11.08.2016 ►STGJG Udaipur ►News

Published: 11.08.2016
Updated: 12.08.2016

Update

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#जोधपुर, #चातुर्मास 2016
11/8/2016

*हवा पानी अन्न प्रकृति प्रदत्त*
नेहरू पार्क महावीर भवन में प्रवचन में बोलते हुए डॉक्टर राजेंद्र मुनि ने मानव मन के अहंकार को व्यर्थ बतलाते हुए कहा प्रकृति प्रद्वत अगर हवा पानी उनका समय पर संचालन ना हो तो जीवन की कल्पना करना भी व्यर्थ है। बड़े-बड़े विद्वान व साइंटिस्ट भी इसके आगे बौना सिद्ध हो जाते हैं। कई बार सारी की सारी भविष्यवाणियां भी व्यर्थ हो जाती है। मुनि जी वर्षा ऋतु में वर्षा के महत्व का प्रतिपादन करते हुए कहा सुकाल- दुकाल वर्षा पर ही आधारित है। मानव को इसके प्रति सदेव आभारी होना चाहिए। इस सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ धरती प्रदत है, फिर अविष्कार का अहंकार भी व्यर्थ है। धर्म भी मानव प्रकृति है लेकिन जब मानव धर्म से दूरियां रखने लगता है तो अशांति को प्राप्त करता है। अतः प्रकृति में रहने वाला सदा सुखी इसके विपरीत चलने वाला सदा दुखी रहता है।```

```सभा में उपाध्याय रमेश मुनि द्वारा आगम स्वाध्याय के अंतर्गत पांच इन्द्रियों की विवेचना की गई।
साहित्यकार सुरेंद्र मुनि जी ने नवकार महिमा का भजन कर श्रोताओं को भक्ति रस में रंजित कर दिया।
मंगलाचरण दीपेश मुनि द्वारा एवं अंत में बाहर से आए समाज सेवियो का संघ के महामंत्री सुकनराज धारीवाल द्वारा अभिवादन किया गया। सभा के पश्चात जोधपुर में वर्षा के आगमन पर परस्पर हर्ष व्यक्त करते हुए गोवंश की रक्षा पर चर्चा की गई एवं इस हेतु तत्कालिक उपायों पर अमल करने का संकल्प लिया।

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#हैदराबाद #चातुर्मास #2016
श्रमण संघीय सलाहकार श्री #दिनेश मुनि जी म.
11/8/2016

News in Hindi

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भगवान महावीर के युग में #गोपालन

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#होसपेट #चातुर्मास 2016
उपप्रवर्तक श्री #नरेश मुनि जी म सा.
11/8/2016

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#गुंतकल #चातुर्मास 2016
11/8/2016

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#शिवाचार्य #भीलवाडा #चातुर्मास 2016
मन से मोक्ष, मन से नर्क - आचार्य श्री शिव मुनि
11/8/2016भीलवाडा / मन चंचल हे कभी इस मन से मोक्ष मिल जाता है तो कभी इसी मन के कारण नर्क में भी जाना पड़ सकता है । इस संसार में जो कुछ हो रहा है वो मन के कारण ही होता है । यह कहना है जैन श्रमण संघीय आचार्य श्री शिव मुनि का । आचार्य श्री ने गुरुवार को शिवाचार्य समवसरण में आयोजित चातुर्मासिक धर्मसभा मेंं श्रावक श्राविकाओं को उदबोधित करते हुए कहा कि इंसान का मन ही हे जो उस से अच्छे कार्य करवाता है तो बुरे कार्य भी करवा देता है । मन पर काबू पाने की आवश्यकता है और उसका सरल उपाय साधना है । यदि खुद को साधना में रमा लिया तो विचारों का आदान प्रदान स्वतः ही समाप्त हो जाता है । आचार्य श्री ने बताया की मैं कोन हूँ? मेरा असली घर कोनसा हे? जो घर हमने बनाया वो तो हमारा हे ही नही ये तो ईंट, मिटटी, सीमेंट का ढंचा हे । प्रभु की भक्ति और प्रभु के बताए मार्ग पर चल मोक्ष को पाना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए । दुनिया भर का ज्ञान पढ लो, सुन लो, सारी बातें जान लो, लेकिन जिसने स्वयं को नही जाना तो कुछ भी नही जाना । धर्म की शुरआत स्वयं से होती है । मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा जाओ ना जाओ लेकिन खुद को पहचानना आवश्यक है । परमात्मा का निवास भी स्वंयं में ही हे इसलिये खुद को पहचानना आवश्यक है ।
सामायिक में प्रवेश कैसे किया जाए पर श्रावक श्राविकाओं समझाते हुए श्रमणसंघ मंत्री शिरीष मुनि ने बतया की जब सायिक में ध्यान ना लगे और मन भटकने लगे तो मंगल मैत्री अर्थात सबके मंगल की कामना की जाए ।
धर्मसभा को निशांत मुनि ने मधुर भजन से संगीतमय बनाया ।
धर्मसभा को, शुभम मुनि, समित मुनि, शाश्वत मुनि, सुद्धेश मुनि का सानिध्य प्राप्त हुआ

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