28.09.2016 ►Acharya Mahashraman Ahimsa Yatra

Published: 28.09.2016
Updated: 29.09.2016

अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्त

नास्तिक भी बन सकता है अणुव्रती: आचार्यश्री

-अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का तीसरा दिन
-आचार्यश्री ने लोगों को अणुव्रती बनने के लिए किया उत्प्रेरित
-मुख्यमुनिश्री ने श्रद्धालुओं को बताई अणुव्रत की आचार संहिता


28.09.2016 गड़ल (असम)ः बुधवार को चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को अहिंसा यात्रा के प्रणेता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह’ के तीसरे दिन यानी ‘अणुव्रत प्रेरणा दिवस’ पर अणुव्रती बनकर अपने अपने जीवन का कल्याण करने की प्रेरणा प्रदान की। वहीं मुख्यमुनिश्री ने भी लोगों को अणुव्रत की आचार संहिता का अनुपालन कर आत्म कल्याण के लिए उत्प्रेरित किया।
    अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को उद्बोधित करते हुए कहा कि जैन शासन में दो प्रकार का धर्म बताया गया है। पहला अनगार धर्म और दूसरा अगार धर्म। घर का परित्याग कर धर्म की साधना करने वाले अनगार होते हैं और घर-परिवार में रहते हुए धर्माराधना करने वाले अगार होते हैं। जो घर-गृहस्थी में रहने वाले हैं उनके लिए अणुव्रत के नियम ज्यादा लाभदायी हो सकते हैं। श्रावक यदि बारह व्रतों को स्वीकार कर उसका उचित अनुपालन करे तो वह आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
    अणुव्रत के नियम केवल तेरापंथ समाज या जैनियों के लिए ही नहीं अपितु प्रत्येक जाति, धर्म, संप्रदाय के लिए है। अणुव्रत जन-जन के लिए कल्याणकारी है। इसके नियम आदमी को अहिंसा, सत्य, नैतिकता व नशामुक्ति की प्रेरणा देने वाले होते हैं। अणुव्रत के दरबार में तो नास्तिक का भी स्वागत है। जो नास्तिक हो वह भी अणुव्रत के नियमों का पालन कर अपने जीवन को सफल बना सकता है। इसमें किसी धर्म को मानने की आवश्यकता नहीं, बल्कि जीवन जीने के तरीके में परिवर्तन लाने की आवश्यकता मात्र है। अणुव्रत संयम का पथ दिखाने वाला है। आदमी अहिंसा और संयम से जुड़ अणुव्रत के नियमों की अनुपालना कर सकता है। आदमी सबके प्रति मैत्री का भाव रखे, नैतिकता का अनुपालन करे तो अपने जीवन और आत्मा का कल्याण कर सकता है। आचार्यश्री ने लोगों को अभिप्रेरित करने के लिए ‘संयममय जीवन हो’ गीत का आंशिक संगान भी किया।
    मुख्यमुनिश्री ने अणुव्रत को एक नैतिक आंदोलन बताते हुए कहा कि देश की आजादी के बाद आरंभ हुआ आंदोलन आज पूरे विश्व में फैल गया है। आज अनैतिकता पूरे विश्व के लिए एक समस्या बनी हुई है। आदमी दिखावटी धर्म करते हैं, धर्म तो वह जो आदमी के जीवन में परिवर्तन लाए। अणुव्रत की आचार संहिता लोगों के जीवन का कल्याण कर सकती है। अणुव्रत की आचार संहिता व्यक्ति के जीवन को ऊंचा उठाने वाली है और उन्नति का मार्ग प्रशस्त करने वाली होती है। आचार्यप्रवर द्वारा की जा रही अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्य-सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति भी अणुव्रत के नियमों के अंग हैं। इन्हें स्वीकार कर भी आदमी अपना कल्याण कर सकता है। मुख्यमुनिश्री ने ‘लो लो लो अणुव्रत लो’ गीत का सुमधुर स्वर में संगान कर श्रद्धालुओं को उत्प्रेरित किया।  
चन्दन पाण्डेय

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