15.09.2016 ►Muni Tarun Sagar ►News

Published: 15.09.2016
Updated: 16.09.2016

Update

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जैन धर्म के महान पर्व अनंत चतुर्दशी की आप सभी को अनंत शुभकामनाएं ।।।
देखिये अनंत चतुर्दशी पर पापों के प्रक्षालन करने का सबसे बड़ा स्तोत्र श्रावक प्रतिक्रमण का सीधा प्रसारण पारस चैनल पर शाम 5 बजे से गुरुदेव के सानिध्य में ।।।

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संयमित व्यवहार के साथ आत्मा में रमण की प्रवृत्ति को उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म कहा गया है। इस अवस्था में काम पिपासा की ओर दृष्टि नहीं होती। ब्रह्मचर्य इंद्रियों पर पूर्ण विजय का ज्वलंत उदाहरण है। कामजन्य व्याधियों से बचने के लिए ब्रह्मचर्य धारण करना उत्तम उपाय है। इसके परिपालन से शारीरिक क्षमताओं सहित तेजस्वी व्यक्तित्व प्राप्त होता है।

ब्रह्मचर्य की गरिमा को इस श्लोक में चित्रित किया गया है-

जो परिहरेदि संगं, महिलाणं णेव पस्सदे रूवं। कामकहादिणियत्तो णवहा बंभं हवे तस्स॥

अर्थात जो लालसा की दृष्टि से रूप को नहीं निहारता, महिलाओं की संगति में रुचि नहीं लेता, काम-वासना के कथा-किस्सों में रत नहीं रहता, जो मन, वचन, काया के कर्त्तव्यों का निर्वाहन करते हुए संस्कारों का आदर करता है, ऐसे आदर्श व्यक्तित्व के धनी पुरुष को उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म का पुण्य लाभ होता है।

ब्रह्मचर्य एक ऐसा धर्म है जिसकी पवित्रता, पावनता और स्वच्छता से कोई इनकार नही कर सकता । विश्व के समस्त धर्मों में ब्रह्मचर्य को एक पावन और पवित्र धर्म माना गया है । इसके चमत्कार से सभी प्रभावित है । जीवन के ऊँचे से ऊँचे ध्येय को प्राप्त करने के लिए ब्रह्मचर्य से बढ़कर अन्य कोई साधन क्या हो सकता है?

एक सच्चे ब्रह्मचारी में अपार बल अमित शक्ति और प्रचण्ड पराक्रम का भंडार प्रकट हो जाता है ।

ब्रह्मचर्य कामद मणि है । ब्रह्मचर्य से ही लौकिक तथा परलौकिक उन्नति सम्भव है । ब्रह्मचर्य धारण करके ही सत्य रूपी हीरा मिल सकता है । ब्रह्मचर्य से ही स्वरूप ज्ञान में स्थिति हो सकती है । ब्रह्मचर्य समस्त मानवीय उन्नतियों की रीढ़ है ।

ब्रह्मचर्य पालन से तनबल और आत्मबल बढ़ता है । ब्रह्मचारी पुरुष निर्भीक, सत्साहसी और अप्रमादी होते हैँ । उनमें अद्भुत सौन्दर्य, माधुर्य, विलक्षण प्रतिभा, अदम्य उत्साह प्रभृति सभी दिव्य गुण कूट-कूट कर भरे रहते हैं। वे ओजस्वी, तेजस्वी, मनस्वी, वर्चस्वी, यशस्वी और दृढ़निश्चयी होते हैं ।

उत्तम ब्रह्मचर्य पूजा में लिखा है --

शील बाडि नौ राख, ब्रह्म भाव अंतर लखो ।
करी दोनों अभिलाख, करहूँ सफल नरभव सदा!!

अपनी आत्मा के स्वभाव को अन्तरंग में देखना-जो अपने आत्म स्वभाव में रमण, उत्तम ब्रह्मचर्य है । आत्मा में रमणता अर्थात लीनता ही ब्रह्मचर्य है। मोक्ष की प्राप्ति ही सच्चे सुख की प्राप्ति है और यह धर्म दस धर्मो का सार है। अत: इससे ही मुक्ति संभव है।

ॐ ह्रीं अर्हं श्री उत्तम ब्रह्मचर्य धर्मांगाय नमः।।

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_इतनी मेहरबानी_
_मेरे ईश्‍वर बनाये रखना,_
_जो रास्ता सही हो_
_उसी पर चलाये रखना।_
_ना दुखे दिल किसी का_
_मेरे शब्दो से,_
_इतना रहम तू मेरे भगवान_
_मुझपे बनाये रखना_

🙏अन्नत चतुर्दशी एवंम क्षमावाणी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏

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