10.06.2015 ►STGJG Udaipur ►Neel Gay Mat Maro

Published: 16.06.2016
Updated: 16.06.2016

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Dr. Dileep Dhing, Adv.

प्रकाषनार्थ:

मूक प्राणियों पर रहम करें मोदी सरकार

- डाॅ. दिलीप धींग
(निदेशक: आई.सी.पी.एस.आर., चेन्नई)

केन्द्र सरकार का पर्यावरण मंत्रालय पर्यावरण सुधारने के नाम पर पर्यावरण बिगाड़ने पर लगा है। जो जीव वनों की शोभा और पर्यावरण के रक्षक कहलाते हैं, उन जीवों को यह मंत्रालय बर्बर तरीकों से मार डालने के आदेष दे रहा है। बाड़ ही खेत को खा रही है। 10 जून 2016 को अखबारों में प्रकाषित खबरों के अनुसार बिहार में मोकामा में सरकार के आदेष पर तीन दिनों में ढाई सौ से ज्यादा निरीह नील गायों की हत्या कर दी गई है। मृग प्रजाति के इस शाकाहारी प्राणी को लोक भाषा में ‘गाय की बहिन’ भी कहा जाता है। केन्द्रीय महिला एवं बाल-विकास मंत्री मेनका गांधी के अनुसार पष्चिम बंगाल में हाथी मारे गये, हिमाचल प्रदेष में बन्दरों को मारा गया, महाराष्ट्र में सुअर मारे गये, गोवा में राष्ट्रीय पक्षी मोर मारे गये और अब पूरे देष में नील गायों को मारा जा रहा है। यह अनुचित और शर्मनाक है। देष के वन विभाग को दयालु और संवेदनषील बनाना बेहद जरूरी है।

एक तरफ खूंखार वन्य जीवों के संरक्षण की करोड़ों की योजनाएँ बनती है। दूसरी ओर देष का पर्यावरण मंत्रालय ही मूक प्राणियों को थोक में मारने का आदेष दे रहा है। ‘किसान हित’ और ‘फसल-रक्षा’ के नाम पर पर्यावरण मंत्री इसे ‘साइंटिफिक मैनेजमेंट’ कह रहे हैं! सच्चा वैज्ञानिक प्रबंधन तो मानवीय होना चाहिये, जो इन मूक प्राणियों को बिना मारे नियंत्रित कर सके; साथ ही किसानों और फसलों का भी नुकसान नहीं हो। जब खंूखार जानवरों को भी मानवीय तरीकों से नियंत्रित किया जाता है तो इन शाकाहारी प्राणियों को गोलियों से भून डालना अमानवीय, अतार्किक, अव्यावहारिक और क्रूरतापूर्ण है।

जानवरों को नियंत्रित करने के लिए आदमी के द्वारा अंधाधुंध हत्या का जंगली रास्ता अपनाना किसी सभ्य समाज का लक्षण नहीं है। कानून को संवेदनषील होना चाहिये। कई बार न्यायालय ने भी जानवरों को मानवीय तरीकों से नियंत्रित करने की बात कही है। भारतीय वन सेवा के सेवानिवृŸा अधिकारी वी. के. सलवान लिखते हैं - ‘‘नील गायों की संख्या नियंत्रित करने के लिए उन्हें गोली मारना उपाय नहीं है। यही उपाय होता तो मानव जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए भी ऐसे ही तर्क दिये जाते। हमें जानवरों की खाद्य शंृखला को समझना चाहिये। यदि यह शंृखला कहीं से भी बिखरती है तो उसका असर अन्य जानवरों पर पड़ता है।’’

आमतौर पर भारत के लोग इस तरह जानवरों की हत्या के पक्ष में नहीं है। राजस्थान में सरपंचों और किसानों ने नील गायों को मारने से मना कर दिया। उधर, गुजरात में पिछले 10 साल से नील गाय मारने की इजाजत है, लेकिन एक भी नील गाय नहीं मारी गई। जबकि गुजरात में 1.86 लाख नील गायें हैं। निष्कर्ष यह है कि राजस्थान सहित जिन राज्यों में नीलगायों और अन्य जानवरों को मारने की कानूनी इजाजत दी गई है, उसे खत्म किया जाना चाहिये। गौशालाएँ और अभयारण्य की तर्ज पर इन निरीह जानवरों के लिए भी सरकार अभयारण्य बनाएँ। इसके अलावा यदि जंगल ही हरे-भरे और आबाद होंगे तो ये जानवर खेतों और बस्तियों की ओर आयेंगे ही नहीं।

18, रामानुजा अय्यर स्ट्रीट, साहुकारपेट, चेन्नई-600079

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