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#हैदराबाद #चातुर्मास 2016
श्रमण संघीय सलाहकार श्री दिनेश मुनि जी म.
2/8/2016
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#शिवाचार्य #भीलवाडा #चातुर्मास 2016
निस्वार्थ भावना से कार्य हो - आचार्य श्री शिव मुनि
2/8/2016: भीलवाडा / जो कुछ करना निस्वार्थ भाव से करना चाहिए । कुछ कर के उसको जताना अहंकार का भाव हे किसी भी कार्य में अहंकार भाव नही आना चाहिए ।
यह कहना है जैन श्रमण संघीय आचार्य श्री शिव मुनि का । आचार्य श्री ने शिवाचार्य समवसरण में मंगलवार को आयोजित चातुर्मासिक धर्मसभा मेंं श्रावक श्राविकाओं को निस्वार्थ भाव पर उदबोधित करते हुए कहा कि
भावों का निर्मल होना, भावों का स्वच्छ होना आवश्यक हे । प्रभु महावीर का सच्चा श्रावक वो हे जिसका मन प्रभु भक्ति की और लगा हो जिसने संसार का मोह त्याग दिया हो । श्रावक अगर मजबूत है तो सन्त मजबूत है । साधना में सहयोग की आवश्यकता होती है । साधू साध्वी का प्रवचन देना तभी सार्थक हे जब श्रावक श्राविका उसे ध्यानपूर्वक श्रवण करे और उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयास करे । संसार को सीमित करने का प्रयास करना चाहिए । जिसने प्रभु की वाणी को सुन जीवन में उसका प्रयोग किया उसका जीवन सफल हुआ है । आचार्य श्री ने कहा जब तुम सच्चे ह्रदय से प्रार्थना करते हो तो प्रभु सुनता है जब तुम मोन हो जाते हो तो परमात्मा की ध्वनि तुम तक पहुंचती है ।
श्रमण संघीय मंत्री शिरीष मुनि ने सामयिक विभा पर उद्बोधन देते हुए बताया कि मन वचन काया के योग को यदि सम्यक में लगाया जाए तो जीवन का कल्याण निश्चित है । जिसे आत्मा की समझ हे वो ही आत्म ज्ञानी हे और आत्मा में समाहित होने की कला ही सामायिक हे । जो अच्छे बुरे राग द्वेष में उलझे रहते है वो सामयिक नही कर पाते ।
धर्मसभा को उदबोधित करते हुए निशांत मुनि ने बताया कि जीवन में अगर दया प्रेम करुणा और अहिंसा का भाव ना आये तो हमारा जीवन व्यर्थ है । धर्म की क्रियाओं से हम अपना जीवन सँवार सकते हे । व्यर्थ की चर्चाओं में अपना समय व्यतीत करने में हमे कोई परेशानी नही होती लेकिन प्रभु भक्ति के लिए हमारे पास समय नही होता ।