23.07.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 23.07.2016
Updated: 05.01.2017

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✿ आचार्यश्री की दिनचर्या ✿ Ideal lifestyle!:) #vidyasagar

आचार्य विद्यासागर जी महाराज सुबह लगभग साढ़े तीन बजे जाग जाते हैं। लगभग दो घंटे प्रतिक्रमण व भक्ति के बाद 5.30 बजे गुरू भक्ति होती है। गुरू भक्ति में आचार्यश्री उनके शिष्य मुनिगण और आम लोग भी रहते हैं। सुबह 6.00 बजे आचार्यश्री शौच के लिए अरेरा पहाड़ी (डीबी माल के पीछे) जाते हैं। इस दौरान लगभग 300 से 400 भक्त उनके साथ होते हैं। 7.30 से 8.30 बजे तक वे अपने शिष्य मुनियों को पढ़ाते हैं। 9 बजे से 9.30 बजे तक मुख्य पंडाल में आचार्यश्री का पाद प्रच्छालन, उनकी पूजन एवं संक्षिप्त प्रवचन होते हैं। 9.45 बजे मुनिसंघ आहार के लिए रवाना होते हैं। दोपहर 11.30 बजे ईर्यापद भक्ति होती है। दोपहर 12 से 2.00 बजे तक ध्यान और सामयिक होती है। 2 बजे से 2.45 बजे तक आचार्यश्री स्वाध्याय करते हैं। 2.45 से 4 बजे तक मुख्य पंडाल में क्लास शुरू होती है। इसमें मुनि और आमजन शामिल होते हैं। शाम 5 बजे से प्रतिकमण। 6.00 बजे गुरू भक्ति और आरती की जाती है। इसके बाद आचार्यश्री ध्यान व्और सामयिक करते हैं।

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today pravachan ✿ ज्ञानी भेद विज्ञान से मोह का विष दूर करते हैं: आचार्यश्री ✿ #vidyasagar #bhopal

भोपाल में आखिर वह दिन आ ही गया जिसका पिछले 40 वर्षों से जैन समाज को इंतजार था। इस अवसर पर अपने संक्षिप्त आर्शीवचन में आचार्यश्री ने कहा कि शरीर में किसी प्रकार का रोग हो जाने पर हम वैहद्य के पास जाते हैं। वैद्य हमें औषधि देते हैं जिससे शरीर में फैली बीमारी के विष का असर समाप्त होता है और शरीर निरोगी होता है। इसी प्रकार जो ज्ञानी है वे अपने अंदर के मोह रूपी विष को समता और भेद विज्ञान के माध्यम से दूर करते हैं और आत्मा को पवित्र करते हैं।

चातुर्मास कलश स्थापना के लिए भोपाल के 7 नंबर स्टाप के पास सुभाष स्कूल में लगभग 50 हजार लोगों की क्षमता का विशाल पांडाल बनाया गया है। यहां एक अति आकर्षक मंच बनाया जा रहा है जिस पर आचार्यश्री और मुनि संत विराजमान होंगे। पांडाल में अनेक एलईडी टीवी लगाई जा रही है जिससे आचार्यश्री और मुनि संत को साफ देखा जा सके। पांडाल में साउंड सिस्टम लगाया गया है। कल 24 जुलाई को दोपहर 2 बजे कलश स्थापना समारोह शुरू होगा। इस समारोह का संचालन भोपाल के जाने माने कवि चंद्रसेन जैन करेंगे। समारोह में शामिल होने के लिए महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, बंगाल, बिहार, झारखंड, दिल्ली, हरियाणा से काफी संख्या में लोगों का आना शुरू हो गया है। इन सभी लोगों को ठहराने के लिए आयोजन समिति ने शहर की सभी धर्मशालाओं और होटलों में व्यवस्था की है। समारोह में आने वाले अतिथियों के लिए एमपी नगर में सरगम टॉकीज के सामने विशाल भोजनशाला बनाई गई है।

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✿ महावीर स्वामी बसों नयन मेरे, तेरा वंदन काटे भव-बंधन मेरे ✿

तू त्रिशला की गोद से जन्म था स्वामी, जियो और जीने दो, सबको बताने!
तू अहिंसा का पुजारी, वात्सल्य जगाता, सब जीवो को एक सामान बताता!
तेरी वाणी से कितने तर गए हे स्वामी, तेरे दिव्यवाणी है मोक्ष नसैनी!
मोक्ष मार्ग नेता महावीर स्वामी, आपको ह्रदय में रख मैं नमामि!

तेरस से तेरा जीवन धन्य हुआ है, चतुर्दशी को ब्रम्ह में लीन भया है!
अमावस्या की प्रातः बेला में स्वामी, तू हो गया सिद्ध-शिला का निवासी!
संध्याकाल में गौतम गणधर ने पाया, केवलज्ञान से अंतर को जगाया!
वीतरागता का मैं कायल हुआ हूँ, तेरी इस छवि का दीवाना हुआ हूँ!

जियो और जीने दो सबको बताया, प्रकट में गाय-सिंह एक घाट पर आया!
रत्ना-त्रय को मोक्ष मार्ग बताया, अनेकान्तवाद से वैष्म्यता का अंत कराया!
तेरे गुण जन्मान्तर मैं गाता रहूँगा, मोक्ष-मार्ग शिल्पी का मार्ग अपनाता रहूँगा!
मोक्ष परम पद पाने को महावीर स्वामी, तेरे चरणों में शीश झुकता रहूँगा...
....आचरण प्रतिक चरण नमाता रहूँगा...नमाता रहूँगा...नमाता रहूँगा!

*Composition written by: Nipun Jain [ Thank You ]

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आचार्यश्री की सीख- गाड़ी आपकी हो सकती है, सड़क नहीं, यातायात नियमों का पालन करें

आचार्यश्री ने कहा कि आज ही के दिन समवशरण से भगवान महावीर की दिव्य ध्वनि के स्वर फूटे थे। इसके पूर्व वे 12 वर्ष तक मौन और ध्यानावस्था में थे। यह घटना बिहार के विपुलाचल पर्वत पर घटित हुई थी। इस अवसर को जैन समाज वीर शासन जयंती और नव वर्ष के रूप में मनाता है। इस मौके पर उन्होंने सीख दी कि गाड़ी आपकी हो सकती है, पर सड़क आपकी नहीं है। सड़क पर चलते वक्त नियमों का पालन जरूर करें।जो लोग दूसरों का भला सोचते हैं, उनका स्वयं का भी भला होता है। जिस तरह ट्रेन में अमीर और गरीब सभी यात्रा करते हैं, उसी तरह भगवान के समवशरण में सभी एक समान होते हैं। उन्होंने कहा कि तीर्थंकर तो क्षत्रिय हो सकते हैं, पर परमेष्ठि सभी ब्राह्मण हैं। आज के दिन केवल जयंती न मनाएं बल्कि भगवान महावीर के संदेशों को जीवन में उतारें।

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दया धर्म जुत सारों: दया धर्म का सार हैं... क्षुल्लक ध्यानसागर जी.. @ हस्तिनापुर:)

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