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आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज के चरणों में बारम्बार नमोस्तु:)
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❖ ऑर्डर सो बोर्डर... मुनि कुन्थुसागर [ आचार्य विद्यासागर जी की जीवन से जुडी घटनाएं व् कहानिया ] ❖ @ www.facebook.com/VidyasagarGmuniraaj
अभ्यास एक ऐसी वस्तु है जिसके माध्यम से हम शरीर रूपी मशीन को नियंत्रित कर सकते हैं. शारीर पहले से ही अभ्यास से सल्लेखना के लिए तैयार कर लेना चाहिए. 'बारह भावना' और 'णमोकार मंत्र' का अभ्यास अभी से अच्छे ढंग से कर लेना चाहिए अंत समय यही काम आवेगा जैसे - परीक्षा के समय कंठस्त विद्या ही काम आती है. सब कुछ मन से लिखना पड़ता है, अभ्यास पहले से किया है तभी कुछ लिख पाओगे. ठीक वैसे हि सल्लेखना के समय होता है.
जिनवाणी माँ पर विशवास रखिये उनके इशारे पर त्याग करते जाइये आपकी अच्छी सल्लेखना हो जायेगी क्योंकि परीक्षा के समय विद्यार्थी को अनिवार्य प्रश्न पहले हल करना होता है.
एक दिन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने सल्लेखना के प्रकरण में बताया कि - उस समय आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज जी की सल्लेखना चल रही थी तब मुनि श्री सुपार्श्वसागर जी महाराज जी का एक आहार एक उपवास चल रहा था. उन्हें अचानक पेट में जलन हो गयी, उन्हें त्याग का अभ्यास पहले से ही था आखिर हुआ ऐसा कि आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज जी से पहले ही उनकी संलेखाना हो गयी. इसलिए साधकों को हमेशा अभ्यस्त और जाग्रत रहना चाहिए सल्लेखना के लिए. पता नहीं कब कौन से रोग से यह शरीर ग्रसित हो जावे और जीवन का उपसंहार करना पड़े.
साधकों को हमेशा तैयार रहना चाहिए - सैनिकों की भाँति "ऑर्डर सो बोर्डर". जब आदेश आता है तभी तैयार. इस नश्वर शरीर को कब त्याग करना पड़े भरोसा नहीं, इसलिए हमेशा इससे ममत्व भाव कम करते जाना चाहिए. भोजन-पानी के माध्येम से इसे बलिष्ट नहीं बनाना चाहिए, बल्कि कृष करते चले जाना चाहिए. फिर अंत में इस शरीर को छोडने में ज्यादा परेशानी नहीं आवेगी. यदि सल्लेखना विधि पूर्वक नहीं हो पायी तो जीवन की साधना अधूरी मानी जाती है. दूध से दही, दही से नवनीत निकालना, नवनीत को तपाकर घी बनाना, यदि घी नहीं बना तो समझना अधूरा कार्य हुआ है
note* अनुभूत रास्ता' यह किताब आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के परम शिष्य मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी की रचना है, इसमें मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी ने आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के अमूल्य विचार और शीक्षा को शब्दित किया है. इस ग्रुप में इसी किताब से रचनाए डालने का प्रयास है ताकि ज्यादा से ज्यादा श्रावक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के विचारों और शीक्षा का आनंद व लाभ ले सके -Samprada Jain -Loads thanks to her for typing and sharing these precious teachings.
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❖ मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की उम्र 17000 वर्ष तथा शरीर की ऊंचाई 16 धनुष और वे मांगी-तुंगी से मोक्ष गये! ये पर्वत बहुत ही पवित्र है यहाँ से श्री राम के साथ साथ हनुमान, सुघ्रीव, नल, नील, महानील, गवा, गवाख्य इत्यादि रामायण के पात्र मोक्ष पधारे, इस तरह यहाँ से 99 करोड़ जीवो ने मुक्ति प्राप्त की है, इस क्षेत्र पर २ पहाड़ मांगी और तुंगी होने के कारण ही इस जगह का नाम मांगी-तुंगी है!
रावण ने एक पराई स्त्री सीता का अपहरण किया और उनको अपनी पटरानी बनाना चाहा! जब रावण बहुत सारी विद्या प्राप्त करके दिग्विजय करने के लिए निकलता है तो बहुत राजाओ को हराता हुआ चलता है और इस विजययात्रा में रावण नलकूबर की स्त्री का प्रेमप्रस्ताव को ठुकराकर अपने को ऊँचा उठाता है और केवली भगवान् का उपदेश सुनकर प्रतिज्ञा करता है की मैं उस परनारी का उपभोग नहीं करूँगा जो स्वयं मुझे नहीं चाहेगी और दूसरी बड़ी बात जब श्री राम हनुमान जी को लंका भेजते है की सीता का समाचार लाओ वो कैसी है तब हनुमान जाते है वहा पर बन्दर का रूप बनाकर और लंका में जो उत्पात मचाते है वो तो सबको पता है और रावण के राजमहल की छत को एक लात मरते है और वो छत समुद्र में जाकर गिरजाती है फिर लोट कर आते है और राम को बोलते है आपकी सीता पवित्र और निष्कलंक है तब राम बोलते है ऐसा कैसे संभव है वो रावण सीता को लगाया फिर भी सीता निष्कलंक तब हनुमान जी, सुघ्रीव, इत्यादि लोग थोडा सा हँसते है और बोलते है "रावण विधाधर है उसकी -आकाशगामिनी विद्या- नष्ट हो जाती अगर वो सीता को छुने की कोशिश भी करता"
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मुनिदशा होने पर सहज ही निर्ग्रन्थ दिगम्बर दशा हो जाती है | मुनि की दशा तीनों काल नग्न दिगम्बर होती है | यह कोई पक्ष या फिरका नहीं है किन्तु अनादि सत्य वस्तुस्थिति है |
शंका:- मुनिदशा मे वस्त्र हों तो आपत्ति क्या है? वस्त्र तो परवस्तु है, वे कहाँ आत्मा को बाधक होते हैं?
समाधान:- वस्त्र तो परवस्तु है और वे कहीं आत्मा को बाधक नही है यह बात भी सच है; परन्तु वस्त्र ग्रहण करने की जो बुद्धि है वह रागमय बुद्धि ही मुनिदशा को रोकने वाली है | अन्तरंग रमणता करते - करते मुनियों को इतनी उदासीन दशा सहज ही हो जाती है कि वस्त्र ग्रहण करने का विकल्प ही नही उठता |
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महामुनिराज समय सागरजी ने बताया
आत्मानुभूति क्या गृहस्थ अवस्था में संभव है
सराग दशा में वीतरागता का संवेदन एक क्षण के लिए भी सम्भव नहीं है।
आचार्य कुन्दकुन्द कह रहे है यदि परमाणु मात्र का भी राग है तो सर्वांग का ज्ञान
भी आत्मानुभूति नहीं करा सकता अथार्त श्रुत केवली भी यदि कणी मात्र का राग
रखे तो शुध्ध आत्म तत्व की अनुभूति असम्भव है
सर्वज्ञ भगवान की वाणी ही जिन वाणी है और अपने विचार रखना जन वाणी है।
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सच्चा रास्ता #kundalpur #vidyasagar
चातुर्मास मे जयपुर से कुछ लोग आचार्य महाराज के दर्शन करने नैनागिरी आ रहे थे वे रास्ता भूल गये और नैनागिरी के समीप दुसरे रास्ते पर मुड गये थोड़ी दूर जाकर उनको अहसास हुआ की वे भटक गये इस बीच चार बंदूकधारी लोगो ने उनको घेर लिया गाड़ी मे बैठे सभी यात्री घबरा गये एक यात्री ने थोडा साहस करके कहा की "भया हम जयपुर से आये है आचार्य विद्यासागर महाराज के दर्शन करने जा रहे है हम रास्ता भटक गये है आप हमारी मदद करे " उन चारो ने एक दुसरे की और देखा उनमे से एक रास्ता बताने के लिये गाड़ी मे बैठ कर गया
नैनागिरी के जल मंदिर की समीप पहुचते ही वह व्यक्ति गाड़ी से उतरा और इससे पहले कोई कुछ पूछे वह वहा से जा चुका था जब यात्रियों ने घटना सुनाई तो लोग दंग रह गये सभी को वह घटना याद आ गयी जब चार डाकुओ ने आचार्य महाराज से उपदेश पाया था उस दिन स्वयम सही राह पाकर आज इन भटके यात्रियों के लिए सही रास्ता दिखाकर मानो उन डाकुओ ने उस अम्रत -वाणी का प्रभाव रेखाकित कर दिया
नैनागिरी {1978
मुनि श्री क्षमासागरजी महाराज
पुस्तक आत्मान्वेषी
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Jay Jinendra say
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