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❖ चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर महाराज का जीवन चरित्र तथा संस्मरण - ये नहीं पढ़ा तो क्या पढ़ा!! ❖
शान्तिसागर जी महाराज पर सर्प ने दो बार उपसर्ग किया तथा इनके सामने शेर कई आया था मुक्तागिरी में, श्रवणबेलगोला में, सोनागिरी सिद्ध क्षेत्र में, द्रोणगिरी में इत्यादी!
आचार्य श्री प्रतिदिन आगम के 50 पन्नो का स्वाध्याये करते थे, आचार्य पद सम्डोली, महाराष्ट्र में प्राप्त हुआ था, गजपंथ सिद्ध क्षेत्र में आचार्य श्री को “चारित्र चक्रवर्ती” पद से विभूषित किया गया था, अपने गुरु आचार्य देवेन्द्र कीर्ति जी महाराज को पुनः दीक्षा देकर ये शान्तिसागर जी गुरु के गुरु कहलाये थे, पुनः दीक्षा का कारण ये था की जब आहार के लिए चटाई इत्यादि ओढ़ कर आते थे तो उनको इस बात का एहसास हुआ की ये जो कार्य दिगम्बर मुद्रा में किया है ये अनुचित है इसलिए हमें वापस दीक्षा लेना होगा,
आचार्य शान्तिसागर जी महाराज ने णमोकार मंत्र के अठारह करोड़ जाप किये थे, धवल, महाधवल, जयधवल ग्रंथो को ताम्र पात्र पर खुदवा कर आचार्य श्री ने सिद्धांत ग्रंथो की रक्षा की थी, आज वो ताम्र पात्र फलटन में सुरक्षित है!
”भगवान की वाणी पर पूर्ण विश्वास करो, इसके एक-एक शब्द से मोक्ष पा जाओगे। इस पर विश्वास करो। सत्य वाणी यही है कि एक आत्म-चिन्तन से सब साध्य है और कुछ नहीं है।“
* ये जीवन चरित्र तथा संस्मरण क्षुल्लक ध्यानसागर जी महाराज (आचार्य विद्यासागर जी महाराज से दीक्षित शिष्य) के प्रवचनों के आधार पर लिखा गया है! टाइप करने में मुझसे कही कोई गलती हो गई हो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ! –Nipun Jain
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भक्ति बेकरार हैं, आनंद अपार हैं! पारस प्रभु चरणो में जय जयकार हैं!!!:))
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B'ful Click of Girnar Ji -आज गिरनार जी -नेमीप्रभु मोक्ष भूमि के दर्शन.. म्हारा गिरनार.. नेमीप्रभु वंदन share it!!
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Jay ho
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Ach Shri Vidyasagarji ke sandhiye me Live - पाण्डुक शिला पे जन्माभिषेक@कटंगी👆🏻
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पूज्य ज्ञानमति माताजी ने 2016 का चातुर्मास मांगी-तुंगी में करने की स्वीकृति प्रदान की!!
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जय जिनेन्द्र कहने के फायदे ही फायदे:-👏🏼
''जय जिनेन्द्र'' कहना जैनत्व की प्रमुख पहचान है। हम पूरे दिन में शायद भगवान का स्मरण करने के लिए समय न निकाल पाए, लेकिन जय जिनेन्द्र कहने से हम स्वतः जिनेन्द्र परमात्मा को नमस्कार करते हैं। वो भी सिर्फ एक या 2 तीर्थंकर को नहीं, बल्कि भूत, भविष्य व वर्तमान के सभी तीर्थंकर की जय बुलाने का लाभ मिलता है। एवं जिसे हम जय जिनेन्द्र कह रहे हैं, उसकी आत्मा भी ''जिन'' बनने का सामर्थ्य रखती है। तो हम उस जिन को भी वंदन करते है और उसकी आत्मा से भी सम्बन्ध जोड़, मैत्री भाव भी पाते हैं!
卐卐卐 जय जिनेन्द्र