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✨🙏 *संक्षिप्त प्रतिक्रमण* 🙏✨जैसा की आपको ज्ञात है की चातुर्मास शुरू हुआ हैं। जैन धर्म तत्व के अनुसार *प्रतिक्रमण* का स्मरण करना बहुत आवश्यक हैं।
दैनंदिन जीवन में व्यस्तता के कारण मनोभाव होते हुए भी प्रतिक्रमण सुत्र का स्मरण सभी हरदिन नही कर पाते।
उपाध्याय प्रवर प. पू. श्री अमरमुनीजी म.सा. कृत *संक्षिप्त प्रतिक्रमण* - प्रतिक्रमण सुत्र का ही संक्षिप्त भावार्थ है। जो सुबह-शाम स्मरण कर सकते है।
समर्पित तथा शुद्ध भावसे,नियमिततासे संक्षिप्त प्रतिक्रमण स्मरण करनेसे कर्म निर्जरा होकर जीव मुक्ति के मार्ग पर तेजी से आगे बढ सकता है।
*संक्षिप्त प्रतिक्रमण* ~ (अनंत भावों के पाप का प्रायश्चित)
*जं जं मणेण बद्धं; जं जं भासाए भासियं पावं।*
*जं जं काएण कयं; मिच्छामि दुक्कडं तस्स* ॥1॥
*खामेमि सव्वे जिवा; सव्वे जिवा खमंतु मे।*
*मित्ति मेरी सव्व भूएसु; वेरं मज्झं न केणइ* ॥2॥
*सव्वस्स समण संघस्स; भगवओ अंजलिं करिअ सिसे।*
*सव्वं खमावइत्ता; खमामि सव्वस्स अहयंपि* ॥3॥
*आयरिए उवज्झाए; सीसे,साहम्मिए, कुल-गणे, य।*
*जे मे केई कसाया; सव्वे तिविहेण खामेमि* ॥4॥
*सारं दंसण-नाणं; सारं तव-नियम-संजम-सीलं।*
*सारं जिणवर-धम्मं; सारं संलेहणा-मरणं* ॥5॥
*एगो मे सासओ अप्पा; नाण-दंसण-संजुओ।*
*सेसा मे बाहिरा भावा; सव्वे संजोग-लक्खा* ॥6॥
*मज्जं विसय-कसाया;निद्दा, विगहा य, पंचमी भणिया।*
*एए पंच पमाया; जीवं पाड़ेन्ति संसारे*
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जैन धर्म मनुष्य को स्वयं अपना भाग्य विधाता मानता है। अपने सांसारिक एवं आध्यात्मिक जीवन में मनुष्य अपने प्रत्येक कर्म के लिए उत्तरदायी है। उसके सारे सुख-दुख कर्म के कारण ही हैं। उसके कर्म ही पुनर्जन्म का कारण हैं।
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#शिवाचार्य #भीलवाडा #चातुर्मास 2016
हर झगड़े की वजह " मैं " - आचार्य श्री शिव मुनि
30 july 2016
भीलवाडा / आज के समय में जितनी भी लड़ाई और झगड़े की वजह है वो मैं हे । जंहा मैं अर्थात अहम का भाव आ गया वँहा बेडागर्क हे । वँहा झगड़ा हो तय है । यह कहना है जैन श्रमण संघीय आचार्य श्री शिव मुनि का । आचार्य श्री ने शिवाचार्य समवसरण में शनिवार को आयोजित चातुर्मासिक धर्मसभा मेंं श्रावक श्राविकाओं को मैं (अहम) पर उदबोधित करते हुए बतया की, मैं कर्मों का बंधन हे चाहे पूण्य कर्म हो चाहे गलत कर्म हो । जब हम इस मैं का त्याग कर देंगे तभी जीवन सफल हो सकेगा । देह नश्वर हे आत्मा अजर अमर है । कर्ता का भाव, मैं का भाव जीवन में नही आना चाहिए ।आत्मा मात्र दृस्टा हे आत्मा में रम जाना और आत्मा पर चर्चा करना दोनों में अंतर है । जो आत्मा में रम गया वो इस भव सागर से तर गया । जब आत्मा में लीन हो जाएंगे तो इस दुनिया के झमेले से मुक्ति मिल जायेगी । राम प्रसंग पर उद्बोधन देते हुए आचार्य श्री ने कहा कि पूजा भक्ति की हे आज घर हनुमान चालीसा पढ़ी जाती है घर घर गणेश का पुजन होता है । भक्ति में ही शक्ति है । वचन के कारण राम वनवास गये । जीवन में जो वचन लिए जाए जो संकल्प लिये जाए उन्हें हर हालत में निभाना चाहिए । शादी में पूरी शादी का आन्नद सिर्फ कुछ घण्टों का हे लेकिन 7 फेरों के दौरान जो 7 वचन लिए जाते हे वो जीवन भर निभाने होते है । जीवन में वचन का मोल हे ।
युवामनीषी शुभम मुनि ने धर्मसभा को माता पिता की तपस्या और संस्कारों का परिणाम बच्चा हे । बच्चे का जीवन उज्जवल बंनाने के लिए उन्हें धार्मिक संस्कार देने भी जरूरी है विषय पर उदबोधित किया ।
प्रवचन भूषण समित मुनि ने कहा कि अच्छा इंसान बनने के लिए रंग, रूप, जाति, परम्परा नही संस्कारों की आवश्यकता है । बच्चे कच्ची मिट्टी के समान होते है जैसा आकर उनको दो वो वैसे ढल जाते हे । एक अच्छा इंसान डॉक्टर वकील और इंजीनियर से बढ़कर होता है बच्चे को पहले एक अच्छा इंसान बनाने की आवश्यकता है । डिग्री के साथ बच्चों को संस्कार देना भी आवश्यक है । माँ की गोद बच्चे की पहली पाठशाला हे । स्कूल में जाकर अक्षर ज्ञान तो सीख जाता है लेकिन धर्म ज्ञान नही होता है । बच्चों को अच्छा इंसान बनाने के लिए संस्कारों की आवश्यकता है । धर्मसभा को, निशांत मुनि, शाश्वत मुनि, सुद्धेश मुनि का सानिध्य प्राप्त हुआ ।
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