15.10.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 15.10.2016
Updated: 05.01.2017

Update

कल शरद पूर्णिमा हैं ओर जैन जगत की दो महान व्यक्तित्व का जन्म दिवस हैं, कल आर्यिका ज्ञानमती माता जी का जन्म दिवस तथा आचार्य विद्यासागर जी का जन्म दिवस हैं:)

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*शंका समाधान - 15 Oct.' 2016*
*======================*

*१. स्वभाव तर्क का विषय नहीं है! आगम में अदृश्य बातों को मानना ही आज्ञा सम्यक दर्शन कहा गया है!*

२. कर्म, भूत (भ्रम), और डर की प्रकृति कुत्ते के भांति होती है, इनसे डरोगे तो ये आप पर हावी होने की कोशिश करते हैं, हो जाते हैं! इनको भाव ना देकर अपने सिद्धांतों पर अटल रहिये तो ये चीजे आपका कुछ भी नहीं बिगड़ सकते!

३. *साधू के पीछे कमंडल को उनकी समाधी के बाद भी कभी भी जलाना नहीं चाहिए! ये अनर्थ का कारण बनता है!*

४. अनुष्ठान घर पर नहीं करना चाहिए, मंदिर में करके शेषाक्षत घर पर ले जाकर डालने चाहिए, इससे घर में पवित्रता बढ़ती है!

५. पुराणों में कथन आता है की पहले युद्ध के समय संधि काल में युद्ध रोक दिया जाता था क्योंकि जो सैनिक व्रती हैं संधि काल उनके सामायिक का समय होता था! इससे पता लगता है *प्रतिमाधारी व्रती श्रावक भी सैनिक बन सकता है! आगम जैन सैनिकों की कथाओं से से भरे पड़े हैं!* यहाँ तक की पंचम काल में भी ये परंपरा थी जैसे की चामुंडराय. भामाशाय आदि लोगो ने कई युद्ध लड़े और कट्टर जैन थे! जैनो के सैनिक बनने में कोई बाधा नहीं है!

६. *आप धर्म नहीं कर पा रहे इसको अपनी दुर्बलता मानिये* और जब तक धार्मिक क्रियायों में रूचि नहीं हो पा रही तब तक कम से कम अधर्म से अपने आप को बचा कर रखिये!

७. व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु उसका अपना मोह ही है नाकि उसका परिवार या संसार!

८. आज जो हम भोग रहे हैं वो इस जन्म के और असंख्य भव पहले बांधें हुए कर्म भी हो सकते हैं! लेकिन अगर आत्म शक्ति जाग जाती है और विशुद्धि बढ़ती है तो इन कर्मो की सत्ता हिल जाती है! *आप चाहे तो ऐसे कर्मों को जो अनंत काल बाद उदय में आने वाले हो उनको भी अभी ही समाप्त कर सकते हैं, गला सकते हैं*, dilute कर सकते हैं और तो और उनको convert भी कर सकते है यानि की पाप को पुण्य में बदल सकते हैं!

९. *दिगंबर होने मात्र से मोक्ष नहीं मिलता, ऐसी धारणा भ्रम है! मोक्ष वीतरागता से मिलता है, और यह, बिना दिगंबर हुए नहीं हो सकता!*

*- प. पू. मुनि श्री 108 सुधा सागर जी महाराज एवं श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज*

*शंका समाधान - 15 Oct.' 2016*
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*१. स्वभाव तर्क का विषय नहीं है! आगम में अदृश्य बातों को मानना ही आज्ञा सम्यक दर्शन कहा गया है!*

२. कर्म, भूत (भ्रम), और डर की प्रकृति कुत्ते के भांति होती है, इनसे डरोगे तो ये आप पर हावी होने की कोशिश करते हैं, हो जाते हैं! इनको भाव ना देकर अपने सिद्धांतों पर अटल रहिये तो ये चीजे आपका कुछ भी नहीं बिगड़ सकते!

३. *साधू के पीछे कमंडल को उनकी समाधी के बाद भी कभी भी जलाना नहीं चाहिए! ये अनर्थ का कारण बनता है!*

४. अनुष्ठान घर पर नहीं करना चाहिए, मंदिर में करके शेषाक्षत घर पर ले जाकर डालने चाहिए, इससे घर में पवित्रता बढ़ती है!

५. पुराणों में कथन आता है की पहले युद्ध के समय संधि काल में युद्ध रोक दिया जाता था क्योंकि जो सैनिक व्रती हैं संधि काल उनके सामायिक का समय होता था! इससे पता लगता है *प्रतिमाधारी व्रती श्रावक भी सैनिक बन सकता है! आगम जैन सैनिकों की कथाओं से से भरे पड़े हैं!* यहाँ तक की पंचम काल में भी ये परंपरा थी जैसे की चामुंडराय. भामाशाय आदि लोगो ने कई युद्ध लड़े और कट्टर जैन थे! जैनो के सैनिक बनने में कोई बाधा नहीं है!

६. *आप धर्म नहीं कर पा रहे इसको अपनी दुर्बलता मानिये* और जब तक धार्मिक क्रियायों में रूचि नहीं हो पा रही तब तक कम से कम अधर्म से अपने आप को बचा कर रखिये!

७. व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु उसका अपना मोह ही है नाकि उसका परिवार या संसार!

८. आज जो हम भोग रहे हैं वो इस जन्म के और असंख्य भव पहले बांधें हुए कर्म भी हो सकते हैं! लेकिन अगर आत्म शक्ति जाग जाती है और विशुद्धि बढ़ती है तो इन कर्मो की सत्ता हिल जाती है! *आप चाहे तो ऐसे कर्मों को जो अनंत काल बाद उदय में आने वाले हो उनको भी अभी ही समाप्त कर सकते हैं, गला सकते हैं*, dilute कर सकते हैं और तो और उनको convert भी कर सकते है यानि की पाप को पुण्य में बदल सकते हैं!

९. *दिगंबर होने मात्र से मोक्ष नहीं मिलता, ऐसी धारणा भ्रम है! मोक्ष वीतरागता से मिलता है, और यह, बिना दिगंबर हुए नहीं हो सकता!*

*- प. पू. मुनि श्री 108 सुधा सागर जी महाराज एवं श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज*

News in Hindi

Wao.. संयोग की बात हैं..कल जब आचार्यश्री विद्यासागर महाराज जी के चरणों मे पधारकर भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी आशिर्वाद ले रहे थे ऊसी शाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी के छोटे भाई श्री प्रल्हाददास मोदीजी खातेगांव (म.प्र.) मे मुनिश्री समता सागर महाराज जी के पास ऊपस्थित होकर आशिर्वाद ले रहे थे, इस अवसर पर जैन समाज ने प्रल्हाददास मोदीजी का सन्मान किया मुनिश्री ने ऊपस्थित जैन- जैनेत्तर बंधुओ को आशिर्वचन प्रधान किये:) Ek SHARE to Banta hain..

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