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कृतिदेव यहां संतों व साध्वीवृन्दों ने लिया ऐतिहासिक निर्णय
हैदराबाद के चार श्रीसंघों में
हार - माला - प्रतीक - चिन्हों पर लगवाई पाबंदी
हैदराबाद - 25 जुलाई 2016।
कहते हैं समाज में बदलाव लाने के लिए सुझाव बहुत देते है और अमल में कोई - कोई लाता है। उपदेष देना सरल है परन्तु वास्तव में करना बहुत मुष्किल होता है परन्तु जिन्होंने मन में ठान लिया कि मुझे बदलाव लाना फिर उन्हें अपने दृढ़ निष्चय से कोई डिगा नहीं सकता, बस होनी चाहिए बदलाव लाने की ताकत - साहस और बुंलद हौंसला।
जी हां। तेलगांना के प्रसिद्व शहर हैदराबाद में इस वर्ष श्री अखिल भारतीय स्थानकवासी श्रमण संघ के प्रचुर मात्रा में वर्षावास है। इन चातुर्मासों को अनेक दृष्टियों से उदाहरणीय और अनुकरणीय बनाने का निर्णय चारित्रआत्माओं की प्रेरणा से किया गया है। ऐसे निर्णयों में एक है - मेहमानों का शाॅल-माला से स्वागत पर लगाम। पिछले कुछ वर्षों से अधिकांष चातुर्मासों में सन्तों - साध्वीवृन्दों के दर्षनार्थ और प्रवचन श्रवणार्थ आने वालों में-से खास लोगों का संघ की ओर से शाॅल-माला से सम्मान करने की परम्परा चल पड़ी है। परम्परा का मकसद अच्छा है, लेकिन अब यह एक ओर गैर-जरूरी मान-पोषण का कारण बनती जा रही है, दूसरी ओर किसी धर्मसभा का काफी समय सिर्फ सम्मान-सत्कार में ही चला जाता है। इसके अलावा यदि कभी किसी का सम्मान होना छूट जाए तो अनावष्यक चर्चा का विषय बन जाया करता है। किसका सम्मान करना और किसका नहीं करना, यह निर्णय कभी-कभी मुष्किल भी हो जाता है। अत्यधिक और अनावष्यक सम्मान से संघ को शाॅल-माला का अतिरिक्त खर्च भी वहन करना होता है। ऐसे सारे कारणों को ध्यान में रखते हुए श्रमण संघीय सलाहकार पूज्य श्री दिनेष मुनि जी म. ने विगत वर्ष 2015 के षिर्डी चातुर्मास में सार्वजनकि उद्घोषणा कर इस प्रथा को पूर्णतया विराम का उद्घोष कर दिया था और उसी परम्परा का निर्वाह वर्ष 2016 के वर्षावास स्थल श्री वर्धमान स्था. जैन श्रमणोपासक संघ, रामकोट, हैदराबाद ने संतों की सभा में शाॅल-माला से सम्मान की परम्परा पर अंकुष लगाया है।
मुख्य रुप से उल्लेखनीय है कि हैदराबाद के काचीगुड़ा जैन स्थानक में चातुर्मासार्थ विराजमान उपाध्याय प्रवर संघ सेतु पूज्य श्री रविन्द्र मुनि जी म. सा. से सलाहकार प्रवर की काॅफी समय से इस संबंध में चर्चा चल रही थी कि आपश्री भी श्रमण संघ के उच्च पद पर विराजमान है इस रोक को समर्थन दें। दिनांक 16 जुलाई 2016 को उपाध्याय प्रवर ने अपने चातुर्मासिक प्रवेषोत्सव के पावन सुअवसर पर सलाहकार दिनेष मुनि जी म. का उल्लेख करते हुए सार्वजनिक रुप से फरमाया कि चातुर्मास में शाॅल-माला से किसी भी श्रावक - श्राविका वर्ग का बहुमान नहीं किया जाएगा। इसी क्रम में जैन श्रावक संघ गौषामहल के कोठारी एस्टेट में चातुर्मासरत उपप्रवर्तिनी महासाध्वी श्री चंदनबाला जी म. ने भी इस प्रथा पर रोक लगाई है। हैदराबाद के अमीरपेट जैन स्थानक में चातुर्मासरत प्रवचन प्रभाविका महासाध्वी श्री संयमलता जी म. ने भी इस अनुकरणीय कार्य की अनुमोदना करते हुए उनके श्रीसंघ में भी पूर्णतया स्वागत पर पाबंदी लगवाई है। उल्लेखनीय है कि उनके वर्ष 2015 के भिवण्डी वर्षावास में भी किसी महानुभाव का स्वागत शाल - माला से नहीं हुआ था। हालंकि स्वागतबाजी रोक पर युवा वर्ग व महिलावर्ग हर्षित है उनका मानना है कि इससे प्रवचन सभा पूर्णतया धर्म - साधना पर आधारित होगी।
इस अंकुष के बावजूद कुछ जरूरी छूटें रखी गई हैं। मसलन धर्मसभा में विषेष तपस्या या साधना करने वालों, दीक्षार्थी बंधु, शीलव्रत अंगीकार, विद्वानों का सम्मान किया जा सकता है। समाज के लोगों ने इस निर्णय का स्वागत किया है। इससे धर्मसभा में धर्म-ध्यान और त्याग-तप पर ध्यान केन्द्रित रहेगा।