25.04.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 25.04.2016
Updated: 05.01.2017

Update

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Kids learning:))

Source: © Facebook

अगर आपको किसी ने कुत्ता कहा, और आपने भौंकना शुरू कर दिया तो उसने गलत क्या कहा। ---मुनि श्री तरूणसागर जी महाराज

If someone call you Dog, and you start barking/react as dog's nature. what wrong has he said? -Muni TarunSagar Ji.

Update

Source: © Facebook

✿ विश्व वंदनीय आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (ससंघ) इस समय कुंडलपुर (दमोह) में विराजमान हैं। तथा आचार्यश्री के सान्निध्य में 4 जून से 9 जून 2016 तक भव्य मस्तकाभिषेक होने जा रहा है। इस अवसर पर आप सभी आमंत्रित हैं। ✿ #exclusive #kundalpur #osam #picture ~Bade & Chote Baba Together:))

बड़े बाबा की प्रतिमा की खोज की कथा काफी रोचक है। सत्रहवीं शती के अंतिम वर्षों की बात है। दिगम्बर जैन परम्परा के भट्टारक श्री सुरेंद्र कीर्ति कई दिनों से अपने शिष्यों सहित विहार कर रहे थे। वे निराहारी थे, भोजन के लिए नहीं, देव दर्शन के लिए, कि कहीं कोई मंदिर मिल जाए, जहां तीर्थंकर प्रतिमा प्रतिष्ठित हो, तो मन की क्षुधा मिटे और इस शरीर को चलाने के लिए आवश्यक ईंधन ग्रहण करें। वो तृषित भी थे किंतु उनके नेत्रों में प्यास थी, किसी जैन प्रतिमा की मनोहारी छवि नयनों में समा लेने की। देव दर्शन के बगैर आहार ग्रहण न करने का नियम जो लिया था उन्होंने। घूमते-घूमते एक दिन दमोह के पास स्थित हिंडोरिया ग्राम में आकर अपने साथियों के साथ ठहरे। हिंडोरिया ग्रामवासी अपने को धन्य अनुभव कर रहे थे किंतु सबके हृदय में एक कसक थी। कई दिनों से देवदर्शन न होने के कारण उन्होंने आहार ग्रहण नहीं किया था, यह समाचार गांव के घर-घर फैल चुका था और आसपास दूर तक कहीं कोई जिनालय न था। कैसे संभव होगा भट्टारकजी को आहार देना। भाव-विह्वल श्रावक चिंतित थे। उन्होंने अपना ज्ञानोपदेश दिया। जैन श्रावकों ने उनके आहार के लिए चौके लगा दिए। प्रातःकाल ज्ञानोपदेश के पश्चात वे ग्राम में निकले। अनेक श्रावकों ने भट्टारकजी से आहार ग्रहण करने हेतु निवेदन किया किंतु उन्होंने किसी का भी निमंत्रण स्वीकार नहीं किया।

अचानक किसी को दैवीय प्रेरणा हुई। उसने सुझाया दूर पहाड़ी पर एक मूर्ति दिखती है, उसका धड़ और सिर ही दिखता है। उसका शेष भाग पत्थरों में दबा है। वह मूर्ति तीर्थंकर की ही लगती है। उसके दर्शन कर लें। मुनिश्री का मुखकमल आनंद से खिल उठा। प्रभु में निजस्वरूप के दर्शन की उत्कंठा तीव्र हो गई।

हिंडोरिया ग्राम व कुण्डलपुर क्षेत्र में २१ कि.मी. की दूरी है। उस समय झाड़-झंखाड़ से भरा दुर्गम जंगली रास्ता कितना लंबा, कितना दूर था, इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है किंतु एक-एक दिन में कोसों दूरियां नापने वाले जैन साधु इससे कब डरे हैं। एक दिन में ही कोसों की दूरी तय करके तेज डग भरते-भरते सूर्यास्त से पूर्व ही वे पहाड़ की तलहटी में जा पहुंचे।

पहाड़ी की चढ़ाई सरल न थी। प्रातःकाल उन्हें देवदर्शन मिल सकेगा, यह विचार उन्हें पुलकित कर रहा था। यद्यपि प्रभु तो उनके अंग-संग सदैव थे किंतु प्रत्यक्ष साकार दर्शन तो आवश्यक था। भोर होते ही वे चल पड़े उस पहाड़ी पर। दुर्गम पथ पर झाड़-झंखाड़ों के बीच से अपना रास्ता बनाते हुए, शिखर पर पहुंचने को। भान भी न रहा मन ही मन प्रभु का स्मरण करते हुए, कब वे शिखर पर जा पहुंचे।

उन्होंने दृष्टि उठाई तो देखते हैं, सामने ही है भव्य, मनोहारी एक दिव्य छवि। आदि तीर्थंकर की शांत, निर्विकारी सौम्य भंगिमा ने उनका मन मोह लिया। वे अपलक निहारते रह गए। पलकें अपने आप मुंद गईं, अंतरमन में उस छवि को संजो लेने के लिए। देव दर्शन की ललक पूर्ण हो गई। मन प्रफुल्लित हो उठा। आचार्य ने प्रभु का स्तवन किया। संघ ने अर्चन किया। संग आए ग्रामीणजन पूजन कर धन्य हुए। अर्चना के पश्चात जब दृष्टि चहुंओर डाली तो देखा, अनेक अलंकृत पाषाण खंड एवं परिकर सहित, अष्ट प्रतिहार्ययुक्त (छत्र, चंवर, प्रतिहारी, प्रभामंडल, चौरीधारिणी, गज, पादपीठ आदि) तीर्थंकर मूर्तियां यत्र-तत्र बिखरी पड़ी हैं। इस मूर्ति की भव्यता के अनुकूल ही निश्चित ही कोई विशाल मंदिर रहा यहां होगा, उन्होंने विचार किया। काल के क्रूर थपेड़ों से प्रभावित वे भग्नावशेष अपने अतीत की गौरव गाथा कह रहे थे।

उनके नैन दर्शन कर तृप्त थे। अब आहार के लिए जा सकते थे। लौट पड़े फिर आने को। ग्रामीणजन हर्षित थे उनको दो-दो उपलब्धियां हुई थीं। देवदर्शन हुए थे और हमारे पूज्य साधु आहार ग्रहण कर सकेंगे यह भाव भक्तों को आह्‌लादित कर रहा था। भट्टारकजी का संकल्प पूरा हुआ और भक्तों की भावना साकार हुई। उन्होंने आहार ग्रहण किया।

किंतु अब उनकी समस्त चेतना में वह वीतरागी छवि समा चुकी थी। उन्होंने मन ही मन कुछ संकल्प कर लिया। ग्रामीणजनों के सहयोग से धीरे-धीरे मलबा हटवाया तो आचार्य मन ही मन उस अनाम शिल्पी के प्रति कृतज्ञ हो गए, जो इतना कुशल होकर भी नाम और ख्याति के प्रति उदासीन था। दो पत्थरों को जोड़कर बने तथा दो हाथ ऊंचे सिंहासन पर विराजमान, लाल बलुआ पत्थर की मूर्ति, जो भारत में अपने प्रकार की एक है, के अनोखे तक्षक ने कहीं पर अपना नाम भी नहीं छोड़ा था। उस शुभ बेला में भट्टारकजी को सहज प्रेरणा जागी कि इस मंदिर का जीर्णोद्धार होना चाहिए। इस अनुपम मूर्ति की पुनः आगमोक्त विधि से वेदिका पर विराजित किया जाए तो आसपास का सारा क्षेत्र पावन हो उठेगा। अपना संकल्प उन्होंने कह सुनाया।

उनके शिष्य सुचि (कीर्ति) अथवा सुचंद्र (अभिलेख में नाम अस्पष्ट है) ने इस हेतु सहयोग जुटाने की अनुमति मांगी और जीर्णोद्धार का कार्य शुरू हुआ। भट्टारकजी ने चातुर्मास वहीं करने का संकल्प लिया। कार्य प्रारंभ हुआ ही था कि सुचंदकीर्तिजी की नश्वर देह पंच तत्वों में विलीन हो गई। तब उनके साधु सहयोगी ब्रह्मचारी नेमीसागरजी ने इस अपूर्ण कार्य को पूर्ण करने का भार अपने ऊपर ले लिया। दैवयोग, शूरवीर तथा राजा चम्पतराय व रानी सारंधा के पुत्र महाराज छत्रसाल अपनी राजधानी पन्ना छोड़कर इधर-उधर घूमते-घूमते कुण्डलपुर पधारे। उन्होंने भी इस अद्भुत मूर्ति के दर्शन किए।

ब्रह्मचारी नेमीसागर से भेंट होने पर उन्होंने महाराज छत्रसाल के सम्मुख जीर्णोद्धार हेतु भट्टारकजी का संकल्प निवेदन किया। महाराज स्वयं उस समय याचक बनकर घूम रहे थे। विशाल व उदार हृदय छत्रसाल ने फिर भी ब्रह्मचारीजी की बात को नकारा नहीं। यद्यपि परिस्थिति के हाथों विवश केवल इतना ही वचन दे पाए कि यदि मैं पुनः अपना राज्य वापस पा जाऊंगा तो राजकोष से मंदिर का जीर्णोद्धार कराऊंगा।

अतिशय था या छत्रसाल का पुण्योदय अथवा उनका सैन्य बल काम आया या प्रभु की कृपा हुई। किंतु बहुत शीघ्र ही पन्ना के सिंहासन पर वे पुनः प्रतिष्ठित हो गए। उन्हें अपना वचन याद था। निश्चित ही बड़े बाबा के दरबार में उनकी प्रार्थना स्वीकृत हुई थी क्योंकि वे उनकी शरण में गए थे। छत्रसाल को राज्य मिला और श्रद्धालुओं को ‘बड़े बाबा’। छत्रसाल ने ईश्वर को धन्यवाद दे, जीर्णोद्धार कराया और ‘बड़े बाबा’ अपने वर्तमान स्थान पर विराजमान हुए।

--- ♫ www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---

Source: © Facebook

निगाहों में माँ का प्यार।
होंठो पर बच्चों सी मुस्कान।
और दिल में रहम का दरिया।
संत की तस्वीर है।

- परम पूज्य क्षुल्लक श्री ध्यानसागरजी महाराज

Source: © Facebook

108 feet idol of our ideal Adinath Bhagwan @ mangi tungi

Source: © Facebook

:))

News in Hindi

Source: © Facebook

जय जिनेन्द्र बंधुओ- 1008 भगवान श्री शांतिनाथ जी की हजारो वर्ष प्राचीन 16 फुट ऊंचाई की अतिसुन्दर,मनोहारी,चमत्कारी प्रतिमा जी अतिशय क्षेत्र बहोरिबंद जि.कटनी म.प्र. में विराजमान है-Jainam Jayti Shasnam

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Yesterday Exclusive @Kundalpur:))

Sources
Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Digambar
      • Acharya Vidya Sagar
        • Share this page on:
          Page glossary
          Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
          1. Adinath
          2. JinVaani
          3. Kundalpur
          4. Mangi Tungi
          5. आचार्य
          6. तीर्थंकर
          7. दर्शन
          8. भाव
          9. शिखर
          Page statistics
          This page has been viewed 1531 times.
          © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
          Home
          About
          Contact us
          Disclaimer
          Social Networking

          HN4U Deutsche Version
          Today's Counter: