16.08.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 16.08.2016
Updated: 05.01.2017

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मुनिश्री क्षमासागर जी के द्वारा लिखित साहित्य, उन पर आधारित साहित्य, उनके दुर्लभ चित्र, ऑडियो/ वीडियो प्रवचन आदि, यदि आप के पास हों तो कृपया 20 अगस्त को पदमपुरा जी लेकर पहुंचे. हम सब मिलकर उनके संरक्षण पर बातचीत कर सकेंगे.

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Chirping Sparrow, मैत्री समूह की त्रैमासिक पत्रिका है, यदि आप भी इसे नियमित पढ़ना चाहते है तो हमारी वेबसाइट www.MaitreeSamooh.com पर पढ सकते हैं या इसे प्राप्त करने के लिए हमें +91 98274 40301 / [email protected] पर सन्देश भेजें ।

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शंका समाधान
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१. रक्षाबंधन पर श्री विष्णुकुमार, अकम्पनाचार्य मुनिराज की पूजा करना, मुनिराज को आहार दान देना, और मंदिर जी में राखी समर्पण करके ये संकल्प करिये की देव - शास्त्र - गुरु के प्रति जीवन समर्पण करता हूँ!

२. जो लोग माँ - बाप से दूर रहते हैं उनको दिन में कम से कम एक बार फ़ोन पर बात जरूर करनी चाहिए, उनके सुख दुःख पूँछिये, उनको आश्वस्त कीजिये की हम दूर भले ही हैं लेकिन हम आपके ही है और आपको कुछ जरूरत हो तो बताये जरूर क्योंकि सब आपका ही है!

३. बच्चों के प्रति मोह की अपेक्षा कर्तव्य बोध रखें!

४. सुविधाओं का लाभ लीजिये लेकिन उनके आदि मत बनिए, ज्यादा सुविधाजनक जीवन से आप कमजोर बन जायेगे!

५. विवाह जैसे गृहस्थ जीवन के मांगलिक कार्यक्रम में हो रहे अपव्यय पर अंकुश लगना चाहिए! महिला संगीत एक अभद्र रूप में परिवर्तित हो गया है! दहेज़ की मांग और रात्रि भोज जैसी कुरीतियां ख़त्म होनी चाहिए हैं! अगर दूर जाकर ही शादी करनी है तो अच्छे सुविधाजनक तीर्थ स्थान पर जाकर शादी करने की पहल कीजिये! वहाँ शांति विधान करके, दिन में, जैन थाली परोस कर विवाह करिये! अपव्यय तो बचेगा ही साथ ही जो पैसा ५ स्टार होटल वाला लेता वो तीर्थ स्थल पर खर्च होगा!

६. मृत्यु भोज एक बहुत बड़ी कुरीति है! युवाओं को आगे आना चाहिए इसको रोकने के लिए!

७. आज के युग का इंसान पशुओं से भी बदतर हो गया है! पशु तो मरते दम तक मालिक का साथ नहीं छोड़ते जबकि बच्चे अपने माँ-बाप को बुढ़ापे में घर से बाहर निकाल देते हैं!

८. अनावश्यक संग्रह, अप्रतक्ष्य रूप से हिंसा है क्योंकि कही पर कोई भूख से परेशान भी है!

९. कई शोधों से पता लगा है जो बच्चा माँ से दूर रहता है उस बच्चे का बौद्धिक विकास कम होता है!

१०. जो लोग मंदिर में late हो जाते हैं तो मंदिर जी की व्यवस्था बिगाड़ कर भगवान जी का अभिषेक करने की अपेक्षा शुद्ध वस्त्र पहन कर भगवान जी के पैर छू लीजिये और एक माला ज्यादा फेर लीजिये!

- प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज

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❖ #Girnar #Neminath #vidyasagar बहुत ही कम लोगो को पता होगा कि आचार्य श्री ने गिरनार जी की भी यात्रा की है,उसी की फोटो है!! 4th टोंक पर आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज दर्शन करते हुए दुर्लभ फोटो--- #Jinvaani #Arihant #Jainism

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*मन वचन काय की शुद्धि के बिना आत्मा की बात असंभव: आचार्यश्री #vidyasagar #bhopal #Jain #Jainism

जैन संत आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने कहा है कि मन वचन काय की शुद्धि के बिना आत्मा को समझना और उसकी बात करना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि हम श्रेष्ठ श्रावकों को ही ज्ञान की बात समझाना चाहते हैं क्योंकि जो श्रेष्ठ श्रावक नहीं है वे ज्ञान की बातें समझ ही नहीं सकते। आचार्यश्री रविवार को दिगंबर जैन मंदिर हबीबगंज में प्रवचन कर रहे थे। दोपहर में उनकी विशाल धर्मसभा सुभाष स्कूल मैदान पर होगी।

रविवार को आचार्यश्री के दर्शन करने देशभर से हजारों की संख्या में लोग पहुंच रहे थे। भक्तों के अनुरोध पर आचार्यश्री ने सुबह की सभा में संक्षिप्त उद्बोधन में कहा कि *जिस प्रकार जंग लगा लोहा बेशक पारस के संपर्क में आ जाए लेकिन वह सोना नहीं बन सकता। इसी प्रकार अज्ञानी व्यक्ति कितना भी गुरु के संपर्क में रहे वह ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता।* आचार्यश्री ने कहा कि *सोना बनाने से पहले लोहे से जंग हटाना जरूरी है वैसे ही आत्मा को समझने से पहले मन वचन काय की शुद्धि करना जरूरी है।*

आचार्यश्री ने कहा कि आत्मा के सही स्वरूप को समझना है तो पहली शर्त श्रेष्ठ श्रावक बनना होगा। उन्होंने वर्तमान शिक्षा प्रणाली को दोषपूर्ण बताते हुए कहा कि समय आ गया है कि विदेश से मिली इस प्रणाली को बदलना होगा। शिक्षा प्रणाली को बदलकर ही संस्कारों का सही बीजारोपण हो सकता है।

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❖ Sainthood Means Victory Over Desires -Acarya VishudhaSagar G ❖

O pure soul. What do you desire? O brother the conquer or of desire alone becomes the world conqueror. The mundane souls, who is immersed in desires lives in lust. He who conquers desires does really conquer lust. Hence O, consciousness! You crush your desire ness. The pit of desires is so large and deep that the entire universe looks like an atom therein. Under such circumstances, what can be give to mundane souls is the question asked by Acharya Shri Gun Bhadra Swami. Hence, sainthood is that in which the desires are subjected. #VishuddhaSagar #Jainism

|| I bow disembodied pure souls (Siddhas) and all the five supreme beings ||

From: 'Shuddhatma Tarnggini'
Author: Aacharya Vishudha Sagarji Maharaj
English Translator: Darshan Jain, Prof. P. C. Jain

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🔆15 अगस्त, 2016 भारत के 70वे स्वतंत्रता दिवस विशेषांक: 🇮🇳"दुर्लभं भारते जन्म"🇮🇳 भारत में जन्म लेना दुर्लभ है। ❓भारत में ऐसी क्या विशेषता है? ➡️

भारत में जितनी भी धार्मिक संस्कृतियों को आश्रय मिला उन सब में सह-अस्तित्व की भावना सुरक्षित रखी गई । सह अस्तित्व का अर्थ होता है हम भी रहें साथ में आप भी रहें, जिनको भी रहना है रहें, जैसे रहना है वैसे स्वतंत्र रहें। 🔹भावों की सुरक्षा सत्संगति से प्राप्त होती है और वह संसार में दुर्लभ है। 🔸भारती की प्राचीन गुरुकुल पद्धति आज तिरोहित हो चुकी है जिससे आज के बालक पुराने संस्कारो से वंचित रह जाते है और यही बालक आगामी प्रजा बनते हैं, नागरिक बनते हैं और उन्हीं से सारा देश पहचाना जाता है।

🔹जिन्होंने भारतीय संस्कृति को सच में पहचाना है उनके अन्दर सच्ची देश भक्ति होती ही है और वे हमेशा मर्यादाओं का पालन करते हैं। 🔸रासायनिक असंतुलन और ऊर्जा के असंतुलन के कारण मनुष्य का शरीर और मस्तिष्क विकृत हो जाता है। ✨ यह असन्तुलन योगाभ्यास एवं प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों से दूर हो सकता है। "जीवों में हो प्रेम परस्पर, सदा बड़ों का आदर- भाव, पीड़ित-प्राणी पर करुणा हो, दुर्जनपर ना हो दुर्भाव । जो न तुम्हें अच्छा लगता हो वह न करो औरों के साथ, आज कौन सुनता यह बातें बता गए जो जग के नाथ?॥" 🇮🇳 विशाल जगत् में अहिंसा और प्रेम का प्रचार हो जाए तो फिर आतंकवाद और अशांति दूर हो जाए। जैनं जयतु शासनम्।

विश्व कल्याण की भावना से भरे हुए, पिछले ३२ वर्षो से अपनी जिन दीक्षा की साधना एवं जिन शासन प्रभावना में कार्यरत पूज्य क्षुल्लक श्री ध्यानसागर महाराज श्री भी जन्म से ही अपने पिताश्री जो दांडीयात्री, स्वंतंत्र सेनानी रह चुके है उनके द्वारा देश प्रेम एवं देश के विकास संस्कार से संस्कारित हैं और जो आज साधु पद पर विराजित हो विश्व

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#RakshaBandhan -रक्षा बंधन की स्टोरी तो आपने बहुत बार पढली होगी इस बार आचार्य श्री विद्यासागर जी के शिष्य क्षुल्लक ध्यानसागर जी के प्रवचन से ये पढ़े कुछ हटके:) रक्षा बंधन के Celibration में छुपा हैं 'साधू लोगो को आहार देने से Related एक गजब Logic' अगर आप भी ऐसी भावना से आहार देंगे तो आपका पुण्य भी डबल और आनंद भी डबल:)) MUST READ BEFORE CELIBRATE RAKSHA BANDHAN THIS TIME:)

अगर कभी देव-शास्त्र-गुरु पर कभी कोई संकट आये और उस भक्त में क्षमता है तो अपनी विवेक बुद्धि के अनुसार कदाचित रक्षा कर सकता है! अगर आप देव-शास्त्र-गुरु की रक्षा करेंगे तो आपकी रक्षा होगी संसार सागर से डूबने से बचने में! जैन ग्रंथो की अनुसार आहार दान की विधि अलग है, "मेरे यहाँ जो आहार बने वो ऐसा भोजन हो जिसमे से मैं साधु को दे सकू" ऐसी भावना श्रावक के है तो वो महान पुण्य कमा लेता है, और यदि श्रावक की ये भावना है की आज मैं स्पेशल महाराज जी ने लिए तैयारी करू, तो महाराज जी के संकल्प से आप भोजन तैयार करते है तो उसमे आपको भी दोष लगेगा और महाराज जी को भी दोष लगेगा, क्योकि महाराज जी को संकल्पित भोजन लेने का निषेध है, सहज जो श्रावक ने अपने लिए भोजन बनाया है उसमे से अगर देता है तो वो तो स्वीकार है, अगर कोई हमसे पूछे आहार वाले दिन की ये आप क्या कर रहे है तो आप बोलते है आज महाराज जी का आहार है हम उनके लिए ये सब घी, दूध, की व्यवस्था कर रहे है जबकि आपका भाव होना चाहिए मैं भोजन ऐसा बनाऊ अगर महाराज जी आये तो वो भी लेसके नहीं तो मैं तो भोजन करूँगा ही, क्योकि साधु का दोष तो हो सकता है साधु तपस्या से ख़तम भी करदे, लेकिन सही पुण्य का जो उपार्जन होता है वो सिर्फ अपने विचारो का खेल है, साड़ी व्यवस्था दोनों के करते है एक का विचार है "महाराज के लिए" दुसरे का विचार है "इसमें से महाराज को दिया जा सके" जिनवाणी बोलती है पुण्य तब लगता है जब अपनी चीज़ आप दान दो, एक बार ऐसी भावना के साथ आहार दे कर देखो तब आपको पता चलेगा, क्योकि सारी बाते सुनने से अनुभव में नहीं आसकती है, इधर भावना है की अपने आहार में से मैं साधु को आहार दू और दूसरी तरफ भावना ये है की साधु के लिए मैं आहार बना रहा हूँ!

हमें यहाँ पर विवेक से भी कार्य करना चाहिए, क्योकि यहाँ पर सिर्फ वैसा ही मान लिया की "सहज जो श्रावक ने अपने लिए भोजन बनाया है उसमे से अगर देता है तो वो तो स्वीकार है" तो औषधिदान की व्यवस्था नहीं बन पायेगी क्योकि परिस्थिति के कारण हमें विवेक को प्रयोग करना चाहिए, इसका सबसे अच्छा उदाहरण विष्णुकुमार मुनि की कथा ही है, पूरी हस्तिनापुर नगरी में आहार के चोके लगे थे, सबको पता था यही मुनिराज आएंगे, और सबने वही खीर का आहार तैयार किया था...तो भी उनके कोई दोष नहीं था, फिर इसी तरह अगर कोई महाराज जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो उनको उनके स्वास्थ्य के अनुकूल ही आहार देना चाहिए, और ऐसी भावना में तो मुनि के रत्न-त्रय के सुरक्षा की भावना ही है, तो इसमें उन् मुनिराज के निमित से औषधि को भोजन रूप में देने पर भी दोष नहीं लगेगा, फिर अगर कोई महाराज जी नमक नहीं लेते तो फिर कैसे होगा और सोचो अगर किसी मुनिराज को बुखार आगया तो हम उनके लिए औषधि के साथ उनके स्वास्थ्य के लिए संगत आहार तैयार करेंगे, तो दशा में उस आहार को भी दोषित मानना पड़ेगा क्योकि वो उन एक मुनिराज के लिए ही तैयार किया गया था लेकिन ऐसा नहीं होता.... तो इस तरह हमें विवेक से ही कार्य करना चाहिए!

ये लेख - क्षुल्लक ध्यानसागर जी महाराज (आचार्य विद्यासागर जी महाराज के शिष्य) के प्रवचनों से लिखा गया है! -Nipun Jain:)

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News in Hindi

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❖ वे नहीं रहे.. मुनि कुन्थुसागर [ आचार्य विद्यासागर जी की जीवन से जुडी घटनाएं व् कहानिया ] ❖ #Vidyasagar #Jainism

शीतकाल में भोजपुर क्षेत्र पर सारा संघ विराजमान था. प्रकृति के बीचों बीच श्री शांतिनाथ, कुंथुनाथ और अरनाथ भगवान का मंदिर है. मंदिर प्रांगण से ही लगा हुआ जंगल है, बहुत विशाल-विशाल चट्टानें हैं. चारो ओर हरियाली ही हरियाली नजर आती है. वहाँ बैठते ही ध्यान लग जाता है, ध्यान लगाने की जरुरत नहीं पड़ती. वहीँ जिनालय से कुछ दूरी पर एक दो मंजिल का महल है, जो खण्डहर हो चुका है. उसमें आज भी सुन्दर कलाकृति बनी हुई हैं. एक दिन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी भी उस कलाकृति को देख रहे थे उन्होंने कहा - इतना विशाल महल, इतनी अच्छी कलाकृति किसने बनवायी होगी, उसका कहीं नाम तक नहीं लिखा. "आज लोग मंदिर की दो सीढ़ियाँ लगवा देते हैं तो अपना नाम लिखवा देते हैं पर इस महल को किसने बनवाया नाम हि नहीं रहा और वे भी नहीं रहे." और 'बारह भावना' कि पंक्ति पढ़ने लगे "कहाँ गये चक्री जिन जीता, भारत खंड सारा"

सच बात है महा चक्रवर्ती छ: खंड के अधिपति का भी नाम नहीं रहा, वे भी चले गये, फिर भी आज प्राणी अपने नाम के लिए दान करता है. ध्यान रखो - नाम के लिए दिया गया दान, दान नहीं मान है. दान में समर्पण के भाव होना चाहिए, प्रतिफल कि आकांक्षा नहीं रखना चाहिए. दान करने से दान का लोभ कम होना लेकिन मान का लोभ बढ़ गया और नाम की कामना से मान कषाय भी बढ़ गयी इसलिए जिससे कषाय का त्याग हो वाही सही त्याग माना जाता है जिससे कषाय में वृद्धि हो वह दान नहीं माना जा सकता

मान बढ़ाई कारने, जो धन खर्चे मूढ़
मर के हाथी होयगा, धरणी लटके सूढ

note* अनुभूत रास्ता' यह किताब आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के परम शिष्य मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी की रचना है, इसमें मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी ने आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के अमूल्य विचार और शीक्षा को शब्दित किया है. इस ग्रुप में इसी किताब से रचनाए डालने का प्रयास है ताकि ज्यादा से ज्यादा श्रावक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के विचारों और शीक्षा का आनंद व लाभ ले सके -Samprada Jain -Loads thanks to her for typing and sharing these precious teachings.

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शंका समाधान
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१. जातीय व्यवस्था बुरी नहीं है अपितु जातीयता की भावना (ऊंच - नीच) ख़राब है!

२. आत्मा को बांधने वाला कोई बाहरी नहीं बल्कि हमारे अंतर के राग - द्वेष है! आत्मा की स्वतंत्रता के लिए मोह (राग-द्वेष) का नाश जरूरी है!

३. युवाओं के अंदर तीर्थ यात्राओं के लिए प्रेरणा जगानी चाहिए! मेरे पास आकर कई युवाओं ने अपने experience शेयर किये की " श्री सम्मेद शिखर जी " में आकर जो feelings हुई वो कुल्लू - मनाली जैसे किसी और पर्यटन स्थल पर नहीं मिलती! इसीलिए युवाओं को प्रेरणा दीजिये, एक बार वो आएंगे और उनको जब अलग प्रकार की अनुभूति होगी तो फिर उनका जीवन परिवर्तित हो जायेगा!

४. आप लोग गुरुओं के पास आते हो तो अपने बच्चों को भी लेकर आईये! गुरुओं का वात्सल्य पाकर बच्चों का जीवन परिवर्तित हो जायेगा!

५. निदत्ति निकाचित जैसे वज्र समान कर्मों के नाश का जो कार्य शुक्ल ध्यान में ही होता है, वो कार्य आंशिक रूप से जिन बिम्ब के दर्शन / भक्ति से भी हो जाता है! ये ताकत है जिन बिम्ब के दर्शन / भक्ति में और यह सम्यक दर्शन का भी कारण बनती है!

६. जिन शासन को श्रावक और श्राविका ही आगे बढ़ाते हैं! इसीलिए दाम्पत्य जीवन अच्छा होना चाहिए तभी धर्म आगे बढ़ सकता है! दाम्पत्य जीवन खराब तो धर्म भी बिगड़ता है! इसीलिए दंपत्ति को एक दूसरे बहुत सोच विचारकर कर चुनना चाहिए!

दलालों की मदद से जो लोग शादियां करते हैं उसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं! अभी दिल्ली में पिछले ६ महीनों में ऐसी शादियों में ८ विवाह तो टूट गए क्योंकि ये दलाल सही information नहीं देते! आप लोग गुरुओं / मंदिरों में आते हैं, वहां आपस में एक दूसरे के संपर्क में रहिये, आपस में एक दूसरे की recommendation से विवाह करिये!

७. कनाडा के एक शोधकर्ता (s stevension) ने २०० से ज्यादा पुनर्जन्म की घटनाओं पर शोध किया और सभी सत्य पायी गई! आज इतना शोध हो चूका है की पुनर्जन्म को आराम से माना जा सकता है!

८. जीवन में कभी कर्ज मत लो और लो तो कभी भूलो मत! दान बाद में करना, पहले किसी का कर्ज चुकाइये!

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९. कोई विधवा स्त्री अगर ब्रम्हचर्य का पालन कर रही है तो वो बहुत मांगलिक होती है क्योंकि वो शील का पालन कर रही है! उसको अमांगलिक मानकर मांगलिक क्रियायों से अगल रखना एक कुरीति है!

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१०. आज स्वतत्रता दिवस के उपलक्ष्य पर ४ बाते कहना चाहता हूँ:
१. शिक्षा तंत्र में बदलाव की तरफ ध्यान दीजिये
२. स्व-रोजगार की तरफ बढ़िए
३. राष्ट्रीय विकास में योगदान करे
४. हिंदी में अपने हस्ताक्षर करना शुरू करके हिंदी को बढ़ावा दीजिये!

- प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज

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