02.09.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 02.09.2016
Updated: 05.01.2017

Update

#KshamaSagar #VidyaSagar #MaitreeSamooh #Sanskar #Jain #Sant #AnokhaSant
संत शिरोमणि आचार्य 108 श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य समाधिस्थ 108 मुनिश्री क्षमासागर महाराज के मार्मिक प्रवचनों की श्रृंखला का प्रसारण ०३ सितम्बर २०१६ से १६ सितम्बर २०१६ तक जिनवाणी चैनल पर दोपहर ०२:०० बजे से किया जाएगा।

कल दिनाँक ०३ सितम्बर का प्रसारण समय दोपहर ०२:०० बजे - जिनवाणी चैनल पर🙏🏻🙏🏻🙏🏻

प्रस्तुति: मैत्री समूह
www.MaitreeSamooh.com

Mobile - 94254 24254, 76940 05092
Whatsapp - 99994 53770

Source: © Facebook

🔯 क़ातिल भी इंसान बने
पाकर जिनका प्यार,
संत न होते जगत् में
जल जाता संसार...
निगाहों में माँ का प्यार
होठो पे बच्चों की मुस्कान
और दिल में रहम का दरिया
संत की तस्वीर है।
नेकी ही संत की जिंदगी है।

-पूज्य क्षुल्लक श्री ध्यानसागर महाराजजी

#Dhyansagar #Vidyasagar #Digambar #Jain #Jainism #Dharma #Saint #Sadhu #Hastinapur

आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज के समाधि दिवस और परम पूज्य मुनि श्री 108 क्षमासागर जी महाराज के मुनि दीक्षा दिवस (भाद्रपद शुक्ल दोज, २०/८/१९८०) के पावन अवसर पर दिनांक 3 सितम्बर 2016 को हम सब यथा संभव धर्म ध्यान - विधान, पूजा, जाप, दान आदि करेंगे.

इसी दिन आचार्यश्री और मुनिश्री को नमन कर Young Jaina Award (यंग जैना अवार्ड 2016) की तैयारी शुरू करेंगे. धर्म ध्यान, अथिति सत्कार और युवा पीढ़ी को धर्म से जोड़ने के इस आयोजन के निर्विघ्न संपन्न होने की प्रार्थना भी करेंगे.

#YJA #YoungJainaAward #MaitreeSamooh #Sanskar #Jain #DeekshaDivas

Source: © Facebook

#Gujarat #Jainism #Tirthankar #Paryushan #Duslakshan:)

Source: © Facebook

News in Hindi

शंका समाधान
==========

१. पाप की शुरुवात मन से हो जाती है लेकिन अपराध उसे कहते हैं जब वो पाप बाहर प्रकट भी हो जाये! पाप का फल तो निश्चित भोगना ही पड़ता है आज नहीं तो कल, जबकि अपराध का दंड तभी मिलता है जब वो सिद्ध हो जाये और ये बाहर में स्थूल रूप से दिखता है! लोग बाहर दिखने वाले अपराध और उसके दंड से तो डरते हैं लेकिन अगर अंदर के पाप से भी डरने लगे तो उद्धार हो जाये!

२. धर्म तो एक ही है वो तो वस्तु का स्वाभाव है इसीलिए धर्म में एकता लाने का प्रश्न ही ठीक नहीं है! एकता तो धर्मियों में होनी चाहिए, इसी के लिए प्रयास होने चाहिए!

३. पाप भीरुता (पाप के प्रति डर) के बिना धर्म का आविर्भाव होना संभव नहीं है!

######## IMPORTANT ########

४. सम्यक दर्शन, ज्ञान और चारित्र की आत्मा से बाहर भिन्न परिणति को भेद रत्नत्रय कहते हैं और यह प्रवृत्ति रूप होता है! जबकि सम्यक दर्शन, ज्ञान और चारित्र की आत्मा के द्वारा आत्मा के लिए आत्मा के ही अंदर की लीनता अभेद रत्नत्रय कहलाता है जोकि निर्व्रत्ति रूप होता है! भेद रत्नत्रय व्यवहार और सराग रूप होता है जबकि अभेद रत्नत्रय निश्चय और वीतराग रूप होता है! आज के समय में भेद रत्नत्रय ही होना संभव है क्योंकि अभेद रत्नत्रय परम शुद्धोपयोग, ध्यान की अवस्था में ही होता है जोकि मोक्ष का कारण बनता है!

अभेद रत्नत्रय से ही भेद रत्नत्रय पाया जा सकता है! जैसे हलवा बनाते समय कड़ाई में आटा, घी और शक्कर को पहले अलग - अलग मिलाया जाता है फिर अग्नि के द्वारा तपने पर वो तीनों एकमेक होकर हलवा बन जाता है; वैसे ही पहले दिगम्बरत्व / साधुत्व की कड़ाई पर भेद रत्नत्रय को मिलकर तप की अग्नि द्वारा तपाने पर निश्चय रुपी अभेद रत्नत्रय की प्राप्ति हो जाती है!

##########################

५. विकल्प से बचना मुश्किल है तो कम से कम विकल्पों में उलझें तो नहीं! विकल्प जाल से बचने के लिए ही मुनि बना जाता है!

६. वैयावृत्ति महान तप है! श्री कृष्ण ने वैयावृत्ति से ही तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया! साधू की वैयावृत्ति करने के लिए कभी ये ना देखे की साधू का ज्ञान कितना है या उनका कितना प्रभाव है, उनकी खूब सेवा और वैयावृत्ति करें! यह महान सातिशय पुण्य का कारण बनता है!

७. जिन लोगो को रोज जिन दर्शन नहीं मिल पाता वो रोज सुबह उठ कर प्रार्थना करे की मैं कितना अभागा हूँ की जिन दर्शन के बिना ही आज भोजन का निवाला खाना पड़ेगा; हे प्रभु या तो मेरा घर मंदिर जी के पास हो जाये या फिर घर के पास मंदिर बन जाए! सच्ची भावना से आपका पाप निश्चित ही पुण्य में परिवर्तित हो जायेगा!

८. उपयोग को नियंत्रित करके आत्मा पर ही केंद्रित करके पुण्य और पाप से ऊपर उठ कर सर्व विकल्पों का त्याग करके ही मुक्ति संभव है!

- प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज

Source: © Facebook

Sources
Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Digambar
      • Acharya Vidya Sagar
        • Share this page on:
          Page glossary
          Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
          1. Dharma
          2. Digambar
          3. Gujarat
          4. Hastinapur
          5. JAINA
          6. Jaina
          7. Jainism
          8. Paryushan
          9. Sadhu
          10. Sanskar
          11. Sant
          12. Tirthankar
          13. Vidyasagar
          14. YJA
          15. आचार्य
          16. कृष्ण
          17. ज्ञान
          18. तीर्थंकर
          19. दर्शन
          20. पूजा
          21. मुक्ति
          22. सागर
          Page statistics
          This page has been viewed 822 times.
          © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
          Home
          About
          Contact us
          Disclaimer
          Social Networking

          HN4U Deutsche Version
          Today's Counter: