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हे आदर्श मनुष्य । हे जिन धर्म जीवंत प्रतिरूप...आचार्य विद्यासागर:)) । अब इस पेज में 50,000 (fifty thousand 50k) होने में सिर्फ़ 5 Likes कम रह गए हैं!:))
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✿ दयालु प्रभु से दया मॉगते है ✿ #Jainism
अपने दु:खों की हम दवा मॉगते है ।
नही हमसा कोई अधम् और पापी,
सत् कर्म हमने न किये है कदापि ।
किये नाथ हमने यह अपराध भारी,
उनके हृदय से हम क्षमां मॉगते है ।।
दयालु प्रभु से हम क्षमा...............
प्रभु तेरी भक्ति में, मन या मगन हो ।
निजातम् ये चिन्तन कि हरदम लगन हो,
मिले सत् संगम करु आत्म चिन्तन,
वरदान भगवन् ये सदा मॉगते है । ।
दयालु प्रभु से दया मॉगते......................
दुनिया के भोगो की ना हमें कुछ कामना है,
स्वर्ग के सुखों की ना हमें चाहना है ।
यहीं एक आशा है बन जाऊँ तुम संग,
शिवराम पैसाऔर टकां मॉगते है ।।
दयालु प्रभु से दया मॉगते है
अपने दु:खों की हम दवा मॉगते है ।।
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✿ *ध्यान / Meditation -आचार्य विशुधासागर जी:) ✿
१. प्रशस्त ध्यान मन को एकाग्र किये बिना नहीं हो सकता है।
1. Right meditation can't be without concentrating the mind.
२. आर्त, रौद्र, धर्म, शुक्ल ये चार ध्यान के भेद है। इन चारों ध्यान के भी चार-चार भेद है।
2. Meditation / Concentration are of four types - Painful, Cruel, Religious & Pure. All these four divided further into four types.
३. आर्त ध्यान के चार भेद - अनिष्ट संयोग, इष्ट वियोग, पीड़ा चिन्तन, निदान।
3. Painful concentration are of four types - Undesirable Accidence, Union with the desired, Thinking of pain occurs from Diseases & Desire for Future.
४. अनिष्ट संयोग विष, दुष्ट, बैरी आदि अनिष्ट सामग्री के प्राप्त होने पर जो क्लेश उत्पन्न होता है, वह अनिष्ट संयोग आर्त ध्यान है।
4. Undesirable Accidence is a pain caused by Venom, Thorn, Wicked, Enmity etc.
५. राज्य, ऐश्वर्य, चित्त को प्रसन्न करने वाले पदार्थो के वियोग होने पर जो कष्ट होता है, उसे इष्ट वियोग नाम का आर्त ध्यान कहते है।
5. The pain occurs because of dissassociation of empire, prosperity, objects which makes mind happy is a union with the desired painful concentration.
📝 अंग्रेजी अनुवाद: मुनि श्री प्रणीत सागर जी महाराज।
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आचार्य श्री विद्यासागरजी के पास एक श्रावक ने कहा कि मैं नित्य अभिषेक करता हूँ, और अब मुझे किसी काम से विदेश जाना हैं, तब मैं अभिषेक कैसे करूँ, जाना भी बहोत जरुरी हैं? तब आचार्य श्री ने कहा कि पाञ्च इंच कि प्रतिमा साथ में लेकर जाइए, वहां अभिषेक कर लेना | पर वहां कहीं भी अभिषेक के लायक पानी नहीं मिला तब फिर उस श्रावक ने अंगूर का रस निकाल कर उसने प्रतिमा पर अंगूर के रस का अभिषेक किया | विदेश से जब वह वापस आया तब वह आचार्य श्री के पास गया और उसने आचार्य श्री से कहा कि वहां कहीं भी अभिषेक करने लायक शुद्ध पानी नहीं था, इसी कारण मेने प्रतिमा पर अंगूर के रस का अभिषेक किया, गलती हो तो प्रायश्चित दीजिये, तब आचार्य श्री ने कहा कि कोई गलती नहीं हैं अगर अंगूर के रस का अभिषेक कर लिया, कोई दोष नहीं हैं |
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An Important Admin Note to @ Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt readers:) आचार्य विद्यासागर जी Laptop/Computer/Mobile/Tablet USE नहीं करते हैं! ये पेज चलाने में आचार्य विद्यासागर जी की प्रेरणा/अनुमोदना नहीं हैं! आचार्य श्री को इस पेज के बारे में जानकारी भी नहीं की एक पेज उनके नाम से हैं जिसमे अब 50,000 मेम्बर होने वाले हैं!!!!!!:)) जो भी picture/post/article/content इस पेज से शेयर किया जाता हैं वो सब ADMIN की समझ से किया जाता हैं! हम admin लोग अपनी समझ के अनुसार पेज चलाते हैं.. थोडा मत-भेद/विचार-भेद/द्रष्टि-भेद होना स्वाभाविक हैं Human Nature हैं! इस पेज का उदेश्य जिन धर्मं के core teachings/Crux को spread तथा जिन धर्मं के जीवंत प्रतिकृति मुनिराजो सहित जिसमे आचार्य विद्यासागर जी admin के नजरिये में आदर्श हैं, के प्रवचन आदि शेयर करना हैं! admin किसी भी भेदभाव जैसे पंथवाद /साधुवाद आदि में विश्वास नहीं रखते हैं.. तथा हम सब धर्मं का मर्म [ essence ] समझे.. ऐसी भावना रखकर पेज को चलाते हैं:) । #vidyasagar #Jainism
Greeting -thankYou:) admin team -www.jinvaani.org
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✿ आचार्य विद्यासागर जी के शिष्य -क्षुल्लक श्री ध्यानसागर जी के हृदय की भावना उन्हीं के शब्दों में #DhyanSagar #Kshullak #Jainism #Hastinapur
'हमारे कष्ट मिट जाएँ’, नही यह प्रार्थना स्वामी ।
'डरें ना संकटों से हम', यही है भावना स्वामी । ।
'दुखों में साथ दे कोई’, नहीं यह प्रार्थना स्वामी!
'बनें सक्षम स्वयं ही हम', यही है भावना स्वामी । ।
'रहे सुख की सदा छाया’, नहीं यह प्रार्थना स्वामी ।
'खरे उतरें परीक्षा में', यही है भावना स्वामी । ।
'हमारा भार घट जाए', नहीं यह प्रार्थना स्वामी!
'किसी पर भार ना हों हम', यही है भावना स्वामी । ।
'हमारी पूर्ण हो आशा', नहीं यह प्रार्थना स्वामी ।
'निराशा हो न अपने से', यही है भावना स्वामी । ।
'सभी पीछे रहें हमसे', नहीं यह प्रार्थना स्वामी!
'बढ़ें आगे हमहीं से हम", यही है भावना स्वामी । ।
'बढे धन-संपदा भारी', नहीं यह प्रार्थना स्वामी!
'रहे संतोष थोड़े में', यही है भावना स्वामी । ।
'दुखी हों दुष्ट जन सारे", नहीं यह प्रार्थना स्वामी ।
'सभी दुर्जन बने सज्जन', यही है भावना स्वामी । ।
'करें बर्ताव सब अच्छा’, नहीं यह प्रार्थना स्वामी!
'सुधर जाएँ स्वयं ही हम', यही है भावना स्वामी । ।
'दुखों में आपको ध्यायें’, नहीं यह प्रार्थना स्वामी ।
'कभी ना आपको भूलें’, यहीँ है भावना स्वामी । ।
ये हम सब की भी भावना बने ऐसी ही प्रार्थना है 🙏
MP3 audio download link -
http://dhyansagarji.com/…/Musi…/Bhajan/15%252EBhavna%252Emp3
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:) #Gyanmati #Mangitungi!
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एक अविस्मरणीय क्षण जब इस युग में सतयुग की ब्राह्मी और सुंदरी सम् आर्यिका श्री ज्ञानमती माता जी एवं आर्यिका श्री चन्दनामती माता जी, मांगीतुंगी वाले बड़े बाबा के चरणों में नमन करती हुई:) #Gyanmati #Mangitungi #Adinath #StatueofAhinsa
News in Hindi
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अहा! क्या विरला संत है!! #vidyasagar
@ किसको पता था कि नन्हे पीलू, संत शिरोमणी बनकर हम सबके मार्गदर्शक बनेंगे!!
@ मलप्पा के आँगन में जिसकी किलकारी गूँजी, माँ श्रीमति जी के आँचल की छाँव तले, कर्नाटक के सदलगा ग्राम की मिट्टी में पले!!
@ आज जैन ही नहीं समस्त मानव जाती के गौरव है, अकेले दिगंबर जैन समाज के नहीं अपितु समस्त संत समाज के शिरोमणी है!!
@ जिनके ह्रदय में मानव जाति की ही नहीं वरन मूक पशुओं की वेदना का भी ख्याल है!!
@ जिन्होंने माटी जैसी जैसी अकिंचिन, पद-दलित और तुच्छ वस्तु पर महाकाव्य मूकमाटी रच कर उसे अनमोल कर दिया!!
@ जिनकी रचनाएं मात्र कृतियाँ ही नहीं है, अकृत्रिम चैत्यालय है!!
@ वो आज धर्म को मंदिरों की दीवारों से राजनीती के गलियारों तक ले गए!!
@ जिन पर अर्ध शतक से ज्यादा शोध हो चुके हैं, लेकिन जिनके बारे में कुछ कहना सूरज को दीप दिखाने जैसा है!!
@ जो उन्हें जानते हैं वो उनकी वीतरागी छवि में खो जाते है, जो उन्हें नहीं जानते है वो अचंभित हो जाते है कि क्या है इस संत में!!
@ जिनके साथ में मात्र एक पिच्छी-कमण्डल है उसके सिवा भौतिकता के रंच मात्र भी साधन नहीं, फिर भी असंख्य भक्तगण नतमस्तक खड़े हैं!!
@ किसी को कोई प्रलोभन भी नहीं देते उसके बाद भी इतना जनसमूह जिनसे सम्मोहित होकर उनके पीछे चल देता है!!
@ पूरे समंदर स्याही बन जाएँ और पूरे वृक्ष कलम बन जायें फिर भी जिनके गुणों को पूर्ण व्यक्त ना कर पाएं!!
@ जिनके बारे में, जिनकी त्याग तपस्या कृतियों आदि के बारे में लिखने बैठे तो शब्द वर्गणा, समय, विचार, सब कम पड़ जायेंगे!!
@@@@ उनका नाम... उनकी चर्याओं से उनकी चर्चाओं से पता चलता है... हमारे गुरुवर हमारे भगवन हैं... जिन्हें हम श्रद्धा से छोटेबाबा बोलते है!!
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आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री क्षमासागरजी महाराज द्वारा रचित हृदयस्पर्शी कविताओं को आप हमारी वेबसाइट - www.maitreesamooh.com से पढ़ सकते है, कविताओं के संग्रह को प्राप्त करने के लिए आप [email protected] अथवा 94254-24984, 98274-40301 पर संपर्क कर सकते हैं।
मैत्री समूह
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