15.08.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 15.08.2016
Updated: 05.01.2017

Update

Source: © Facebook

एक प्रश्न आपसे... दो लडको की कहानी पढ़े और उत्तर जरुर दे!! Burning Question of Jainism! #Dharma #Jainism Keep aside your prior-knowledge/prejudge and reply as an onlooker!

एक लड़के का जन्म दक्षिण भारत में हुआ वो रोज जिन मंदिर जाता था, पंचामृत अभिषेक करना, फलो जैसे मौसंबी, केला, सेब, अमरुद, अनार, काजू आदि से पूजा करता था!

दुसरे लड़के का जन्म उत्तर भारत में हुआ वो रोज जिन मंदिर जाता था और जल अभिषेक करना, बादाम, लॉन्ग, चावल, गोला आदि से पूजा करता था!

*QUESTION: आपकी द्रष्टि में दोनों सम्यक द्रष्टि [ true insight] या एक? या एक मिथ्याद्रष्टि [ false perception] भी हैं इन दोनों में से और अगर हैं तो कौन और क्यों? सोचकर जवाब देना क्योकि पंथ तो हमारे हटवाद से बनते हैं और जिनेन्द्र का पथ तो निर्विवाद सत्य हैं!!!:) Answer जरुर दे क्योकि ये रियल कहानी हैं दोनों मिलते हैं एक दिन और एक दुसरे को मिथ्याद्रष्टि [ एक दुसरे के पूजा अभिषेक के तरीके को गलत कहना और कहना ये पुण्य नहीं पाप का कारण हैं ] बोलने लग जाते हैं परन्तु एक दिन वो कुछ ऐसा पढ़ते हैं की... (आगे की कहानी नेक्स्ट पोस्ट में आप लोगो के Answer मिलने के बाद):))

Source: © Facebook

today picture #Pramansagar #vidyasagar #Jainism

Source: © Facebook

Independence Day Special -Yesterday pIcture आचार्य श्री विद्यासागर जी के प्रवचनों से... #Vidyasagar #Digambara #JainDharma

आज कल अनुशासन की बात चारो हो रही है MBA करके अनुशासन करना सिखाया जा रहा है, आत्मानुशासन की कोई बात नहीं होती, अगर आत्मानुशासन की और ध्यान जाने लगे जो अनुशासन [MBA] की जरुरत नहीं पड़ेगी, आजकल अनुशासन को बहुत अच्छा माना जाता है बड़े बड़े विश्वविद्यालयों में MBA के माध्याम से अनुशासन करना सिखाया जाता है लेकिन आत्मानुशासन की और किसी का ध्यान नहीं है जबकि कार्य का मनचाहा फल दुसरो पर अनुशासन से नहीं बल्कि आत्मानुशासन से ही प्राप्त हो सकता है, आज कल दुसरो पर अनुशासन करने में व्यक्ति गर्व का अनुभव करता है जो की पतन का कारन है, और आत्मानुशासन उत्थान का कारन है!

Our soul has been in the web of karmic Particles bondage. Let’s start journey of perusal & self-assessment to gear-up with the teacher Tīrthaṅkara’s soul property, which will cultivate vision.

Update

Source: © Facebook

#RakshaBandhan -रक्षा बंधन की स्टोरी तो आपने बहुत बार पढली होगी इस बार आचार्य श्री विद्यासागर जी के शिष्य क्षुल्लक ध्यानसागर जी के प्रवचन से ये पढ़े कुछ हटके:) रक्षा बंधन के Celibration में छुपा हैं 'साधू लोगो को आहार देने से Related एक गजब Logic' अगर आप भी ऐसी भावना से आहार देंगे तो आपका पुण्य भी डबल और आनंद भी डबल:)) MUST READ BEFORE CELIBRATE RAKSHA BANDHAN THIS TIME:)

अगर कभी देव-शास्त्र-गुरु पर कभी कोई संकट आये और उस भक्त में क्षमता है तो अपनी विवेक बुद्धि के अनुसार कदाचित रक्षा कर सकता है! अगर आप देव-शास्त्र-गुरु की रक्षा करेंगे तो आपकी रक्षा होगी संसार सागर से डूबने से बचने में! जैन ग्रंथो की अनुसार आहार दान की विधि अलग है, "मेरे यहाँ जो आहार बने वो ऐसा भोजन हो जिसमे से मैं साधु को दे सकू" ऐसी भावना श्रावक के है तो वो महान पुण्य कमा लेता है, और यदि श्रावक की ये भावना है की आज मैं स्पेशल महाराज जी ने लिए तैयारी करू, तो महाराज जी के संकल्प से आप भोजन तैयार करते है तो उसमे आपको भी दोष लगेगा और महाराज जी को भी दोष लगेगा, क्योकि महाराज जी को संकल्पित भोजन लेने का निषेध है, सहज जो श्रावक ने अपने लिए भोजन बनाया है उसमे से अगर देता है तो वो तो स्वीकार है, अगर कोई हमसे पूछे आहार वाले दिन की ये आप क्या कर रहे है तो आप बोलते है आज महाराज जी का आहार है हम उनके लिए ये सब घी, दूध, की व्यवस्था कर रहे है जबकि आपका भाव होना चाहिए मैं भोजन ऐसा बनाऊ अगर महाराज जी आये तो वो भी लेसके नहीं तो मैं तो भोजन करूँगा ही, क्योकि साधु का दोष तो हो सकता है साधु तपस्या से ख़तम भी करदे, लेकिन सही पुण्य का जो उपार्जन होता है वो सिर्फ अपने विचारो का खेल है, साड़ी व्यवस्था दोनों के करते है एक का विचार है "महाराज के लिए" दुसरे का विचार है "इसमें से महाराज को दिया जा सके" जिनवाणी बोलती है पुण्य तब लगता है जब अपनी चीज़ आप दान दो, एक बार ऐसी भावना के साथ आहार दे कर देखो तब आपको पता चलेगा, क्योकि सारी बाते सुनने से अनुभव में नहीं आसकती है, इधर भावना है की अपने आहार में से मैं साधु को आहार दू और दूसरी तरफ भावना ये है की साधु के लिए मैं आहार बना रहा हूँ!

हमें यहाँ पर विवेक से भी कार्य करना चाहिए, क्योकि यहाँ पर सिर्फ वैसा ही मान लिया की "सहज जो श्रावक ने अपने लिए भोजन बनाया है उसमे से अगर देता है तो वो तो स्वीकार है" तो औषधिदान की व्यवस्था नहीं बन पायेगी क्योकि परिस्थिति के कारण हमें विवेक को प्रयोग करना चाहिए, इसका सबसे अच्छा उदाहरण विष्णुकुमार मुनि की कथा ही है, पूरी हस्तिनापुर नगरी में आहार के चोके लगे थे, सबको पता था यही मुनिराज आएंगे, और सबने वही खीर का आहार तैयार किया था...तो भी उनके कोई दोष नहीं था, फिर इसी तरह अगर कोई महाराज जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो उनको उनके स्वास्थ्य के अनुकूल ही आहार देना चाहिए, और ऐसी भावना में तो मुनि के रत्न-त्रय के सुरक्षा की भावना ही है, तो इसमें उन् मुनिराज के निमित से औषधि को भोजन रूप में देने पर भी दोष नहीं लगेगा, फिर अगर कोई महाराज जी नमक नहीं लेते तो फिर कैसे होगा और सोचो अगर किसी मुनिराज को बुखार आगया तो हम उनके लिए औषधि के साथ उनके स्वास्थ्य के लिए संगत आहार तैयार करेंगे, तो दशा में उस आहार को भी दोषित मानना पड़ेगा क्योकि वो उन एक मुनिराज के लिए ही तैयार किया गया था लेकिन ऐसा नहीं होता.... तो इस तरह हमें विवेक से ही कार्य करना चाहिए!

ये लेख - क्षुल्लक ध्यानसागर जी महाराज (आचार्य विद्यासागर जी महाराज के शिष्य) के प्रवचनों से लिखा गया है! -Nipun Jain:)

❖ ♫ www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ❖

News in Hindi

Source: © Facebook

✛ भारत भाग्य विधाता ✛ अहिंसा परमों धर्म: ✛ स्वतंत्रता दिवस की बधाई ✛ 51,000 मेम्बेर्स को भारत देश स्वतंत्र दिवस की शुभकामनाये...आज के दिन भारत आजाद हुआ था | हम भी कर्म के बंधन से कब मुक्ति को प्राप्त होंगे! एक दिन अवश्य होंगे:):) #Independence #Bharat #JainDharma

¸.¤*¨¨*¤.¸¸...¸.¤
¸.♥ अहिंसा ♥,.,
.¸.¤*¨¨*¤.¸¸.¸.¤*
..
☻/
/▌ CURTSY TIRTHANKARA | VIVA VITARAGATA
/ Lets pray for the Independence of all the souls by web of karmic bondage! Our soul has been in the web of karmic Particles bondage. Let’s start journey of perusal & self-assessment to gear-up with the teacher Tīrthaṅkara’s soul property, which will cultivate vision.

HOW POWERFUL WE ARE! EVEN WE DON’T KNOW ABOUT OUR POTENTIAL DEAR ALL! WE CAN BREAK THE KARMIC BONDAGE! WE CAN ARCHIVE SALVATION! TIRTHANKARA MAHAVIRA SAYS WE’RE SAME!! LET’S PUT FOOTS ON THE FOOTPRINT LEAVED BY ALMIGHTY TIRTHANKARA.

CONTENT BY ADMIN ~ Nipun Jain

--- ♫ www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---

Source: © Facebook

मुनिश्री क्षमासागर जी द्वारा शंका का समाधान.... Must read and share #Jainism #Independence:))

Sources
Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Digambar
      • Acharya Vidya Sagar
        • Share this page on:
          Page glossary
          Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
          1. Bandhan
          2. Dharma
          3. Digambara
          4. Jainism
          5. JinVaani
          6. Mahavira
          7. Nipun Jain
          8. Soul
          9. Tirthankara
          10. Tīrthaṅkara
          11. Vidyasagar
          12. Vitaragata
          13. आचार्य
          14. पूजा
          15. भाव
          16. मुक्ति
          17. सागर
          Page statistics
          This page has been viewed 1066 times.
          © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
          Home
          About
          Contact us
          Disclaimer
          Social Networking

          HN4U Deutsche Version
          Today's Counter: