ तो पाप स्थान अर्थात पाप का हेतु | संस्कार कारण और आचरण कार्य होता है | बच्चों में ईमानदारी, नशा मुक्ति व सच्चाई के संस्कार आयें | कार्य और कारण का विवेक आध्यात्म में भी सहायक होता है |

दिनांक - १८ अक्टूबर २०१६,मंगलवार

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प्रवचनकार - *आचार्य श्री महाश्रमण*
प्रस्तुति - अमृतवाणी 📺
संप्रसारण - संस्कार चैनल के माध्यम से:-
आर्हत वाड्मय में कहा गया है - धीर पुरुष अग्र और मूल का विवेचन करें, विवेक करें | ऊपरी भाग के साथ साथ भीतर की ओर भी हमारा ध्यान जाना चाहिए | कार्य और कारण की खोज होनी चाहिए | इसके लिए कार्य-कारणवाद को समझना जरूरी है | आयारो में मनुष्य और वनस्पति की तुलना की गई है | हमें जड़ तक जाना होगा, कारण तक जाना होगा | कारण का निवारण हो जाना ही स्थाई हल है| कुत्ते की वृति और शेर की वृति | कुत्ता कार्य तक ही सीमित रहता है जबकि शेर कारण तक पहुँच जाता है | हम हिंसा करते है पर उसका कारण क्या है हम तीन चीजों पर ध्यान दें - पाप स्थान, पाप की प्रवृति और तीसरा पाप कर्म का बंध | इन तीनों को कार्य कारण से जोड़ें | पाप कर्म के बंध का कारण पाप की प्रवृति और उससे भी आगे जाएँ तो पाप स्थान अर्थात पाप का हेतु | संस्कार कारण और आचरण कार्य होता है | बच्चों में ईमानदारी, नशा मुक्ति व सच्चाई के संस्कार आयें | कार्य और कारण का विवेक आध्यात्म में भी सहायक होता है |

दिनांक - १८ अक्टूबर २०१६,मंगलवार

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आर्हत वाड्मय में कहा गया है - धीर पुरुष अग्र और मूल का विवेचन करें, विवेक करें | ऊपरी भाग के साथ साथ भीतर की ओर भी हमारा ध्यान जाना चाहिए | कार्य और कारण की खोज होनी चाहिए | इसके लिए कार्य-कारणवाद को समझना जरूरी है | आयारो में मनुष्य और वनस्पति की तुलना की गई है | हमें जड़ तक जाना होगा, कारण तक जाना होगा | कारण का निवारण हो जाना ही स्थाई हल है| कुत्ते की वृति और शेर की वृति | कुत्ता कार्य तक ही सीमित रहता है जबकि शेर कारण तक पहुँच जाता है | हम हिंसा करते है पर उसका कारण क्या है हम तीन चीजों पर ध्यान दें - पाप स्थान, पाप की प्रवृति और तीसरा पाप कर्म का बंध | इन तीनों को कार्य कारण से जोड़ें | पाप कर्म के बंध का कारण पाप की प्रवृति और उससे भी आगे जाएँ तो पाप स्थान अर्थात पाप का हेतु | संस्कार कारण और आचरण कार्य होता है | बच्चों में ईमानदारी, नशा मुक्ति व सच्चाई के संस्कार आयें | कार्य और कारण का विवेक आध्यात्म में भी सहायक होता है |

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