06.10.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 06.10.2016
Updated: 05.01.2017

Update

❖ ❖ A Genuine appeal - आज सुबह एक छोटा बालक साईकिल पर ढेर सारी झाड़ू लेकर बेचने निकला था। -maximum share please! #Diwali #Dusshara

मैंने देखा कि वह 10 रुपए की दो झाड़ू बेच रहा था
और बच्चा समझकर लोग उससे उन दस रुपयों में भी
मोलभाव करके, दस रुपए की तीन झाड़ू लेने परआमादा थे
मैंने भी उससे दो झाड़ू खरीद लीं, लेकिन जाते- जाते उसे सलाह दे डाली कि वह
10 रुपए की दो झाड़ू कहने की बजाय 12 रुपए की दो झाड़ू कहकर बेचे..

और सिर्फ़ एक घंटे बाद जब मैं वापस वहाँ से गुज़रा तो उस बालक ने मुझे बुलाकर धन्यवाद दिया..
क्योंकि अब उसकी झाड़ू "10 रुपए में दो" बड़े आराम से बिक रही थी…।

मित्रों, यह बात काल्पनिक नहीं है…। बल्कि मैं तो आपसे भी आग्रह करता हूँ कि दीपावली का समय है, सभी लोग खरीदारियों में जुटे हैं,
ऐसे समय सड़क किनारे धंधा करने वाले इन छोटे- छोटे लोगों से मोलभाव न करें…। मिट्टी के दीपक, लक्ष्मी जी फोटो, खील- बताशे, झाड़ू, रंगोली (सफ़ेद या रंगीन), रंगीन पन्नियाँ इत्यादि बेचने वालों से क्या मोलभाव करना??

जब हम टाटा-बिरला-अंबानी-और विदेशी कपनियों के किसी भी उत्पाद में मोलभाव नहीं करते (कर ही नहीं सकते), तो दीपावली के समय
चार पैसे कमाने की उम्मीद में बैठे इन रेहड़ी-खोमचे-ठे ले वालों से "कठोर मोलभाव" करना एक प्रकार का अन्याय ही है.. Please share it if you agree!

The write-up sharing by Mr. Deepak Jain [ Gurgaon, India ] Based on his experience - big thanks to him for sharing about noble cause..

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Source: © Facebook

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Startup / Entrepreneurship Summit at YJA 2016

दिनांक: 08.10.2016
समय: अपरान्ह 01:00 बजे से सायं 04:45 तक
स्थान: गोम्मटगिरी, इंदौर

इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए कृपया निम्नलिखित नियम ध्यान से पढ़ें:

1. यह सम्मेलन केवल इंदौर में पढ़ने वाले जैन विद्यार्थियों के लिए है।

2. सम्मेलन में प्रवेश केवल आमंत्रण पत्र (ईमेल, sms) के माध्यम से ही मिलेगा।

3. सम्मेलन में भाग लेने के लिए रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरना अनिवार्य है हालाँकि मात्र फॉर्म भरने से ही आपकी सम्मेलन में भाग लेने की पात्रता सुनिश्चित नहीं हो जायेगी।

4. स्थान उपलब्धता के आधार पर रजिस्टर्ड युवाओं को ईमेल / sms के माध्यम से आमंत्रण पत्र भेजे जाएंगे जिन्हें साथ लाना अनिवार्य होगा।

5. आधे भरे हुए/ अस्पष्ट जानकारी वाले रजिस्ट्रेशन फॉर्मों पर विचार नहीं किया जायेगा।

6. सम्मलेन में प्रवेश देने का अधिकार आयोजन समिति के पास सुरक्षित रहेगा।

7. फार्म भरने के लिए कृपया नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें:

https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSdtWXWN2httflYfayaqy-ZZRrOzKffFchjvF5fNVEoeqGeGWg/formResponse

Entrepreneur Summit @ YJA'16
All India Young Jain Award 2016

News in Hindi

❖ यदि कोई सुधरना नहीं चाहता तो उसको ब्रह्मा भी नहीं बदल सकते, दुराग्रही व्यक्ति को कोई भी बदल नहीं पाता -क्षुल्लक श्री ध्यानसागर जी

व्यसन अगर बीमारी है तो बीमारी साध्य है इलाज संभव है, यदि व्यसनी को बीमार समझकर उसकी आलोचना न करते हुए, उसको नीचा न दिखाते हुए उस पर दया की जाए और दया कर के उसे सुधरने का अवसर दिया जाए और उपाय बताया जाए तो उसका सुधार संभव है।

उपदेश आदेशात्मक हो तो व्यक्ति को हीन महसूस होता है और उसे मार्ग कठिन प्रतीत होता है इससे सुधार जटिल हो जाता है।
किसी को झलिल करने से उसकी आत्मशक्ति नहीं बढ़ती..
किसी को निचा दिखाने से उसमे स्फूर्ति नहीं आ सकती
इसीलिए सर्वप्रथम किसी को सुधारने के लिए खुद में सुधार होना आवश्यक है। उसके बाद ही हम किसी अन्य व्यक्ति को सुधार सकते है और इस प्रक्रिया को प्रारंभ करने से एक निर्मल भविष्य देखने मिल सकता है।

ऊर्जा(energy) और रसायन(chemical) असंतुलित होने से व्यक्ति बीमार पढता है।अगर यह दोनों चीज़े संतुलित हो जाए तो अपनी भावनाओं, विचारों और बर्ताव में संतुलन आ जाता है, स्वास्थ्य लाभ होता है और इस प्रकार ख़ुद संतुलित होने पर हम दूसरों में सुधार ला सकते है।

सुधार की इकाई हम ख़ुद है।

* करुणा भाव सुधार के लिए सर्वप्रथम आवश्यक है।
* निंदा से नहीं सद्भावना से ही कल्याण होता है।
* एक साधु के प्रेम से हत्यारा भी साधु बन सकता है...और
एक गृहस्थ की घृणा से साधु भी असाधु बन सकता है।
* ह्रदय में सद्भावना होगी, करुणा भाव होगा तभी अपने अंदर सेवा की भावना आएगी और उस भावना से उसका सुधार प्रांरभ होगा।
* व्यसन रोगी के प्रति सद्भावना ही सुधार में सबसे महत्व पूर्ण है जो व्यसनी को भी आशा जगाएगी।
* अपना बनाकर जब किसी को सुधारते है तो उसके अन्दर सुधरने की भावना जागृत होती है। पराया बनकर यह संभव नहीं ।
* भावनाओ को पवित्र करना ही लक्ष्य है।

* जिस क्रिया में अपना स्वार्थ हो और दुसरो को पीड़ा पहोंचती हो उसे पाप कहा जाता है।

* उपदेश सुनने मात्र से कार्य नहीं होता, उसे सुनकर समझा जाता है, आचरण किया जाता है तब जाकर अपने अंदर और वातावरण में पवित्रता आती है। - संत श्री ध्यानसागर

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