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13 वां तेला - तेला उपवास वर्षीतप
स्थानकवासी जैन परम्परा में यह प्रथम महासंतरत्न है कि जो कि तेले तेले तपस्या के मार्ग पर अग्रसर है।
नाई गांव बना साक्षी शिवाचार्य के आचार्य पद चादर ग्रहण दिवस का
धूमधाम व हर्षोल्लास से मनाया समारोह
उदयपुर, 7 मई। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ ग्राम नाई की ओर से शनिवार को मेवाड़ के लाल श्रमण संघीय मंत्री शिरीष मुनि मसा की जन्म भूमि ग्राम नाई में शिवाचार्य आचार्य पद ग्रहण दिवस, श्रमण संघीय मंत्री शिरीष मुनि मसा का दीक्षा दिवस एवं केसर रस्म महोत्सव के साक्षी सैकड़ों समाजजन बने जिनकी उपस्थिति में समारोह धूमधाम एवं हर्षोल्लास से मनाया गया।
मंगल महोत्सव मनाने के लिए प्रातः से ही बड़ी संख्या में महावीर भवन में श्रद्धालु जुटे। महिलाओं ने मंगल गीतों एवं भजनों से पूरा वातावरण धर्ममयी बना दिया। शिवाचार्य आचार्य पद ग्रहण दिवस पर हुई चादर की रस्म के दौरान भगवान महावीर एवं गुरूदेव के जयकारों से महावीर भवन गूंज उठा। इस दौरान महिलाओं ने अनुमोदन अनुमोदन अभिनन्दन- अभिनन्दन बारम्बार जैसे गीतों को गाकर माहौल में भक्तिरस घोल दिया।
श्रमण संघीय मंत्री शिरीष मुनि के दीक्षा दिवस पर बच्चों ने आधे घंटे की वैरागी अशोक नाटिका का मंचन किया। नाटिका में मुनिश्री के बाल्यकाल से लेकर दीक्षा ग्रहण करने तक के जीवन को उपस्थित जन समुदाय के सामने जीवन्त किया। जब नाटिका की प्रस्तुति हो रही थी, तब मुनिश्री भी एकटक देख रहे थे। नाटिका में मुनिश्री के दीक्षा पूर्व के जीवन को हूबहू मंचित होते देख मुनि श्री के साथ समूचा जनमानस भी मुग्ध हो गया।
वैरागी बाल ब्रह्मचारी दीक्षार्थी भाई बहनों की जब केसर रस्म प्रारम्भ हुई तब हर उपस्थित जन भावुक हो गया। केसर की रस्म के दौरान आचार्यश्री ने सबसे पहले दीक्षिार्थियों के केसर छंाटने की रस्म की शुरूआत की। इसके बाद जन्म के माता-पिता और बाद में धर्म के माता- पिता ने दीक्षार्थियों को केसर छांटी। यह रस्म स्थानीय संघ, परिजनों, अतिथियों और उपस्थित समाजजनों ने भी निभाई। इसके बाद तिलक रस्म हुई। केसरमयी हुए इस वातावरण में महिलाओं ने भी कई मंगल गीतों जिनमें केसरियो-केसरियो आज हमारो रंग केसरियो, ऋषभदेव केसरिया, महावीर स्वमी केसरिया से भक्ति की बौछार कर दी।
आचार्यश्री ने कहा कि जो संयम और साधना की कसौटी पर खरा उतरता है, दीक्षा उसी की होती है। उन्होंने नाई ग्राम के निवासियों की सराहना करते हुए कहा कि यहां के निवासियों में सेवा और भक्तिभाव कूट-कूट कर भरा है। यही कारण है कि यहां पर इतने दिन का प्रवास हो पा रहा है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां कोई छोटा या बड़ा नहीं होता है। समस्त साधु एवं साध्वीव्न्द एक समान हैं और ये सभी हमारे संघ का श्रृंगार हैं।
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अनुमोदना - अनुमोदना - अनुमोदना
45 वां वर्षीतप (उपवास)
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