19.08.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 19.08.2016
Updated: 05.01.2017

Update

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Admin has saw a dream in which I am doing darshan of Acharya shri VidyaSagar Ji and entire sangh and having intension when the moment will arrive when I ll also part of Acharya Shri sangh as Digambara:)) and I ll follow Jainism and will apply Ratna-traya [ Gem-trio ] at upmost level. one of the thrilling dream and feeling:)

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Mahavir attained omniscience after realising the true nature of reality. His knowledge transcended barriers of space and time, so that he could see the past, present and future concurrently. Self and non-self became evident. All substances in the world, together with all their manifestations, became manifest to him, as clear as a gooseberry held in the palm of one's hand. And all of this was spontaneous, effortless, without conation or the need for sensory perception. #Jainism #JainDharma #Tirthankara #Mahavira

The attainment of omniscience enabled Mahavir to assimilate within himself the mutual relationship between entities and set standards of appropriate behaviour which allowed each living being the space to live in peace and tranquility with all others. He perceived the eternal truths of anekanta (many-sidedness of reality), syadvada (contextual concomitance of each substance in the universe), ahimsa (non-violence), aparigraha (detachment from external substances), acaurya (refraining from taking what does not belong to one) and bramacarya (purity of mind and body) and underlined the key importance of tolerance and mutual respect for harmonious coexistence with all living beings in the universe. He knew that if one waters the roots of a plant, one need not water its flowers, fruits and leaves - hence his tremendous emphasis on tolerance and mutual respect, the cornerstones of a peaceful existence.

Mahavir, victorious in the struggle between self and non-self, realised the importance and uniqueness of the soul, its distinctness from the body, and the nonidentical nature of the body with the soul. Mahavir's supreme detachment from all that existed other than his soul has been beautifully captured by Indian sculpture, which depicts him either in seated or standing position, with eyes half closed, but aware and alert - awake to the self and inattentive to the external world. Mahavir knows himself. Knowing oneself is knowing everything. The primary focus of the omniscient soul is itself.

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(((सुखों की परछाई))) #sudhasagar #Jainism #Story
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एक रानी अपने गले का हीरों का हार निकाल कर खूंटी पर टांगने वाली ही थी कि एक बाज आया और झपटा मारकर हार ले उड़ा.
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चमकते हीरे देखकर बाज ने सोचा कि खाने की कोई चीज हो. वह एक पेड़ पर जा बैठा और खाने की कोशिश करने लगा.
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हीरे तो कठोर होते हैं. उसने चोंच मारा तो दर्द से कराह उठा. उसे समझ में आ गया कि यह उसके काम की चीज नहीं. वह हार को उसी पेड़ पर लटकता छोड़ उड़ गया.
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रानी को वह हार प्राणों सा प्यारा था. उसने राजा से कह दिया कि हार का तुरंत पता लगवाइए वरना वह खाना-पीना छोड़ देगी. राजा ने कहा कि दूसरा हार बनवा देगा लेकिन उसने जिद पकड़ ली कि उसे वही हार चाहिए.
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सब ढूंढने लगे पर किसी को हार मिला ही नहीं. रानी तो कोप भवन में चली गई थी. हारकर राजा ने यहां तक कह दिया कि जो भी वह हार खोज निकालेगा उसे वह आधे राज्य का अधिकारी बना देगा.
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अब तो होड़ लग गई. राजा के अधिकारी और प्रजा सब आधे राज्य के लालच में हार ढूंढने लगे.
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अचानक वह हार किसी को एक गंदे नाले में दिखा. हार दिखाई दे रहा था, पर उसमें से बदबू आ रही थी लेकिन राज्य के लोभ में एक सिपाही कूद गया.
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बहुत हाथ-पांव मारा, पर हार नहीं मिला. फिर सेनापति ने देखा और वह भी कूद गया. दोनों को देख कुछ उत्साही प्रजा जन भी कूद गए. फिर मंत्री कूदा.
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इस तरह जितने नाले से बाहर थे उससे ज्यादा नाले के भीतर खड़े उसका मंथन कर रहे थे. लोग आते रहे और कूदते रहे लेकिन हार मिला किसी को नहीं.
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जैसे ही कोई नाले में कूदता वह हार दिखना बंद हो जाता. थककर वह बाहर आकर दूसरी तरफ खड़ा हो जाता.
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आधे राज्य का लालच ऐसा कि बड़े-बड़े ज्ञानी, राजा के प्रधानमंत्री सब कूदने को तैयार बैठे थे. सब लड़ रहे थे कि पहले मैं नाले में कूदूंगा तो पहले मैं. अजीब सी होड़ थी.
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इतने में राजा को खबर लगी. राजा को भय हुआ कि आधा राज्य हाथ से निकल जाए, क्यों न मैं ही कूद जाऊं उसमें? राजा भी कूद गया.
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एक संत गुजरे उधर से. उन्होंने राजा, प्रजा, मंत्री, सिपाही सबको कीचड़ में सना देखा तो चकित हुए.
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वह पूछ बैठे- क्या इस राज्य में नाले में कूदने की कोई परंपरा है? लोगों ने सारी बात कह सुनाई.
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संत हंसने लगे, भाई! किसी ने ऊपर भी देखा? ऊपर देखो, वह टहनी पर लटका हुआ है. नीचे जो तुम देख रहे हो, वह तो उसकी परछाई है. राजा बड़ा शर्मिंदा हुआ.

हम सब भी उस राज्य के लोगों की तरह बर्ताव कर रहे हैं. हम जिस सांसारिक चीज में सुख-शांति और आनंद देखते हैं दरअसल वह उसी हार की तरह है जो क्षणिक सुखों के रूप में परछाई की तरह दिखाई देता है.
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हम भ्रम में रहते हैं कि यदि अमुक चीज मिल जाए तो जीवन बदल जाए, सब अच्छा हो जाएगा. लेकिन यह सिलसिला तो अंतहीन है.
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सांसारिक चीजें संपूर्ण सुख दे ही नहीं सकतीं. सुख शांति हीरों का हार तो है लेकिन वह परमात्मा में लीन होने से मिलेगा. बाकी तो सब उसकी परछाई है

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Surprising UPDATE must read n share ✿ आचार्यश्री सुनिलसागरजी मुनिराज के वर्षायोग स्थापना कार्यक्रम में एक वाक्या हुआ ✿ #Sunilsagar #Proud

जब वर्षायोग कलश की बोली लग रही थी तब एक भक्त द्वारा मंगल कलश की बोली 24 लाख की बोली गयी तब बोली लगवा रहे संचालनकर्ता ने अपनी मर्जी से ही बोला की आचार्यश्री की इच्छा हे की जिस महानुभाव ने 24 लाख की रकम बोली हे वो ही 25 लाख कर दे......
ऐसा सुनते ही आचार्यश्री मंच संचालक को रोकते/टोकते हुए उससे बड़ी मधुरता से बोले
की श्रीमान पहले आप अपने वचनो पर सत्यता विराजमान करो......क्या आपने जो अभी कहा वह सत्य हे....???
बोली एक रुपये में जाए या दस लाख में या पचास लाख.... में हमे इससे क्या मतलब
हमारी तो बोली में कोई इच्छा अपेक्षा नही हे,
ये तो आप समाजजनों का मतलब है....
बल्कि में तो चाहता हु ये बोली जितनी अभी तक हुई हे उसमें भी दस-बीस लाख कम जाए तो भी अच्छा है, क्या करना हे इतने पैसो का...???
क्या कोई गरीब परिवार को सहायता कर रहे हो.....??? या
क्या कोई कोई स्कुल या चिकित्सालय खोल रहे है......????
नही....तो फिर क्या मतलब....??
हमारे लिए तो स्वाध्याय जैसी क्रियाओ को छोड़कर इन बोलियो में एक मिनिट भी बैठना अनुचित है....
इसलिये ये बोली कितने में भी जाए इससे हमारा कोई सरोकार नही है..

हम अपने पास ऐसा कोई प्रपंच नही रखते जिससे हमे धन की आवश्यकता पडे...!!

इतना सुनते ही संचालक महोदय ने सार्वजनिक रूप से अपनी गलती पर माफ़ी मांगी और बोली 24 लाख में ही 1...2...3... कर दिया.....!!
आचार्यश्री सुनीलसागरजी के नेक एवं अति उत्तम विचारो को सुनकर हजारो की संख्या में मौजूद भक्त गदगद हो गए....!!!

१०८ आचार्यश्री सुनिलसागरजी के पावन चरणों में कोटि-कोटि नमन्....

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मन अपना, अपने विषय में, क्यों न सोचता?

#Vidyasagar #Digambara #Jainism #Dharma #Arihant #Tirthankara #Jina

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सुखी जीवन की खोज #Sudhasagar #Vidyasagar #Digambara #Jainism #Dharma #Arihant #Tirthankara #Jina

व्यक्ति अपनी जिन्दगी को, अपने विचारों को, अपनी इन्द्रियों को और अपनी आत्मा को पराधीन करता चला जा रहा है और उसकी स्वयं की पहचान छूट गयी है । वह दूसरे की पहचान से अपनी जिन्दगी की पहचान मानता है । वह सोचता है कि यदि दूसरे व्यक्ति हमरी जिन्दगि से हट जायें तो हमारा कोई अस्तित्व नहीं रहेगा। धन हट जाये तो धनवान नहीं रहेगा, मकान हट जाये तो मकान वाला नहीं रहेगा,परिवार हट जाये तो परिवार वाला नहीं रहेगा और शरीर हट जाये तो शरीर वाला नहीं रहेगा ।ये सब एक न एक दिन हट्ते है या हम हट जाते हैं । इस प्रसंग को समझने की चेष्टा करना चाहिये । जितने पते हैं वे अस्थाई हैं । इन पतों को तदि लेकर हम संसार में घूमते रहे तो कभी भी हम अपने घर में नहीं पहुंच पायेंगे । हमेशा दूसरे घर में रहेंगे । ऐसी पहचान इस व्यक्ति ने बना ली है ।

एक अज्ञानी व्यक्ति बाजार में गया और बाजार की एक दुकान से वह मिठाईयां खरीदता है और मिठाईयां खरीदने के बाद उसे सौ का नोट देता है लेकिन दुकानदार के पास खुल्ले नहीं थे । उसे कुछ पैसे लौटाने थे । उसने कहा - भाई, बाद में आकर के खुल्ले नोट ले जाना । ग्राहक कहता है ठीक है, ले जाउंगा ः लेकिन में इस बाजार में नया आया हूं, इस दुकान की पहचान क्या है? क्योंकि यहां पर तो बहुत सारी दुकानें हैं । इसकी मैं क्य पहचान बनाऊं कि इस दुकान से मुझे पैसा मिल जाये? यहां -वहां देखा । वह दुकान के अंदर खडा था, दुकान के बाहर खडे होकर देख्ता तो शायद दुकान का साइनबोर्ड पढ लेता, लेकिन वह तो दुकान के अंदर काउन्टर पर खडा है तो उसने बाहर की तरफ देखा, बाहर खडे होकर अंदर को देखोगे तो पहचान अलग दिखेगी और अंदर खडे होकर बाहर की तरफ देखोगे तो पहचान अलग दिखेगी
। वह तो अंदर खडा थ काउन्टर के पास । उसने कहा ठीक है मैं पहचान करके आऊं । उसने देखा तोह नीली गाये उस दुकान के सामने बैठी थी । और बस ठीक ऐसा सोचकर बोलता है ठीक है, - बाद मैं ले जाऊंगा । थोडा बाजार करके आता हूं फिर वापस आऊंगा और मन मैं क्य धारणा बना ली? जहां ये नीली गाये बैठी है वहां उस दुकान से मुझे पैसे लेने हैं । ऐसा सोचकर चला गया । वह शाम को चार - पांच बजे लौट्ता है और लौटने के बाद सोचता है कि किस दुकान से पैसे लेने हैं? जिस दुकान के पास नीली गये बैठी है । अब वह गाये को ढूंढते - ढूंढते बाजार के एक कौने मैं पहुंच गया । वहां उसे वह गाये मिल गयी और वह दुकान के अंदर चला गया और बोला सुबह जो मैनें रुपय दिये थे उसके शेष पैसे वापस दे दो । वह दुकानदार पूछता है क्या लिया था? बोला मिठाईयां ली थीं । दुकानदार कहता है मूर्ख! ये टेलर की दुकान है, तू कहां आ गया? वह व्यक्ति बोला । मेरा निशान गडबड नहीं हो सकता । मैनें उसी से मिठाई ली थी जिस दुकान के सामने ये गाये बैठी थी । मेरे पैसे न लौटाने के लिये तूने दुकान बदल ली । पैसे न लौटाना पडे इसलिये मिठाई की दुकान बदलकर टेलर की दुकान खोलकर सिलाई मशीन रख ली । सब तुम्हारी बदमाशी है, लगता है इस जयपुर, रजस्थान को भी तूने बम्बई का मर्केट बना लिया? ये तो बम्बई के मर्केट में होता है कि चओपाये पर, खाट पर, पलंग पर कपदे रखकर बैठ्जाते हैं और शाम को जाओ तो वो तुम्हें उस स्थान पर मिलने वाला नहीं है क्योंकि वहां ऐसे ही कपदा मिलता है । एक मीटर में सारी साडी को लपेट देंगे ऊपर से बढिया कपडा और अंदर से टुकडे -टुकडे और बिलकुल सील माल सब, आप खोल नहीं सकते । घर जाकर खोलोगेतो दंग रह जाओगे लौटाने आओगे तो देखोगे कि दुकान ही उठ गयी है । अंततः दोनों में झगडा होता है । वह व्यक्ति कहता है कि तूने टेलर की दुकान खोल ली कि मेरे पैसे न लौटाना पदे? मेरे पैसे लौटाओ, मेरा निशान गडबड नहीं, मैनें स्पष्ट देखा कि जिस दुकान के सामने गाये बैठी है उसी दुकान से मुझेपैसे लेने हैं । ८बहुत सारे लोग इकटठे हो गये । सबने कहा कि भाई ये टेलर की दुकान है, आज से नहीं वर्षों से है । मैं देख रहा हूं कि ये टेलर है । वह कहता है कि सभी गांव वाले एक हो गये हो, जातिभाई का पक्ष ले रहे हो, इसलिये तुम हम लोगों को गुमराह करते हो । वह कहता है कि मेरे निशान में गडबड नहीं हो सकती । मैनें देखा था कि मुझे उस दुकान से पैसे लेना है जिस दुकान के सामने गाये बैठी थी ।

अब बोलो गलती मैं कौन है? क्या उस समय गाये नहीं बैठी थी जिस समय पैसा लेना थे? वो झूट तो नहीं बोल रहा है? और क्या टेलर की दुकान वाला व्यक्ति झूठ बोल रहा है कि मैनें दुकान नहीं खोली है, दुकान तो पहले से खुली है, आज मैनें कोई दुकान नहीं खोली है । टेलर भी बिलकुल सही है और वह व्यक्ति भी बिलकुल सही है जो व्यक्ति कह रह है कि मुझे पैसे लेने हैं, उसने निशान भी देखा था कि वहां गाये बैठी थी । गलती इतनी है कि उसने ये नहीं देखा कि ये स्थाई मार्का है कि अस्थाई मार्का है? ये गाये दुकान के सामने रहेगी कि अस्थाई? छोटी सी भूल के कारण से कितना बडा झमेला हो गया? इतनी सी भूल उसने कि उसने स्थाई मार्क नहीं कर पाया । गाय तो उस समय भी थी जिस समय वो दुकानदार को पैसे दिखाता है या देता है और मिठाई खरीदी थी इतना विवेक नहीं रखा कि ये स्थाई है कि अस्थाई? इतना झगडा हुआ कि वो दुकान से हटने को तैयार नहीं और टेलर ने बिना प्रयोजन के रुपय लिये ही नहीं थे तो वह कैसे लौटाता? टेलर को झगडा मोल लेना पडा । उस व्यक्ति को भी पैसे वापस नहीं मिले क्योंकि उस दुकानदार की कोई दूसरी पहचान ही बनाई नहीं थी । वह सोचता है कि अब किस दुकान पर जाऊं कहां जाऊं? लोगों ने उसे मूर्ख कह दिया, अज्ञानी कह दिया । वह कभी गाये कि बात कहता है तो व्यक्ति कहतें हैं कि गाये का कोई निशान नहीं होता है? जो चल फिर रही है, उसका ठिकाना मैं क्या बताऊं? मुझे क्या पता किस दुकान से मिठाई खरीदी है और उसका पैसा चला गया । पर की पहचान वाला वह व्यक्ति दूसरे को दुखी कर गया और स्व्यं मूर्ख का टाईटल ले गया । इसलिये छहढालाकार ने कहा कि मिथ्यादॄष्टि इन्हीं अस्थाई निशानों के कारण मानता रहता है कि –

मैं सुखी-दुखी, मैं रंक राव, मेरे गो धन, गृह धन प्रभाव ।
मेरे सुत तिय, मैं सबल दीन, वे रूप सुभाग, मूरख प्रवीन ।

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#Adinatha #BavanGaja #84feet ❖ विश्व की अद्वितीय प्रतिमा @ सिद्ध क्षत्र बावनगजा/चुलगिरी -भगवान् आदिनाथ जी 84 फीट! -इस सिद्ध क्षेत्र से रावण का भाई कुम्भकर्ण और रावण के पुत्र मेघनाद को यहां मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। रावण की पटरानी मंदोदरी ने अस्सी हजार विद्याधारियों के साथ यहीं आर्यिका दीक्षा ग्रहण की थी। [ यहां एक मंदोदरी प्रासाद भी है। इस जैन मंदिर में जैन प्रतिमाएं हैं। कहा जाता है कि रावण की पटरानी मंदोदरी ने इस जगह में आकर तपस्या की थी। ] मध्यप्रदेश के बड़वानी शहर से 8 किमी दूर स्थित इस पवित्र स्थल में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेवजी (आदिनाथ) की 84 फुट ऊँची उत्तुंग प्रतिमा है। सतपुड़ा की मनोरम पहाडि़यों में स्थित यह प्रतिमा भूरे रंग की है और एक ही पत्थर को तराशकर बनाई गई है। सैकड़ों वर्षों से यह दिव्य प्रतिमा अहिंसा और आपसी सद्भाव का संदेश देती आ रही है। ❖

Bawangaja/Choolgiri (meaning 52 yards is a famous Jain pilgrim center in the Barwani district of Madhya Pradesh in India. Its main a#ttraction is the megalithic statue (carved out of mountain) of Lord Adinatha, the first Jain Tirthankara. The statue is 84 feet (26 m) high, and was created early in the 12th century. The statue is supported from the back unlike the Gommateshwara statue of Lord Bahubali at Shravanabelagola, Karnataka. The great spiritual saint Acharya Kundkund Dev also meditate from choolgiri and have small temple on choolgiri.

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News in Hindi

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नमक, शकर, हरी सब्जी, दही, सूखे मेवा, दूध, घी, तेल आदि सभी वस्तुओं का आचार्यश्री विद्यासागर जी ने आजीवन त्याग किया हुआ है। उनके आहार में उबली हुई दाल और बिना घी की रोटियां ही रहती हैं।तथा 24 धंटे में सिर्फ़ एक बार भोजन तथा जल लेते हैं!! #vidyasagar #humanIdeal #Jainism #Digambara #Arihant

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मांगीतुगीं दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र... Interesting History of this 108 feet Idol! it is quite surprising too.. #Mangitungi #Adinath #Jainism #Gyanmati

अल्प संख्यक दिगम्बर जैन समाज के लिए यह बहुत ही गौरव की बात है कि विश्व की सबसे बडी भगवान 1008 आदिनाथ की प्रतिमा का निर्माण सैंकड़ों वर्ष प्राचीन मांगी तुगीं दिगम्बर सिद्ध क्षेत्र जो कि राम, हनुमान, सुग्रीव, सुडील सहित 99 करोड़ मुनि महराजों कि मोक्ष भुमि है, पर निर्विघ्न सम्पन्न हुआ औऱ अभी 11-18 फरवरी,2016 मे प्रतिमा जी का पंच कल्याणक आंनद के साथ सम्पन्न हो रहा है।

यह तो हम सभी जानते है कि सिक्के के दो पेहलू होते है। एक पहलू तो सभी जानते हैं कि यह कार्य गणीनि आर्यिका 105 ज्ञानमति माताजी की प्रेरणा से हुआ लेकिन पर्दे के पिछे कि बात पंचम पट्टाचार्य 108 आचार्य श्रेयांस सागर जी महाराज जी के समय से शुरू हुआ। ब्र. गणेशलाल जी जैन के अथक प्रयास से मांगी तुंगी एक विरान क्षेत्र से विकसित क्षेत्र मे परिवर्तित हुआ।

शास्त्रों के अनुसार रामायण औऱ महाभारत जैसी घटनाये मांगी तुंगी जैसी पावन क्षेत्र पर भगवान 1008 मुनिसुव्रत के शासन काल मे घटित हुई इसीलिए आचार्य श्री श्रेयांस सागर जी औऱ ब्र. गणेश लाल जी का सपना था कि पहाड़ पर मुनि सुव्रत नाथ जी कि 108 फीट कि प्रतिमा बने, जिसका शिलान्यास P.U. Jain एवं निर्मल कुमार जी के हाथो से हुआ था। लेकिन किन्ही कारणों से उनका वो सपना मूर्त रूप नही ले पाया और 1992 मे महाराज श्री कि समाधि हो गई। फिर 1996 मे पंच कल्याणक के समय 108 आचार्य रयण सागर जी महाराज एवं आर्यिका रत्न श्रेयांस मति माताजी के सानिध्य मे ज्ञानमति माताजी को प्रस्ताव रखा गया। ज्ञानमति माताजी ने सलाह दी कि भगवान बाहुबली कि सबसे बडी प्रतिमा श्रवणबेलगोला मे है तो उनके पिताजी कि उससे बडी प्रतिमा बने। सभी कि सहमति से मूर्ति निर्माण कि बाघडोर माताजी ने अपने हाथ मे ली ले कि न श्रेयांस सागर महाराज जी का सपना सपना ही रह गया।

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          Page glossary
          Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
          1. Acaurya
          2. Acharya
          3. Acharya Kundkund
          4. Adinath
          5. Ahimsa
          6. Anekanta
          7. Aparigraha
          8. Arihant
          9. Bahubali
          10. Barwani
          11. Body
          12. Darshan
          13. Dharma
          14. Digambara
          15. Gommateshwara
          16. Jainism
          17. JinVaani
          18. Jina
          19. Karnataka
          20. Kundkund
          21. Madhya Pradesh
          22. Mahavir
          23. Mahavira
          24. Non-violence
          25. Omniscient
          26. Pradesh
          27. Sangh
          28. Shravanabelagola
          29. Soul
          30. Space
          31. Sudhasagar
          32. Syadvada
          33. Tirthankara
          34. Tolerance
          35. Vidyasagar
          36. आचार्य
          37. तीर्थंकर
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          40. सागर
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