30.03.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 30.03.2016
Updated: 05.01.2017

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आजकल कुछ तथाकथित धार्मिक लोग पंथवाद और संगवाद में आ कर मुनि निंदा करते हे और धर्म की हर चीज में गलतिया निकालते हे और अपने आपको धार्मिक समझते हे...

उनके लिए आचार्य श्री के द्वारा कही गयी बहुत गहरी बात...

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❖ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के दुर्लभ प्रवचन हिंदी संस्करण!! -निरंतर ज्ञानोपयोग ❖

ज्ञान का प्रवाह तो नदी के प्रवाह की तरह है। उसे सुखाया नहीं जा सकता, बदला जा सकता है। इसी प्रकार ज्ञान का नाश नहीं किया जा सकता है, उसे स्व-पर कल्याण की दिशा में प्रवाहित किया जा सकता है। यही ज्ञानोपयोग है।

‘अभिक्ष्णज्ञानोपयोग’ शब्द तीन शब्दों से मिल कर बना है - अभिक्ष्ण+ज्ञान+उपयोग अर्थात निरंतर ज्ञान का उपयोग करना ही अभिक्ष्णज्ञानोपयोग है। आत्मा में अनंत गुण हैं और उनके कार्य भी अलग-अलग हैं। ज्ञान गुण इन सभी की पहचान करता है। सुख जो आत्मा का एक गुण है उसकी अनुभूति भी ज्ञान द्वारा ही संभव है। ज्ञान ही वह गुण है जिसकी सहायता से पाषाण में से स्वर्ण को, खान में से हीरा, पन्ना आदि को पृथक किया जा सकता है। अभिक्ष्णज्ञानोपयोग ही वह साधन है जिसके द्वारा आत्मा की अनुभूति और समुन्नति होती है। उसका विकास किया किया जा सकता है।

आज तक इस ज्ञान की धारा का दुरुपयोग ही किया गया है। ज्ञान का प्रवाह तो नदी के प्रवाह् की तरह है। जैसे गंगा नदी के प्रवाह को सुखाया नहीं जा सकता, केवल उस प्रवाह के मार्ग को हम बदल सकते हैं, उसी प्रकार ज्ञान के प्रवाह को सुखाया नहीं जा सकता, केवल उसे स्व-पर हित के लिए उपयोग मे लाया जा सकता है। ज्ञान का दुरुपयोग होना विनाश है और ज्ञान का सदुपयोग करना ही विकास है, सुख है, उन्नति है। ज्ञान के सदुपयोग के लिए जागृति परम आवश्यक है। हमारी हालत उस कबूतर की तरह हो रही है जो पेड पर बैठा है और पेड के नीचे बैठी बिल्ली को देखकर अपना होश-हवास खो देता है, अपने पंखो की शक्ति को भूल बैठता है और स्वयं घबराकर उस बिल्ली के समक्ष गिर जाता है तो उसमे दोष कबूतर का ही है। हम ज्ञान की कदर नहीं कर रहे बल्कि जो ज्ञान द्वारा जाने जाते हैं उन ज्ञेय पदार्थ की कदर कर रहे है। होना इसके विपरीत चाहिए था अर्थात ज्ञान की कदर होनी चाहिए।

ज्ञेयों के संकलन मात्र में यदि हम ज्ञान को लगा दें और उनके समक्ष अपने को हीन मानने लग जायें तो यह ज्ञान का दुरुपयोग है। ज्ञान का सदुपयोग तो यह है कि हम अंतर्यात्रा प्रारम्भ कर दें और यह अंतर्यात्रा एक बार नहीं, दो बार नहीं, बार-बार अभीक्ष्ण करने का प्रयास करें। यह अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग केवलज्ञान को प्राप्त कराने वाला है, आत्म-मल को धोने वाला है। जैसे बेला की लालिमा के साथ ही बहुत कुछ अन्धकार नष्ट हो जाता है उसी प्रकार अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग द्वारा आत्मा क अन्धकार भी विनष्ट हो जाता है और केवलज्ञान रुपी सूर्य उदित होता है। अत: ज्ञानोपयोग सतत चलना चाहिए। ‘उपयोग’ का दूसरा अर्थ है चेतना। अर्थात अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग अपनी खोज यानी चेतना की उपलब्धि का अमोघ साधन है। इसके द्वारा जीव अपनी असली सम्पत्ति को बढाता है, उसे प्राप्त करता है, उसके पास पहुँचता है।

अभीक्ष्णज्ञानोपयोग का अर्थ केवल पुस्तकीय ज्ञान मात्र नहीं है। शब्दों की पूजा करने से ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती। सरस्वती की पूजा का मतलब तो अपनी पूजा से है, स्वात्मा की उपासना से है। शाब्दिक ज्ञान तो केवल शीशी के लेबल की तरह है। यदि कोइ लेबल मात्र घोंट कर पी जाये तो क्या उससे स्वास्थ्य-लाभ हो जायेगा? क्या रोग मिट जायेगा? नहीं, कभी नहीं। अक्षर ज्ञानधारी बहुभाषाविद पण्डित नहीं हैं। वास्तविक पण्डित तो वह है जो अपनी आत्मा का अवलोकन करता है। ‘स्वात्मानं पश्यति य: स: पण्डित:’। पढ़-पढ़ के पण्डित बन जाये किंतु निज वस्तु की खबर न हो तो क्या वह पण्डित है? अक्षरों के ज्ञानी पण्डित अक्षर का अर्थ भी नहीं समझ पाते। ‘क्षर’ अर्थात नाश होने वाला और ‘अ’ के मायने ‘नहीं’ अर्थात मैं अविनाशी हूँ, अजर-अमर् हूँ, यह अर्थ है अक्षर का, किंतु आज का पण्डित केवल शब्दों को पकड कर भटक जाता है।
शब्द तो केवल माध्यम है अपनी आत्मा को जानने के लिए, अन्दर जाने के लिए। किंतु हमारी दशा उस पण्डित की तरह है जो तैरना न जान कर अपने जीवन से भी हाथ धो बैठता था। एक पण्डित काशी से पढकर आये। देखा, नदी किनारे मल्लाह भगवान की स्तुति में संलग्न है। बोले - “ए मल्लाह! ले चलेगा नाव में, नदी के पार”। मल्लाह ने उसे नाव में बिठा लिया। अब चलते-चलते पण्डित जी रौब झाडने लगे अपने अक्षर ज्ञान का। मल्लाह से बोले - “कुछ पढा-लिखा भी है? अक्षर लिखना जानता है?” मल्लाह तो पढा-लिखा था ही नहीं, सो कहने लगा - पण्डित जी मुझे अक्षर ज्ञान नही है। पण्डित बोले– तब तो बिना पढे तुम्हारा आधा जीवन ही व्यर्थ हो गया। अभी नदी में थोड़ॆ और चले थे कि अचानक तूफान आ गया। पण्डितजी घबराने लगे। नाविक बोला पण्डितजी मैं अक्षर लिखना नही जानता मगर तैरना जरुर जानता हूँ। अक्षर ज्ञान न होने से मेरा तो आधा जीवन गया परंतु तैरना न जानने से आपका तो सारा जीवन ही व्यर्थ हो गया।

हमें तैरना भी आना चाहिए। तैरना नहीं आयेगा तो हम संसार समुद्र से पार नहीं हो सकते। अत: दूसरों का सहारा ज्यादा मत ढूंढो। शब्द भी एक तरह का सहारा है। उसके सहारे, अपना सहारा लो। अन्तर्यात्रा प्रारम्भ करो।
ज्ञेयों का संकलन मात्र तो ज्ञान का दुरुपयोग है। ज्ञेयों में मत उलझो, ज्ञेयों के ज्ञाता को प्राप्त करो। अभीक्ष्णज्ञानोपयोग से ही ‘मैं कौन हूँ’ इसका उत्तर प्राप्त हो सकता है।

परमाण नय निक्षेप को न उद्योत अनुभव में दिखै।
दृग ज्ञान सुख बलमय सदा नहीं आन भाव जु मो बिखै॥
मैं साध्य साधक में अबाधक कर्म अरु तसु फलनि तैं।
चित पिंड चंड अखण्ड सुगुण-करण्ड च्युत पुनि कलनि तैं॥
शुध्दोपयोग की यह दशा इसी अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग द्वारा ही प्राप्त हो सकती है।

अत: मात्र साक्षर बने रहने के कोई लाभ नहीं है। ‘साक्षर’ का विलोम ‘राक्षस’ होता है। साक्षर मात्र बने रहने में ‘राक्षस’ बन जाने का भी भय है। अत: अन्तर्यात्रा भी प्रारम्भ करें, ज्ञान का निरंतर उपयोग करें अपने को शुद्ध बनाने के लिए।
हम अमूर्त्त स्वभाव वाले हैं, हमें छुआ नहीं जा सकता, हमें चखा नहीं जा सकता, हमें सुंघा नहीं जा सकता, किन्तु फिर भी हम मूर्त्त बने हुए हैं क्योंकि हमारा ज्ञान मूर्त्त पदार्थो को संजोने में लगा हुआ है। अपने उस अमूर्त्त स्वरुप की उपलब्धि, ज्ञान की धारा को अन्दर आत्मा की ओर मोड़ने पर ही सम्भव है

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Bhaktamara Stotra Healing

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आचार्य श्री विद्यासागरजी मुनिराज बडे बाबा के मन्दिर पहुँच चुके है जो अपने विशाल संघ सहित बड़े बाबा के पावन चरणों की छाँव तले पहुँच चुके है🏵

बड़े बाबा और छोटे बाबा का महामिलन
विशेष 9 वर्षों के लम्बे अंतराल के बाद हम सबके अजस्त्र सौभाग्य कुण्डलपुर पहुँचे है
31 मुनिराज प्रथम बार मुनि दीक्षा के पश्चात् बड़े बाबा के दर्शन कर रहे है,बुन्देली दरबार में पहुँचेंगे बुन्देलखंड के आराध्य विद्यासिंधु
नमोस्तु बड़े बाबा नमोस्तु छोटे बाबा

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बड़े बाबा की नगरी में, छोटे बाबा के आगमन पर, प्रथम आहार चर्या का सौभाग्य कुण्डलपुर अध्यक्ष संतोष सिंघई एवं उनके परिवार को प्राप्त होने पर उन्हें ह्रदय से बधाई के साथ अनेकानेक शुभकामना!!!

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बड़े बाबा को अपलक निहारते हुए छोटे बाबा -LIVE PHOTO

👆🏻इस मिलन पे तो वक़्त भी ठहर जाता है..
लोग झूठ कहते हैं की वक्त किसी का गुलाम नई होता🙏 from Bajesh Jain, Patan:))

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Acharya VidyaSagar Ji.. @ Kundalpur!! Chote baba.. Bade baba charno me virajit!!! gajab.. Live picture from Kundalpur.. Aao aao ji.. Aao aao ji aao maharaj padharo mhare aanganiya:))) m so happy to see this moment

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Biggest Surprise and awaited moment.. Bade baba ke charno me chote baba virajmaan -Live Picture:)) jay ho waoooo.. Acharya Shri VidyaSagar Ji @ Kundalpur!!!

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कुण्डलपुर के बडे बाबा श्री १००८ आदिनाथ भगवान जी का जन्म कल्याणक दिनांक 1-4-2016 को है क्यों ना सब कुण्डलपुर चले छोटे बाबा के साथ बडे बाबा का जन्म कल्याणक मनाने। 🏃🏻चलो सब कुण्डलपुर🏃🏻

पखिंडा तू उड के जाना कुण्डलपुरी रे बडे बाबा से कहना छोटे बाबा आ रहे...

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