09.04.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 09.04.2016
Updated: 05.01.2017

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❖ समाधिस्थ तपस्वी सम्राट आचार्य श्री सन्मतिसागर जी का केशलुंचन करते हुए मुनि सुनीलसागर जी [ अब आचार्य सुनीलसागर जी ] की एक दुर्लभ पिक्चर:) ❖

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|| तीर्थंकर वंदना ||
कभी वीर बन के, महावीर बन के चले आना,
दरश मोहे दे जाना॥
तुम ऋषभ रूप में आना, तुम अजित रूप में आना।
संभवनाथ बन के, अभिनंदन बन के चले आना,
दरश मोहे दे जाना॥
तुम सुमति रूप में आना, तुम पद्‍म रूप में आना।
सुपार्श्वनाथ बन के, चंदा प्रभु बन के चले आना,
दरश मोहे दे जाना॥
तुम पुष्पदंत रूप में आना, तुम शीतल रूप में आना।
श्रेयांसनाथ बन के, वासुपूज्य बन के चले आना,
दरश मोहे दे जाना॥
तुम विमल रूप में आना, तुम अनंत रूप में आना।
धरमनाथ बन के, शांतिनाथ बन के चले आना,
दरश मोहे दे जाना॥
तुम कुंथु रूप में आना, तुम अरह रूप में आना।
मल्लिनाथ बन के, मुनि सुव्रत बन के चले आना,
दरश मोहे दे जाना॥
तुम नमि रूप में आना, तुम नेमि रूप में आना।
पार्श्वनाथ बन के, महावीर बन के चले आना,
दरश मोहे दे जाना॥
कभी वीर बन के, महावीर बन के चले आना,
दरश मोहे दे जाना॥

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#kundalpur #exclusive -READ THIS -Acharyo ke 36 mulGun hote hain Jaise muni ke 28 mulgun hote hain, ye page acharya shri Vidyasagarji ke naam se or ab ye page 36,000 likes ko pura karne ja raha h bahut jaldi kyoki aaj member 35,777 ho gaye h:)))

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ये पोस्ट हर जैन तक पहुंचनी चाहिए - (Share Maximum)
आगामी 19 अप्रैल, मंगलवार को भगवान महावीर जन्म कल्याणक (महावीर तेरस) है, अतः सभी जैन बंधु इस पावन अवसर पर अपने व्यापार, दुकान, ऑफिस, प्रतिष्ठान आदि पूर्ण रूप से बंद रखकर भगवान महावीर के प्रति पूर्ण श्रद्धा - भक्ति दर्शाएँ ।

मेरे इस निवेदन के पीछे मुख्य रूप से दो उद्देश्य हैं -

1. प्रथम तो इस अवसर पर सकल जैन समाज के सभी संगठनों द्वारा सामूहिक रूप से कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम किया जाना चाहिए, जैसे - प्रभात फेरी, शोभा यात्रा, भगवान महावीर जीवन झांकी आदि । साथ ही जीव दया अथवा मानव सेवा के कार्यक्रम भी आयोजित किए जा सकते हैं । इसके अलावा धर्म आराधना के कार्यक्रम भी किए जाने चाहिए । प्रतिष्ठान आदि बंद रखने से समाज के सभी सदस्य ऐसे कार्यक्रमों में सहभागी बन सकेंगे और अपनी उचित भूमिका भी निभा पाएंगे ।

2. सभी प्रतिष्ठान आदि बंद रहने से हमारे ग्राहकों, कस्टमर, क्लाईंट आदि जैनेतर लोगों को भी पता चलेगा कि आज जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म कल्याणक है । इससे अन्य समाज में हमारी एकता और धर्म के प्रति श्रद्धा भी दृष्टिगोचर होगी।

आश्चर्य और खेद की बात है कि सभी जीवों को मुक्ति मार्ग बताने के लिए, आत्म और पर कल्याण के लिए सभी सुख वैभव को छोड़कर, राजमहलों का त्याग करने वाले हमारे परम उपकारी जिनशासन नायक श्रमण भगवान महावीर के जन्म कल्याणक पर भी कुछ जैन बंधु अपने व्यवसाय और व्यापार में ही लगे रहते हैं, माया और लोभ को छोड़ नहीं पाते ।

मुझे विश्वास है कि आप मेरा आशय समझ कर इस वर्ष सभी जैन एक होकर भगवान महावीर जन्म कल्याणक को भव्य रूप से मनाने का सुंदर प्रयास करेंगे ।

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:))

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Video link: Jain Voice in World parliament of religion Chicago 1893- Virchand gandhi
Virchand Raghavji Gandhi born in Gujarat, first barrister of Jain community, he preached Jainism in 1893 world parliament of religion.

❖ The Gandhi before Gandhi [ VirchandRaghavji Gandhi -first barrister of Jain community, he preached Jainism in 1893 world parliament of religion ] ❖

The time was September 1893, the place "The world parliament of religion" in (Chicago)

"Sisters and brothers of America, it fills my heart joy unspeakable...." you must all recognize these words spoken in Chicago at the world parliament greeted by thunder applause, you must recognize that there was voice of Shree Swami Vivekananda.

But did you know there was another Indian whose heart beat only for his motherland...

VirchandRaghavji Gandhi born in Gujarat, first barrister of Jain community, he preached Jainism in 1893 world parliament of religion.

PRECIOUS CLIP: www.youtube.com/watch?v=NQOZxq6EOJo [ IncludingNarendraModi words about him ]

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सेविंग ब्लेड को कूड़े व् कचरे में बिलकुल न डालें -ek share is post ke naam,

जानकारी के अभाव में 90% घरो में ऐसा हो रहा है और अनजाने में हम पाप के भागीदार बन रहे हैं
प्रिय दोस्तों, एक ताजा जानकारी के अनुसार सेविंग करने के बाद कूड़ादान में ब्लेड के फेंकने के कारण हर साल हजारो पशूओ को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है
ध्यान दीजियेगा की कचरे में मुह मारते हुए जब ब्लेड जानवर के गले में फंसता है तो उसकी पीड़ा का हम अंदाजा भी नही लगा सकते वो बहोत जोर से छटपटाता है और फिर प्राण त्याग देता है
मूक जानवर के पास ब्लेड को गले से निकालने का कोई जरिया नही है
मेरे घर के पास कुछ ही दिनों पहले एक गउसाला में गाय ने प्राण त्याग दिए और बाद में पोस्टमार्टम में उसके पेट में ब्लेड चले जाने की पुष्टी हुयी
दोस्तों, पुराने ब्लेड को कचरे में डालने को बजाए घर पर कोई डिब्बे में डालना सुरु कर देवें
अगर आप हर रोज भी सेविंग करते हैं तो भी आप पांच साल में एक किलो के डिब्बे को पुराने ब्लेड से नही भर पायेगें
और जब आपको लगे की ज्यादा ब्लेड इकट्ठे हो गए है तो उन्हें जमीन में 2-3 फीट नीचे दबा देवे
2-3 महीने में ही उनमे जंग आ जाता है फिर वो किसी को हानि नही पहुचा सकते
नोट कीजिये ब्लेड से ज्यादा पैनी इस दुनिया में कोई चीज नही है...तलवार भी नही
कृपा इस जानकारी को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें

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❖ कुण्डलपुर (म.प्र.) में विराजित आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ गुरु भक्ति करते हुए ❖

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द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की है, जब हिरोशिमा और नागाशाकी परमाणु बम विस्फोट के दौरान पूर्णतः नष्ट हो गए थे, उसके बाद 15 अनुसन्धान कर्ताओ ने फिर से इन नगरो को बसाने की सोची, और उन्होंने यह कार्य कर भी दिखाया | उनसे पूछने पर पता चला की, नगर बसाने की बहुत अच्छी तरकीब उन्होंने जैन दिगम्बराचार्य समन्तभद्र स्वामी के ८०,००० श्लोक प्रमाण महान ग्रन्थ - "गंधहस्ति - महाभस्य" से प्राप्त की, यह और इसके जैसे काफी अन्य ग्रन्थ ब्रिटिश और मुग़ल काल में काफी मात्र में विदेश भेज दिए गए या फिर अग्नि को समर्पित कर दिए गए | उत्तम सत्य धर्म की जय | यह बात बा.ब्र.विनय भैय्या ने बताई, जो की प्रख्यात लेखक और प्रख्यात विद्वान - प्रो. धर्मपाल जी(जिन्होंने भारत की समृद्धि पर "सोने की चिड़िआ और लुटेरे अँगरेज़" और "१८वी सदी में भारत में विज्ञान और तंत्र ज्ञान" जैसी पुस्तकें लिखी, साथ ही जो राजीव दीक्षित जैसे देशभक्त व्यक्ति के गुरु भी रहे हैं) के साथ रहे हैं |

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❖ क्षु.श्री ध्यानसागरजी महाराज

पूर्वनाम-श्री प्रकाशचंदजी
पिता-श्री पी सी पाण्डया
माता-श्रीमति सावित्रीदेवी जी
जन्म-9।4।1962भिलाई मेँ
शिक्षा-एमबीबीएस तृतीयवर्ष
ब्र.व्रत-15।11।1984 जबलपुरमढियाजी मेँ
क्षु.दीक्षा-8।11।1985 अहार जी मेँ
गुरु-आ.श्री विद्यासागर जी॥

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❗️❗️कर्मों की होली❗️❗️

मुनिराज पेड के नीचे बेठे थे! ध्यानमग्न! कर्मो की होली जला रहे थे! दो श्रावक वहाँ से निकले! तीर्थंकर प्रभु के समवशरण मे जा रहे थे! वो समवशरण मे जाते ही भगवान से पूछते हैं! भगवन! हमारे नगर के राजा ने मुनि दीक्षा ग्रहण की है और वे पेड के नीचे बेठे ध्यान कर रहे है! उनके संसार मे कितने भव शेष हैं?

तीर्थंकर प्रभु की वाणी मे आया - उनके संसार मे इतने भव शेष हैं जितने उस पेड मे पत्ते!
श्रावक -प्रभु! वो तो इमली के पेड के नीचे बैठे हैं! इमली के पेड के पत्ते गिने जा सकते हैं क्या?

भगवन ने कहा -हाँ उतने ही भव शेष हैं
श्रावको ने पूछा -और भगवन हमारे?
भगवन -तुम्हारे केवल सात व आठ भव शेष हैं!

वे श्रावक क्या थे कि बस अहंकार मे फूल गए कि मुनि के इतने भव शेष हैं जितने इमली के पेड मे पत्ते व हमारे केवल सात व आठ!
सम्यक्दर्शन का अभाव था! मुनि के पास आये और आते ही कहा! अरे पाखंडी घर बार छोड़ कर किसलिए तपस्या मे लगे हो,तुम्हे अभी संसार मे इतना भटकना है,इतने भव धारण करने हैं जितने इस इमली के पेड मे पत्ते!

मुनिराज मुस्कुराए -सोचते हैं तीर्थंकर प्रभु की वाणी मिथ्या तो हो नही सकती! कम से कम इतना प्रमाण तो मिल ही गया कि मुझे केवलज्ञान होगा! मोक्ष सुख की प्राप्ति होगी! मुनिराज ने समाधिमरण किया व पहले का निगोद आयु का बंध किया हुआ था सो निगोद मे चले गए! और निगोद मे एक भव कितने समय का? एक श्वांस मे अठरह भव होते हैं,निगोद मे इमली के पत्तों के बराबर भव काटने हैं! एक सप्ताह के अंदर निगोद मे गए भी और वापस भी आ गए! निगोद से निकलकर उसी नगर मे मनुष्य भव धारण किया अर्थात आठ वर्ष अंतरमुहूर्त के बाद फिर मुनि गए और बैठ गए ध्यान मग्न उसी इमली के पेड के नीचे! एक अंतर मुहूर्त अगले मनुष्य भव का,आठ दिन निगोद आयु के व आठ वर्ष बालक अवस्था के! वही श्रावक फिर उसी रास्ते से तीर्थंकर प्रभु के दर्शन को गुजरे! समवशरण मे पहुँच कर प्रभु से वही सवाल!

भगवन कहते हैं -आठ वर्ष पहले जो मुनिराज वहाँ तप कर रहे थे,ये मुनिराज उसी मुनि का जीव है जो निगोद मे अपनी बंध की हुई आयु पूरी करके फिर से मनुष्य भव मे आकर तप कर रहे हैं और जब तक तुम वहाँ वापस पहुंचोगे उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी होगी!
ओह धिक्कार है हमारे इस जीवन को अभी हमें सात आठ भव मे न जाने कितना काल इस पृथ्वी पर बिताना है और धन्य है उन मुनिराज का जीवन जो हमारे जीते जी ही केवल ज्ञान को प्राप्त हो गए!

हम अहंकार मे रहते हैं कि मै मनुष्य हूँ और चींटी को रोंद देते हो पैरों से! ध्यान रखना चींटी हमसे व तुमसे पहले मोक्ष जा सकती है अगर मरकर विदेह क्षेत्र का मनुष्य योनि का पहले बंध किया हुआ होगा

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मोहन काका डाक विभाग के कर्मचारी थे। बरसों से वे माधोपुर और आस पास के गाँव में चिट्ठियां बांटने का काम करते थे।

एक दिन उन्हें एक चिट्ठी मिली, पता माधोपुर के करीब का ही था लेकिन आज से पहले उन्होंने उस पते पर कोई चिट्ठी नहीं पहुंचाई थी।

रोज की तरह आज भी उन्होंने अपना थैला उठाया और चिट्ठियां बांटने निकला पड़े। सारी चिट्ठियां बांटने के बाद वे उस नए पते की ओर बढ़ने लगे।
दरवाजे पर पहुँच कर उन्होंने आवाज़ दी, “पोस्टमैन!”

अन्दर से किसी लड़की की आवाज़ आई, “काका, वहीं दरवाजे के नीचे से चिट्ठी डाल दीजिये।”

“अजीब लड़की है मैं इतनी दूर से चिट्ठी लेकर आ सकता हूँ और ये महारानी दरवाजे तक भी नहीं निकल सकतीं!”, काका ने मन ही मन सोचा।

“बहार आइये! रजिस्ट्री आई है, हस्ताक्षर करने पर ही मिलेगी!”, काका खीजते हुए बोले।

“अभी आई।”, अन्दर से आवाज़ आई।

काका इंतज़ार करने लगे, पर जब 2 मिनट बाद भी कोई नहीं आयी तो उनके सब्र का बाँध टूटने लगा।

“यही काम नहीं है मेरे पास, जल्दी करिए और भी चिट्ठियां पहुंचानी है”, और ऐसा कहकर काका दरवाज़ा पीटने लगे।

कुछ देर बाद दरवाज़ा खुला।

सामने का दृश्य देख कर काका चौंक गए।

एक 12-13 साल की लड़की थी जिसके दोनों पैर कटे हुए थे। उन्हें अपनी अधीरता पर शर्मिंदगी हो रही थी।

लड़की बोली, “क्षमा कीजियेगा मैंने आने में देर लगा दी, बताइए हस्ताक्षर कहाँ करने हैं?”

काका ने हस्ताक्षर कराये और वहां से चले गए।

इस घटना के आठ-दस दिन बाद काका को फिर उसी पते की चिट्ठी मिली। इस बार भी सब जगह चिट्ठियां पहुँचाने के बाद वे उस घर के सामने पहुंचे!

“चिट्ठी आई है, हस्ताक्षर की भी ज़रूरत नहीं है…नीचे से डाल दूँ।”, काका बोले।

“नहीं-नहीं, रुकिए मैं अभी आई।”, लड़की भीतर से चिल्लाई।

कुछ देर बाद दरवाजा खुला।

लड़की के हाथ में गिफ्ट पैकिंग किया हुआ एक डिब्बा था।

“काका लाइए मेरी चिट्ठी और लीजिये अपना तोहफ़ा।”, लड़की मुस्कुराते हुए बोली।

“इसकी क्या ज़रूरत है बेटा”, काका संकोचवश उपहार लेते हुए बोले।

लड़की बोली, “बस ऐसे ही काका…आप इसे ले जाइए और घर जा कर ही खोलियेगा!”

काका डिब्बा लेकर घर की और बढ़ चले, उन्हें समझ नहीं आर रहा था कि डिब्बे में क्या होगा!

घर पहुँचते ही उन्होंने डिब्बा खोला, और तोहफ़ा देखते ही उनकी आँखों से आंसू टपकने लगे।

डिब्बे में एक जोड़ी चप्पलें थीं। काका बरसों से नंगे पाँव ही चिट्ठियां बांटा करते थे लेकिन आज तक किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया था।

ये उनके जीवन का सबसे कीमती तोहफ़ा था…काका चप्पलें कलेजे से लगा कर रोने लगे; उनके मन में बार-बार एक ही विचार आ रहा था- बच्ची ने उन्हें चप्पलें तो दे दीं पर वे उसे पैर कहाँ से लाकर देंगे?

दोस्तों, संवेदनशीलता या sensitivity एक बहुत बड़ा मानवीय गुण है। दूसरों के दुखों को महसूस करना और उसे कम करने का प्रयास करना एक महान काम है। जिस बच्ची के खुद के पैर न हों उसकी दूसरों के पैरों के प्रति संवेदनशीलता हमें एक बहुत बड़ा सन्देश देती है। आइये हम भी अपने समाज, अपने आस-पड़ोस, अपने यार-मित्रों-अजनबियों सभी के प्रति संवेदनशील बनें…आइये हम भी किसी के नंगे पाँव की चप्पलें बनें और दुःख से भरी इस दुनिया में कुछ खुशियाँ फैलाएं!!

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