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worthy story today picture #vidyasagar:) must must read and share!!
एक भवलिंगी मुनिराज तेज धुप में ध्यानस्थ है एक श्र्वक उधर से गुजरता है और तेज धुप देखकर उसे दया आती है और वो मुनिराज पर एक तिरपाल तान देता है कुछ देर बाद कुछ दूसरे जैनी उधर से गुजरते है और उन मुनिराज को तिरपाल के नीचे ध्यानस्थ देखकर मुनिराज और प्रश्नचिन्ह लगा देते है की ये कैसे मुनि है जो तिरपाल के नीचे बैठकर ध्यान कर रहे है
इस तरह वो मुनिराज बदनाम हो जाते है और ये प्रचारित हो जाता है की ये मुनिराज सही नही है कुछ लोग मुनिराज के पक्ष में आते है कुछ विपक्ष में और समाज के दो हिस्से हो जाते है
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शंका समाधान
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१. आत्मा के कल्याण के लिए वैराग्यता की तरफ बढ़ना चाहिए!
२. पार्श्वनाथ भगवान् जी के जीवन में आयी विषमताओं में उनके द्वारा धारण किये समता भाव से उनके प्रति ज्यादा श्रद्धा भाव पैदा होता है! उन्होंने १० भव तक समता भाव धारण किया, इसीलिए उनका जीवन ज्यादा आकर्षक है!
३. किसी व्रती को कभी discourage नहीं करना चाहिए, बल्कि उनसे सीख लेनी चाहिए और उनको प्रोत्साहित करना चाहिए!
४. जो लोग रात्रि भोजन का कदाचित त्याग नहीं भी कर पा रहे तो वो कम से कम ऐसा कृत्य करके गर्व तो महसूस नहीं करें!
५. कन्या को उभयकुल वर्धिनी कहा गया हैं क्योंकि वो दो कुलों का नाम रोशन करती हैं! लड़कियों की value ज्यादा है इसीलिए उनकी care ज्यादा होती हैं!
६. अभिषेक पूजन करके, स्वाध्याय, संयम के रास्ते पर आगे बढ़िए! सबसे पहले रात्रि भोजन का त्याग करें, फिर रात्रि में चारों प्रकार के आहार का त्याग करिये! धीरे धीरे मोक्ष मार्ग प्रशस्त होगा!
७. " काल लब्धि " की आगम में कई तरीके से विवेचना की गई है! short में यह कह सकते हैं की ये मान कर मत बैठिये की जब काल आएगा तभी कार्य होगा! प. टोडरमल जी ने " श्री मोक्ष मार्ग प्रकाशक " में एक पंक्ति लिखी है जिसका अर्थ है --> " जिस समय कार्य हो जाए तभी काल लब्धि और कार्य का होना ही होनहार है! "
- प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज
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❖ Life is meaningless without the Preceptor -Acarya VishudhaSagar G ❖
O, pure soul; The grace of the country, state, city, village, home, saintly order and society is of no use without an owner or master. In case, where the country, city and society are rich and prosperous, but are either devoid of the master or are being governed by bad charactered lord; they are liable to perish. The form and beauty of a grownup woman is of no use, if she is a widow; A disciple without preceptor is similar to her. A disciple may become highly learned; may be the knower of incantations and scriptures; may establish command over all four Vedas namely (1) Biographies (2) Cosmology and Mathematics (3) Conductology (4) Realology or ontology yet he is no good if he is without a preceptor or without devotion to his preceptor. He can well be compared with an ass loaded with sandal wood. #VishuddhaSagar #Jainism
|| I bow disembodied pure souls (Siddhas) and all the five supreme beings ||
From: 'Shuddhatma Tarnggini'
Author: Aacharya Vishudha Sagarji Maharaj
English Translator: Darshan Jain, Prof. P. C. Jain
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today pravachan #Parshvanatha क्रिया करो, प्रतिक्रिया की ओर मत देखो: आचार्यश्री #vidyasagar
आज आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने 23वें तीर्थंकर भगवान पाश्र्वनाथ को याद करते हुए कहा कि संसारी प्राणी यदि मोक्ष चाहता है तो क्रिया (पुरुषार्थ) करें, प्रतिक्रिया की ओर देखना बंद कर दें। पाश्र्वनाथ भगवान ने भी ऐसा ही किया था। कमठ एक सप्ताह तक उन पर उपसर्ग करता रहा लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
आचार्यश्री ने कहा कि पाश्र्वनाथ भगवान की केवल ज्ञान में कमठ के जीव की भूमिका रही है। कमठ साधना में लीन भगवान पाश्र्वनाथ पर एक सप्ताह तक उपसर्ग करता रहा। बड़ी-बड़ी चट्टाने उठाकर फेंकी, तमाम उपद्रव किए लेकिन पाश्र्वनाथ भगवान ने कोई जवाब नहीं दिया। क्योंकि वे लाजवाब थे। यदि जवाब देते तो कमठ को आनंद आता। जवाब नहीं दिया इसलिए पाश्र्वनाथ भगवान का समोशरण सजा। खास बात यह है कि भगवान के समोशरण में उपसर्ग करने वाला कमठ और उपसर्ग दूर करने वाला यक्ष दोनों उपस्थित थे। लेकिन किसी की दृष्टि उनके ऊपर प्रतिशोध के रूप में नहीं थी। क्योंकि समोशरण में न कोई मित्र होता है न कोई शत्रु। यह भेद विज्ञान के जाने बगैर मोक्ष का मार्ग संभव नहीं है। जिस प्रकार सूर्य के ऊपर से घटाएं छटती हैं और प्रकाश सामने आता है वैसे ही केवल ज्ञान हो जाने पर वीतरागता प्रकट होती है। आचार्यश्री ने कहा कि कमठ के उपसर्ग की घटना सभी के जीवन में प्रेरणादायक है। यदि अनंतकालीन यात्रा और जन्म मृत्यु के बंधन से छुटकारा पाना है तो प्रतिक्रिया से बचो। पुरुषार्थ करो। उन्होंने कहा कि हम भी यह भावना करते हैं कि हमे भी समोशरण में बैठने का अवसर मिले। भगवान की दिव्य ध्वनि सुनने का सौभाग्य मिले और प्रभू जैसा बन जाने का परम सौभाग्य मिले। वे घडिय़ां कितनी आनंददायी होंगी। आचार्यश्री ने कहा कि अतीत को भूलो और भविष्य को सीमित करो तभी संसार से अवकाश संभव है। --स्वतंत्र जैन
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आज पार्श्वनाथ भगवान का मोक्ष कल्याणक हैं.. भगवान के चरण.. सम्मेद शिखर जी स्वर्ण भद्र कूट:))
सित साते सावन आई,शिवनारी वरे जिनराई।
सम्मेदाचल हरि माना,हम पूजे मोक्षकल्याणा।।
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❖ गुणग्रही दृष्टि... मुनि कुन्थुसागर [ आचार्य विद्यासागर जी की जीवन से जुडी घटनाएं व् कहानिया ] ❖#Vidyasagar #Jainism
प्रथमानुयोग में कृष्ण जी के बारे में एक प्रसंग आता है कि - देवों ने उनकी गुणग्राही दृष्टि की प्रशंसा सुनकर परीक्षा लेने के लिए एक श्वान का रूप बनाया और रास्ते में मृतप्राय होकर लेट गया, जिसमें से ऐसी दुर्गन्ध आ रही थी की उसके आस-पास के परिसर में दूर-दूर तक लोग नहीं दिख रहे थे.
श्रीकृष्णजी ने देखा तब उसी समय साथी ने कहा, "कैसी दुर्गन्ध आ रही है, चलो यहाँ से". तब श्रीकृष्ण, जो की गुणग्राही थे, उन्होंने दुर्घंध रूपी दोष को गौण करते हुए कहा, "देखो, इस कुत्ते के दात कितने श्वेत हैं, कितने अच्छे चमक रहे है". यह सुनकर देवता श्रीकृष्ण के चरणों को नमस्कार कर कहने लगे,"धन्य है! आपकी गुण-ग्रहण की दृष्टी".
ठीक वैसी हि गुण-ग्रहण की दृष्टी पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी में देखने को मिलाती है. बीना बारहा जी चातुर्मास (साल २००५) में आत्मानुशासन ग्रन्थ की कक्षा चल रही थी उस समय एक कुत्ता मचं पर पहुच गया और गुरुदेव जिस तखत पर विराजमान थे उसके नीचे जाकर बैठ गया तब सभी श्रावकगण इस दृष्य को देखकर हँसाने लगे. तब आचार्यश्री जी ने कहा, " उसे देखकर क्यों हस रहे हो, छी-छी क्यों कर रहे हो?, उसे कोषकारों ने 'कृतज्ञ' की उपमा दी है. कुत्ता थोड़ा भोजन करता है, थोड़ी नींद लेता है लेकिन मालिक के प्रति बड़ा वफादार होता है. उसके रहते घर में कोई चोर घुस नहीं सकता. वह मालिक के मारने-डांटने के बाद भी उनके सामने पूछ हिलाता रहता है, बड़ी हि कृतज्ञता करता है, इसलिए कोषकारों ने अन्य किसी मनुष्य या पशु को 'कृतज्ञ' की उपमा नहीं दी मात्र कुत्ते को हि कृतज्ञ कहा है
गुरुदेव के इस प्रसंग से हम सभी को भी यही सीख लेनी चाहिए की हम भी व्यक्ति में, प्रकृति में दोष न देखकर गुणों को ही खोजा करें और उन गुणों को ग्रहण करें तभी हमारा जीवन महान बन सकता है. संसार में ऐसा कोई मकान नहीं है जिसमें एक न एक खिड़की या दरवाजा न हो ठीक वैसे हि संसार में ऐसा कोई व्यक्ति और पदार्थ नहीं जिसमें एक न एक गुण न हो. बस शर्त इतनी सी है की उसे पहचानने की दृष्टि हमारे पास होनी चाहिए.
note* अनुभूत रास्ता' यह किताब आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के परम शिष्य मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी की रचना है, इसमें मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी ने आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के अमूल्य विचार और शीक्षा को शब्दित किया है. इस ग्रुप में इसी किताब से रचनाए डालने का प्रयास है ताकि ज्यादा से ज्यादा श्रावक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के विचारों और शीक्षा का आनंद व लाभ ले सके -Samprada Jain -Loads thanks to her for typing and sharing these precious teachings.
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आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री क्षमासागरजी महाराज द्वारा रचित हृदयस्पर्शी कविताओं को आप हमारी वेबसाइट - www.maitreesamooh.com से पढ़ सकते है, कविताओं के संग्रह को प्राप्त करने के लिए आप [email protected] अथवा 94254-24984, 98274-40301 पर संपर्क कर सकते हैं।
मैत्री समूह
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शंका समाधान (documented on 08 August)
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१. लोगो को सभी से सहज व्यव्हार करने के लिए सभी में भगवान् आत्मा के दर्शन करने चाहिए! दुर्योधन जैसा व्यवहार छोड़िये, जो धर्म जानते तो है लेकिन उसमे प्रवृत्ति नहीं है और अधर्म जानते हुए भी उससे निवृत्ति नहीं हो पा रहे!
२. ये बहुत शर्म की बात बात है की आज हम लोगो ने अपनी पहचान खो दी है, लोग तीर्थ स्थान पर जाकर भी रात में खा रहे हैं, अभक्ष्य खा रहे हैं! जैन जीवन शैली अच्छी है, केवल यह कहने मात्र से काम नहीं चलेगा, जैनियों को यह शैली अपने जीवन में उतारनी भी चाहिए!
३. नियम बड़े नहीं होते, उसके पीछे की निष्ठां बड़ी होती है! प्रतिकूल परिस्थिति में भी निष्ठां के साथ निभाया हुआ छोटा नियम भी महान बन जाता है!
४. हर मंदिर में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए की लोगो को चारों प्रकार के दान देने का मौका मिले!
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५. लोगो को आगे आना चाहिए शैक्षिक संस्थान खोलने के लिए! आज शैक्षिक संस्थान एक industry बन गए हैं, और ये चैरिटेबल तरीके से नहीं चलायी जा सकते! लोग प्रोफेशनल तरीके से ही चलाये और फिर उस कमाई से चैरिटी करे!
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६. पार्श्वनाथ भगवान् जी के अभिषेक के समय फणों का अभिषेक नहीं करना चाहिए!
- प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज